एक तूफानी रात में तेजस्विनी और क्षितिज की साहसिक योजना “PAINFUL STORY OF LOVE” रुद्रवर्मन की क्रूरता को चुनौती देती है, जब महल के गलियारों में सन्नाटा टूटता है और आजादी की चिंगारी भड़क उठती है।
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मेघनादपुर के महल में उस रात हवा कुछ ज्यादा ही बेचैन थी, मानो आने वाले तूफान की भविष्यवाणी कर रही हो। मशालों की मध्यम रोशनी दीवारों पर डरावनी परछाइयाँ बना रही थी, और बाहर आकाश में काली घटाएँ गरज रही थीं। तेजस्विनी अपने कक्ष में बैठी थी, उसकी उंगलियाँ उस पुरानी तलवार पर थिरक रही थीं जो उसके पिता की आखिरी निशानी थी। उसकी आँखों में एक आग थी—आजादी की भूख और बदले की प्यास का मिश्रण। उधर, क्षितिज रुद्रवर्मन के कक्ष की ओर बढ़ रहा था, उसके हाथ में एक सोने की थाली पर रखा शराब का प्याला था, जिसमें चंद्रिका ने नींद की जड़ी मिलाई थी।
हर कदम के साथ उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, क्योंकि वह जानता था कि यह प्याला सिर्फ शराब नहीं, बल्कि उनकी सारी उम्मीदों का वाहक था। कक्ष के बाहर पहरेदारों की पैनी नजरों को चकमा देकर उसने प्याला रुद्रवर्मन तक पहुँचाया, और जब उसने देखा कि राजा ने उसे पूरा खाली कर दिया, तो एक पल के लिए उसकी साँसें थम गईं। क्या यह योजना कामयाब होगी, या यह उनकी आखिरी रात होगी? गलियारे में बिजली की चमक के साथ एक गहरी चुप्पी छाई थी, लेकिन हवा में विद्रोह की गंध साफ महसूस हो रही थी—एक ऐसा तूफान जो रुद्रवर्मन के काले साम्राज्य को उखाड़ फेंकने वाला था।
तो आइये इस दर्द भरी प्यार की कहानी को अंत तक पढ़िए जिसका शिर्षक है PAINFUL STORY OF LOVE एक तूफानी रात में साजिश की जाल।

एक क्रूर शासक और उसकी काली दुनिया PAINFUL STORY OF LOVE
कई सौ साल पहले, जब भारत के विशाल मैदानों पर सूरज की किरणें सुनहरे सपनों की तरह बिखरती थीं और घने जंगलों में रहस्यमयी कहानियाँ फुसफुसाती थीं, एक समृद्ध राज्य अपनी भव्यता के लिए जाना जाता था। इस राज्य की राजधानी, मेघनादपुर, एक ऐसा नगर था जहाँ संगमरमर के महल आसमान को चुनौती देते थे और चारों ओर ऊँची दीवारें दुश्मनों को दूर रखती थीं। इस राज्य पर राजा रुद्रवर्मन का शासन था। नाम उसका भयंकर था, लेकिन उसकी आत्मा उससे भी काली थी। रुद्रवर्मन कोई साधारण राजा नहीं था।
वह युद्ध का भूखा योद्धा नहीं था, न ही न्याय का पुजारी। उसका दिल एक गहरे गड्ढे की तरह था, जो ऐशो-आराम, विलासिता, और एक बीमार जुनून से भरा था। उसे सुंदरता का ऐसा नशा था कि वह दुनिया की सबसे खूबसूरत स्त्रियों को अपनी रानी बनाना चाहता था—नहीं प्रेम के लिए, बल्कि अपनी शक्ति और धन का तमाशा दिखाने के लिए। वह सोने की मालाएँ, हीरे की चमक, और मधुर झूठ का जाल बुनता, जिसमें कोई भी सुंदरी फंस जाए। लेकिन उसकी यह भूख कभी शांत नहीं होती थी।
