शिव पुराण हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पुराण है, जिसमें भगवान शिव की महिमा और उनकी लीलाओं का वर्णन किया गया है। शिव पुराण में भगवान शिव की आराधना, उनकी कथा और उनके अवतारों की विस्तार से चर्चा की गई है। शिव पुराण के कई खंड होते हैं, और इसका भाग 2 विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। श्रावण मास विशेष में जानिये भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज अमित श्रीवास्तव कि कर्म-धर्म लेखनी से शिव पुराण भाग 2 कि कथा सुस्पष्ट भाषा में अनमोल अन्यत्र जानकारी के साथ।
शिव पुराण का भाग 2 निम्नलिखित प्रमुख कथाओं और विषयों को कवर करता है। हमारा विज्ञान भी कहीं न कहीं हमारे धर्म शास्त्रों से मेल खाता है।
विधेश्वर संहिता:
इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, शिवलिंग की स्थापना और शिव जी की पूजा का महत्व बताया गया है।
विधेश्वर संहिता शिव पुराण का एक महत्वपूर्ण खंड है, जिसमें भगवान शिव की पूजा, इनके तत्वज्ञान, और इनसे संबंधित विभिन्न विधानों का विस्तार से वर्णन किया गया है। विधेश्वर संहिता में मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों पर चर्चा की गई है।
सृष्टि की उत्पत्ति:
इसमें सृष्टि की उत्पत्ति की कथा और भगवान शिव की भूमिका का वर्णन किया गया है। सृष्टि के विभिन्न तत्वों, उनके निर्माण और उनके कार्यों की जानकारी दी गई है।

शिवलिंग की महिमा:
विधेश्वर संहिता में शिवलिंग की उत्पत्ति, उसकी स्थापना और उसकी पूजा की महिमा का वर्णन है। इसमें बताया गया है कि शिवलिंग की पूजा कैसे की जानी चाहिए और उससे क्या फल प्राप्त होते हैं।
शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक है और हिंदू धर्म में इसे अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। शिवलिंग की महिमा और उसकी पूजा के बारे में विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी विस्तृत वर्णन किया गया है। यहाँ शिवलिंग की महिमा के कुछ प्रमुख पहलू बता रहे हैं।
सृष्टि, स्थिति, और संहार का प्रतीक:
– शिवलिंग सृष्टि, स्थिति, और संहार का प्रतीक है। यह ब्रह्मांड की अनंतता और भगवान शिव की असीम शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
निर्विकार और निराकार रूप:
– शिवलिंग भगवान शिव के निराकार रूप का प्रतीक है। यह इस बात का संकेत है कि भगवान शिव एक निराकार, अनंत और असीम सत्ता हैं, जिन्हें किसी भी रूप या आकार में बांधा नहीं जा सकता।
आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत:
– शिवलिंग को भगवान शिव की आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। यह पूजा के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रदान करता है।
शिवलिंग पूजा के लाभ:
– शिवलिंग की पूजा से विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे मानसिक शांति, रोगों से मुक्ति, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति। यह भी माना जाता है कि शिवलिंग की नियमित पूजा से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
– शिवलिंग की संरचना और आकार का वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। यह माना जाता है कि शिवलिंग का आकार और उसकी पूजा के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठान एक विशेष ऊर्जा क्षेत्र का निर्माण करते हैं, जो सकारात्मक ऊर्जा और शांति प्रदान करता है।
शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा:
– पुराणों में शिवलिंग की उत्पत्ति की कई कथाएँ हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु के बीच सर्वोच्चता को लेकर विवाद हुआ, जिसमें भगवान शिव एक विशाल ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। यह ज्योतिर्लिंग अनंत था और ब्रह्मा और विष्णु उसकी सीमा का पता नहीं लगा पाए। तब उन्होंने भगवान शिव की महिमा को स्वीकार किया।
