जानिए अपने पूर्वजों की उत्पत्ति, कौन किसके वंशज – भाग तीन
पिछले भाग एक और दो के प्रकाशन में आप ने जाना पराशक्ति आदिशक्ति जगत जननी से उत्पन्न त्रिदेव की उत्पत्ति से लेकर चौथा प्राचीन वंश तक जगत माता जगत-जननी का कृपा पात्र ब्रह्माजी के काया से उत्पन्न भगवान चित्रगुप्त जी के हम वंशज अमित श्रीवास्तव कायस्थ के कर्म-धर्म लेखनी से प्राचीन वंश पूर्वजों की उत्पत्ति कौन किसके वंशज को अनेकों धर्म ग्रंथों से एकत्रित कर प्रस्तुत कर रहा हूं। जिससे कि आप भी अपने पूर्वजों को जान सकें। मनुष्य योनि में उत्पन्न होने के नाते हर किसी को अपने पिछले सात पीढ़ी के साथ-साथ गोत्र किससे मिला, श्रृष्टि रचना के बाद श्रृष्टि विस्तार में हम आप किसके वंशज हैं, उनका किससे क्या रिस्ता नाता, उनका बल पौरूष, ननिहाल कहाँ, इतिहास क्या है हमारे पूर्वजों का, जानना रोचक ही नही गर्भ का विषय भी है। हम उन देवी-देवताओं ऋषियों मुनियों के वंशज हैं। हमारे उन पितरों की आत्मा संस्कार से पवित्र देव तुल्य है, हमें अपने उन पूर्वजों के पदचिन्हों का स्मरण करते उनके पथ पर अग्रसर होना चाहिए। काश इतिहास के पन्नों से हमारे पूर्वजों ऋषि मुनियों देव तुल्य मार्गदर्शकों को ग़ायब न किया गया होता तो ऐसे इतिहास के माध्यम से हमारे देश के होनहारों का भविष्य बहुत ही उज्जवल होता। देश के होनहारों को ऐसे ऋषि-मुनियों देवी-देवताओं के इतिहास को पढायेगे बताएंगे तो निश्चित ही बाबर और हुमायूं के इतिहास से श्रेष्ठतम रहेगा।
पांचवां प्राचीन वंश…
अंगिरा वंश- अंगिरा की पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री स्मृति- मतांतर से श्रद्धा, थीं। अंगिरा के तीन प्रमुख पुत्र थे। उतथ्य, संवर्त और बृहस्पति। ऋग्वेद में उनका वंशधरों का उल्लेख मिलता है। इनके और भी पुत्रों का उल्लेख मिलता है- हविष्यत्, उतथ्य, बृहत्कीर्ति, बृहज्ज्योति, बृहद्ब्रह्मन् बृहत्मंत्र, बृहद्भास और मार्कंडेय। भानुमती, रागा – राका, सिनी वाली, अर्चिष्मती – हविष्मती, महिष्मती, महामती तथा एकानेका – कुहू इनकी सात कन्याओं के भी उल्लेख मिलते हैं। जांगीड़ ब्राह्मण नाम के लोग भी इनके कुल के हैं। अंगिरा देव को ऋषि मारीच की बेटी सुरूपा व कर्दम ऋषि की बेटी स्वराट् और मनु ऋषि कन्या पथ्या ये तीनों विवाही गईं। सुरूपा के गर्भ से बृहस्पति, स्वराट् से गौतम, प्रबंध, वामदेव, उतथ्य और उशिर ये पांच पुत्र जन्मे। पथ्या के गर्भ से विष्णु, संवर्त, विचित, अयास्य, असिज, दीर्घतमा, सुधन्वा ये सात पुत्र जन्मे। उतथ्य ऋषि से शरद्वान, वामदेव से बृहदुकथ्य उत्पन्न हुए। महर्षि सुधन्वा के ऋषि विभ्मा और बाज आदि नाम से तीन पुत्र हुए। ये ऋषि पुत्र रथकार में कुशल थे। उल्लेखनीय है कि महाभारत काल में रथकारों को शूद्र माना गया था। कर्ण के पिता रथकार ही थे। इस तरह हर काल में जातियों का उत्थान और पतन कर्म के आधार पर होता रहा हैै।
भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। ऋषि भारद्वाज के प्रमुख पुत्रों के नाम हैं- ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र। उनकी दो पुत्रियां थीं रात्रि और कशिपा। इस प्रकार ऋषि भारद्वाज की बारह संतानें थीं। बहुत से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं दलित समाज के लोग भारद्वाज गोत्र लगाते हैं। वे सभी भारद्वाज कुल के हैं। अन्य आंगिरस- आंगिरस नाम के एक ऋषि और भी थे जिन्हें घोर आंगिरस कहा जाता है और जो कृष्ण के गुरु भी कहे जाते हैं। कहते हैं कि भृगु वंश की एक शाखा ने आंगिरस नाम से एक स्वतंत्र वंश का रूप धारण कर लिया अत: शेष भार्गवों ने अपने को आंगिरस कहना बंद कर दिया।
आंगिरस ऋषि के द्वारा स्थापित किए गए इस वंश की जानकारी ब्रह्मांड, वायु एवं मत्स्य पुराण में मिलती है। इस जानकारी के अनुसार इस वंश की स्थापना अथर्वन अंगिरस के द्वारा की गई थी। इस वंश की प्रमुख रूप से सात ऋषियों ने वृद्धि की, जो क्रमश: इस प्रकार हैं-अवास्य अंगिरस – हरीशचन्द्र के समकालीन, उशिज अंगिरस एवं उनके तीन पुत्र उचथ्य, बृहस्पति एवं संवर्त, जो वैशाली के करंधम, अविक्षित् एवं मरुत्त आविक्षित राजाओं के पुरोहित थे। दीर्घतमस् एवं भारद्वाज, जो क्रमश: उचथ्य एवं बृहस्पति के पुत्र थे। इनमें से भारद्वाज ऋषि काशी के दिवोदास – द्वितीय राजा के राजपुरोहित थे। दीर्घतमस् ऋषि ने अंगे देश में गौतम शाखा की स्थापना की थी। वामदेव गौतम, शरद्वत् गौतम, जो उत्तर पांचाल के दिवोदास राजा के अहल्या नामक बहन के पति थे। कक्षीवत् दैर्घतमस औशिज, और सातवें भारद्वाज, जो उत्तर पांचाल के पृषत् राजा के समकालीन थे।
आंगिरसों का कुल- आंगिरसों के कुल में अनेक ऐसे ऋषि और राजा हुए जिन्होंने अपने नाम से या जिनके नाम से कुलवंश परंपरा चली, जैसे देवगुरु बृहस्पति, अथर्ववेद कर्ता अथर्वागिरस, महामान्यकुत्स, श्रीकृष्ण के ब्रह्माविद्या गुरु घोर आंगिरस मुनि। भरताग्नि नाम का अग्निदेव, पितीश्वरगण, गौत्तम, वामदेव, गाविष्ठर, कौशलपति कौशल्य- श्रीराम के नाना, पर्शियाका आदि पार्थिव राज, वैशाली का राजा विशाल, आश्वलायन – शाखा प्रवर्तक, आग्निवेश – वैद्य, पैल मुनि पिल्हौरे माथुर – इन्हें वेदव्यास ने ऋग्वेद प्रदान किया, गाधिराज, गार्ग्यमुनि, मधुरावह – मथुरावासी मुनि, श्यामायनि राधाजी के संगीत गुरु, कारीरथ – विमान शिल्पी, कुसीदकि – ब्याज खाने वाले, दाक्षि – पानिणी व्याकरणकर्ता के पिता, पतंजलि – पानिणी अष्टाध्यायी के भाष्कार, बिंदु – स्वायम्भु मनु के बिंदु सरोवर के निर्माता, भूयसि – ब्राह्मणों को भूयसि दक्षिणा बांटने की परंपरा के प्रवर्तक, महर्षि गालव – जैपुर गल्ता तीर्थ के संस्थापक, गौरवीति – गौरहे ठाकुरों के आदिपुरुष, तन्डी – शिव के सामने तांडव नृत्यकर्ता रुद्रगण, तैलक – तैलंग देश