शिव पुराण भाग 3

Amit Srivastav

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“शिव पुराण” हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है, जो भगवान शिव के विभिन्न पहलुओं, उनकी लीलाओं और उपदेशों का वर्णन करता है। इसमें कुल सात खंड (संहिताएँ) होते हैं, जिनमें शिव की महिमा और उनसे संबंधित कथाओं का वर्णन है।
भाग 3 (वायवीय संहिता) में शिव के विभिन्न स्वरूपों, पूजा विधियों, और उनके भक्तों की कथाओं का उल्लेख किया गया है। वायवीय संहिता दो खंडों में विभाजित है:- पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध। श्रावण मास में शिव पुराण सामान्य भाषा में सुस्पष्ट लेखनी भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज अमित श्रीवास्तव द्वारा प्रदान शिव पुराण भाग तीन शिव भक्तों को समर्पित।

पूर्वार्द्ध:

शिव पुराण भाग 3

शिव-तत्त्व का वर्णन:

भगवान शिव के तत्त्वों और उनके विभिन्न रूपों का विस्तृत वर्णन।
शिव तत्त्व का वर्णन “शिव पुराण” में विस्तार से किया गया है, जिसमें भगवान शिव के अस्तित्व, स्वरूप, और उनके विभिन्न पहलुओं का वर्णन है। शिव तत्त्व को समझने के लिए निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है।

निर्गुण और सगुण स्वरूप:

निर्गुण शिव: शिव का निर्गुण रूप उन्हें निराकार, अनादि और अनंत के रूप में दर्शाता है। इस रूप में वे किसी भी गुण, रूप या नाम से परे हैं और सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, और सर्वज्ञानी हैं।
सगुण शिव: शिव का सगुण रूप उन्हें साकार, सगुण, और नाम-रूप में दिखाता है। इस रूप में वे त्रिशूल, डमरू, जटा, गंगा, और तीसरी आँख से युक्त होते हैं।

शिव का त्रिमूर्ति रूप:

  – ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता) और शिव (संहारकर्ता) हिंदू धर्म की त्रिमूर्ति माने जाते हैं। शिव का रूप संहार और पुनर्सृजन का प्रतीक है, जो जीवन चक्र के निरंतरता को दर्शाता है।

पंचमुखी शिव:

शिव के पाँच मुख उनके पाँच विभिन्न रूपों और शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
     – सद्योजात: पश्चिम दिशा के अधिपति, जो सृजन का प्रतीक है।
     – वामदेव: उत्तर दिशा के अधिपति, जो संरक्षण और पालन का प्रतीक है।
     – अघोरा: दक्षिण दिशा के अधिपति, जो संहार और परिवर्तन का प्रतीक है।
     – तत्पुरुष: पूर्व दिशा के अधिपति, जो आत्मा और ध्यान का प्रतीक है।
   – ईशान: ऊर्ध्व दिशा के अधिपति, जो सर्वज्ञता और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।

शिव का लिंग रूप:

शिव पुराण भाग 3

   – शिवलिंग भगवान शिव का प्रमुख प्रतीक है, जो उनके अनादि और अनंत स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है। शिवलिंग पूजा शिव की निराकार सत्ता की आराधना का माध्यम है।

शिव की शक्ति – पार्वती:

  – शिव और शक्ति का अभिन्न संबंध है। पार्वती (या शक्ति) शिव की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं और उनके साथ मिलकर समस्त ब्रह्मांड की सृजन, संरक्षण और संहार प्रक्रिया को संचालित करती हैं।

आनंद तत्त्व:

  – शिव का आनंद तत्त्व उन्हें योग, ध्यान और ध्यानमग्नता का प्रतीक बनाता है। वे ध्यानस्थ योगी के रूप में दिखाए जाते हैं, जो आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं।

अर्धनारीश्वर:

   – शिव का अर्धनारीश्वर रूप शिव और शक्ति के एकत्व का प्रतीक है, जिसमें आधा शरीर शिव का और आधा पार्वती का होता है। यह सृष्टि के पुरुष और प्रकृति तत्वों के अद्वितीय संतुलन को दर्शाता है।
इन तत्वों के माध्यम से शिव तत्त्व का व्यापक और गहन वर्णन किया जाता है, जो शिव की महिमा और उनके दिव्य स्वरूप को समझने में मदद करता है।

