पुरुष और स्त्री के बीच शारीरिक आकर्षण स्वाभाविक है। यह संबंधों की एक बुनियादी आवश्यकता भी है, लेकिन अक्सर इस आकर्षण का अर्थ और गहराई समय के साथ बदलता है। एक पुरुष का अपनी पत्नी के शरीर के प्रति आकर्षण कई बार उसे उसके वास्तविक प्रेम और शारीरिक चाहत के बीच उलझन में डाल देता है। लेकिन क्या यह प्रेम वास्तव में स्त्री के व्यक्तित्व के लिए होता है, या उसके शरीर के खास अंगों के प्रति? यही सवाल कई पुरुषों के दिमाग में उठता है और ऐसे सवालों को किसी के समक्ष रखकर समाधान भी पाना मुश्किल होता है इस स्थिति में हर सवालों का जवाब गूगल पर ही ढूँढा जा रहा है तो आईए समय रहते ऐसे सवालों का जवाब यहां मिलने वाला है। वैसे तो समय के साथ पुरुषों को इसका उत्तर मिलता ही है।
शादी, प्रेम, और परिवार निर्माण के बीच शरीर और आत्मा के बीच का तालमेल हमेशा से एक जटिल विषय रहा है। आज के समाज में शादी और शारीरिक आकर्षण के आधार पर रिश्तों को परखा जाता है। पुरुष और महिला के बीच प्रेम, शारीरिक आकर्षण और जीवन की जिम्मेदारियां किस प्रकार परस्पर जुड़े होते हैं, इस पर अक्सर सवाल उठते हैं। औरत और पुरुष के रिश्ते का गूढ़ अर्थ – शिर्षक को ध्यान में रखते हुए, भगवान चित्रगुप्त जी महाराज के हम वंशज-अमित श्रीवास्तव अपनी कर्म धर्म रूपी कलम से, रोचक व ज्ञानवर्धक रूप से बारीकी से समझाते हुए बताने की कोशिश करेगें। इस लेखनी को अंत तक एकाग्रचित होकर पढ़िए और समझने की हर उम्र में कोशिश किजिये।
शारीरिक आकर्षण: प्रेम का पहला चरण:

शादी के प्रारंभिक दौर में शारीरिक आकर्षण का बहुत महत्त्व होता है। ज्यादातर पुरुष शादी से पहले साथी के शारीरिक सौंदर्य को प्राथमिकता देते हैं। चाहे वह स्तन हो या योनि, पुरुषों के लिए ये शारीरिक अंग अक्सर आकर्षण का केंद्र बनते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें इंसान का ध्यान आकर्षण के प्रति खिंचता है। आजकल महिलाएं भी जो खासकर अपने साथी से संतुष्ट नहीं रहती सोशल साइट्स पर अपने अंग प्रदर्शन कर गैर युवाओं को आकर्षित कर अपनी इच्छा पूर्ति का प्रयास करते देखीं जा रही हैं।
लेकिन क्या यह आकर्षण ही प्रेम का एकमात्र रूप है? क्या यह संबंध सिर्फ शारीरिक होने चाहिए या उससे परे भी कुछ है?