शिवलिंग के प्रकार:
– शिवलिंग के विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे स्वयंभू लिंग (जो स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं), पारद लिंग (पारा से बने), और पार्थिव लिंग (मिट्टी से बने)। प्रत्येक प्रकार का अपना महत्व और पूजा का तरीका होता है।
पवित्र स्थलों में शिवलिंग:
– भारत में कई पवित्र स्थलों पर शिवलिंग स्थापित हैं, जिनमें बारह ज्योतिर्लिंग प्रमुख हैं। ये ज्योतिर्लिंग तीर्थ स्थल भगवान शिव के विशेष स्थान हैं और यहां की पूजा अत्यधिक फलदायक मानी जाती है।
शिवलिंग की पूजा की विधि:
– शिवलिंग की पूजा की विधि में अभिषेक (दूध, जल, दही, घी, शहद आदि से स्नान कराना), बेलपत्र अर्पण, मंत्रों का जप, और प्रसाद अर्पित करना शामिल है।
शिवलिंग की महिमा अनंत है और यह भगवान शिव की अद्वितीयता, उनकी अनंतता, और उनकी कृपा को दर्शाता है। इसकी पूजा और आराधना से भक्तों को जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि प्राप्त होती है और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव के विभिन्न रूप:

भगवान शिव के विभिन्न रूप उनकी बहुआयामी और सर्वव्यापी प्रकृति को दर्शाते हैं। ये रूप विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में वर्णित हैं, और प्रत्येक रूप का अपना विशेष महत्व और अर्थ है। यहां भगवान शिव के कुछ प्रमुख रूपों का वर्णन किया गया है।
इसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों और अवतारों का वर्णन है, जो उन्होंने विभिन्न समयों पर धारण किए।
महादेव:
– महादेव का अर्थ है “महान देवता”। यह भगवान शिव का सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान रूप है, जिसे संहारक और सृष्टिकर्ता दोनों के रूप में पूजा जाता है।
नटराज:
– नटराज का अर्थ है “नृत्य के राजा”। यह रूप भगवान शिव के तांडव नृत्य का प्रतीक है, जो सृष्टि, स्थिति, और विनाश का प्रतीक है। नटराज की मूर्ति आमतौर पर एक सर्कल के भीतर नृत्य करते हुए दिखाई जाती है।
भैरव:
– भैरव भगवान शिव का उग्र और रौद्र रूप है। यह रूप सृष्टि के विनाश और अज्ञान के नाश का प्रतीक है। भैरव को काशी का रक्षक भी माना जाता है।
अर्धनारीश्वर:
– अर्धनारीश्वर रूप में भगवान शिव और देवी पार्वती का सम्मिलित रूप दिखाया गया है। इस रूप में भगवान शिव के आधे शरीर पर पार्वती का रूप होता है, जो पुरुष और स्त्री तत्वों के मिलन का प्रतीक है।
त्रिपुरारी:
– त्रिपुरारी वह रूप है जिसमें भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक तीन राक्षसों का वध किया था। इस रूप में उन्हें त्रिपुरांतक भी कहा जाता है।
लिंगम (शिवलिंग):
– शिवलिंग भगवान शिव का निराकार रूप है, जो ब्रह्मांड की अनंतता और शक्ति का प्रतीक है। शिवलिंग की पूजा भारत भर में की जाती है और इसे भगवान शिव की सर्वोच्च ऊर्जा का प्रतिनिधित्व माना जाता है।
महाकाल:
– महाकाल का अर्थ है “समय के स्वामी”। यह भगवान शिव का वह रूप है जो समय को नियंत्रित करता है और अंततः सभी चीजों का विनाश करता है।
पशुपति:
– पशुपति का अर्थ है “प्राणियों के स्वामी”। यह रूप भगवान शिव की करुणा और सभी जीवों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है।
भिक्षाटन:
– भिक्षाटन रूप में भगवान शिव एक भिक्षु के रूप में प्रकट होते हैं, जो भिक्षा मांगते हैं। यह रूप तपस्या और त्याग का प्रतीक है।
दक्षिणामूर्ति:
– दक्षिणामूर्ति भगवान शिव का वह रूप है जिसमें वे गुरु के रूप में प्रकट होते हैं और योग, संगीत, और ज्ञान का उपदेश देते हैं।
