दसवीं विन्ध्यवासिनी विन्ध्याचल शक्तिपीठ

Amit Srivastav

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नवरात्रि के पावन अवसर पर, जगत-जननी कि कृपा से, जनकल्याण की देवी मध्य प्रदेश से सटे उत्तर प्रदेश सीमा अन्तर्गत, मिर्जापुर जनपद के विन्ध्याचल की खुबसूरत पहाड़ी पर स्थित, महिषासुर मर्दिनी मां विन्ध्यवासिनी देवी को अपनी दसवीं शक्तिपीठ के रूप में अंकित, गुप्त रहस्यों को उजागर, लेखनी भक्तजनों को समर्पित कर रहा हूं।

दसवीं विन्ध्यवासिनी विन्ध्याचल शक्तिपीठ

अब तक आप सब ने हमारे शक्तिपीठ लेखनी में क्रमशः पढ़ा… प्रथम कामाख्या शक्तिपीठ, दूसरी छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ, तीसरी हिंगलाज भवानी, चौथी विशालाक्षी देवी मणिकर्णिका शक्तिपीठ, पांचवीं त्रिपुरमालिनी वक्ष शक्तिपीठ, छठवीं दक्षिणेस्वरी काली, सातवीं कोलकात्ता कालीघाट, आठवीं ह्रदय शक्तिपीठ जय दुर्गा, नौवीं वैष्णो देवी सिद्ध शक्तिपीठ, 51 शक्तिपीठ लेखनी में पुनः संक्षिप्त रूप से दर्शाते गुणगान करते आगे बढ़ रहा हूं। शक्तिपीठ लेखनी जनकल्याण में सहायक सिद्ध हो जगत-जननी कि कृपा पात्र मां आदिशक्ति से प्रार्थना करते भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम अग्रसर।

दसवीं विन्ध्यवासिनी विन्ध्याचल शक्तिपीठ

प्रथम शक्तिपीठ कामाख्या जहां सती का योनी भाग स्थापित है। इस शक्तिपीठ को श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति धाम माना जाता है, सम्पूर्ण शक्तिपीठों में यह सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ है। इसका प्रमाण देवासुर संग्राम में दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने भी दिया है, नरकासुर इसी सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ को, दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर नष्ट करने आया था। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को नरकासुर द्वारा निर्मित मार्ग से आकर दर्शन नही करना चाहिए। जो देवी कामाख्या के कहने पर नरकासुर अर्ध निर्माण किया है। शुक्राचार्य कामाख्या शक्तिपीठ को नष्ट करने के बाद सभी शक्तिपीठों का अस्तित्व स्वतः समाप्त होने की बात कही थी। कामाख्या शक्तिपीठ, निकट त्रिया राज्य से सिद्धि प्राप्त… सम्पूर्ण वर्णन अपने प्रथम शक्तिपीठ लेखनी – कामाख्या शक्तिपीठ श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति का द्वार में किया हूं। गुप्त रहस्यों को उजागर करते माता की महिमा का वर्णन हमारी लेखनी से समाज को प्राप्त हो और माता के प्रति आस्था व्याप्त हो, इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए।

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दूसरे शक्तिपीठ के रूप में झारखंड राज्य के रजरप्पा में, दस महाविद्याओं में से एक छठवीं महाविद्या धारण करने वाली, नग्न रुपा भवानी असुरों का संहार करने के बाद अपने ही सिर को काटकर सहचरीयों संग अपना रुधीर पान कर भुख को शांत करने कराने वाली छिन्नमस्तिका भवानी, इस भवानी को जैसी मनोकामना के साथ पूजा जाता है वैसा ही फल प्राप्त होता है।
जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।
राम चरित्र मानस के बालकांड की यह चौपाई नग्न रुप छिन्नमस्तिका भवानी की महिमा पर सटीक बैठती है। जिसकी जैसी भावना होती है छिन्नमस्तिका नग्न देवी उसी रूप में मनोरथ पूर्ण करती है। यहां सम्पूर्ण मनोकामना पूरी हो रोग दोष से मुक्त सफल जीवन जीने की राह मिलती है।

