कांवड़ यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जिसे उत्तर व पूर्वी भारत में विशेष रूप से श्रावण मास के दौरान मनाया जाता है। इस यात्रा में श्रद्धालु गंगा जल लेकर शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं। कावंड यात्रा की शुद्धता और उसकी पवित्रता का ध्यान रखना अनिवार्य है, क्योंकि यह न केवल धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह हमारे समाज के सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का भी प्रतीक है।श्रावण मास में कांवड़ यात्रा भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव संपादक कि कलम से सभी शिव भक्त जन को समर्पित है। पूरी जानकारी के लिए इस आर्टिकल को अंत तक पढ़िए संबंधित जानकारी के लिए सम्पर्क किजिये भारतीय हवाटएप्स +917379622843 पर या कमेंट बॉक्स में लिखकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। या हमारे इस साइट पर अदर पोस्ट पढ़कर भी जानकारी पा सकते हैं।
शुद्धता का महत्व:
कावंड यात्रा के दौरान शुद्धता का महत्व अत्यधिक है। यह शुद्धता न केवल बाहरी रूप से बल्कि आंतरिक रूप से भी होनी चाहिए। बाहरी शुद्धता में शरीर और वस्त्रों की स्वच्छता शामिल होती है, जबकि आंतरिक शुद्धता में मन और विचारों की पवित्रता का ध्यान रखना आवश्यक है। संक्षेप में जानिये बाहरी और आंतरिक शुद्धता क्या है?
बाहरी शुद्धता:
स्वच्छ वस्त्र: कावंड यात्रा के दौरान स्वच्छ और केशरिया भगवा या सफेद वस्त्र पहनना महत्वपूर्ण है। यह न केवल शारीरिक स्वच्छता का प्रतीक है, बल्कि मानसिक शांति और पवित्रता का भी प्रतीक है।
व्यक्तिगत स्वच्छता: कांवड़ यात्रा के दौरान व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखना आवश्यक है। जब रास्तें में मल-मूत्र त्याग या जलपान भोजन करें तब स्नान कर शारीरिक पवित्रता के लिए, हाथ-पैर धोना और मंत्रोचार ॐ नम्ः शिवाय, ॐ नम्ः शिवाय्। इस पंचाक्षरी मंत्र से शुद्धता प्राप्त करें, या
“पवित्रं पवित्रोविवा सर्वायाम्। पवित्रपवित्रस्य पवित्रेण वा, पवित्रं पवित्रं पवित्रपवित्रं।” इस श्लोक का भावार्थ है कि परमात्मा या ब्रह्मा सभी को शुद्ध और पवित्र करने वाला है, और कोई भी वस्तु या व्यक्ति जो उसके संपर्क में आता है, वह स्वाभाविक रूप से पवित्र हो जाता है। यह श्लोक इस बात को इंगित करता है कि आत्मा या ईश्वर के संपर्क में आने से सब कुछ पवित्र हो जाता है। मंत्रोचार के साथ स्वच्छता का पालन करना जरूरी है।
प्लास्टिक का उपयोग: कांवड़ यात्रा के दौरान प्लास्टिक की बोतलों, डिब्बों और अन्य प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग न करें। ऐसा न करना पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करना है।
जलाभिषेक के लिए कौन सा पात्र उपयोग करें:
शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए चांदी, तांबे या कांसे के पात्र का उपयोग करना सबसे शुभ और फलदायी माना जाता है। इन धातुओं के पात्र में जल चढ़ाने से शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। विशेषकर तांबे के पात्र में जल चढ़ाना अधिक प्रचलित और पूजनीय माना जाता है।
आंतरिक शुद्धता:
सकारात्मक सोच: यात्रा के दौरान सकारात्मक सोच और विचारों का होना आवश्यक है। नकारात्मक विचार और भावनाएँ शुद्धता में बाधा उत्पन्न करती हैं।
ध्यान और प्रार्थना: नियमित ध्यान और प्रार्थना से मन की शुद्धता बनी रहती है। यह न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि यात्रा को सफल और पवित्र भी बनाता है।
सात्विक आहार: सात्विक आहार का सेवन करना महत्वपूर्ण है। यह शरीर और मन दोनों को शुद्ध रखता है। कांवड़ यात्रा के दौरान तामसी भोजन न करें, फल फिलहाल या अल्पाहार शुद्ध भोजन करें।
शुद्धता बनाए रखने के उपाय:
संवाद और सहयोग: यात्रा के दौरान सभी श्रद्धालुओं को आपस में धार्मिक संवाद और सहयोग बनाए रखना चाहिए। यह न केवल यात्रा को सरल बनाता है, बल्कि शुद्धता को भी बनाए रखता है। भगवान शिव व जगत-जननी स्वरुपा माता सती व पार्वती की महिमा व कथा कहानी कहना व सुनना चाहिए।
स्वच्छता अभियान: यात्रा के दौरान स्वच्छता अभियान चलाना चाहिए। इसमें प्लास्टिक मुक्त यात्रा, स्वच्छता की सामग्री का उपयोग और कचरा प्रबंधन शामिल हैं। रास्ते में गंदगी नही फैलाना चाहिए साफ-सफाई पर ध्यान देना चाहिए।