कुछ महीनों बाद ही वह अपनी हर रानी से ऊब जाता और नई शिकार की तलाश में निकल पड़ता। यह एक अंतहीन खेल था, जिसमें उसकी आत्मा की खालीपन कभी नहीं भरता था। रुद्रवर्मन का यह जुनून उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी था। उसे अपनी रानियों पर जरा भी भरोसा नहीं था। उसके दिमाग में एक सनकी डर बैठा था—कि जब वह युद्ध पर जाएगा या राज्य के कार्यों में डूबा रहेगा, तो उसकी रानियाँ किसी और पुरुष की ओर देख सकती हैं। यह विचार उसके लिए जहर था, जो दिन-रात उसे खाए जा रहा था।
उसने अपने महल को एक अभेद्य किले में बदल दिया। ऊँची दीवारों के पीछे मोटे लोहे के दरवाजे थे, हर कोने पर सशस्त्र पहरेदार खड़े रहते थे, और हर मोटे लोहे की खिड़की पर जालियाँ लगी थीं। रानियाँ बाहर की हवा तक को तरसती थीं, और कोई पुरुष बिना उसकी आज्ञा के अंदर कदम नहीं रख सकता था।लेकिन उसकी क्रूरता की कोई सीमा नहीं थी। जब उसका मन किसी रानी से भर जाता, वह अपने विश्वस्त लोहार, कालिदास, को बुलवाता।
कालिदास को हुक्म मिलता कि वह उस रानी के नाप का एक “लोह योनि कवच” बनाए—एक लोहे की पेंटी, जिसमें एक जटिल ताला जड़ा होता था। इस ताले की चाबी एक सोने के ताबीज में छिपी रहती थी, जो रुद्रवर्मन हमेशा अपने गले में पहने रखता था। यह कवच सिर्फ एक बंधन नहीं था; यह उसकी बीमार सोच का हथियार था, जो रानियों को शारीरिक रूप से तोड़ता और उनकी आत्मा को कुचल देता था। ऐसे कवचों की कहानियाँ इतिहास में बिखरी पड़ी हैं। यूरोप के मध्ययुग में “चैस्टिटी बेल्ट” की चर्चा मिलती है, जिसे पत्नियों की “वफादारी” सुनिश्चित करने के लिए बनाया जाता था।
भारत में इस तरह के ठोस प्रमाण दुर्लभ हैं, लेकिन लोककथाओं में क्रूर राजाओं और उनकी सनक की ऐसी किंवदंतियाँ मिलती हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि ये कहानियाँ अतिशयोक्ति हो सकती हैं, जो उस समय की पितृसत्तात्मक सोच को उजागर करती हैं। लेकिन मेघनादपुर में यह कोई किंवदंती नहीं थी—यह एक कड़वी सच्चाई थी, जो हर रानी के जीवन को नरक बना रही थी। रुद्रवर्मन का यह खेल सालों से चल रहा था, और उसकी क्रूरता की आग में कई जिंदगियाँ जल चुकी थीं। लेकिन हर अंधेरे की तरह, यहाँ भी एक किरण का इंतजार था—एक ऐसी किरण, जो इस काले साम्राज्य को उजाले में लाने वाली थी।
तेजस्विनी: एक तूफान का जन्म — PAINFUL STORY OF LOVE
रुद्रवर्मन की रानियों में एक थी तेजस्विनी। तेजस्विनी कोई साधारण औरत नहीं थी। उसकी सुंदरता ऐसी थी कि सूरज भी उसकी चमक के सामने फीका पड़ जाए—लंबे घने बाल जो रात की तरह काले थे, आँखें जो समंदर की गहराई लिए थीं, और चेहरा जिस पर एक तेजस्वी आभा नाचती थी। लेकिन उसकी असली शक्ति उसकी बुद्धि, उसका साहस, और उसका युद्ध कौशल था। वह एक योद्धा की बेटी थी। उसके पिता, वीरेंद्र, कभी मेघनादपुर के सबसे सम्मानित सेनापतियों में से एक थे। वीरेंद्र ने तेजस्विनी को बचपन से ही हथियारों की तालीम दी थी—तलवार की नृत्य, तीर की सटीकता, और रणनीति की गहराई।
