गंडकी शक्तिपीठ: नेपाल का एक प्रमुख तीर्थस्थल

Amit Srivastav

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गंडकी शक्तिपीठ: नेपाल का एक प्रमुख तीर्थस्थल

माता के 51 शक्तिपीठों में एक प्रमुख गंडकी शक्तिपीठ जो नेपाल के पोखरा पर्यटन से करीब 100 किमी गंडकी नदी के किनारे स्थित है। इस पवित्र स्थल का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। जो हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। इस शक्तिपीठ की महिमा और मान्यता दूर-दूर तक फैली है, और श्रद्धालु यहाँ अपने दुखों से मुक्ति पाने और आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति के लिए आते हैं।
शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर, जगत-जननी कि कृपा से, जनकल्याण की देवी गंदकी को अपनी ग्यारहवीं शक्तिपीठ के रूप में अंकित, गुप्त रहस्यों को उजागर, लेखनी भक्तजनों को समर्पित कर रहा हूं।
51 शक्तिपीठ लेखनी में अब तक लिखित थोड़ा-थोड़ा अंश आप पाठकों को पुनः संक्षिप्त रूप से दर्शाते गुणगान करते आगे बढ़ रहा हूं। हमारी हर तरह की अपनी पसंदीदा लेखनी विस्तार से गूगल पर हमारी साइड amitsrivastav.in पर पढ़ सकते हैं। शक्तिपीठ लेखनी जनकल्याण में सहायक सिद्ध हो जगत-जननी कि कृपा पात्र मां आदिशक्ति से प्रार्थना करते भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम अग्रसर।
अब तक आप सब ने हमारी शक्तिपीठ लेखनी में क्रमशः पढ़ा जिसका थोड़ा अंश निचे दिया गया है। जो पाठक अभी तक नहीं पढ़ पाए हैं। मां गंडकी शक्तिपीठ को पढ़ने के बाद एक एक शक्तिपीठ क्लिक कर विस्तार से जरुर पढें। हर शक्तिपीठ का अपना अलग-अलग इतिहास है।

प्रथम शक्तिपीठ कामाख्या

गंडकी शक्तिपीठ: नेपाल का एक प्रमुख तीर्थस्थल

जहां सती का योनी भाग स्थापित है। इस शक्तिपीठ को श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति धाम माना जाता है, सम्पूर्ण शक्तिपीठों में यह सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ है। इसका प्रमाण देवासुर संग्राम में दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने भी दिया है, नरकासुर इसी सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ को, दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर नष्ट करने आया था। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को नरकासुर द्वारा निर्मित मार्ग से आकर दर्शन नही करना चाहिए। जो देवी कामाख्या के कहने पर नरकासुर अर्ध निर्माण किया है। शुक्राचार्य कामाख्या शक्तिपीठ को नष्ट करने के बाद सभी शक्तिपीठों का अस्तित्व स्वतः समाप्त होने की बात कही थी। कामाख्या शक्तिपीठ, निकट त्रिया राज्य से सिद्धि प्राप्त… सम्पूर्ण वर्णन अपने प्रथम शक्तिपीठ लेखनी – कामाख्या शक्तिपीठ श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति का द्वार यही है त्रिया राज्य में किया हूं।
गुप्त रहस्यों को उजागर करते माता की महिमा का वर्णन हमारी लेखनी से समाज को प्राप्त हो और माता के प्रति आस्था व्याप्त हो, इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए।