कालभैरव:
– कालभैरव शिव का रौद्र रूप है, जो समय और मृत्यु के स्वामी हैं। यह रूप समय और स्थान की सीमाओं को पार करने की शक्ति का प्रतीक है।
भगवान शिव के इन विभिन्न रूपों में उनकी अलग-अलग विशेषताओं, भूमिकाओं और शक्तियों का चित्रण किया गया है। यह विविधता भगवान शिव की व्यापकता और उनकी सर्वशक्तिमानता को दर्शाती है, जो विभिन्न प्रकार की उपासनाओं और आराधनाओं के माध्यम से प्रकट होती है।
पूजा विधि: विधेश्वर संहिता में भगवान शिव की पूजा की विभिन्न विधियों का विस्तृत वर्णन है, जिसमें मंत्र, स्तोत्र, और अनुष्ठानों का समावेश होता है।
तप और योग: इसमें तपस्या और योग की महिमा और महत्व को बताया गया है। भगवान शिव के द्वारा बताए गए योग और तप के मार्ग का भी वर्णन है।
धर्म और आचरण: इसमें धर्म, नीति और आदर्श आचरण का महत्व बताया गया है। यह खंड यह भी सिखाता है कि कैसे एक व्यक्ति को जीवन में धर्म का पालन करना चाहिए और समाज में उचित आचरण करना चाहिए।
विधेश्वर संहिता का उद्देश्य भगवान शिव की रुपों व महिमा का बखान करना और उनके उपासकों को सही मार्गदर्शन प्रदान करना है, ताकि वे शिव की कृपा प्राप्त कर सकें और मोक्ष की प्राप्ति कर सकें।
रुद्र संहिता:
इसमें भगवान शिव के विभिन्न अवतारों, उनकी लीलाओं और पार्वती के साथ उनके विवाह की कथा है।
रूद्र संहिता शिव पुराण का एक प्रमुख खंड है, जिसमें भगवान शिव की लीलाओं, उनके अवतारों और पार्वती के साथ उनके विवाह की कथाओं का विस्तार से वर्णन है। रूद्र संहिता को पाँच भागों में विभाजित किया गया है:-
सृष्टिखंड:
– सृष्टि की उत्पत्ति और निर्माण की कथा।
– ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के रूपों का वर्णन।
– भगवान शिव की अद्वितीयता और उनकी पूजा की विधि।
सतीखंड:
– सती देवी की कथा और उनके भगवान शिव से विवाह।
– दक्ष यज्ञ की कथा, जिसमें सती देवी ने यज्ञ कुंड में आत्मदाह किया।
– सती के त्याग और भगवान शिव के दुःख का वर्णन।
पार्वतीखंड:
– पार्वती देवी की कथा और उनके भगवान शिव से पुनर्विवाह।
– पार्वती की तपस्या और शिव की कृपा प्राप्त करने की कथा।
– भगवान शिव और पार्वती के विवाह की विस्तृत कथा।
कुमारखंड:
– भगवान कार्तिकेय (कुमार) की उत्पत्ति और उनकी लीलाओं का वर्णन।
– तारकासुर वध और देवताओं की विजय।
– कार्तिकेय के रूप में भगवान शिव के पुत्र की महिमा।
युद्धखण्ड:
– राक्षसों और देवताओं के बीच युद्ध की कथाएँ।
– भगवान शिव की सहायता से देवताओं की विजय।
– भगवान शिव की युद्ध कौशल और उनकी शक्ति का वर्णन।
रूद्र संहिता: में भगवान शिव के विभिन्न रूपों, उनकी लीलाओं, और उनकी महिमा का वर्णन है। यह खंड भगवान शिव के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें शिव की पूजा, उनके आदर्श, और उनके प्रति भक्ति का मार्ग बताया गया है। रूद्र संहिता भगवान शिव की कथा और महिमा के माध्यम से भक्तों को मोक्ष का मार्ग प्रदान करती है।
कोटिरुद्र संहिता:
इसमें भगवान शिव की भक्ति और उनकी उपासना के विधानों का वर्णन है।
कोटिरुद्र संहिता: शिव पुराण का एक महत्वपूर्ण खंड है, जिसमें भगवान शिव की भक्ति, उनकी उपासना की विधियों, और विभिन्न प्रकार के व्रतों एवं अनुष्ठानों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस खंड का मुख्य उद्देश्य भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए सही मार्गदर्शन प्रदान करना है। कोटिरुद्र संहिता में निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर चर्चा की गई है:-
शिवलिंग पूजा:
– शिवलिंग की स्थापना और उसकी पूजा की विधि।
– शिवलिंग की पूजा के महत्व और उससे प्राप्त होने वाले फलों का वर्णन।
रुद्राभिषेक:
– रुद्राभिषेक की महिमा और उसे करने की विधि।