नन्ही उम्र में ही वह जंगली घोड़ों पर सवार होकर जंगलों में शिकार खेलती थी। उसका तीर ऐसा चलता था कि हवा में उड़ते परिंदे को भी भेद दे, और उसकी तलवार ऐसी नाचती थी कि दुश्मन की साँसें थम जाएँ। तेजस्विनी का गाँव, कालिंदीपुर, राज्य के दूर-दराज के इलाके में बसा था, जहाँ सूखा और गरीबी ने लोगों को घुटनों पर ला दिया था।
जब रुद्रवर्मन की नजर तेजस्विनी पर पड़ी, तो वह उसकी सुंदरता और तेज को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। उसने अपने पुराने हथकंडे अपनाए—सोने की मालाएँ, चमचमाते रत्न, और प्रेम भरे झूठ। तेजस्विनी का दिल विद्रोही था। वह जानती थी कि यह राजा एक साँप है, जो अपने शिकार को पहले लुभाता है और फिर निगल जाता है। लेकिन उसके गाँव की हालत ऐसी थी कि उसने यह प्रस्ताव ठुकराने का जोखिम नहीं उठाया। उसने सोचा कि शायद यह विवाह उसके परिवार को भुखमरी से बचा लेगा। एक भव्य समारोह में वह रुद्रवर्मन की रानी बन गई। पहले कुछ महीने उसके लिए किसी परीकथा जैसे थे।
महल का वैभव, रेशमी वस्त्र, नौकरों की फौज, और हर तरह का सुख उसके सामने था। लेकिन यह परीकथा जल्द ही एक दुःस्वप्न में बदल गई। एक दिन, जब रुद्रवर्मन का मन उससे भर गया, उसने कालिदास को बुलवाया। कालिदास ने तेजस्विनी के नाप का एक लोह योनि कवच बनाया—एक ठंडा, भारी, और क्रूर बंधन, जिसमें ताला लगा दिया गया। उसकी चाबी रुद्रवर्मन के गले में लटक रही थी। तेजस्विनी की आजादी छिन गई। जहाँ वह कभी हवा की तरह जंगलों में उड़ती थी, वहाँ अब वह एक सुनहरे पिंजरे की कैदी बन गई।
उस रात, जब मेघनादपुर का महल सन्नाटे में डूबा था, तेजस्विनी अपने कक्ष में अकेली बैठी थी। लोहे की पेंटी की ठंडक उसके शरीर को चीर रही थी, लेकिन उससे ज्यादा उसके दिल को अपमान की आग जला रही थी। उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं, और उसकी आँखों में एक चिंगारी भड़क उठी। उसने अपने मन में कसम खाई, “यह अपमान मेरा अंत नहीं होगा। मैं इस बंधन को तोड़ूँगी। न सिर्फ अपनी आजादी के लिए, बल्कि इस महल की हर रानी के लिए। रुद्रवर्मन, तुम्हारी क्रूरता का हिसाब होगा।” उसका संकल्प अब उसकी ताकत बन चुका था। वह जानती थी कि यह रास्ता काँटों से भरा है।
महल के हर कोने पर सैनिक थे, हर दरवाजे पर पहरेदार, और वह चाबी—वह सोने का ताबीज—रुद्रवर्मन के गले से कभी अलग नहीं होती थी। लेकिन तेजस्विनी का योद्धा मन हार मानने वाला नहीं था। उसने फैसला किया कि वह पहले एक सहयोगी ढूँढेगी—कोई ऐसा, जिसके दिल में इस अत्याचार के खिलाफ आग सुलग रही हो। उसकी नजरें अब हर चेहरे को पढ़ने लगीं, हर आवाज को सुनने लगीं।
साजिश की शुरुआत: एक विश्वासपात्र की तलाश
महल के ऊँचे गलियारे, जहाँ दिन में सूरज की किरणें भी डर कर ठिठक जाती थीं और रात में मशालों की मध्यम रोशनी भूतिया परछाइयाँ बनाती थी, तेजस्विनी के लिए एक युद्धक्षेत्र थे। हर कदम पर सैनिकों की पैनी नजरें थीं, हर दीवार के पीछे कोई न कोई कान छिपा था। लेकिन तेजस्विनी का इरादा इन सब से परे था। उसने अपने कक्ष में बैठकर एक योजना बनाई। वह हर उस शख्स को परखेगी जो उसके पास आता था—नौकरानियाँ, सैनिक, रसोई के नौकर, यहाँ तक कि हवा में उड़ती फुसफुसाहट भी। पहले कुछ दिन उसने चुपचाप सबको देखा।