सृष्टि की उत्पत्ति:

ब्रह्मा, विष्णु और शिव के परस्पर संबंध और सृष्टि की उत्पत्ति की कथा।
शिव पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति की कथा विस्तार से बताई गई है, जिसमें भगवान शिव की महत्वपूर्ण भूमिका का वर्णन है। सृष्टि की उत्पत्ति की यह कथा ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के परस्पर संबंधों के माध्यम से प्रकट होती है। यहाँ सृष्टि की उत्पत्ति के प्रमुख बिंदु दिए गए हैं।

आदि अंधकार:

   – सृष्टि की उत्पत्ति से पहले केवल अंधकार और शून्यता थी। यह समय परम शिव का निवास था, जो निराकार और अनंत थे।
आदि शिव की इच्छा:
   – एक समय, आदि शिव ने सृष्टि की रचना की इच्छा की। उनकी इच्छा से आदि शक्ति (महाशक्ति या आदि शक्ति) का प्रकट होना हुआ।

आदि शक्ति और त्रिमूर्ति की उत्पत्ति:

   – आदि शक्ति से क्रमशः तीन दिव्य शक्तियों का उत्पत्ति हुई:- ब्रह्मा (सृष्टि के रचयिता), विष्णु (पालक) और रुद्र (संहारक)। ये तीनों मिलकर त्रिमूर्ति कहलाए और सृष्टि की विभिन्न प्रक्रियाओं को संचालित करने लगे। विस्तार से पढ़ने जानने के लिए यहां क्लिक किजिये पढ़िए जानिए पूर्वजों की उत्पत्ति कौन किसके वंशज भाग एक से चार तक में हर व्यक्ति के पूर्वजों का इतिहास उल्लेखित है भाग एक के बाद क्रमशः पढ़िए।

ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना:

   – भगवान ब्रह्मा को सृष्टि की रचना का कार्य सौंपा गया। उन्होंने पहले पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) की रचना की। इनसे सृष्टि के विभिन्न तत्वों और जीवों की उत्पत्ति हुई।

विष्णु का संरक्षण:

   – भगवान विष्णु को सृष्टि के संरक्षण का कार्य मिला। वे प्रत्येक युग में अवतार लेकर धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश का कार्य करते हैं।

रुद्र (शिव) का संहार:

   – भगवान शिव (रुद्र) को सृष्टि के संहार का कार्य मिला। उनका कार्य सृष्टि के चक्र को संतुलित करना और पुनर्सृजन के लिए मार्ग प्रशस्त करना है।

सृष्टि की चक्रवृद्धि:

   – शिव पुराण के अनुसार, सृष्टि की उत्पत्ति और विनाश एक निरंतर चक्र है। जब सृष्टि विनाश की ओर अग्रसर होती है, तो शिव तांडव नृत्य करते हैं, जो विनाश का प्रतीक है। इसके बाद पुनः सृष्टि की रचना होती है।

शिव और शक्ति का अर्धनारीश्वर रूप:

  – शिव और शक्ति का अर्धनारीश्वर रूप यह दर्शाता है कि सृष्टि की रचना में दोनों का समान योगदान है। शक्ति के बिना शिव निष्क्रिय हैं, और शिव के बिना शक्ति अपूर्ण है।

मानव जीवन और कर्म:

   – सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही मानव जीवन का उद्देश्य और कर्म का महत्व बताया गया है। शिव पुराण में यह कहा गया है कि प्रत्येक जीव का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति है।

अंतिम लक्ष्य – मोक्ष:

   – सृष्टि की उत्पत्ति का अंतिम लक्ष्य जीवों को मोक्ष की प्राप्ति करवाना है। भगवान शिव की आराधना और उपदेशों का पालन कर जीव अपने जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।
इस प्रकार, शिव पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति की कथा न केवल ब्रह्मांड की रचना का वर्णन करती है, बल्कि यह भी बताती है कि शिव की भूमिका और उनकी कृपा से ही यह संसार संचालित होता है।

