शारीरिक संबंध के साथ जनसंख्या नियंत्रण के लिए क्यों जरूरी है ? SEX EDUCATION

हमारे जीव विज्ञान व मेडिकल साइंस में सेक्स एजुकेशन से जुड़ा थोड़ा ज्ञान भरा हुआ है जो प्रयाप्त नही है। यौन शिक्षा निचले स्तर से हिन्दी एवं स्थानीय भाषा में दी जानी चाहिए, क्योंकि ? हर कोई मेडिकल कॉलेज तक कि पढ़ाई नहीं करता और नीचले कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों के बीच भी यौन संबंध बनते-बनाते देखा जा रहा है। आज आनलाईन इंटर्नेट के जमाने में गूगल, यूट्यूब तमाम साइटों वेबसाइटों सहित हिन्दी भोजपुरी फिल्म व टीवी सिरियलो द्वारा अश्लीलता युवाओं के मनोभाव पर परोसा जाता है। ऐसी स्थिति में सेक्स का सही समुचित ज्ञान बालपन से हो तो यौन उत्पीड़न के मामलों में हस्तक्षेप हो सकता है और अनावश्यक गर्भ धारण से बचाव के साथ जनसंख्या नियंत्रण उदेश्य को पूरा किया जा सकता है। प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनियों ने जो भी सुयोग्य या अयोग्य पुत्र पुत्रियों को उत्पन्न किया, उत्पत्ति के पहले ही उनकी कार्यशैली जीवन गाथा को जान लिया। इसका बहुत सारा प्रमाण हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है। जन्म समय पर आधारित जन्म एवं लग्न पत्रिका बनाईं जाती है, अब इसका चलन धीरे-धीरे कम हो गया है। शादी-ब्याह के लिए लग्न पत्रिका का मिलान किया जाना हमारे पूर्वजों की दी हुई परम्परा है। इस परम्परा का पालन करते हुए वैवाहिक जीवन सुखदायी सावित हुआ है। इन परम्पराओं में बहुत ही रहस्य छूपी हुई है। गुण, दोष, नाड़ी, वर्ण आदि की मिलान को, आज की युवा पीढ़ी समझने में असमर्थ है। इन रहस्यों को आज धर्म ग्रंथों को मानने वाले बुद्धजीवियों के अलावा सामान्य व्यक्ति नही जानता, अगर जानकारी होती तो मनचाहा पुत्र-पुत्रियों की उत्पत्ति होती और आज किसी देश में प्रधानमंत्री या राज्य के मुख्यमंत्री को न जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की आवश्यकता होती न किसी मुख्यमंत्री को सेक्स एजुकेशन पर बोलने की जरुरत पड़ती।
सेक्स एजुकेशन की जरूरत क्यों है?
निहायत जरूरी है सेक्स एजुकेशन
सेक्स एजुकेशन में यौन संबंध बनाने के सही तरीके बताए जाते हैं, हर व्यक्ति को शारीरिक सम्बन्ध बनाने का सही ज्ञान होना जरूरी है। यौन संबन्धित बीमारी जैसे योनी में गांठ का होना, बच्चेदानी में समस्या, सम्बन्ध बनाने में किसी को दर्द का महसूस होना वगैरह, सही सेक्स एजुकेशन निजात दिलाता है। और साथ ही साथ परिपक्वता के बारे में भी जानकारी मिलती है। सेक्स एजुकेशन के जरिए समाज में यौन संबंध को लेकर फैली गलत धारणाओं को भी खत्म किया जा सकता है। सेक्स न घृणित है न अनावश्यक, सेक्स प्रत्येक जीवन का मूल आधार है, इसकी समुचित जानकारी हर किसी को होनी आवश्यक है। बालपन से ही ज्यादातर बच्चों का मन जाने-अनजाने में सेक्स के प्रति आकर्षित होते देखा जा रहा है। सेक्स एजुकेशन से लोगों में एक आत्मविश्वास भरा जा सकता है। जिसकी वजह से अपने पार्टनर के सामने सहज और अच्छा महसूस किया जा सके। सेक्स एजुकेशन में मेंटल हेल्थ, सेक्शुअल हेल्प और सेक्शुअल अधिकारों के बारे में बताया जाता है। कैसे इंसान का मूड और आसपास की परिस्थितियां उसके सेक्शुअल हेल्थ पर असल डालती हैं और कैसे अपने पार्टनर को समझना और उसके मानसिक स्थिती को जानना जरूरी होता है। इन सब के बारे में अनिवार्य रूप से नीचले स्तर से स्कूली शिक्षा के माध्यम से दिया जाना चाहिए।
सेक्स एजुकेशन पर विवाद क्यूँ ?