दूसरी शक्तिपीठ छिन्नमस्तिका

के रूप में झारखंड राज्य के रजरप्पा में, दस महाविद्याओं में से एक छठवीं महाविद्या धारण करने वाली, नग्न रुपा भवानी असुरों का संहार करने के बाद अपने ही सिर को काटकर सहचरीयों संग अपना रुधीर पान कर छुदा को शांत करने कराने वाली छिन्नमस्तिका भवानी, इस भवानी को जैसी मनोकामना के साथ पूजा जाता है वैसा ही फल प्राप्त होता है।
जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।
राम चरित्र मानस के बालकांड की यह चौपाई नग्न रुप छिन्नमस्तिका भवानी की महिमा पर सटीक बैठती है। जिसकी जैसी भावना होती है छिन्नमस्तिका नग्न देवी उसी रूप में मनोरथ पूर्ण करती है। यहां से सम्पूर्ण मनोकामना पूरी हो रोग दोष पाप आदि से मुक्त सफल जीवन जीने की राह मिलती है।

तीसरी शक्तिपीठ हिंगलाज भवानी

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित हिंगलाज भवानी उग्रतारा शक्तिपीठ मोक्ष प्रदान करने वाली। हिंगलाज शक्तिपीठ की पूजा-अर्चना मुस्लिम समुदाय भी करता है, इस शक्तिपीठ को मुस्लिम समुदाय अपनी नानी पीर के रूप में मानता है। यहां दर्शन करने वाली मुस्लिम स्त्रीयों को हजियाजी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार यहां आने वाले भक्तों की आत्मा को शुद्ध और पवित्र होने के बाद मोंक्ष का मार्ग सुलभ हो जाती है।

चौथी शक्तिपीठ विशालाक्षी मणिकर्णिका

बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट पर स्थापित शक्तिपीठ जो जन्म मरण से मुक्ति प्रदान करने वाली है। अपने प्रिय काशी में विराजमान बाबा विश्वनाथ जी का दर्शन करने वाले श्रद्धालु जन देवाधिदेव महादेव कि प्रिया विशालाक्षी देवी मणिकर्णिका घाट पर, यहां सती के कान का कुंडल गीरा था, इस शक्तिपीठ में विशालाक्षी देवी का भक्त जन दर्शन कर पूर्ण रूप से अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।

पांचवीं शक्तिपीठ त्रिपुरमालिनी वक्ष पीठ

देवी तालाब जालंधर पंजाब राज्य में एकमात्र शक्तिपीठ, यहां सती का एक स्तन गीरा था। इस शक्तिपीठ का इतिहास, शिव पुत्र असुर राज जलंधर पत्नी वृंदा के साथ, विष्णु द्वारा छल से पतिव्रत धर्म नष्ट कर, ख़ुद विष्णु वृंदा द्वारा श्रापित हो शालिग्राम पत्थर बने, वृंदा द्वारा इस पृथ्वी पर औषधि रुप में तुलसी का पौधा बन तुलसी और शालिग्राम विवाह से जूड़ा है।

छठवीं शक्तिपीठ दक्षिणेस्वरी काली रुपी कामाक्षीदेवी

पाताल लोक, युगाद्या शक्तिपीठ क्षीरग्राम वर्धमान बंगाल, इसी शक्तिपीठ मे सती के दाहिने पैर का अंगुठा जहां माता का तंत्र बसता है.. अहिरावण द्वारा पाताल लोक में स्थापित था, अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहरा कामाक्षीदेवी धर्म युद्ध में सीता और राम की लंका में सहयोगी बन युगाद्या शक्तिपीठ – क्षीरग्राम में भैरव क्षीरकंटक, हनुमानजी द्वारा स्थापित हुईं। पाताल लोक में अहिरावण द्वारा स्थापित कामाक्षीदेवी भद्रकाली ही सीता मे समाहित होकर सहस्त्ररावण का वध कि थीं।