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तीसरी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित हिंगलाज भवानी उग्रतारा शक्तिपीठ मोक्ष प्रदान करने वाली। हिंगलाज शक्तिपीठ की पूजा-अर्चना मुस्लिम समुदाय भी करता है, इस शक्तिपीठ को मुस्लिम समुदाय अपनी नानी पीर के रूप में मानता है। यहां दर्शन करने वाली मुस्लिम स्त्रीयों को हजियाजी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार यहां आने वाले भक्तों की आत्मा को शुद्ध और पवित्र होने के बाद मोंक्ष का मार्ग सुलभ हो जाती है।

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चौथी बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट पर स्थापित शक्तिपीठ जो जन्म मरण से मुक्ति प्रदान करने वाली है। अपने प्रिय काशी में विराजमान बाबा विश्वनाथ जी का दर्शन करने वाले श्रद्धालु जन देवाधिदेव महादेव कि प्रिया विशालाक्षी देवी मणिकर्णिका घाट पर, यहां सती के कान का कुंडल गीरा था, इस शक्तिपीठ में विशालाक्षी देवी का भक्त जन दर्शन कर पूर्ण रूप से अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।

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पांचवीं त्रिपुरमालिनी वक्ष शक्तिपीठ देवी तालाब जालंधर पंजाब राज्य में एकमात्र शक्तिपीठ, यहां सती का एक स्तन गीरा था। इस शक्तिपीठ का इतिहास, शिव पुत्र असुर राज जलंधर पत्नी वृंदा के साथ, विष्णु द्वारा छल से पतिव्रत धर्म नष्ट कर, ख़ुद विष्णु वृंदा द्वारा श्रापित हो शालिग्राम पत्थर बने, वृंदा द्वारा इस पृथ्वी पर औषधि रुप में तुलसी का पौधा बन तुलसी और शालिग्राम विवाह से जूड़ा है।

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छठवीं दक्षिणेस्वरी काली रुपी कामाक्षीदेवी पाताल लोक, युगाद्या शक्तिपीठ क्षीरग्राम वर्धमान बंगाल, इसी शक्तिपीठ मे सती के दाहिने पैर का अंगुठा जहां माता का तंत्र बसता है.. अहिरावण द्वारा पाताल लोक में स्थापित था, अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहरा कामाक्षीदेवी धर्म युद्ध में सीता और राम की लंका में सहयोगी बन युगाद्या शक्तिपीठ – क्षीरग्राम में भैरव क्षीरकंटक, हनुमानजी द्वारा स्थापित हुईं। पाताल लोक में अहिरावण द्वारा स्थापित कामाक्षीदेवी भद्रकाली ही सीता मे समाहित होकर सहस्त्ररावण का वध कि थीं।

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सातवीं शक्तिपीठ के रूप में बंगाल के कोलकात्ता कालीघाट स्थित महाकाली का वर्णन आद्या अंश सती के दाहिने पैर की अंगुठा छोड़, शेष चार उंगलियों पर किया हूं। यहां की शक्ति कालिका और भैरव नकुलेश हैं। समस्त कामनाओं को पूरा करने वाली 10 महाविद्याओं में देवी काली प्रथम महाविद्या धारण करने वाली, शिव की चौथी अर्धांगिनी काली ही हैं। काली को 108 नामों से जाना जाता है। काली का चार रुप है भद्रकाली, दक्षिणेस्वरी काली, मात्रृकाली, श्मशानकाली। माता का यह रूप साक्षात तथा जाग्रत अवस्था में है। दैत्यों का विनाश करने के लिए माता ने यह रूप समय-समय पर धारण किया। इनका स्वरूप अत्यंत भयानक मुण्डमाल धारण किये खड्ग-खप्पर हाथ में उठाये हुये मां अपने भक्तों को अभय दान देती है। ये रक्तबीज तथा चण्ड व मुण्ड जैसे महादैत्यों का नाश करने वाली मां शिवप्रिया साक्षात चामुण्डा का रूप है। इनका क्रोध शांत करने के लिए स्वयं महादेव को इनके चरणों के आगे लेटना पड़ा था।

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आठवीं शक्तिपीठ के रूप में ह्रदय शक्तिपीठ जय दुर्गा देवी यह विश्व का एकमात्र ऐसी शक्तिपीठ है, जहां शक्तिपीठ के साथ 12 ज्योतिर्लिंग में से एक नौवीं ज्योतिर्लिंग स्थापित है। अन्य 11 ज्योतिर्लिंग के पास इतना निकट कोई शक्तिपीठ नही है। ह्दय शक्तिपीठ के पास स्थापित ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान भारत देश में झारखण्ड राज्य के देवघर में स्थित है। यहां श्रावण मास में बाबा बैद्यनाथ धाम कि यात्रा स्वरूप विश्व के अनेक देशों से श्रद्धालु आते हैं और एशिया का सबसे बड़ा मेला लगता है।