तथा तैलंग ब्राह्मणों के आदिपुरुष, नारायणि – नारनौल खंड बसाने वाले, स्वायम्भु मनु – ब्रह्मर्षि देश ब्रह्मावर्त के सम्राट मनुस्मृति के आदिमानव धर्म के समाज रचना नियमों के प्रवर्तक, पिंगलनाग – वैदिक छंदशास्त्र प्रवर्तक, माद्रि – मद्रदेश मदनिवाणा के सावित्री, – जव्यवान के तथा पांडु पाली माद्री के पिता अश्वघोषरामा वात्स्यायन – स्याजानी औराद दक्षिण देश के कामसूत्र कर्ता, हंडिदास – कुबेर के अनुचर ऋण वसूल करने वाले हुंडीय यक्ष हूणों के पूर्वज, बृहदुक्थ – वेदों की उक्थ भाषा के विस्तारक भाषा विज्ञानी, वादेव – जनक के राजपुरोहित, कर्तण – सूत कातने वाले, जत्टण – बुनने वाले जुलाहे, विष्णु सिद्ध – खाद्यात्र- काटि कोठारों के सुरक्षाधिकारी, मुद्गल – मुदगर बड़ी गदा, धारी, अग्नि जिव्ह – अग्नि मंत्रों को जिव्हाग्र रखने वाले, देव जिव्ह – इन्द्र के मंत्रों के जिव्हाग्र धार, हंस जिव्ह – प्रजापिता ब्रह्मा के मंत्रों के जिव्हाग्र धारक, मत्स्य दग्ध – मछली भूनने वाले, मृकंडु मार्कंडेय, तित्तिरि – तीतर धर्म से याज्ञवल्क्य मुनि के वमन किए कृष्ण्यजु मंत्रों को ग्रहण करने वाले तैतरेय शाखा के ब्राह्मण, ऋक्ष जामवंत, शौंग – शुंगवन्शी तथा माथुर सैगंवार ब्राह्मण, दीर्घतमा ऋषि – दीर्घपुर डीगपुर ब्रज के बदरी वन में तप करने वाले, हविष्णु – हवसान अफ्रीका देश की हवशी प्रजाओं के आदिपुरुष, अयास्य मुनि – अयस्क लौह धातु के आविष्कर्ता, कितव – संदेशवाहक पत्र लेखक किताब पुस्तकें तैयार करने वाले देवदूत, कण्व ऋषि – ब्रज कनवारौ क्षेत्र के तथा सौराष्ट्र के कणवी जाति के पुरुष आदि हजारों का आंगिरस कुल में जन्म हुआ।
छठा प्राचीन वंश…
वशिष्ठ ऋषि वंश- बहुत से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं दलित समाज के लोग वशिष्ठ गोत्र लगाते हैं। वे सभी वशिष्ठ कुल के हैं। वशिष्ठ नाम से कालांतकर में कई ऋषि हो गए हैं। एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकु के काल में हुए, तीसरे राजा हरिशचंद्र के काल में हुए और चौथे राजा दिलीप के काल में और पांचवें राजा दशरथ के काल में हुए।
पहले ब्रह्मा के मानस पुत्र, दूसरे मित्रावरुण के पुत्र, तीसरे अग्नि के पुत्र कहे जाते हैं।
वशिष्ठ की पत्नी का नाम अरुंधती देवी था। कामधेनु और सूर्यवंश की पुरोहिताई के कारण उनका ऋषि विश्वामित्र से झगड़ा हुआ था। विश्वामित्र ययाति कुल से थे। वशिष्ठ के सौ से ज्यादा पुत्र थे।
अयोध्या के राजपुरोहित के पद पर कार्यरत ऋषि वशिष्ठ की संपूर्ण जानकारी वायु, ब्रह्मांड एवं लिंग पुराण में मिलती है। इस ऋषियों एवं गोत्रकारों की नामावली मत्स्य पुराण में दर्ज है। इस वंश में क्रमश: प्रमुख लोग हुए- देवराज, आपव, अथर्वनिधि, वारुणि, श्रेष्ठभाज्, सुवर्चस्, शक्ति और आठवें मैत्रावरुणि। एक अल्प शाखा भी है, जो जातुकर्ण नाम से है।
सातवां प्राचीन वंश….