नियम और निर्देशों का पालन: कावंड यात्रा के दौरान सभी नियम और निर्देशों का पालन करना आवश्यक है। यह न केवल शुद्धता बनाए रखता है, बल्कि यात्रा को सुरक्षित और सफल भी बनाता है। कांवड़ जल अभिमंत्रित करवा यात्रा प्रारंभ करते, ध्यान रखें जो आगे का जल जिसके लिए अभिमंत्रित है उसे ही अर्पित करें। जैसा कि वैद्यनाथ धाम कांवड़ यात्रा में आगे का जल वैद्यनाथ व पिछे का जल बासुकीनाथ के लिए अभिमंत्रित होता है। इसको ध्यान में रखते हुए अपनी पहचान के लिए कुछ चिन्ह बना लें। रास्ते में कांवड़ का कंधा बदलते आगे से पीछे न घुमाकर पीछे से आगे कांवड को घुमाया जाता है ताकि जल लंघन न हो। या सर के ऊपर से दूसरे कंधे पर कांवड़ रखना चाहिए। ज्यादातर आगे का जल आगे ही रख कांवड़ यात्रा करनी चाहिए।

शिवलिंग पर जल अर्पित करने से पहले जान लें यह महत्वपूर्ण बातें:
धर्म ग्रंथों के अनुसार शिवलिंग में चार भाग होता है। सबसे नीचे ब्रह्म स्थान, उससे ऊपर विष्णु स्थान, नाली नूमा भाग आदिशक्ति जगत जननी स्वरुपा देवी सती का गर्भभाग, ऊपर गोलाकार शिव भाग जो त्रिदेव सहित जगत-जननी का प्रतीक शिवलिंग होता है। जलाभिषेक करते समय सबसे ऊपर भाग को पुरुष छूकर व नाली नूमा भाग को स्त्री छूकर व नीचे दो भाग कोई भी छूकर प्रणाम कर सकता है। नाली नूमा भाग पुरुष व ऊपर गोलाकार भाग स्त्री को कदापि नहीं छूना चाहिए। ज्यादा जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक किजिये पढ़िए विस्तार से औरत को शिवलिंग छूना चाहिए या नहीं शिवलिंग से जुड़ी गोपनीय बातें।
शिव जलाभिषेक के दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है।
“ॐ नमः शिवाय” यह पंचाक्षरी मंत्र भगवान शिव को समर्पित है और इसे जलाभिषेक के दौरान उच्चारण करने से अत्यंत पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त, निम्न मंत्र भी उच्चारित किए जा सकते हैं।
“ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।”
शिव जलाभिषेक विधि:
स्नान और शुद्धिकरण: सबसे पहले, स्नान कर शुद्ध हो जाएं। साफ कपड़े पहनें।
पूजा सामग्री: पूजा के लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित करें:
शुद्ध जल (गंगा जल यदि उपलब्ध हो) – दूध- दही – शहद – चीनी – पंचामृत – बेलपत्र – सफेद फूल – चंदन – चावल – धूप, दीप – शिवलिंग
आसन और स्थान: एक स्वच्छ और शांत स्थान पर पूजा का आयोजन करें। वहाँ एक आसन बिछाकर बैठें।
शिवलिंग की स्थापना: शिवलिंग को किसी साफ पात्र में स्थापित करें।
पूजा की शुरुआत: गणेश वंदना से पूजा आरंभ करें। गणेश जी को प्रणाम कर शिव पूजा की शुरुआत करें।
शिवलिंग पर जलाभिषेक:
सबसे पहले शिवलिंग पर शुद्ध जल चढ़ाएं और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का उच्चारण करें।
इसके बाद दूध, दही, शहद और चीनी का अभिषेक करें। इसे पंचामृत कहते हैं। पुनः जल से शिवलिंग को स्नान कराएं।
बेलपत्र और फूल चढ़ाना: शिवलिंग पर बेलपत्र और सफेद फूल चढ़ाएं। बेलपत्र को उल्टा न रखें और उसमें कोई छेद या दाग न हो।
चंदन और अक्षत (चावल): शिवलिंग पर चंदन का तिलक लगाएं और अक्षत चढ़ाएं।
धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर शिवजी की आरती करें।
प्रसाद: पूजा समाप्ति पर सभी को प्रसाद वितरित करें।
ध्यान और प्रार्थना: अंत में शिवजी का ध्यान करें और अपनी मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करें।
इस विधि से शिव जलाभिषेक करने पर भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
भगवान शिव की आरती:
जय शिव ओंकारा आरती:
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
संकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में सोई तीनों एका॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
ज्ञान पूजा जप ध्यान नहिं जानत अयोगी।
प्रणवाक्षर की सेवा जानत भोगी॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
अक्षर बीच में न्यारा त्रिगुण शिवसूत्र।
नंदी सेवक सनकादिक के सेवा सुखपूर॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, अर्द्धांगी धारा॥
आरती के समापन के बाद भगवान शिव को प्रणाम करें और सभी में प्रसाद वितरित करें।
कांवड़ यात्रा सम्पूर्ण जानकारी निष्कर्ष:
कावंड यात्रा में शुद्धता का ध्यान रखना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे समाज और पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाता है। बाहरी और आंतरिक शुद्धता का संतुलन बनाए रखकर हम न केवल अपनी यात्रा को सफल बना सकते हैं, बल्कि इसे एक यादगार और पवित्र अनुभव भी बना सकते हैं। इस प्रकार, सभी श्रद्धालुओं को शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए और अपने कर्मों और विचारों से इस यात्रा को पूर्णता की ओर ले जाना चाहिए। शिव भजन-कीर्तन चालिसा आरती के साथ पंचाक्षरी मंत्र का जप करते बोल बम सहित शिव जी का जय घोस करते भक्तिभाव से कांवड़ यात्रा को सम्पन्न करनी चाहिए।
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