उसकी लोहे की पेंटी अब भी उसे काट रही थी, लेकिन उसने दर्द को अपने हौसले का गुलाम नहीं बनने दिया। दिन में वह अपने कक्ष की छोटी-सी खिड़की से बाहर झाँकती, जहाँ बगीचे में गुलाब लहलहाते थे और दीवारों के पार एक आजाद दुनिया साँस लेती थी। रात में, जब महल सन्नाटे में डूब जाता, वह अपने कानों को खुला रखती—पहरेदारों की फुसफुसाहट, नौकरों की चोरी-छिपे बातें, और हवा की हर सरसराहट उसके लिए एक संकेत थी।
एक सुबह, जब एक नौकरानी, मंजरी, उसके लिए भोजन लेकर आई, तेजस्विनी की नजर उसके साथ आए सैनिक पर पड़ी। वह जवान था—लंबा, चौड़े कंधों वाला, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरी उदासी थी, मानो कोई अनकहा दर्द उसे खा रहा हो। उसका नाम था क्षितिज। वह महल में एक छोटा-सा अधिकारी था, जिसका काम रानियों के कक्षों की चौकसी करना था। जब मंजरी ने भोजन की थाली रखी, क्षितिज की नजर एक पल के लिए तेजस्विनी की लोहे की पेंटी पर पड़ी, जो उसके रेशमी वस्त्रों के नीचे से हल्का-सा झलक रही थी।
उसकी आँखों में गुस्सा और शर्मिंदगी की एक लहर दौड़ गई, फिर वह चुपचाप बाहर चला गया। तेजस्विनी का दिल धक से रह गया। उसे लगा कि शायद यही वह शख्स है, जिसके भीतर इस क्रूरता के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी सुलग रही है। अगले दिन, जब क्षितिज फिर से उसके कक्ष के बाहर पहरे पर था, तेजस्विनी ने एक चाल चली। उसने जानबूझकर एक चाँदी का कटोरा नीचे गिरा दिया। कटोरे की तेज आवाज गलियारे में गूंजी, और क्षितिज फौरन अंदर दौड़ा आया। “रानी, क्या हुआ? आपको कुछ चाहिए?”
उसकी आवाज में औपचारिकता थी, लेकिन उसका लहजा नरम था। तेजस्विनी ने उसकी आँखों में देखा—उनमें एक सच्चाई थी, जो उसे झूठ से ढकी नहीं थी। उसने धीरे से कहा, “हाँ, मुझे कुछ चाहिए। लेकिन यहाँ नहीं कह सकती। क्या तुम रात में यहाँ आ सकते हो, जब कोई न देखे?” क्षितिज का चेहरा सख्त हो गया। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई, मानो डर रहा हो कि कोई सुन न ले। फिर उसने हल्के से सिर हिलाया और बाहर निकल गया। तेजस्विनी की साँसें तेज हो गईं। यह उसकी योजना का पहला कदम था, और इसमें एक गलती भी उसकी जान ले सकती थी।
उस रात, जब महल की मशालें धीमी पड़ गईं और सन्नाटा गलियारों में रेंगने लगा, तेजस्विनी अपने कक्ष में इंतजार कर रही थी। उसने अपनी पुरानी तलवार—जो उसके पिता की आखिरी निशानी थी—को एक मोटे कंबल में छिपा रखा था। यह तलवार अब उसकी सबसे बड़ी साथी थी। दरवाजे पर हल्की-सी खटखट हुई। उसने सावधानी से दरवाजा खोला। बाहर क्षितिज खड़ा था। उसकी आँखों में घबराहट थी, लेकिन एक जिज्ञासा भी थी। “कहिए, रानी, क्या चाहिए आपको?” उसने फुसफुसाते हुए पूछा।