विश्वकर्मा वंश- विश्वकर्मा वंश कहीं-कहीं भृगु कुल से और कहीं अंगिरा कुल से संबंध रखते हैं। इसका कारण है कि हर कुल में अलग-अलग विश्वकर्मा हुए हैं। हमारे देश में विश्वकर्मा नाम से एक ब्राह्मण समाज भी है, जो विश्वकर्मा समाज के नाम से मौजूद है। जांगीड़ ब्राह्मण, सुतार, सुथार और अन्य सभी शिल्पी निर्माण कला एवं शास्त्र ज्ञान में पारंगत होते हैं। यह ब्राह्मणों में सबसे श्रेष्ठ समाज है क्योंकि ये निर्माता हैं। शिल्पज्ञ, विश्वकर्मा ब्राह्मणों को प्राचीनकाल में रथकार वर्धकी, एतब कवि, मोयावी, पांचाल, रथपति, सुहस्त सौर और परासर आदि शब्दों से संबोधित किया जाता था। उस समय आजकल के सामान लोहाकार, काष्ठकार, सुतार और स्वर्णकारों जैसे जाति भेद नहीं थे। प्राचीन समय में शिल्प कर्म बहुत ऊंचा समझा जाता था और सभी जाति, वर्ण समाज के लोग ये कार्य करते थे।
विश्वकर्मा भवत्पूर्व ब्रह्मण स्त्वपरा तनुः।
त्वष्ट्रः प्रजापतेः पुत्रो निपुणः सर्व कर्मस।।
अर्थ – प्रत्यक्ष आदि ब्रह्मा विश्वकर्मा त्वष्टा प्रजापति का पुत्र पहले उत्पन्न हुआ और वह सब कामों में निपुण था।
प्रभास पुत्र विश्वकर्मा, भुवन पुत्र विश्वकर्मा तथा त्वष्टापुत्र विश्वकर्मा आदि अनेक विश्वकर्मा हुए हैं। यहां बात करते हैं प्रथम विश्वकर्मा की जो वास्तुदेव और अंगिरसी के पुत्र थे। विश्वकर्मा के प्रमुख पांच पुत्र थे- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ।
आठवां प्राचीन वंशावली….
अगस्त्य वंश- ऋषि अगस्त्य वशिष्ठ के भाई थे। ऋषि अगस्त्य के वंशजों को अगस्त्य वंशी कहा गया है। ऋषि वशिष्ठ के समान यह भी मित्रावरूणी के पुत्र हैं। कुछ लोग इन्हें ब्रह्मा का पुत्र मानते हैं। हालांकि ये भगवान शंकर के सबसे श्रेष्ठ सात शिष्यों में से एक थे। इनकी गणना भी सप्त ऋषियों में की जाती है। इनकी पत्नी का नाम लोपमुद्रा था। अगस्त्य की पत्नी लोकामुद्रा विदर्भराज निमि की पुत्री थी। ऋग्वेद में इनका उल्लेख मिलता है।
ऋषि अगस्त्य ने ही इन्द्र और मरुतों में संधि करवाई थी। अगस्त्य ऋषि ने ही विद्यांचल की पहाड़ी में से दक्षिण भारत में पहुंचने का रास्ता बनाया था। महर्षि अगस्त्य समुद्रस्थ राक्षसों के अत्याचार से देवताओं को मुक्ति दिलाने हेतु सारा समुद्र पी गए थे। इसी प्रकार इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों द्वारा हो रहे ऋषि-संहार को इन्होंने ही बंद करवाया था। दक्षिण भारत में ऋषि अगस्त्य सर्वाधिक पू्ज्यनीय हैं। श्रीराम अपने वनवास काल में ऋषि अगस्त्य के आश्रम में पधारे थे।
अगस्त वंश के गोत्रकार – करंभ – करंभव, कौशल्य, क्रतुवंशोद्भव, गांधारकावन, पौलस्त्य, पौलह, मयोभुव, शकट – करट, सुमेधस ये गोत्रकार अगस्त्य, मयोभुव तथा महेन्द्र इन तीन प्रवरों के हैं। अगस्त्य, पौर्णिमास ये गोत्रकार अगस्त्य, पारण, पौर्णिमास इन तीन प्रवरों के हैं।
नौवां प्राचीन वंश….
