हमारी शिक्षा व्यवस्था

Amit Srivastav

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हमारी शिक्षा व्यवस्था

शिक्षा जीवन का मूल आधार है, जब मनुष्य को उचित एवं समुचित शिक्षा प्राप्त होती है, तब मनुष्य अपने जीवन में बहुत सारी उपलब्धियां हासिल करता है, साथ ही देश का भविष्य उज्ज्वल होता है। शिक्षा पर सरकार द्वारा तरह-तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं।

हमारी शिक्षा व्यवस्था

प्राथमिक व जूनियर शिक्षा में बच्चों के लिए मनोरंजन स्वरूप नृत्य व गान का खासा प्रबन्ध किया जा रहा है, विद्यालयों में संगीत व नृत्य के माध्यम से नीचली कक्षाओं से पढ़ाये जाने की व्यवस्था की गई है, बच्चों को संस्कारी मूल शिक्षा से अधिक मनोरंजन पर ध्यानाकर्षित किए जाने का गाइडलाइंस दिया गया है। नृत्य और संगीत से अब भारत देश का भविष्य उज्ज्वल होगा, ऐसा वर्तमान सरकार की उपलब्धियों में शामिल है। अभी कुछ साल पहले तक प्राइमरी और जूनियर विद्यालयों में बच्चों का ध्यान पढ़ाई नही सिर्फ एमडीएम पर केन्द्रित रहता था, अब तो बच्चों का ध्यान मनोरंजन पर भी केन्द्रित किया जा रहा है।

जगह-जगह अध्यापक व अध्यापिकाओं को नृत्य एवं गान का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, देखिए इस वायरल बीडीओ के शुरुआत में, कही अश्लील गीतों पर जिले का आलाकमान अधिकारी शिक्षिकाओं संग नृत्य करते देखा जा रहा है, तो कहीं भरपूर अश्लीलता भरा मस्ती देखने को मिल रही है। क्या इसी नृत्य और मस्ती से देश का भविष्य उज्ज्वल होगा? विद्यालय परिसर में अध्यापक अध्यापिका अश्लीलता भरी हरकत करते हैं खुद ही सेल्फी, फोटो खिंच शोषण मिडिया के प्लेटफार्म पर शेयर भी करते हैं ऐसा भारतीय शिक्षा के मंदिरों से हो रहा है।
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सोचने और समझने का अभी समुचित समय है। विद्यालयों में शिक्षकों की कमी सरकार को नजर नहीं आ रही है। कोई भी विद्यालय अछूता नहीं जहां विषय वार अध्यापकों की कमी न हो। सिमित शिक्षक सरकार की मंशा के अनुसार बाल गणना, जन गणना, पशु गणना, बीएलओ ड्यूटी, चुनाव ड्यूटी, आपदा राहत कार्य, और तमाम एप जिसपर ससमय आनलाईन कार्य में लगे रहना अनिवार्य है। भारत देश से शिक्षा व्यवस्था की स्थिति को सार्वजनिक करना प्राइमरी स्कूल से शुरू कर रहे हैं… प्राइमरी स्कूलों में पांच कक्षाएं होती हैं और अध्यापक कही एक तो कहीं दो, से अधिक तीन, एक हेडमास्टर जिसके जिम्मे पांचों कक्षाओं में बच्चों की उपस्थिति का नियमित ब्योरा भरना, मिड डे मील बनवाना, फिर बच्चों के खान-पान पर ध्यान देना, आये दिन आनलाईन और आफलाइन मिटिंग में प्रतिभाग करना, ब्लाक संसाधन केंद्र, तहसील व जिले की परिक्रमा करना, नियमित रूप से कुछ न कुछ डाटा आफलाइन और आनलाईन प्रेषित करना, गरूड वरूण बीएलओ ऐप, प्रेरणा डी. बी. टी., प्रेरणा लक्ष्य, निपुण लक्ष्य, प्रेरणा निरीक्षण, शारदा यूपी, आनलाईन संबद्धता, गूगल मीट, एम शिक्षा मित्र, दीक्षा पोर्टल, मानव संपदा आदि ऐप में लगे रहना सरकार की मंशा है। कभी रैली निकालना तो कभी सरकार की उपलब्धियों पर चर्चा करना वगैरह वगैरह मतलब एक अध्यापक जो हेडमास्टर बनाया गया है, उसके पास एक पल का समय नहीं जो बच्चों को स्कूल में शिक्षा मुहैया कराने का कार्य करे। सोचिए जहां परिषद के विद्यालयों में एकल अध्यापक है वहां गरीब परिवारों के बच्चों की पढ़ाई व्यवस्था क्या है? जहां एक से अधिक वहां अधिकतम दो, तीन ही शिक्षक नियुक्त हैं, वह भी हर विषय के लिए नहीं हैं, फिर भी सम्पूर्ण शिक्षा का दायित्व सम्भाले सरकार की मंशा के अनुसार चल रहे हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है जो प्राथमिक विद्यालय शिक्षा का नीवं होता है वहीं से सरकार शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करते अब आगे बढ़ती है… जूनियर विद्यालयों में, यहां सम्पूर्ण विषय बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल होता है।
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कोई भी विद्यालय ऐसा नहीं जहां हर विषय विशेष अध्यापकों की भर्ती की गई हो। प्राथमिक व जूनियर विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था शिक्षा मित्रों और अनुदेशकों के बदौलत बरकरार है, इन्हें अलग कर देखा जाए तो आज तमाम विद्यालयों का ताला खोलने वाला कोई नहीं है। एक अध्यापक की तनख्वाह में दशों शिक्षा मित्र और अनुदेशकों को रखा गया है और शैक्षणिक, गैर शैक्षणिक कार्यों की सम्पूर्ण जिम्मेदारियां उन मानदेय शिक्षकों के ऊपर दे दी गई है। मानदेय शिक्षक सरकार द्वारा थोड़ा धन खर्च में सभी कार्य करते हैं इस लिए हर कार्य के लिए योग्य हैं। इण्टर कालेजों की स्थिति से सभी अवगत हैं जिन बच्चों के पास कोचिंग की व्यवस्था नहीं उन बच्चों के पढ़ाई का कोई भविष्य नहीं है, मुख्य कारण है इण्टर कालेजों में विषय वार अध्यापकों का न होना। प्रबन्धकीय मान्यता प्राप्त विद्यालयों को छोड़कर आते हैं आवासीय व्यवस्था के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा संचालित जवाहर नवोदय विद्यालय, व समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालय, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों पर…