शिव और पार्वती का विवाह:

पार्वती के जन्म, तपस्या, और शिव से विवाह की कथा।
शिव और पार्वती का विवाह हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण कथा है, जिसे शिव पुराण और अन्य पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है। इस विवाह का धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक महत्व है। यहाँ इस कथा के प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:-

सती का जन्म और विवाह:

   – दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव की भक्त थीं। उन्होंने कठोर तपस्या कर शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। हालांकि, दक्ष यज्ञ में शिव का अपमान करने के कारण सती ने योग-अग्नि में आत्मदाह कर लिया।

पार्वती का जन्म:

   – सती ने अगले जन्म में हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती भी शिव की प्रबल भक्त थीं और उनसे विवाह की इच्छा रखती थीं।

पार्वती की तपस्या:

   – पार्वती ने कठोर तपस्या की ताकि वे शिव को पति रूप में प्राप्त कर सकें। उनकी तपस्या इतनी कठिन थी कि देवता भी प्रभावित हो गए।

शिव का पार्वती की तपस्या से प्रभावित होना:

   – पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया।

कामदेव का वध:

   – शिव ने ध्यान में लीन रहते हुए पार्वती की तपस्या को अनदेखा किया। तब देवताओं ने कामदेव को शिव के ध्यान को भंग करने के लिए भेजा। शिव ने क्रोधित होकर कामदेव को अपनी तीसरी आँख से भस्म कर दिया। इसके बाद पार्वती की तपस्या का महत्व समझते हुए शिव ने उन्हें स्वीकार किया।

शिव का पार्वती को परखना:

   – विवाह से पहले शिव ने पार्वती की भक्ति और समर्पण की परीक्षा ली। वे एक ब्राह्मण के रूप में पार्वती के पास गए और शिव की आलोचना की। पार्वती की अडिग भक्ति देखकर शिव ने उन्हें अपनी वास्तविकता बताई।

विवाह की तैयारियाँ:

   – शिव और पार्वती के विवाह की तैयारियाँ देवताओं और ऋषियों द्वारा की गईं। यह विवाह हिमालय पर संपन्न हुआ, जो हिमवान का राज्य था।

विवाह समारोह:

   – विवाह समारोह में सभी देवता, ऋषि, और गण उपस्थित थे। भगवान विष्णु ने कन्यादान किया और ब्रह्मा ने मंत्रोच्चार किया। शिव और पार्वती का विवाह अत्यंत धूमधाम और वैदिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ।

विवाह के बाद का जीवन:

   – विवाह के बाद शिव और पार्वती कैलाश पर्वत पर रहने लगे। पार्वती को अर्धांगिनी मानते हुए शिव ने उन्हें अपने हर कार्य में सहभागी बनाया।

महत्त्व और संदेश:

   – शिव और पार्वती का विवाह समर्पण, भक्ति, और प्रेम का प्रतीक है। यह विवाह यह संदेश देता है कि सच्चे प्रेम और समर्पण से भगवान भी प्रसन्न होते हैं और इच्छाएं पूर्ण करते हैं। इस प्रकार, शिव और पार्वती के विवाह की कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भक्तों के लिए प्रेरणादायक भी है, जो भक्ति, प्रेम, और तपस्या के महत्व को उजागर करती है।

शिव की लीलाएं:

शिव की विभिन्न लीलाओं और उनके भक्तों की कहानियाँ।
शिव पुराण और अन्य पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव की अनेक लीलाओं का वर्णन मिलता है, जो उनकी महिमा, शक्ति और करुणा को दर्शाती हैं। ये लीलाएं भक्तों को भगवान शिव की विभिन्न भूमिकाओं और गुणों से परिचित कराती हैं। यहाँ भगवान शिव की कुछ प्रमुख लीलाओं का वर्णन किया गया है:-

नीलकंठ लीला:

   – समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, तो देवता और असुर दोनों घबरा गए। भगवान शिव ने सभी को बचाने के लिए उस विष को पी लिया। उन्होंने विष को अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए।

गंगा अवतरण:

   – राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित होने की अनुमति दी। उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया ताकि पृथ्वी पर उसका प्रवाह नियंत्रित हो सके।