दसवीं विन्ध्यवासिनी विन्ध्याचल शक्तिपीठ

नौवीं शक्तिपीठ के रूप में वैष्णो देवी सिद्ध शक्तिपीठ धर्म ग्रंथों के अनुसार यहां सती की खोपड़ी गीरी थी। जनकल्याण के लिए त्रिदेवीयों की अंश राजकुमारी त्रिकुटा त्रिकूट पर्वत पर तपस्या की थी। त्रेता युग में दैत्य दानवों का मर्दन कर जगत कल्याण के लिए माता पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती के रूप में स्थापित हैं, धर्म ग्रंथों के अनुसार विष्णु अंश श्रीरामचंद्र जी भी यहां आये हुए थे।

विन्ध्यवासिनी का इतिहास:

दसवीं विन्ध्यवासिनी विन्ध्याचल शक्तिपीठ

यक्षि-यक्षि तर्जनीभ्यां नमः। महायक्षि मध्यमाभ्यां नमः।।
अब आते हैं विन्ध्याचल की पहाड़ी पर सिद्ध शक्तिपीठ विन्ध्यवासिनी धाम मे। विन्ध्याचल धार्मिक दृष्टि से मिर्जापुर से सटा संयुक्त रूप से नगर महापालिका है। यहां दैवीय उर्जा सदैव विन्ध्यगिरि के खुबसूरत स्थान पर विन्ध्याचल भवानी में विराजमान रहती है। यहां माता को विन्ध्यवासिनी देवी नाम विंध्य पर्वत से प्राप्त हुआ। विन्ध्यवासिनी नाम का अर्थ – विन्ध्य मे निवास करने वाली। सती के शरीर के अंग जहां जहां गीरे वह स्थान शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है।
विन्ध्याचल वह स्थान है जहां विन्ध्यवासिनी शक्तिपीठ के साथ ही साकार रूप में विराजमान है। भक्ति भाव से जो भी भक्त यहां आते हैं, उन्हें हमारे इस बात का एहसास जरुर होता होगा। जिस रात कंश की बहन माता देवकी के गर्भ से कृष्ण का जन्म हुआ, उसी रात आदिशक्ति की अंश विष्णु प्रिये योगमाया ने माता यशोदा के गर्भ से जन्म लिया। विधि का निर्धारित विधान कारागार का दरवाजा खुला, सभी पहरी निद्रा में चले गए। देवकी को पता भी नहीं बासुदेव जी माया के जाल में आकर कृष्ण को मांथे पर लिए यमुना पार नन्दजी के यहां कृष्ण को यशोदा मईया के पास छोड़कर यशोदा मईया से उत्पन देवी अंश योगमाया को ले कारागार में चले आये। सुबह होते ही कंश को पहरीयों ने सूचना दी, बच्चे की आवाज कारागार में सुनाई दे रही है। कंश इस बार आठवें गर्भ से जन्में शिशु को मृत्यु देने को आतुर था। कंश ने देखा इस बार जन्मीं पुत्री ही है फिर भी अपने मृत्यु के भय से व्याकुल उस पुत्री को ज्यों ही जमीन पर पटकने की कोशिश की पुत्री आदिशक्ति श्री दुर्गा के रूप में प्रस्तुत हो कंश को चेतावनी – तुम्हारे मृत्यु दाता विष्णु अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हो चुका है, सती के शक्तिपीठ विन्ध्याचल पर्वत पर चली आईं। जनकल्याण के लिए युगों-युगों तक सम्पूर्ण शक्तिधारी आदिशक्ति, विन्ध्यवासिनी देवी के रूप में स्थापित हैं। यहां पावन नर्मदा नदी विन्ध्याचल पर्वत को स्पर्श करते बहती है। विन्ध्यवासिनी देवी नागवंशीयों की कुल देवी मानी जाती हैं। पौराणिक मान्यताओं में के अनुसार माता विन्ध्यवासिनी भाद्रपद के कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि को विन्ध्याचल पर्वत पर आई थी। इसलिए यह तिथि यहां अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। विन्ध्यवासिनी माता को 16 नामों से स्मरण पूजा किया जाता है।
मां विंध्यवासिनी का दर्शन फलदायी होता है। इनकी पूजा घर में नियमित करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। सुबह दैनिक क्रिया से निवृत हो स्नान करें, अपने स्वक्छ पूजा स्थान मे मां विंध्यवासिनी की प्रतिमा स्थापित करें, जल पुष्प अक्षर महिला सिन्दूर पुरूष रोड़ी प्रसाद चढ़ाकर धूप बत्ती जला (जिसमें बांस की लकड़ी का उपयोग न किया गया हो आप सभी भक्त जन को शास्त्रवत यह मालूम होगा कि बांस बंस को बराबर ही महत्व दिया गया है। इसलिए किसी भी पूजा-अर्चना मे बांस से निर्मित अगरबत्ती का प्रयोग न करें। यह बांस युक्त अगरबत्ती सनातन धर्म को नष्ट करने की साजिश से मुगलों द्वारा दिया गया है।) दीपक प्रज्वलित कर मां विन्ध्यवासिनी का ध्यान करें और पूजा-अर्चना कर घी दीपक या कपूर से मां की आरती करें।