– रुद्राभिषेक के विभिन्न प्रकार और उनके लाभ।
शिवरात्रि व्रत:
– महाशिवरात्रि व्रत का महत्व और उसकी पूजा की विधि।
– शिवरात्रि व्रत के पालन से प्राप्त होने वाले फलों का वर्णन।
अन्नदान और अन्य दान:
– अन्नदान, वस्त्रदान, और अन्य प्रकार के दानों का महत्व।
– दान देने की विधि और उसके लाभ।
शिव स्तोत्र और मंत्र:
– भगवान शिव की स्तुति के विभिन्न स्तोत्र और मंत्र।
– इन मंत्रों और स्तोत्रों के जप से प्राप्त होने वाले फलों का वर्णन।
व्रत और उपवास:
– भगवान शिव के विभिन्न व्रतों का वर्णन, जैसे सोमवार व्रत, प्रदोष व्रत आदि।
– इन व्रतों के पालन की विधि और उनके लाभ।
तीर्थ यात्रा:
– भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों का वर्णन।
– इन तीर्थ स्थलों की यात्रा और उनके दर्शन का महत्व।
कोटिरुद्र संहिता सार:
कोटिरुद्र संहिता में भगवान शिव की उपासना की विधियों का विस्तृत वर्णन है, जो भक्तों को सही मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह संहिता शिवभक्तों को शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान, व्रत, और दान करने की प्रेरणा देती है।
उमा संहिता:

इसमें देवी पार्वती की कथा और भगवान शिव के साथ उनकी संगति की कहानी है।
उमा संहिता शिव पुराण का एक महत्वपूर्ण खंड है, जिसमें देवी पार्वती (उमा) और भगवान शिव की कथाओं का विस्तृत वर्णन है। इस संहिता का मुख्य उद्देश्य देवी पार्वती की महिमा और उनके साथ भगवान शिव के संबंधों का चित्रण करना है। उमा संहिता में निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर चर्चा की गई है:-
पार्वती का जन्म और विवाह:
– पार्वती देवी के जन्म की कथा।
– पार्वती की तपस्या और भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने की कथा।
– शिव और पार्वती के विवाह की विस्तृत कथा।
पार्वती की तपस्या:
– पार्वती देवी की कठिन तपस्या और उनकी भक्ति का वर्णन।
– शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए पार्वती द्वारा किए गए तप के विभिन्न प्रकार।
पार्वती और शिव का परिवार:
– भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश के जन्म की कथा।
– शिव और पार्वती के परिवार की अन्य कथाएँ और लीलाएँ।
पार्वती की महिमा:
– पार्वती देवी की महिमा और उनकी पूजा का महत्व।
– पार्वती के विभिन्न रूप और अवतारों का वर्णन, जैसे दुर्गा, काली, आदि।
शिव और पार्वती के संवाद:
– शिव और पार्वती के बीच हुए संवाद, जिसमें वे विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक विषयों पर चर्चा करते हैं।
– इन संवादों में जीवन, मृत्यु, मोक्ष, और भक्ति के विषयों का गहन विश्लेषण।
उमा महात्म्य:
– उमा महात्म्य के विभिन्न कथानक, जो देवी उमा की महिमा का वर्णन करते हैं।
– उमा महात्म्य के पाठ और उसकी पूजा की विधियाँ।
उमा संहिता में देवी पार्वती की भक्ति, उनके तप, और उनके भगवान शिव के साथ संबंधों का विस्तार से वर्णन है। यह खंड भक्तों को देवी पार्वती की महिमा को समझने और उनकी पूजा की विधियों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। उमा संहिता भगवान शिव और देवी पार्वती के उपासकों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है, जो उन्हें आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में प्रेरित करता है।
कैलास संहिता: इसमें भगवान शिव के निवास कैलास पर्वत का वर्णन है और वहां की महिमा बताई गई है।
कैलाश संहिता शिव पुराण का एक महत्वपूर्ण खंड है, जिसमें भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत की महिमा और उसके महत्व का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस संहिता में भगवान शिव के जीवन, उनकी लीलाओं और उनके धाम की महिमा का गहन वर्णन किया गया है। कैलाश संहिता में निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर चर्चा की गई है।