त्रिपुरासुर वध:

   – तीन राक्षसों, त्रिपुरासुर, ने अपनी अत्याचार से तीन लोकों में हाहाकार मचा दिया था। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया और त्रिपुरारी कहलाए।

अर्धनारीश्वर लीला:

   – भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट होकर यह दर्शाया कि स्त्री और पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इस रूप में उनका आधा शरीर शिव और आधा पार्वती का था।

महाशिवरात्रि की कथा:

  – महाशिवरात्रि की रात भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया था, जो सृष्टि, संरक्षण, और संहार का प्रतीक है। इस दिन भक्त शिव की विशेष पूजा और उपवास करते हैं।

भस्मासुर वध:

   – भस्मासुर को वरदान प्राप्त था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। इस वरदान से अभिमानी होकर उसने भगवान शिव पर ही हाथ रखने की कोशिश की। भगवान शिव ने मोहिनी रूप (विष्णु का स्त्री रूप) धारण कर भस्मासुर को नृत्य में उलझाया और उसे खुद ही भस्म करवा दिया।

शिव और सति की कथा:

   – सति ने अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किए जाने पर योग-अग्नि में आत्मदाह कर लिया। उनके पुनर्जन्म के बाद वे पार्वती के रूप में आईं और शिव से पुनः विवाह किया।

अंधकासुर वध:

   – अंधकासुर, जो अंधकार का प्रतीक था, ने पृथ्वी पर अत्याचार मचाया। भगवान शिव ने उसे पराजित कर उसकी शक्ति को नष्ट किया।

कालभैरव लीला:

   – ब्रह्मा के अहंकार को दूर करने के लिए भगवान शिव ने कालभैरव रूप धारण किया और ब्रह्मा के एक सिर को काट दिया। इससे ब्रह्मा का अहंकार समाप्त हो गया।

शिव का तांडव नृत्य:

   – शिव का तांडव नृत्य सृष्टि के संहार और पुनर्सृजन का प्रतीक है। इस नृत्य में शिव की अपार शक्ति और ऊर्जा का प्रदर्शन होता है। भगवान शिव की ये लीलाएं उनके विभिन्न रूपों और शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं और उनके भक्तों के लिए आस्था, भक्ति, और प्रेरणा का स्रोत हैं।

उत्तरार्द्ध:

शिव पुराण भाग 3

शिव पूजा विधि:

शिव की पूजा और आराधना की विधियों का वर्णन।
उत्तरार्ध कथा में शिव पूजा विधि का वर्णन विस्तार से किया गया है। शिव पूजा विधि को विधिवत संपन्न करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है:-

पूजा की तैयारी:

   – स्नान: पूजा से पहले स्नान करना चाहिए ताकि शारीरिक शुद्धि हो सके।
   – शिवलिंग की स्थापना: शिवलिंग को साफ स्थान पर स्थापित करें। अगर शिवलिंग नहीं है तो भगवान शिव की तस्वीर भी रखी जा सकती है।
   – पूजा सामग्री: पुष्प, बेलपत्र, धतूरा, चंदन, अक्षत, दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल, मिठाई, धूप, दीप, नैवेद्य, और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर) तैयार रखें।

ध्यान और आवाहन:

   – ध्यान: भगवान शिव का ध्यान करें और उनके विभिन्न रूपों का स्मरण करें।
   – आवाहन: भगवान शिव को आमंत्रित करें। आवाहन मंत्र का उच्चारण करें:-
     ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
     ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
     धियो यो नः प्रचोदयात्।
     ॐ आपो ज्योतिरसः अमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।

पूजा विधि:

   – अभिषेक: शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद, और पंचामृत से अभिषेक करें। इसके बाद गंगाजल से शुद्ध करें।
   – पुष्प अर्पण: शिवलिंग पर पुष्प, बेलपत्र, और धतूरा अर्पित करें। बेलपत्र को शिवलिंग पर उल्टा रखकर अर्पित करना चाहिए।
   – चंदन और अक्षत: शिवलिंग पर चंदन का लेप करें और अक्षत अर्पित करें।
   – धूप और दीप: भगवान शिव के समक्ष धूप और दीप प्रज्वलित करें।
   – नैवेद्य अर्पण: भगवान शिव को नैवेद्य (मिठाई, फल, और अन्य भोजन सामग्री) अर्पित करें।
  – आरती: शिव आरती करें। आरती के दौरान घंटी और शंख बजाएं।
   – प्रार्थना: भगवान शिव से अपने और परिवार के कल्याण की प्रार्थना करें।