कौशिक वंश – ऋग्वेद के तृतीय मंडल में तीसवें, तैतीसवें तथा तीरपनवें सूक्त में महर्षि विश्वामित्र का वर्णन मिलता है। वहां से ज्ञान होता है कि ये कुशिक गोत्रोत्पन्न कौशिक थे। कहते हैं कि ये कौशिक लोग सारे संसार का रहस्य जानते थे। हालांकि खुद विश्वामित्र तो कश्यप वंशी थे इसलिए कौशिक या कुशिक भी कश्यप वंशी हुए। कश्यप वंश का विवरण हम उपरोक्त में दे चुके हैं। कुशिक तो विश्वामित्र के दादा थे। च्यवन के वंशज ऋचीक ने कुशिक पुत्र गाधि की पुत्री से विवाह किया जिससे जमदग्नि पैदा हुए। उनके पुत्र परशुराम हुए।
प्रजापति के पुत्र कुश, कुश के पुत्र कुशनाभ और कुशनाभ के पुत्र राजा गाधि थे। विश्वामित्रजी उन्हीं गाधि के पुत्र थे। कहते हैं कि कौशिक ऋषि कुरुक्षेत्र के निवासी थे।
दसवां प्राचीन वंश…
भारद्वाज वंश – भारद्वाज गोत्र आपको सभी जाति, वर्ण और समाज में मिल जाएगा। प्राचीन काल में भारद्वाज नाम से कई ऋषि हो गए हैं। लेकिन हम बात कर रहे हैं ऋग्वेद के छठे मंडल के दृष्टा जिन्होंने सात सौ पैंसठ मंत्र लिखे हैं। वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का अति उच्च स्थान है। अंगिरावंशी भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। बृहस्पति ऋषि का अंगिरा के पुत्र होने के कारण ये वंश भी अंगिरा का वंश कहलाएगा। ऋषि भारद्वाज ने अनेक ग्रंथों की रचना की उनमें से यंत्र सर्वस्व और विमानशास्त्र की आज भी चर्चा होती है। चरक ऋषि ने भारद्वाज को ‘अपरिमित’ आयु वाला कहा है। भारद्वाज ऋषि काशीराज दिवोदास के पुरोहित थे। वे दिवोदास के पुत्र प्रतर्दन के भी पुरोहित थे और फिर प्रतर्दन के पुत्र क्षत्र का भी उन्हीं ने यज्ञ संपन्न कराया था। वनवास के समय प्रभु श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का संधिकाल था। उक्त प्रमाणों से भारद्वाज ऋषि को अपरिमित वाला कहा गया है। भारद्वाज के पिता देवगुरु बृहस्पति और माता ममता थीं। ऋषि भारद्वाज के प्रमुख पुत्रों के नाम हैं- ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र। उनकी दो पुत्रियां थी रात्रि और कशिपा। इस प्रकार ऋषि भारद्वाज की बारह संतानें थीं। सभी के नाम से अलग-अलग वंश चले। बहुत से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं दलित समाज के लोग भारद्वाज कुल के हैं।
ग्यारहवां प्राचीन वंश….