हम सब जगत-जननी द्वारा उत्पन्न किए गए ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित ऋषि, मुनि, देव, दैत्य, दानव की संतानें हैं। इस श्रृष्टि में सर्वशक्तिशाली श्रृष्टि विस्तार एवं संहार करने वाली नारी ही है। स्त्री स्वरूपा जगत-जननी आदिशक्ति कि प्रथम रचना ब्रह्मा दूसरे विष्णु श्रृष्टि में प्रलय काल तक रहेंगे, और महेश जिनके साथ आदिशक्ति अनेकों रुप में स्यम् अर्धांगिनी हैं आदि से अंत और अंत से आदि तक सदैव रहेगें। आदिशक्ति द्वारा त्रिदेवों को उत्पन्न करने का उद्देश्य ही श्रृष्टि का विस्तार करना है। इसका प्रमाण तमाम धर्म ग्रंथों में वर्णित है। सेक्स एजुकेशन, यौन शिक्षा, रती शास्त्र, कोख शास्त्र आदि का ज्ञान वेद-शास्त्र, धर्म-ग्रंथों से देखा जाए तो स्पष्ट समझ आ जायेगा की हमारे पूर्वजों को था। इस सही शिक्षा और ज्ञान से आज की पीढ़ी अनभिज्ञ होती जा रही है, जिसका खामियाजा इस श्रृष्टि को भुगतना पड़ रहा है। हमारे पूर्वजों द्वारा उपहार स्वरूप दिया गया ज्ञान और विज्ञान जो एक परम्परागत तरीके से चल रहा था, का भी धीरे-धीरे परित्याग किया जानें लगा है। ऋग्वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार वर्ण का निर्धारण कर्म से माना गया और समाज को उसी आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र के अलग-अलग वर्ण निर्धारित किये गए। सामजिक स्थिति और शुद्धता के मद्देनज़र मनुष्य चार वर्णों में विभाजित हुआ । उन चार वर्णों में से कर्म के अनुसार जातीय प्रथा में विभाजित हुआ। जो आज जाती प्रथा आरक्षण व्यवस्था के दृष्टिगत मानव जीवन के लिए अभिशाप बन गया है। वैदिक, साहित्य, धर्म-कर्म, समुचित शिक्षा का अभाव ही है, जो आज सेक्स एजुकेशन का पाठ्यक्रम स्कूली शिक्षा में शामिल करने की बात पर एटम बम विस्फोट की तरह विवाद खड़ा कर दिया है। इतना भी नहीं सोचा जा रहा है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने से कैसे जनसंख्या नियंत्रण होगी और जनसंख्या नियंत्रण के लिए युवा पीढ़ी को कैसे प्रेरित किया जाएगा। जब युवा पीढ़ी को सेक्स एजुकेशन का ज्ञान होगा तभी जनसंख्या नियंत्रण कानून व्यवस्था – सफलता हासिल करेगी। अज्ञानता की देन है जो हमारे पूर्वजों से विरासत में मिला था, वो धीरे-धीरे लूप्त होता जा रहा है। और आने वाली पीढ़ी दुष्ट और दानवों की तरह होती जा रही है। मानवता कितना प्रतिशत बचा है इसका भी सहज आकलन किया जा सकता है। माता-पिता के प्रति न बच्चों में आदरभाव है न बच्चों के प्रति माता-पिता में स्नेह है। मानव समाज में ऐसा दिखता है कि इस पृथ्वी पर आकर अमरत्व प्राप्त हो गया है और सदैव के लिए सब कुछ अपने लिये ही है।
आते हैं मूल मुद्दा सेक्स एजुकेशन पर
प्राचीनकाल में ऋषि, मुनि, देव और देवियों द्वारा श्रृष्टि विस्तार के लिए ऋतु, काल, चक्र का सम्पूर्ण ज्ञान था। जिस कारण तेजस्वी पुत्र पुत्री उत्पन्न होते थे। सेक्स के दौरान क्या ख्याल रखा जाए जो शरीर पर दुस्प्रभाव न डाले, न किसी बिमारी को निमंत्रण दे? गलत तरीके से किया जाने वाला सेक्स किसी के लिए थोड़ा सुखदायी होता है, तो किसी के लिए ज्यादा दुखदाई हो जाता है। आजकल ज्यादातर महिलाओं में बच्चेदानी से जुड़ी तमाम समस्याओं को देखा जा रहा है इसका मुख्य देन गलत तरीके से किया जाने वाला सेक्स ही है। आज पूर्वजों की परम्परा वर-वधू के लिए कुंडली मिलान तो दहेज प्रथा और प्रेम विवाह के साथ ही धीरे-धीरे लूप्त होने लगी है। जन्म कुंडली मिलान से स्पष्ट हो जाता है वर-वधू की जोड़ी, सम्बन्ध कैसा रहेगा अगली पीढ़ी कैसी होगी तमाम जानकारी जन्म कुंडली से मिलती है। आज बेजोड़ी विवाह ज्यादा ही हो रहा है जो एक दूसरे के लिए सुखदायी कम दुखदाई ज्यादा दिख रहा है।


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