तेजस्विनी ने उसे अंदर बुलाया और दरवाजा बंद कर दिया। फिर उसने सीधे कहा, “मुझे आजादी चाहिए, क्षितिज। सिर्फ मेरी नहीं, इस महल की हर रानी की। क्या तुम मेरे साथ हो?” क्षितिज के चेहरे पर हैरानी छा गई। उसने कहा, “रानी, यह क्या कह रही हैं आप? यह रुद्रवर्मन का महल है। यहाँ से कोई नहीं बच सकता। अगर मैंने आपकी मदद की, तो मेरी गर्दन कट जाएगी।”
तेजस्विनी ने उसकी आँखों में गहराई से देखा और कहा, “मैं जानती हूँ कि तुम यहाँ खुश नहीं हो। मैंने तुम्हारी आँखों में वह आग देखी है, जो इस अत्याचार को देखकर भड़कती है। अगर तुम मेरे साथ नहीं आए, तो यह नरक कभी खत्म नहीं होगा। हाँ, तुम्हारी जान खतरे में पड़ेगी। लेकिन क्या यह गुलामी की जिंदगी जीने लायक है?” क्षितिज चुप हो गया। उसके मन में तूफान उठ रहा था। वह रुद्रवर्मन की क्रूरता से नफरत करता था।
उसने रानियों की चीखें सुनी थीं, उनकी बेबसी देखी थी। उसकी बहन भी कभी इसी तरह एक जमींदार की सनक का शिकार बनी थी, और वह उसे बचा नहीं पाया था। तेजस्विनी की बातें उसके पुराने जख्मों को कुरेद गईं। उसने गहरी साँस ली और कहा, “रानी, यह आसान नहीं है। मुझे सोचने का वक्त चाहिए। लेकिन मैं वादा करता हूँ, कल रात तक आपको जवाब दूँगा।”
अगली रात क्षितिज लौटा। इस बार उसकी आँखों में एक नई चमक थी। उसने कहा, “रानी, मैं आपके साथ हूँ। लेकिन यह रास्ता खून से रंगा होगा। वह चाबी—वह सोने का ताबीज—रुद्रवर्मन के गले में लटका है। वही हमारी आजादी का रास्ता है।” तेजस्विनी ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “तो हमें उस चाबी तक पहुँचना होगा। क्या तुम उसके कक्ष के पास जा सकते हो?” क्षितिज ने कहा, “हाँ, मैं वहाँ पहरा देता हूँ। लेकिन उसे छूना आसान नहीं। वह सोते वक्त भी उसे नहीं उतारता। हमें कोई चाल चलनी होगी।”
तेजस्विनी ने सोचा और कहा, “अगर वह गहरे नशे में हो तो? क्या हम उसकी शराब में कुछ मिला सकते हैं?” क्षितिज की आँखें चमक उठीं। “यह हो सकता है। लेकिन हमें रसोई में किसी की मदद चाहिए होगी।” तेजस्विनी ने कहा, “ठीक है। तुम रसोई में कोई भरोसेमंद ढूँढो। मैं यहाँ दूसरी रानियों को तैयार करूँगी। यह लड़ाई अकेले नहीं जीती जा सकती।” इस तरह, एक खतरनाक साजिश का जाल बुनना शुरू हुआ।
एकता की नींव: रानियों का विद्रोह
अगले कुछ दिन मेघनादपुर के महल में एक अजीब-सी हलचल थी। तेजस्विनी ने चुपचाप दूसरी रानियों से बात शुरू की। पहली थी सुलोचना—एक कोमल हृदय वाली युवती, जिसे रुद्रवर्मन ने उसके गाँव से जबरन उठवाया था। उसकी आँखों में डर था, लेकिन तेजस्विनी की हिम्मत ने उसे झकझोर दिया। दूसरी थी मधुरिमा—एक पूर्व नर्तकी, जिसकी कला को रुद्रवर्मन ने अपने मनोरंजन के लिए कैद कर लिया था।
उसकी आत्मा टूट चुकी थी, लेकिन तेजस्विनी की बातों ने उसमें एक नई उम्मीद जगाई। तीसरी थी अंजलि—एक विदुषी, जो कभी अपने पिता के साथ शास्त्रों की रचना करती थी, लेकिन अब लोहे के बंधन में जकड़ी थी। हर रानी की कहानी अलग थी, लेकिन उनका दर्द एक था। तेजस्विनी ने उन्हें एकजुट किया, उनकी आँखों में विद्रोह की चिंगारी भरी।