सातवीं शक्तिपीठ कालीघाट कोलकात्ता

के रूप में बंगाल के कोलकात्ता कालीघाट स्थित महाकाली का वर्णन आद्या अंश सती के दाहिने पैर की अंगुठा छोड़, शेष चार उंगलियों पर किया हूं। यहां की शक्ति कालिका और भैरव नकुलेश हैं। समस्त कामनाओं को पूरा करने वाली 10 महाविद्याओं में देवी काली प्रथम महाविद्या धारण करने वाली, शिव की चौथी अर्धांगिनी काली ही हैं। काली को 108 नामों से जाना जाता है। काली का चार रुप है भद्रकाली, दक्षिणेस्वरी काली, मात्रृकाली, श्मशानकाली। माता का यह रूप साक्षात तथा जाग्रत अवस्था में है। दैत्यों का विनाश करने के लिए माता ने यह रूप समय-समय पर धारण किया। इनका स्वरूप अत्यंत भयानक मुण्डमाल धारण किये खड्ग-खप्पर हाथ में उठाये हुये मां अपने भक्तों को अभय दान देती है। ये रक्तबीज तथा चण्ड व मुण्ड जैसे महादैत्यों का नाश करने वाली मां शिवप्रिया साक्षात चामुण्डा का रूप है। इनका क्रोध शांत करने के लिए स्वयं महादेव को इनके चरणों के आगे लेटना पड़ा था।

आठवीं शक्तिपीठ ह्दय शक्तिपीठ

के रूप में ह्रदय शक्तिपीठ जय दुर्गा देवी यह विश्व का एकमात्र ऐसी शक्तिपीठ है, जहां शक्तिपीठ के साथ 12 ज्योतिर्लिंग में से एक नौवीं ज्योतिर्लिंग स्थापित है। अन्य 11 ज्योतिर्लिंग के पास इतना निकट कोई शक्तिपीठ नही है। ह्दय शक्तिपीठ के पास स्थापित ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान भारत देश में झारखण्ड राज्य के देवघर में स्थित है। यहां श्रावण मास में बाबा बैद्यनाथ धाम कि यात्रा स्वरूप विश्व के अनेक देशों से श्रद्धालु आते हैं और एशिया का सबसे बड़ा मेला लगता है।

नौवीं शक्तिपीठ वैष्णो देवी

के रूप में वैष्णो देवी सिद्ध शक्तिपीठ धर्म ग्रंथों के अनुसार यहां सती की खोपड़ी गीरी थी। जनकल्याण के लिए त्रिदेवीयों की अंश राजकुमारी त्रिकुटा त्रिकूट पर्वत पर तपस्या की थी। त्रेता युग में दैत्य दानवों का मर्दन कर जगत कल्याण के लिए माता पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती के रूप में स्थापित हैं, धर्म ग्रंथों के अनुसार विष्णु अंश श्रीरामचंद्र जी भी यहां आये हुए थे।

दसवीं शक्तिपीठ विन्ध्यवासिनी

गंडकी शक्तिपीठ: नेपाल का एक प्रमुख तीर्थस्थल

यक्षि-यक्षि तर्जनीभ्यां नमः। महायक्षि मध्यमाभ्यां नमः।।
यहां दैवीय उर्जा सदैव विन्ध्यगिरि के खुबसूरत स्थान पर विन्ध्याचल भवानी में विराजमान रहती है। यहां माता को विन्ध्यवासिनी देवी नाम विंध्य पर्वत से प्राप्त हुआ। विन्ध्यवासिनी नाम का अर्थ – विन्ध्य मे निवास करने वाली। सती के शरीर के अंग जहां जहां गीरे वह स्थान शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है। जिस रात कंश की बहन माता देवकी के गर्भ से कृष्ण का जन्म हुआ उसी रात आदिशक्ति की अंश विष्णु प्रिये योगमाया ने माता यशोदा के गर्भ से जन्म लिया।कारागार का दरवाजा खुला, सभी पहरी निद्रा में चले गए। देवकी को पता भी नहीं बासुदेव जी माया के जाल में आकर कृष्ण को मांथे पर लिए यमुना पार नन्दजी के यहां कृष्ण को यशोदा मईया के पास छोड़कर यशोदा मईया से उत्पन देवी अंश योगमाया को ले कारागार में चले आये। सुबह होते ही कंश को पहरीयों ने सूचना दी, बच्चे की आवाज कारागार में सुनाई दे रही है। कंश इस बार आठवें गर्भ से जन्में शिशु को मृत्यु देने को आतुर था। कंश ने देखा इस बार जन्मीं पुत्री ही है फिर भी अपने मृत्यु के भय से व्याकुल उस पुत्री को ज्यों ही जमीन पर पटकने की कोशिश की पुत्री आदिशक्ति श्री दुर्गा के रूप में प्रस्तुत हो कंश को चेतावनी – तुम्हारे मृत्यु दाता विष्णु अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हो चुका है, सती के शक्तिपीठ विन्ध्याचल पर्वत पर चली आईं। अब पढ़िए विस्तार से ग्यारहवीं शक्तिपीठ के रूप में मां गंदकी शक्तिपीठ नेपाल को।