विशेष मंत्र और स्तोत्र:

   – महा मृत्युंजय मंत्र: इस मंत्र का जाप करना विशेष फलदायी होता है।
     ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
     उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
   – शिव तांडव स्तोत्र: यह स्तोत्र भगवान शिव के तांडव रूप का वर्णन करता है और इसे पढ़ने से विशेष लाभ मिलता है।

भस्म धारण:

  – भगवान शिव की पूजा में भस्म का विशेष महत्व है। पूजा के बाद भस्म को अपने माथे पर त्रिपुंड (तीन रेखाओं) के रूप में लगाएं।
प्रसाद वितरण:
   – पूजा के बाद भगवान शिव को अर्पित नैवेद्य को प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित करें।

शांतिपाठ और विसर्जन:

   – अंत में शांतिपाठ करें और भगवान शिव से पूजा में किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा याचना करें। इसके बाद भगवान शिव को विसर्जित करें।
इस प्रकार, शिव पूजा विधि को विधिवत संपन्न करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का संचार होता है।

महाशिवरात्रि व्रत कथा:

महाशिवरात्रि व्रत की महिमा और कथा।
महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा का एक प्रमुख पर्व है, जो विशेष रूप से उनकी आराधना, भक्ति, और तपस्या के लिए समर्पित है। महाशिवरात्रि की कथा पौराणिक ग्रंथों में भिन्न-भिन्न रूपों में मिलती है, लेकिन सामान्यतः इसे चार प्रमुख कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

सागर मंथन की कथा:

– समुद्र मंथन के दौरान, हलाहल नामक विष उत्पन्न हुआ जो पूरे ब्रह्मांड के लिए घातक था। इस विष को पीने के लिए कोई भी देवता या असुर तैयार नहीं हुआ। भगवान शिव ने देवताओं और असुरों की सहायता के लिए हलाहल विष को अपने कंठ में ले लिया। उन्होंने विष को अपने गले में ही रखा, जिससे उनका गला नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की इस बलिदान की कथा को याद किया जाता है।
लिंग पूजा और शिवलिंग की उत्पत्ति:
   – महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के अद्वितीय लिंग रूप की पूजा का विशेष महत्व है। कथा के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु के बीच विवाद था कि किसका स्वरूप श्रेष्ठ है। इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव ने एक विशाल ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर इस विवाद का समाधान किया। इस दिन भगवान शिव के लिंग रूप की पूजा करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

पार्वती की तपस्या:

  – पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या और भक्ति से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें स्वीकार किया। महाशिवरात्रि पर पार्वती की तपस्या की कथा को भी याद किया जाता है, जो भक्तों को भक्ति और समर्पण की प्रेरणा देती है।
शिव और रावण की कथा:
   – एक अन्य कथा के अनुसार, रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर्वत को अपनी हथेलियों पर उठाकर कठिन तपस्या की। भगवान शिव ने रावण की तपस्या से प्रभावित होकर उसे दर्शन दिए और उसे विशेष शक्तियाँ प्रदान कीं। महाशिवरात्रि पर इस कथा को सुनने से भक्तों को ताकत और शक्ति की प्राप्ति होती है।
व्रत विधि:
उपवास: महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखना विशेष महत्व रखता है। भक्त दिनभर निराहार रहकर केवल फल और दूध का सेवन कर सकते हैं।
रात्रि जागरण: इस दिन रात्रि में शिव के भक्त जागरण करते हैं, शिव की पूजा करते हैं, और शिव भजन, कीर्तन, और धार्मिक मंत्रोच्चार करते हैं।
शिवलिंग पूजन: शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, और शहद अर्पित करते हैं। बेलपत्र और पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
आरती और मंत्र: शिव की आरती की जाती है और महा मृत्युंजय मंत्र का जाप विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा और उपासना से भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति आती है, और वे शिव की कृपा प्राप्त करते हैं।