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जवाहर नवोदय विद्यालय जिले का माना-जाना विद्यालय होता था, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जिलों के होनहार बच्चों के बीच स्पर्धा करा इन विद्यालयों में निशुल्क शिक्षा कि व्यवस्था की हाई क्वालिटी के अध्यापकों की विषय वार नियुक्ति थी, इन विद्यालयों में अध्यापकों की कमी नहीं रहती थी, न ही बच्चों को दी जाने वाली सुविधाओं में, आज इन विद्यालयों में अध्यापकों की कमी के साथ साथ सुविधाओं में कटौती की जा रही है खान-पान जरुरत की सामग्री की पूर्ति तो अभिभावकों द्वारा कर ली जा रही है किन्तु अध्यापकों की कमी अभिभावकों द्वारा कैसे कि जा रही है यह बताना देश की सबसे बेहतरीन विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था का पोल खोलने के बराबर है… दस बीस हज़ार रुपये की मोबाइल फ़ोन, हाई-स्पीड तीन-चार पांच सौ महिने का डाटा और चार पांच हज़ार में विषय वार आनलाईन कोर्स। शिक्षा व्यवस्था पर चर्चा करते कितना शर्मनाक बात है जिलों के होनहार बच्चे अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए जवाहर नवोदय विद्यालयों में अध्यापक कमी व जो हैं में लापरवाही के कारण आनलाईन शिक्षा का सहारा ले रहे हैं।

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अब आते हैं राज्य सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित राजकीय आश्रम पद्धति के विद्यालयों पर इन विद्यालयों में जिले से 46 हजार कम आय वर्ग के होनहार बच्चों का प्रतिस्पर्धा के द्वारा चयन किया जाता है। जिले भर से गरीब परिवारों के होनहार बच्चे इन सरकार की आवासीय विद्यालयों में आकर अध्यापकों की कमी के कारण पढ़ाई से वंचित होने के लिए मजबूर हो रहे हैं। आश्रम पद्धति विद्यालयों में न ही हर विषय अध्यापकों की उपलब्धता है न ही बच्चों को दी जाने वाली बुनियादी सुविधाओं की। समाज कल्याण विभाग अधिकारी से जानकारी लिए जाने पर ज्ञात हुआ सरकार की मंशा के अनुरूप सब कार्य हो रहा है, मानदेय पर अस्थायी व्यवस्था करना भी सरकार की मंशा में नही है। मतलब स्पष्ट है इन आवासीय विद्यालयों में अध्यापकों की कमी, सरकार बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का खेल खेल रही है। अभिभावक न अपने बच्चों को कोचिंग की सुविधा दे पायेगा न विद्यालयों में अध्यापक होगें, ऐसे में जिले के होनहार बच्चों को आवासीय विद्यालयों में नामांकित कर आसानी से शिक्षा से वंचित कर दिया जायेगा।

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कस्तूरबा गांधी विद्यालयों पर तो बीजेपी शासन काल में चर्चा भी करना बेकार है उन विद्यालयों में न शिक्षा कि व्यवस्था है न संसाधनों की उपलब्धता। निजी गुरुकुल विद्यालयों को छोड़ अन्य सभी विद्यालयों के बच्चों से संस्कार भी कोषों दूर होता जा रहा है। भारत देश की केन्द्र और राज्य की सरकारें शिक्षा को लेकर झूठी डींग हांकते शर्माती भी नही कि निशुल्क और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मुहैया कराने का कार्य किया जा रहा है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था से न मनुष्य जीवन में समुचित सकारात्मक बदलाव दिखाई दे रहा है न देश का भविष्य उज्ज्वल होने की कोई उम्मीद।

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