गर्ग वंश – बहुत से लोगों का गोत्र गर्ग है और बहुत से लोगों का उपनाम गर्ग है। सभी का संबंध गर्ग ऋषि से है। वैदिक ऋषि गर्ग आंगिरस और भारद्वाज के वंशज तैतीस मंत्रकारों में श्रेष्ठ थे। गर्गवंशी लोग ब्राह्मणों और वैश्यों – बनिये, दोनों में मिल जाएंगे। एक गर्ग ऋषि महाभारत काल में भी हुए थे, जो यदुओं के आचार्य थे जिन्होंने ‘गर्ग संहिता’ लिखी। ब्राह्मण पूर्वजों की परंपरा को देखें तो गर्ग से शुक्ल, गौतम से मिश्र, श्रीमुख शांडिल्य से तिवारी या त्रिपाठी वंश प्रकाश में आता है। गर्ग ऋषि के तेरह पुत्र बताए गए हैं जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल वंशज कहा जाता है, जो तेरह गांवों में विभक्त हो गए थे। यह कहना की गोत्र और ऋषि तो सिर्फ ब्राह्मणों के ही है गलत होगा। इन सभी ऋषियों से दलित समाज का भी जन्म हुआ है। इनकी एक शाखा दलितों में मिलती है तो दूसरी क्षत्रिय और वैश्यों में।
बारहवां प्राचीन वंश…
गौतम वंश – भगवान बुद्ध को भी कुछ लोग गौतम वंशी मानते हैं। हालांकि इस वंश में ब्राह्मण और क्षत्रियों के समूह सहित कई दलितों के समूह भी विकसित हुए। बहुत से शाक्यवंशी गौतम बुद्ध को शाक्यवंशी मानते हैं जो कि सही नहीं है। गौतम बुद्ध ने शाक्यों को सबसे ज्यादा दीक्षित किया था इसीलिए शाक्यों में उनकी प्रतिष्ठा ज्यादा है। खैर…विश्वामित्र और वशिष्ठ के समकालीन महर्षि गौतम न्याय दर्शन के प्रवर्तक भी थे। उन्हें अक्षपाद गौतम के नाम से भी जाना जाता है। गौतम ऋषि की पत्नी का नाम अहिल्या था। इन्द्र द्वारा छलपूर्वक किए गए अहिल्या के शीलहरण की कथा सभी जानते होंगे। इसके बाद ऋषि ने उसे शिला बन जाने का श्राप दे दिया था। त्रेतायुग में अवतार लेकर जब श्रीराम ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुरी पहुंचे तो वहां उन्होंने गौतम ऋषि का आश्रम भी देखा। वहीं भगवान विष्णु अवतार राम के चरण स्पर्श से अहिल्या शाप मुक्त होकर पुनः मानवी बन परम धाम को चली गईं। गौतम ऋषि के छौ पुत्र बताए गए हैं, जो बिहार के इन छौ गांवों के वासी थे- चंचाई, मधुबनी, चंपा, चंपारण, विडरा और भटियारी। इसके अलावा उप गौतम यानी गौतम के अनुकारक छौ गांव भी हैं, जो इस प्रकार हैं- कालीडीहा, बहुडीह, वालेडीहा, भभयां, पतनाड़े और कपीसा। इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति मानी जाती है। गौतम ऋषियों के वंशज ने बिहार से बाहर निकलकर भी अपने वंश का विस्तार किया था। click me भाग चार पढ़ने के लिए। भाग तीन में बारहवां प्राचीन वंश तक तेरहवां प्राचीन वंश से आगे अगले अंक में। भाग चार गूगल ब्लोग पर पढ़ने के लिए इस लाइन को टच किजिये पढ़िए शेयर किजिये।
जानिए अपने पूर्वजों की उत्पत्ति
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