शिव के प्रमुख तीर्थ स्थल:

शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों और उनसे संबंधित कहानियाँ।
भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थल विभिन्न पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के स्थान हैं, जहाँ भक्त शिव की आराधना करने के लिए यात्रा करते हैं। यहाँ शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों की सूची दी गई है।

काशी (वाराणसी), उत्तर प्रदेश:

   – काशी, जिसे वाराणसी भी कहते हैं, भगवान शिव का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ स्थित विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यह हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। इसे मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख स्थान भी माना जाता है।

गंगोत्री, उत्तराखंड:

   – गंगोत्री, जहाँ गंगा नदी का उद्गम स्थल है, भगवान शिव की पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ शिव के गंगाधर रूप की पूजा होती है, और यह हिमालय की तीर्थ यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

यमुनोत्री, उत्तराखंड:

  – यमुनोत्री, यमुनाजी के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है और भगवान शिव की पूजा यहाँ की जाती है। यह स्थान विशेष रूप से तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है।

केदारनाथ, उत्तराखंड:

  – केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह स्थल हिमालय की ऊँचाइयों में स्थित है और इसे विशेष रूप से शिव की उपासना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

अमरेश्वर, मध्य प्रदेश:

   – अमरेश्वर मंदिर, जो मध्य प्रदेश के हरसूद में स्थित है, भगवान शिव के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। यह स्थान विशेष रूप से शिव की आराधना के लिए प्रसिद्ध है।

बद्रीनाथ, उत्तराखंड:

   – बद्रीनाथ, भगवान विष्णु के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यहाँ भी भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह तीर्थ स्थल चार धाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

महाकालेश्वर, उज्जैन, मध्य प्रदेश:

   – उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे महाकाल भी कहा जाता है और यह स्थान विशेष रूप से पूजा और ज्योतिर्लिंग पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

हरिद्वार, उत्तराखंड:

  – हरिद्वार, गंगा नदी के किनारे स्थित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ भगवान शिव के कई मंदिर हैं। यहाँ की शिव पूजा और गंगा स्नान का धार्मिक महत्व है।

शिवाजी नगर, महाराष्ट्र:

  – शिवाजी नगर में स्थित शिव मंदिर, महाराष्ट्र में भगवान शिव के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है और यहाँ की पूजा विधियाँ विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।

Rameswaram, तमिलनाडू:

   – रामेश्वरम, जहां राम और शिव की पूजा होती है, भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। इसे दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में गिना जाता है।

वैद्यनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंग देवघर:

शिव पुराण भाग 3

बाबा वैद्यनाथ धाम या देवघर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। वैद्यनाथ धाम का प्रमुख मंदिर बाबा बैद्यनाथ को समर्पित है, और यहां शिव के साथ माता पार्वती और अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा होती है। वैद्यनाथ धाम का महत्व: ज्योतिर्लिंग: वैद्यनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, और इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। यहाँ शिवलिंग को “चमत्कारी” और “रोग नाशक” माना जाता है।शक्तिपीठ: यह स्थान एक शक्ति पीठ भी है, जहाँ माता सती का हृदय गिरा था। इसलिए इसे “बैद्यनाथ शक्ति पीठ” भी कहा जाता है। यहां एशिया का सबसे बड़ा मेला लगता है और शिव भक्तों की लम्बी कतारें। यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां ज्योतिर्लिंग के बिल्कुल पास ही ह्दय शक्तिपीठ स्थापित है। विस्तृत जानकारी के लिए यहां ब्लू लाइन पर क्लिक किजिये पढ़िए हमारी आठवीं शक्तिपीठ लेखनी देवी दुर्गा ह्रदय शक्तिपीठ के साथ द्वादश ज्योतिर्लिंग बैद्यनाथ धाम कि महिमा। विशेष रूप से श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु यहाँ कांवड़ यात्रा के लिए आते हैं और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। यहाँ विशेष पूजा, अभिषेक, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जो भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। वैद्यनाथ धाम अपनी धार्मिक महत्ता, पौराणिक कथाओं, और भक्ति भाव के कारण देश और दुनिया भर के श्रद्धालुओं के बीच विशेष स्थान रखता है।