गंडकी शक्तिपीठ: नेपाल का एक प्रमुख तीर्थस्थल

गंडकी शक्तिपीठ का धार्मिक महत्व हिंदू पौराणिक कथाओं और पुराणों से जुड़ा है। मान्यता है कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया, तो भगवान शिव ने क्रोधित होकर उनके शव को अपने कंधे पर उठाया और तांडव करने लगे। इस समय भगवान विष्णु ने सती के शरीर के अंगों को अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया, जिससे उनके शरीर के टुकड़े विभिन्न स्थानों पर गिरे। जहां-जहां देवी सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। गंडकी शक्तिपीठ भी इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी सती का बाएं गाल गिरा था। यहां का इतिहास हमारी पांचवी शक्तिपीठ त्रिपुरमालिनी वक्षपीठ देवी तालाब जालंधर से भी जूडा हुआ है। यहां गंदकी नदी में जो शालिग्राम पत्थर मिलते हैं वो विष्णुजी द्वारा वृंदा के साथ किए गए छल स्वरूप वृंदा के श्राप से ही हैं तत्पश्चात वही वृंदा तुलसी के पौधे के रूप में जन्म ले विष्णुजी के साथ पूज्यनीय है। इसे विस्तार से जानने के लिए पांचवी शक्तिपीठ त्रिपुरमालिनी वक्षपीठ को पढ़िए।

गंडकी नदी, जिसे काली गंडकी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक पवित्र नदी मानी जाती है। इस नदी का नाम ‘काली’ इसलिए पड़ा क्योंकि इसके जल का रंग काले पत्थरों के कारण काला दिखाई देता है। यह नदी विशेष रूप से अपने शालिग्राम पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है, जो विष्णु के अवतार माने जाते हैं। शालिग्राम को पूजने की परंपरा विशेष रूप से वैष्णव संप्रदाय में पाई जाती है। इस नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंडकी नदी का यह शक्तिपीठ स्थान अत्यंत पवित्र और धार्मिक ऊर्जा से भरपूर है।

गंडकी शक्तिपीठ में पूजी जाने वाली देवी:

गंडकी शक्तिपीठ में माता सती के स्वरूप को माता देवी के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में देवी की मूर्ति स्थापित है, जिन्हें गंडकी देवी के नाम से जाना जाता है। यहां देवी की पूजा अर्चना बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ की जाती है। भक्तजन यहां नियमित रूप से पूजा-अर्चना, अनुष्ठान और हवन करते हैं। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान इस शक्तिपीठ पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं।

gandaki shakti peeth: की स्थापत्य कला:

गंडकी शक्तिपीठ की स्थापत्य कला प्राचीन भारतीय और नेपाली वास्तुकला का अद्वितीय संगम है। मंदिर की संरचना को पारंपरिक शैली में बनाया गया है, जिसमें मुख्य गर्भगृह, सभामंडप और प्रवेश द्वार की भव्यता देखने लायक होती है। मंदिर के चारों ओर की प्राकृतिक सुंदरता, जैसे पर्वत, नदी और हरे-भरे वृक्ष, इस स्थल की पवित्रता और आकर्षण को और भी बढ़ाते हैं। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं की सुंदर नक्काशी और चित्रकारी इसे एक अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर बनाती है।