उधर, क्षितिज ने रसोई में एक बूढ़ी औरत, चंद्रिका, को अपने पक्ष में किया। चंद्रिका सालों से रुद्रवर्मन के लिए खाना बनाती थी। वह उसकी कमजोरी जानती थी—उसे मधुर मसालों वाली मीठी शराब का नशा था। उसने कहा, “मैं शराब में नींद की जड़ी मिला सकती हूँ। मेरे पास एक पुरानी औषधि है—हल्की, लेकिन असरदार। लेकिन अगर वह समझ गया, तो मेरी बूढ़ी हड्डियाँ टूट जाएँगी।” क्षितिज ने उसका हाथ थामते हुए कहा, “चंद्रिका, यह सिर्फ तुम्हारी या मेरी लड़ाई नहीं। यह हर उस औरत की लड़ाई है, जिसे उसने कुचला है। हम सब साथ हैं।” चंद्रिका की आँखें नम हो गईं। उसने सिर हिलाया और कहा, “ठीक है, बेटा। मैं तैयार हूँ।”
योजना तैयार थी। एक रात, जब रुद्रवर्मन अपने कक्ष में अकेला था, चंद्रिका ने एक सोने की थाली में शराब का प्याला सजाया। उसमें नींद की जड़ी मिलाई गई थी—एक ऐसी औषधि, जो स्वाद में छिप जाए, लेकिन आधे घंटे में गहरी नींद ला दे। तेजस्विनी अपने कक्ष में बैठी उस पल का इंतजार कर रही थी। उसकी उंगलियाँ अपनी तलवार के मूठ पर नाच रही थीं। उसकी आँखों में आजादी की चमक थी, लेकिन दिल में एक डर भी—क्या यह योजना कामयाब होगी?
महल में सन्नाटा था, लेकिन हवा में एक तनाव गूंज रहा था। क्षितिज ने चंद्रिका से प्याला लिया और रुद्रवर्मन के कक्ष की ओर बढ़ा। रात गहरा रही थी। मशालों की रोशनी दीवारों पर भयानक छायाएँ बना रही थी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वह जानता था कि एक गलती सब कुछ तबाह कर देगी।
वह कक्ष के दरवाजे तक पहुँचा। दो पहरेदार, रघु और बलदेव, वहाँ खड़े थे। उनकी आँखें संदेही थीं। रघु ने पूछा, “यह क्या है, क्षितिज? इतनी रात को शराब?” क्षितिज ने अपनी घबराहट को हँसी में छिपाया। “हाँ, राजा ने आज खास शराब माँगी। चंद्रिका ने बनाई है। तुम तो जानते हो, उनकी मसालेदार शराब की दीवानगी।” बलदेव हँसा। “हाँ, और फिर सुबह तक खर्राटे। ठीक है, जा। लेकिन जल्दी लौटना।” क्षितिज ने सिर हिलाया और अंदर घुस गया। रुद्रवर्मन अपने विशाल बिस्तर पर अधलेटा था।
उसका सोने का ताबीज उसकी छाती पर चमक रहा था। उसने क्षितिज को देखा और गहरी आवाज में कहा, “यह क्या लाया है?” क्षितिज ने थाली आगे बढ़ाई। “महाराज, आपके लिए खास शराब। रसोई से अभी तैयार हुई।” रुद्रवर्मन की आँखों में लालच भड़क उठा। उसने प्याला उठाया, सूँघा, और एक लंबा घूँट लिया। “हम्म, तीखी और मीठी। ठीक है, जा।” क्षितिज बाहर निकला, लेकिन दरवाजा बंद करते वक्त उसने देखा—रुद्रवर्मन ने प्याला पूरा खाली कर दिया। अब बस इंतजार था।
चाबी का पीछा: साँसें थाम देने वाला पल
क्षितिज तेजस्विनी के कक्ष की ओर लौटा। उसका मन बेचैन था। क्या औषधि काम करेगी? क्या कोई शक करेगा? उसने तेजस्विनी के दरवाजे पर हल्के से खटखटाया। तेजस्विनी ने दरवाजा खोला और फुसफुसाई, “हो गया?” क्षितिज ने कहा, “हाँ, उसने पी ली। अब इंतजार करना होगा। लेकिन रानी, अगर वह नहीं सोया तो?” तेजस्विनी ने कहा, “वह सोएगा। हमें सही वक्त का इंतजार करना है।