शारीरिक आकर्षण और विवाह:
शादी से पहले और उसके आरंभिक दिनों में अधिकांश पुरुष शारीरिक आकर्षण की भावना से प्रभावित होते हैं। यह सामान्य है कि शादी से पहले युवा पुरुष, विवाह को एक ऐसे मौके के रूप में देखते हैं जहां उन्हें स्थाई यौन संबंधों का आनंद लेने का अवसर मिलेगा। इसके पीछे कारण यह है कि हमारे समाज में अक्सर यौन संबंधों को शादी के बाद ही स्वीकृति दी जाती है। वैसे तो लुका-छिपी युवक-युवतियां अश्लील भाव उत्पन्न होने से अपने मन की उत्तेजना के कारण कम उम्र में भी एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो लुप्त उठा ही लेते हैं। इस दौरान मन में कई सवाल होते हैं, जैसे कि शरीर के अंग कैसे दिखेंगे या शारीरिक संबंध कैसे होंगे।
शारीरिक इच्छा और मानसिक तालमेल:
शारीरिक संबंध एक रिश्ते का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, परंतु यह केवल शरीर तक सीमित नहीं रहता। जब पुरुष या महिला एक दूसरे के प्रति अपनी इच्छाएं जाहिर करते हैं, तो वे दोनों के बीच भावनात्मक तालमेल भी बनाते हैं। यह संबंध समय के साथ बदलता है, और शारीरिक आकर्षण से भावनात्मक प्रेम की ओर बढ़ता है।
शारीरिक संबंध और प्रेम के बीच द्वंद्व:
विवाह के बाद कई पुरुष इस द्वंद्व का सामना करते हैं कि उनका प्रेम अपनी पत्नी के प्रति है या उसके शरीर के प्रति। यह भावना तब और प्रबल हो जाती है जब पत्नी किसी दिन यौन संबंध बनाने से मना कर देती है। ऐसे में पुरुष को खिन्नता महसूस होती है और अक्सर इसके परिणामस्वरूप संबंधों में तनाव आ जाता है। लेकिन जब शारीरिक संबंध बनते हैं, तो एक पल में सब कुछ सामान्य हो जाता है। यह अनुभव दिखाता है कि शारीरिक आकर्षण और प्रेम के बीच एक नाजुक संतुलन है।
समागम और प्रेम में फर्क:
शादी के बाद जब स्त्री पुरुष शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो यह प्रेम की अभिव्यक्ति का एक रूप होता है। परंतु यदि शारीरिक संबंधों में कोई समस्या आती है, जैसे कि पत्नी द्वारा मना करना, तो पुरुष के मन में निराशा हो जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह प्रेम है या केवल शारीरिक संतोष की चाहत?
यह स्थिति स्पष्ट करती है कि शारीरिक आकर्षण और प्रेम में अंतर होता है। प्रेम में केवल शारीरिक संबंध ही नहीं होते, बल्कि उसमें भावनात्मक जुड़ाव, आपसी समझ और सहानुभूति भी होती है।
प्रसव के दौरान पत्नी के कष्टों का अनुभव:
प्रसव एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें स्त्री अपने जीवन का सबसे बड़ा शारीरिक और मानसिक कष्ट सहती है। यह अनुभव एक पुरुष के लिए भी जीवन बदलने वाला हो सकता है। जिस अंग की चाहत पुरुष हमेशा से करता है, वही अंग जन्म का माध्यम बनता है।
पत्नी को प्रसव के दौरान देखकर, पुरुष को उस दर्द और संघर्ष का एहसास होता है, जो एक महिला सहती है। यह वही महिला है, जिससे उसने कभी सिर्फ शारीरिक आकर्षण की चाहत की थी। परंतु प्रसव के उस कठिन क्षण में उसे यह समझ में आता है कि पत्नी केवल शारीरिक आकर्षण का स्रोत नहीं है, बल्कि एक जीवन देने वाली शक्ति है।
शरीर से परे प्रेम: एक नया दृष्टिकोण:
प्रसव के बाद, पुरुष का दृष्टिकोण अक्सर बदल जाता है। वह अब अपनी पत्नी को केवल शारीरिक आकर्षण के रूप में नहीं देखता, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता है, जो उसके वंश को आगे बढ़ाने के लिए अत्यधिक कष्ट सहती है। यह बदलाव पुरुष के भीतर उस सच्चे प्रेम की भावना को जन्म देती है, जो सिर्फ शारीरिक नहीं बल्कि आत्मिक होती है।
शारीरिक अंगों का महत्व: जन्म और पालन-पोषण का प्रतीक:
प्रसव के दौरान पुरुष यह देखता है कि वही स्त्री के शरीर के अंग, जो पहले आकर्षण के केंद्र थे, अब जीवन देने और पोषण करने के प्रतीक बन गए हैं। योनि वह स्थान है जिससे नया जीवन जन्म लेता है और स्तन वह अंग हैं जो बच्चे को जन्म के तुरंत बाद पोषण देते हैं। यह बदलाव पुरुष की दृष्टि में स्त्री के प्रति उसके दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल देता है। अब उसके लिए शारीरिक आकर्षण सिर्फ वासनात्मक नहीं रह जाता, बल्कि वह एक नई गहराई और अर्थ को प्राप्त करता है।
मां के प्रति नई सम्मान की भावना:
प्रसव के इस अनुभव के बाद, केवल पत्नी के प्रति ही नहीं, बल्कि मां के प्रति भी सम्मान और बढ़ जाता है। उस कष्ट को देखकर, जिसे मां ने सहा होता है, पुरुष को यह एहसास होता है कि उसका अस्तित्व उसकी मां के त्याग और प्रेम का परिणाम है।
एक पुरुष के जीवन का परिवर्तन:
यह अनुभव पुरुष के जीवन में एक बड़ा बदलाव लाता है। उसे समझ आता है कि जिस शारीरिक आकर्षण के लिए वह हमेशा से अपनी पत्नी के प्रति खिंचा रहता था, वह केवल एक छोटा हिस्सा है। असली प्रेम और सम्मान उसके त्याग, उसकी सहनशक्ति और उसकी ममता में निहित है।
पत्नी को केवल शारीरिक वस्तु न समझें:
इस अनुभव के बाद, यह स्पष्ट हो जाता है कि पत्नी केवल शारीरिक संतोष का साधन नहीं है। वह जीवन देने वाली, परिवार को संजोने वाली और सभी कष्टों को सहन करने वाली शक्ति है। हर पुरुष को चाहिए कि वह अपनी पत्नी का सम्मान करे, उसे सिर्फ एक शारीरिक वस्तु न समझे, बल्कि उसकी भावनाओं, उसके संघर्षों और उसके त्याग को भी समझे।
शारीरिक और आत्मिक प्रेम का संतुलन:
समाज में शादी और शारीरिक आकर्षण का महत्त्व अवश्य है, परंतु यह केवल प्रेम का एक हिस्सा है। असली प्रेम शारीरिक आकर्षण से परे होता है, जिसमें पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे की भावनाओं, संघर्षों और त्यागों का सम्मान करते हैं। प्रसव के दौरान पत्नी के दर्द और संघर्ष को देखकर पुरुष का दृष्टिकोण बदलता है, और उसे अपनी पत्नी और मां के प्रति सच्चा प्रेम और सम्मान महसूस होता है।
औरत पुरूष रिलेशनशिप का गूढ़ अर्थ आर्टिकल निष्कर्ष
जो पुरुष अपनी पत्नी को सिर्फ शारीरिक संतुष्टि का साधन समझते हैं, उन्हें चाहिए कि वे अपनी पत्नी के प्रसव के दौरान उसकी पीड़ा और संघर्ष को देखें। इससे उन्हें यह समझ में आएगा कि स्त्री का शरीर केवल यौन सुख का माध्यम नहीं है, बल्कि जीवन देने और पालने का प्रतीक है।
इस लेख से हम भगवान चित्रगुप्त वंशज यह समझाने की कोशिश किए हैं कि रिश्ते केवल शारीरिक नहीं होते, बल्कि उनमें आत्मिक जुड़ाव भी होता है। प्रसव के दौरान पत्नी के कष्टों को देखने का अनुभव एक पुरुष के जीवन में बहुत गहरा प्रभाव डाल सकता है, और उससे सच्चे प्रेम की अनुभूति करा सकता है।
शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर आदिशक्ति जिन्होंने सृष्टि निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा ब्रह्मा विष्णु और शिव को उत्पन्न कीं, आदिशक्ति जगत-जननी रुपा इस सृष्टि की सम्पूर्ण स्त्रीयों को जिनका सम्पूर्ण अंग पूज्यनीय है, योनी भाग जहां सम्पूर्ण ब्रह्मांड स्थापित है, इसका प्रमाण सती के अंगों से स्थापित 51 शक्तिपीठों के गहन अध्ययन मंथन से स्पष्ट होता है, खास कर “कामाख्या शक्तिपीठ” को कलम व मेरा तन-मन सदैव समर्पित है। पृथ्वी लोक पर जन्में सभी प्राणी ब्रह्म ऋण से मुक्ति पाने के लिए सृष्टि विस्तार में पति-पत्नी रूप में सहभागी होते हैं, जिसमें स्त्री के आकर्षण अंग योनी और स्तन भाग का विशेष स्थान होता है। स्त्रीयों के इस अत्यन्त पूज्यनीय अंग को शत-शत प्रणाम🙏 इस विषय को लेकर शिव पार्वती संवाद योनी वर्णन पर एक अलग लेखनी आने वाले समय में आप पाठकों के डिमांड पर सार्वजनिक करेंगे। शिव स्वरूप अपूर्ण पुरूष वर्ग को समर्पित यह लेखनी स्त्रीयों के प्रति आदर भाव प्रकट करने में सहभागी होगी।
बहुत ही रोचक तथ्यों को उजागर करते हैं आप आपकी कलम वासतव में ईश्वरीय सत्ता से चलती दिखाई देती है।
धन्यवाद 🙏
धन्यवाद 🙏