गंडकी शक्तिपीठ के मुख्य त्यौहार और उत्सव:

गंडकी शक्तिपीठ में वर्ष भर कई धार्मिक त्यौहार और उत्सव मनाए जाते हैं, जिनमें नवरात्रि सबसे प्रमुख है। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना, जागरण, और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। इसके अलावा, चैत्र और अश्विन मास की नवरात्रि में यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और देवी के आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं। इस दौरान विशेष हवन, यज्ञ और अन्य धार्मिक अनुष्ठान भी संपन्न होते हैं, जो यहां आने वाले श्रद्धालुओं के बीच आध्यात्मिक उत्साह का संचार करते हैं।

gandaki shakti peeth: से जुड़े चमत्कार और मान्यताएँ:

गंडकी शक्तिपीठ से कई चमत्कार और मान्यताएं जुड़ी हैं। कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। यहां श्रद्धालुओं का भी मानना है कि माता गंडकी देवी उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं और उनके दुखों का निवारण करती हैं। इस मंदिर की पवित्रता और दिव्यता का अनुभव करने के लिए श्रद्धालु देश-विदेश से यहां आते हैं। इसके अलावा, यहां के शालिग्राम पत्थर भी अपने आप में चमत्कारी माने जाते हैं, जिन्हें घर में रखने से सुख-समृद्धि आती है।

गंडकी शक्तिपीठ की यात्रा: एक आध्यात्मिक अनुभव:

गंडकी शक्तिपीठ की यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुभव भी प्रदान करती है। यहां की शांत और पवित्र वातावरण, नदी की कल-कल करती धारा, और आसपास की प्राकृतिक सुंदरता इस स्थल को एक आदर्श तीर्थ स्थल बनाती है। यहां आकर श्रद्धालु न केवल देवी के दर्शन का लाभ उठाते हैं, बल्कि आत्मिक शांति और ध्यान का भी अनुभव करते हैं।

गंडकी शक्तिपीठ की वर्तमान स्थिति और विकास:

वर्तमान में गंडकी शक्तिपीठ का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह नेपाल के सांस्कृतिक और पर्यटन क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नेपाल सरकार और मंदिर समिति द्वारा इस स्थल के विकास और संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। मंदिर परिसर में सुविधाओं का विस्तार किया गया है ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कठिनाई न हो। आधुनिक तकनीक और संसाधनों के माध्यम से इस स्थल को और भी आकर्षक और सुविधा सम्पन्न बनाया जा रहा है।

गंडकी शक्तिपीठ: नेपाल के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक:

गंडकी शक्तिपीठ न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह नेपाल की सांस्कृतिक धरोहर का एक अद्वितीय प्रतीक भी है। यहां आने वाले श्रद्धालु न केवल देवी के आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं, बल्कि नेपाल की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक आस्था का भी अनुभव करते हैं। इस शक्तिपीठ की महिमा और इसका ऐतिहासिक महत्व इसे एक अनमोल धरोहर बनाता है, जिसे आने वाली पीढ़ियों तक संरक्षित करना आवश्यक है।

gandaki shakti peeth: प्रमुख स्थानों से आवागमन की सुविधा:

गंडकी शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए नेपाल के विभिन्न प्रमुख स्थानों और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से कई सुविधाजनक मार्ग उपलब्ध हैं। यहां पहुंचने के लिए सड़क, हवाई और रेल यात्रा का उपयोग किया जा सकता है, जिससे देश और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को कोई कठिनाई न हो।

काठमांडू से गंडकी शक्तिपीठ:

नेपाल की राजधानी काठमांडू से गंडकी शक्तिपीठ पहुंचने के लिए सड़क मार्ग प्रमुख है। काठमांडू से बसें और टैक्सियां नियमित रूप से उपलब्ध हैं।
दूरी: लगभग 200-250 किमी (स्थान के आधार पर)
यात्रा का समय: लगभग 5-7 घंटे
सड़क मार्ग: काठमांडू-पोखरा हाइवे के माध्यम से। पोखरा तक पहुँचने के बाद, स्थानीय वाहन और टैक्सी गंडकी शक्तिपीठ तक पहुंचाने के लिए उपलब्ध हैं।