तुम वापस जाओ, उसकी हर हरकत पर नजर रखो।” क्षितिज लौट गया। वह रुद्रवर्मन के कक्ष के बाहर खड़ा रहा। करीब आधे घंटे बाद, उसे खर्राटों की मद्धम आवाज सुनाई दी। उसका दिल जोर से धड़का। उसने दरवाजा हल्के से खोला। रुद्रवर्मन गहरी नींद में था—उसका मुँह खुला, साँसें भारी, और वह ताबीज उसकी छाती पर लटक रहा था। क्षितिज ने तेजस्विनी को इशारा किया।
तेजस्विनी अपनी तलवार लेकर निकली। गलियारे खामोश थे, लेकिन हर छाया एक खतरे की तरह लग रही थी। वे चुपचाप कक्ष की ओर बढ़े। बाहर रघु और बलदेव अब भी थे। क्षितिज ने कहा, “राजा ने मुझे अंदर बुलाया। कुछ काम है।” रघु ने भौंहें चढ़ाईं। “अभी? वह तो सो रहा होगा।” क्षितिज ने हँसते हुए कहा, “शराब के बाद उसका मिजाज बदलता है। तुम जानते हो।” दोनों पहरेदार हँसे और उसे अंदर जाने दिया।
तेजस्विनी दीवार की आड़ में छिपी रही। क्षितिज अंदर गया। उसने धीरे से ताबीज की ओर हाथ बढ़ाया। जैसे ही उसने उसे छुआ, रुद्रवर्मन ने नींद में करवट बदली। क्षितिज की साँस अटक गई। वह रुक गया। जब खर्राटे फिर शुरू हुए, उसने चाबी को ताबीज से अलग किया। लेकिन तभी चाबी फिसल कर नीचे गिरी। “टन!”—आवाज छोटी थी, लेकिन गलियारे में गूंज गई।
रघु ने बाहर से चिल्लाया, “यह क्या था, क्षितिज?” क्षितिज ने चाबी उठाई और अपनी वर्दी में छिपा ली। उसने बाहर आकर कहा, “कुछ नहीं, एक कटोरा गिर गया। राजा सो रहा है।” रघु ने संदेह से देखा, लेकिन चुप रहा। क्षितिज बाहर निकला और तेजस्विनी को चाबी थमाई। तेजस्विनी ने उसे देखा—छोटी, सुनहरी, लेकिन उसमें सारी रानियों की जिंदगी बंधी थी। उसने अपनी पेंटी का ताला खोला।
लोहे की ठंडक से मुक्ति मिलते ही उसके शरीर में बिजली-सी दौड़ गई। लेकिन तभी गलियारे के कोने से सैनिकों की कदमों की तेज आवाज गूंजी। क्षितिज ने फुसफुसाया, “लगता है किसी ने देख लिया। हमें जल्दी करना होगा।” तेजस्विनी ने कहा, “पहले रानियों को आजाद करो। फिर रुद्रवर्मन से निपटेंगे। चलो!”
तूफानी रात आजादी की जंग: रानियों का उदय
दोनों तेजी से रानियों के कक्षों की ओर बढ़े। पहला कक्ष सुलोचना का था। तेजस्विनी ने दरवाजा खटखटाया। “सुलोचना, मैं हूँ। उठो। आजादी यहाँ है।” सुलोचना ने दरवाजा खोला, उसकी आँखें डर से गीली थीं। “तेजस्विनी, यह क्या कर रही हो?” तेजस्विनी ने उसकी पेंटी का ताला खोला और कहा, “अब डरने का वक्त नहीं। मेरे साथ चलो।”
सुलोचना की साँसें तेज हुईं, लेकिन उसने हिम्मत बाँधी। अगला कक्ष मधुरिमा का था। मधुरिमा ने आजाद होते ही तेजस्विनी को गले लगाया। “मैं तुम्हारे लिए मर भी जाऊँगी।” फिर अंजलि, और बाकी रानियाँ—एक-एक कर छह रानियाँ आजाद हुईं। लेकिन सैनिकों की आवाज करीब आ रही थी। एक कमांडर, यशोवर्धन, चिल्लाया, “कक्ष खाली हैं! रानियाँ गायब हैं!”