कैलाश पर्वत का वर्णन:
– कैलाश पर्वत की भौगोलिक स्थिति और उसकी धार्मिक महत्ता।
– कैलाश पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता और उसकी दिव्यता का वर्णन।
भगवान शिव का निवास:
– कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है।
– भगवान शिव के धाम कैलाश का विस्तृत वर्णन और उसकी महिमा।
शिव और पार्वती का जीवन:
– कैलाश पर भगवान शिव और पार्वती के निवास का वर्णन।
– कैलाश पर्वत पर शिव और पार्वती की लीलाओं का विस्तृत वर्णन।
ध्यान और साधना:
– कैलाश पर्वत पर ध्यान और साधना की महिमा।
– वहां किए जाने वाले तप और साधना की विधियों का वर्णन।
कैलाश यात्रा:
– कैलाश यात्रा का महत्व और उसकी विधि।
– कैलाश यात्रा के दौरान प्राप्त होने वाले फलों का वर्णन।
कैलाश की धार्मिक महत्ता:
– कैलाश पर्वत को विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में प्राप्त महत्व।
– कैलाश पर्वत के दर्शनों से प्राप्त होने वाले लाभ और मोक्ष की प्राप्ति।
कैलाश संहिता सार:
कैलाश संहिता में भगवान शिव के निवास स्थान की महिमा का गहन वर्णन है। यह संहिता भक्तों को भगवान शिव के धाम कैलाश की ओर आकर्षित करती है और वहां की यात्रा और साधना के महत्व को बताती है। कैलाश संहिता के माध्यम से भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति को और गहरा कर सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
वायु संहिता:
इसमें शिव के विभिन्न रूपों और उनकी पूजा की विधियों का वर्णन है।
वायु संहिता शिव पुराण का एक महत्वपूर्ण खंड है, जिसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों, उनकी पूजा की विधियों, और व्रत-उपासना का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस संहिता का उद्देश्य भगवान शिव की महिमा का बखान करना और भक्तों को शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए सही मार्गदर्शन प्रदान करना है। वायु संहिता में निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर चर्चा की गई है।
भगवान शिव के विभिन्न रूप:
– भगवान शिव के विभिन्न रूपों और अवतारों का वर्णन।
– उनके प्रत्येक रूप का विशेष महत्व और उनसे जुड़े कथानक।
शिव पूजा की विधियाँ:
– भगवान शिव की पूजा की विभिन्न विधियों का विस्तार से वर्णन।
– शिवलिंग की पूजा, रुद्राभिषेक, और शिव के विभिन्न मंत्रों और स्तोत्रों का महत्व।
व्रत और उपवास:
– भगवान शिव के विभिन्न व्रतों का वर्णन, जैसे सोमवार व्रत, प्रदोष व्रत, आदि।
– इन व्रतों के पालन की विधि और उनके लाभ।
शिव महिमा:
– भगवान शिव की महिमा और उनकी लीलाओं का वर्णन।
– शिव की कृपा से प्राप्त होने वाले फलों का विवरण।
शिवभक्तों की कथाएँ:
– विभिन्न शिवभक्तों की कथाएँ और उनके द्वारा की गई भक्ति का वर्णन।
– इन कथाओं के माध्यम से शिवभक्ति का महत्व और उसकी शक्ति को बताया गया है।
तप और साधना:
– भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए किए जाने वाले तप और साधना की विधियाँ।
– ध्यान, योग, और अनुष्ठानों का महत्व और उनकी विधियाँ।
शिव स्तोत्र और मंत्र:
– भगवान शिव के विभिन्न स्तोत्र और मंत्रों का वर्णन।
– इन मंत्रों और स्तोत्रों के जप से प्राप्त होने वाले लाभ और उनकी महिमा।
वायु संहिता सार:
वायु संहिता भगवान शिव की उपासना, उनके विभिन्न रूपों की महिमा, और शिवभक्ति के विभिन्न मार्गों का विस्तृत वर्णन करती है। यह संहिता शिवभक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है, जो उन्हें भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में प्रेरित करती है।