ये तीर्थ स्थल न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्त्व भी भक्तों को आकर्षित करते हैं।

शिव भक्तों की कथाएँ:

शिव भक्तों की आस्था, भक्ति, और चमत्कारों की कहानियाँ।
भगवान शिव के भक्तों की कई प्रेरणादायक कथाएँ पौराणिक ग्रंथों और लोककथाओं में मिलती हैं। ये कथाएँ भक्तों की भक्ति, समर्पण, और भगवान शिव के प्रति उनकी श्रद्धा को दर्शाती हैं। यहाँ कुछ प्रमुख शिव भक्तों की कथाएँ दी गई हैं:-

सती (पार्वती):

   – सती, दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शिव की पहली पत्नी थीं। उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे सती को गहरा आघात हुआ और उन्होंने आत्मदाह कर लिया। सती के पुनर्जन्म में पार्वती के रूप में भगवान शिव से विवाह हुआ। पार्वती की यह कथा भक्ति और समर्पण की एक प्रमुख उदाहरण है।

रावण:

  – रावण, राक्षसों के राजा, ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या इतनी कठिन थी कि उन्होंने हिमालय पर्वत को अपनी हथेलियों पर उठाया। भगवान शिव ने रावण की तपस्या से प्रभावित होकर उसे विशेष शक्तियाँ प्रदान कीं। रावण की यह कथा शिव की भक्ति और तपस्या के महत्व को दर्शाती है।

भस्मासुर:

  – भस्मासुर ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था कि वह जिस किसी के सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। इसके बाद भस्मासुर ने भगवान शिव पर हाथ रखने का प्रयास किया। भगवान शिव ने मोहिनी रूप (विष्णु का स्त्री रूप) धारण किया और भस्मासुर को नृत्य में उलझाया, जिससे भस्मासुर ने खुद को भस्म कर लिया। इस कथा में भगवान शिव की भक्ति और शक्ति का प्रदर्शन होता है।

कालभैरव:

   – कालभैरव, भगवान शिव का एक रूप हैं जो समय के देवता हैं। एक बार, ब्रह्मा ने अहंकार किया और भगवान शिव को चुनौती दी। शिव ने कालभैरव को ब्रह्मा के एक सिर को काटने का आदेश दिया। कालभैरव ने ब्रह्मा के एक सिर को काट दिया, जिससे ब्रह्मा का अहंकार समाप्त हुआ। कालभैरव की भक्ति और शिव के प्रति उनका समर्पण महत्वपूर्ण है।

नंदनी व्रत कथा:

   – एक बार, एक गरीब ब्राह्मण ने भगवान शिव की पूजा की और नंदनी व्रत का आयोजन किया। उनकी भक्ति से प्रभावित होकर भगवान शिव ने ब्राह्मण को धन और समृद्धि का आशीर्वाद दिया। इस कथा में शिव की दया और भक्तों के प्रति उनकी करुणा को दर्शाया गया है।

विज्ञानेश्वर:

   – एक अन्य कथा के अनुसार, एक महान योगी और भक्त, विज्ञानेश्वर ने भगवान शिव के दर्शन के लिए गहरी तपस्या की। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें विशेष ज्ञान प्रदान किया। विज्ञानेश्वर की कथा भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति को दर्शाती है।

कृष्णभक्ति:

   – कई कथाओं में कृष्णभक्ति के प्रति भगवान शिव की विशेष श्रद्धा को दर्शाया गया है। एक बार, भगवान शिव ने भगवान कृष्ण की पूजा की और उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट किया और यह दर्शाया कि भगवान शिव भी कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण रखते हैं।
ये कथाएँ भगवान शिव के भक्तों की भक्ति, तपस्या, और समर्पण की गहनता को दर्शाती हैं, और भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं।
यह शिव पुराण भाग 3 शिव की पूजा-अर्चना और भक्तों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है, जो उनकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

शिव पुराण भाग 3

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