तेजस्विनी ने तलवार थामी और कहा, “अब लड़ाई होगी। तुम सब मेरे पीछे रहो।” रानियों के पास हथियार नहीं थे, लेकिन उनकी हिम्मत थी। सुलोचना ने एक मशाल उठाई, मधुरिमा ने लकड़ी का टुकड़ा थामा। सैनिकों का दस्ता गलियारे में घुसा—दस जवान, तलवारें और भाले लिए हुए। यशोवर्धन ने चिल्लाया, “रानी, यह विद्रोह है। रुक जाओ!” तेजस्विनी ने जवाब दिया, “विद्रोह नहीं, आजादी है।” उसने पहला वार किया—एक सैनिक का भाला काटा और उसका कंधा चीरा।
क्षितिज ने दो सैनिकों को रोका। सुलोचना ने मशाल से एक चेहरा झुलसाया। गलियारा खून और चीखों से भर गया। यशोवर्धन ने तेजस्विनी पर हमला किया। उसका वार तेज था, लेकिन तेजस्विनी ने बचकर उसके पैर पर प्रहार किया। वह गिर पड़ा। “हमारे साथ या खिलाफ?” तेजस्विनी ने पूछा। “राजा के साथ,” उसने कहा। तेजस्विनी ने उसका अंत कर दिया। बाकी सैनिकों ने हथियार डाल दिए। Click on the link ब्लाग पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
लेकिन तभी रुद्रवर्मन के कक्ष से एक भयानक चीख गूंजी। वह जाग गया था। उसकी चाबी गायब थी, और उसका गुस्सा पागलपन में बदल गया। वह अपनी विशाल तलवार लेकर बाहर निकला। “कहाँ हो, गद्दारो!” तेजस्विनी ने रानियों को देखा। “यह आखिरी जंग है। तैयार रहो।”

तूफानी रात की अंतिम टक्कर: तेजस्विनी बनाम रुद्रवर्मन
गलियारा खून और आग से सन गया था। तेजस्विनी अपनी तलवार थामे खड़ी थी। उसका हाथ रिस रहा था, लेकिन उसकी आँखें ज्वालामुखी थीं। रुद्रवर्मन सामने था—उसकी तलवार भारी, उसकी आँखें लाल। “तुमने मुझे चुनौती दी?” उसने गरजा। तेजस्विनी ने कहा, “नहीं, मैंने तुम्हें खत्म करने का फैसला किया।” तलवारें टकराईं। रुद्रवर्मन का वार जानलेवा था, लेकिन तेजस्विनी ने चपलता से बचा। उसने उसके कंधे पर प्रहार किया। रुद्रवर्मन ने फिर हमला किया, लेकिन तेजस्विनी ने उसके पैर काटे। वह घुटनों पर गिरा। “गद्दी तुम्हारी, जान बख्श दो,” उसने कहा। तेजस्विनी ने कहा, “जान रहेगी, सजा बाकी है।”
उसने कालिदास को बुलवाया और एक “लोह लिंग कवच” बनवाया। रुद्रवर्मन को वह पहनाया गया, और चाबी तेजस्विनी ने रख ली। उसने ऐलान किया, “यह उसकी सजा है।” रुद्रवर्मन को बाहर छोड़ दिया गया—वासना उसकी जंजीर बनी। Click on the link गंगासागर यात्रा बारिश समंदर और एक अनजानी आत्मा का स्पर्श रहस्यमयी तट पर एक अद्भुत अनुभव पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
नया सवेरा तेजस्विनी ने गद्दी संभाली। महल के बंधन टूटे। रानियाँ आजाद हुईं। क्षितिज उसका सेनापति बना। राज्य में न्याय और शांति छाई। एक शाम, तेजस्विनी छत पर खड़ी थी। सुलोचना ने पूछा, “यह सपना था?” तेजस्विनी ने कहा, “नहीं, यह हमारी जीत है।” उसका नाम इतिहास में “तेजस्विनी द अजेय” के रूप में गूंजा।






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