लेटनल एंट्री यानी सरकारी विभागों में अनुभवी पेशेवरों की सीधी नियुक्ति, सरकारी तंत्र में नई जान ठोकवाने का एक प्रभावशाली तरीका – दूर तक देखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिखाई दिया यह लाभकारी योजना। जो भारत सरकार ने विभिन्न विभागों में महत्वपूर्ण पदों पर योग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए इस प्रक्रिया को अपनाया। इसके माध्यम से ऐसे पेशेवर को चुना जाता है, जो न केवल अपने क्षेत्र में निपुण होते हैं बल्कि सरकारी प्रणाली में नई दृष्टि और नवीनता भी लाते हैं। इनकी योग्यता कौन देश व समाज के सामने साबित करेगा, कि यह पेशेवर इस पद के लिए योग्य है इसका कोई खुलासा नहीं है। यह सीधी भर्ती मतलब अपने मनमाफिक उम्मीदवारों का चयन योजना है।
मोदी सरकार को महसूस हुई लेटनल एंट्री कि आवश्यकता:
सरकारी विभागों में उच्च स्तर पर कुशल और अनुभवी पेशेवरों की जरूरत हमेशा से रही है। नीति निर्धारण, प्रबंधन और प्रशासन के विभिन्न पहलुओं में विशेषज्ञता की कमी को पूरा करने के लिए लेटरल एंट्री एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। यह प्रक्रिया उन प्रतिभाशाली पेशेवरों को अवसर देती है जो सरकारी तंत्र में काम करने की इच्छा रखते हैं, परंतु पारंपरिक चयन प्रक्रिया में नहीं आ पाते हैं। तो सरकारी उच्च भर्ती पदों के लिए योग्य कैसे बन जाते हैं, तो सीधी सी बात है जो अपने खास होगें वही योग्य बन जायेगें।
लेटनल एंट्री किसे कहते हैं:
केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में महत्वपूर्ण पदों के लिए सुयोग्य उम्मीदवारों के चयन के लिए पिछले वर्षों में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा एक नई प्रक्रिया अपनाई गई है। इसे लेटनल एंट्री के नाम से जाना गया है। इस प्रक्रिया के द्वारा बाहरी विशेष विशेषज्ञ और पेशेवर को सीधे सरकारी नौकरी में प्रवेश दिया जाना है, सीधी भर्ती में अनुभव और विशेषज्ञता का लाभ सरकारी प्रणाली को मिल सके, हालांकि इस कदम को लेकर राजनीति और समाज से मिश्रित प्रतिक्रिया आई है। कुछ लोग इसे मौजूदा व्यवस्था के लिए हानिकारक मानते हैं तो कुछ लोग इसे समय की मांग के रूप में देखते हैं।
लेटरल एंट्री: क्या और क्यों है विवाद?
लेटनल एंट्री का अर्थ है कि बिना पारंपरिक भर्ती प्रक्रिया की बाहरी पेशावरों को उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाना। इसका उद्देश्य सरकारी विभागों में नई ऊर्जा और विशेषज्ञता लाना है। जो मोदी सरकार की दृष्टि से मौजूदा सरकारी सेवकों के बीच उपलब्ध नहीं हो सकती है। 2018 में केंद्र सरकार ने पहली बार इस प्रक्रिया को लागू किया। जिसपर सार्वजनिक और राजनीतिक बहस छिड़ गई है। विरोधी दलों और कुछ सरकारी अधिकारियों ने इस पर प्रश्न उठाए हैं, की क्या यह कदम उन सरकारी कर्मचारियों के साथ अन्याय नहीं है जो वर्षों से सरकारी सेवाओं में मेहनत कर रहे हैं? और जो पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। इस प्रणाली को लेकर सबसे बड़ा आरोप लगाया गया है कि यह पारदर्शिता और मेरिट को कमजोर कर सकती है, क्योंकि बाहरी उम्मीदवारों का चयन बिना यूपीएससी जैसी सख्त परीक्षा का किया जाना है।
समर्थन में तर्क:
लेटरल एंट्री के समर्थक इस प्रक्रिया को सरकार के लिए बेहद लाभकारी मानते हैं। उनका तर्क है कि बाहरी पेशेवरों का सरकारी तंत्र में प्रवेश, प्रशासनिक सुधार और आधुनिक प्रबंधन प्रणाली को बढ़ावा देता है। जिन क्षेत्रों में सरकारी कर्मचारियों की विशेषज्ञता कम होती है, वहां बाहरी विशेषज्ञों की नियुक्ति सरकार की क्षमता और कार्यकुशलता में सुधार ला सकती है। उदाहरण के लिए, वित्त, सूचना प्रौद्योगिकी, और अंतरराष्ट्रीय संबंध जैसे क्षेत्रों में विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है, जहां अक्सर सरकार को बाहरी विशेषज्ञों की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा, लेटरल एंट्री का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह प्रक्रिया सरकारी विभागों में स्थिरता और एकरूपता को खत्म कर सकती है। नए विचार और दृष्टिकोण लाने से, यह प्रक्रिया सरकारी कार्यप्रणाली को और अधिक प्रभावी बना सकती है।
लेटरल एंट्री में विवादों का परिणाम:

केंद्र सरकार ने विभिन्न विभागों में लेटरल एंट्री के जरिए 45 पदों पर नियुक्ति के अपने विज्ञापन को रद्द कर दिया है। जिसके लिए देश भर में जगह-जगह धरना-प्रदर्शन हो रहा था। केंद्र सरकार में जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल के 45 पद लेटरल एंट्री के जरिये भरने के लिए यूपीएससी ने विज्ञापन दिया था। इस विज्ञापन को आरक्षण के खिलाफ बताते हुए विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसके विरोध में मोर्चा खोल दिया। मोदी सरकार में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी – रामविलास और जनता दल – यूनाइटेड जैसी पार्टियां भी इसके विरोध में उतर आईं। नतीजा ये हुआ कि अब सरकार ने यूपीएससी चेयरपर्सन को पत्र लिखकर लेटरल एंट्री का विज्ञापन रद्द करने के लिए कहा है।
लेटरल एंट्री सरकारी योजना का निष्कर्ष:
लेटरल एंट्री सरकारी योजना के प्रति हंगामा और आलोचना का मुख्य कारण इसका नया और असामान्य तरीका है, जो पारंपरिक सरकारी भर्ती प्रक्रिया से अलग है। हालांकि, वर्तमान समय में तेजी से बदलते वैश्विक और राष्ट्रीय परिदृश्य में, यह कदम आवश्यक हो सकता है। सरकार को इस प्रक्रिया को पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ लागू करना चाहिए था, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह कदम न केवल सरकारी तंत्र को मजबूत करेगा बल्कि समाज में भी इसके प्रति विश्वास बना रहेगा।
लेटरल एंट्री सामान्य शिक्षित युवाओं को लाभ पहुंचाने का नहीं बल्कि नेताओं मंत्रियों के कैंडिडेट्स को लाभ पहुंचाने का एक तरीका बताया जा रहा है। नेताओं मंत्रियों के सम्पर्क वाले युवाओं के लिए लेटनल एंट्री के माध्यम से भर्ती रामबाण योजना है। सर्वजन के हित में राहुल गांधी सहित विपक्ष के नेताओं ने इस लेटनल एंट्री सरकार की योजना का विरोध किया, ताकि सामान्य रूप से पढें लिखे अनुभवी युवाओं को जो यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा पास कर बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं, उन्हें खाली जगहों पर होने वाली भर्ती प्रक्रिया में जगह मिल सके। सीधी भर्ती में लाभ उन्हें ही मिल पाता है जिनका भर्ती बोर्ड में पकड़ मजबूत होती है।
लेटनल एंट्री पर इस समय देश भर में विवाद चल रहा है। विपक्ष के नेता लेटनल एंट्री को निजी क्षेत्र में हस्तक्षेप के रूप में देखते हुए आरोप लगा रहे हैं कि यह उंचे पदो पर संविदात्मकरण की शुरुआत है। इसका परिणाम पारंपरिक भर्ती प्रक्रिया पर पड़ना तय माना जा रहा है। पारंपरिक भर्ती प्रक्रिया के तहत आने वाले उम्मीदवारों के अवसर सीमित हो जायेंगे। लेटनल एंट्री पर देश भर में हो रहे हंगामे को पूरी तरह गलत करार देना उचित नहीं है। यह एक ऐसा उपाय भी है जो कम खर्च में सरकारी तंत्र को अधिक कुशल काम करने वाले कुशल विशेषज्ञता हासिल हो सकते हैं, क्योंकि देश में पढें लिखे युवाओं के सामने बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है तो कम मानदेय या वेतनमान पर भी नौकरी के लिए युवाओं का तांता लगा रहता है।