पोखरा से गंडकी शक्तिपीठ:

पोखरा, नेपाल का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जो गंडकी शक्तिपीठ के निकट स्थित है।
दूरी: लगभग 100-120 किमी
यात्रा का समय: 2-3 घंटे
सड़क मार्ग: पोखरा से बस या टैक्सी के माध्यम से गंडकी नदी के किनारे स्थित शक्तिपीठ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

बिराटनगर से गंडकी शक्तिपीठ

बिराटनगर, नेपाल के पूर्वी हिस्से में स्थित एक प्रमुख औद्योगिक और व्यापारिक शहर है। यहां से भी गंडकी शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे अच्छा विकल्प है।
दूरी: लगभग 350 किमी
यात्रा का समय: 8-10 घंटे
सड़क मार्ग: बिराटनगर से काठमांडू होते हुए पोखरा तक सड़क मार्ग से यात्रा की जा सकती है।

भारत से गंडकी शक्तिपीठ

भारत से नेपाल जाने के लिए गोरखपुर एक प्रमुख स्थल है। यहां से नेपाल की सीमा के विभिन्न मार्गों से गंडकी शक्तिपीठ तक पहुंचा जा सकता है।
दूरी: लगभग 280-300 किमी
यात्रा का समय: 6-7 घंटे
मार्ग: गोरखपुर से सोनौली बॉर्डर होते हुए, पोखरा या सीधे गंडकी शक्तिपीठ तक बस या टैक्सी उपलब्ध हैं।
रक्सौल (बिहार) से भारत-नेपाल की सीमा पर स्थित एक प्रमुख स्थल है, जिससे नेपाल के प्रमुख शहरों से सीधा संपर्क होता है।
दूरी: लगभग 250-280 किमी
यात्रा का समय: 6-7 घंटे
मार्ग: रक्सौल से काठमांडू होते हुए या पोखरा तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

हवाई मार्ग से गंडकी शक्तिपीठ:

यदि हवाई यात्रा का विकल्प चुना जाए, तो सबसे नजदीकी हवाई अड्डा पोखरा हवाई अड्डा है। यहां से गंडकी शक्तिपीठ तक टैक्सी या स्थानीय वाहन द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
पोखरा हवाई अड्डा: यहां से लगभग 2-3 घंटे की सड़क यात्रा के बाद शक्तिपीठ तक पहुंचा जा सकता है।
काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा: यहां से सड़क मार्ग द्वारा 6-7 घंटे की यात्रा करनी होगी।
परिवहन के साधन:
सार्वजनिक बसें: नेपाल के प्रमुख शहरों से गंडकी शक्तिपीठ के लिए नियमित रूप से बस सेवाएं चलती हैं।
टैक्सी और कैब सेवाएं: निजी वाहन जैसे टैक्सियाँ और कैब सेवाएं भी काठमांडू, पोखरा और अन्य प्रमुख शहरों से उपलब्ध हैं।
स्थानीय वाहन: छोटी दूरी के लिए रिक्शा, ऑटो और अन्य स्थानीय वाहन उपलब्ध रहते हैं।

गंडकी शक्तिपीठ नेपाल के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, जिसका महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक है। यहां की पवित्रता, धार्मिक अनुष्ठान, और आध्यात्मिक ऊर्जा श्रद्धालुओं को एक विशेष अनुभव प्रदान करती है। इस शक्तिपीठ की धार्मिक महिमा और इसकी अद्वितीय स्थापत्य कला इसे एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाते हैं। गंडकी देवी की कृपा से यहां आने वाले श्रद्धालुओं को न केवल भौतिक सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, बल्कि वे आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर भी अग्रसर होते हैं।

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