विन्ध्याचल में सती के शरीर का कौन सा अंग गिरा था:

दसवीं विन्ध्यवासिनी विन्ध्याचल शक्तिपीठ

पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजाति की पुत्री सती ने जब अपने शरीर का त्याग किया तब शिव अपने गणों की इस सूचना से व्याकुल हो उठे शिव की व्याकुलता से भद्रकाल उत्पन्न हुए साथ मे भद्रकाली प्रकट हो भद्रकाल की साथी बनी जिसने ब्रह्मा पुत्र दक्ष प्रजाति का बध किया। पृथ्वी विस्तारक प्रजाति को जीवन दान देने के लिए सभी देवताओं ने शिव से आग्रह किया तब बात-बात मे मै मै कि लकार निकालने वाले दक्ष प्रजापति को बकरे का सिर प्रदान कर शिव जी ने जीवन दान दिया यहीं से दक्ष प्रजाति का घमंड नष्ट हुआ। फिर शिव सती के वियोग मे सती को अपने बाहों मे ले प्रलयकारी रुप से विचलन करने लगे तब आदिशक्ति की आज्ञा से विष्णु जी ने चक्र सुदर्शन से सती का शरीर शिव से अलग किया चक्र सुदर्शन से कटा सती का अंग जहां जहां गीरा शक्तिपीठ मे परिवर्तित हो गया। इस कलियुग शक्तिपीठ मे विराजमान आदिशक्ति अंश सती ही विभिन्न रुपों मे जनकल्याण के लिए पृथ्वी पर उपस्थित हैं। यहां विन्ध्याचल मे सती के बाएं पैर की अंगुली गीरी थी। जो स्थान मां विन्ध्यवासिनी के रूप मे स्थित है।
विन्ध्याचल मे मां विंध्यवासिनी जो योगमाया के रूप मे जन्म ली थी, माना जा सकता है कृष्ण की बहन थी। योगमाया के स्थान पर यशोदा मईया ने कृष्ण को पाला था। यशोदा व देवकी मईया के पिछले जन्म को देखा जाए तो रामा अवतार मे ये दोनों भगवान राम की माताएं थीं जो अपने अपने प्रेम भाव का फल कृष्ण अवतार मे भोगा। इस कथा को कभी अगले लेखनी मे प्रकाशित कर दूंगा।
माता विन्ध्यवासिनी अष्टभुजा धारी मां आदिशक्ति श्री दुर्गा की अंश हैं। आदिशक्ति के लिए सती का शक्तिपीठ विन्ध्याचल सदा के लिए निवास स्थान है, मां जगदम्बा अपनी पूर्ण शक्तिरूप मे सदैव भक्तजन के कल्याण के लिए उपस्थित हैं।
विन्ध्याचल की अष्टभुजा पहाड़ी मे बसा भैरव कुंड सदियों से तांत्रिकों अघोरियों के लिए तंत्र साधना का केन्द्र है। मां भैरवी उपासना कि सिद्धी के लिए यहां साधकों का आना-जाना लगा रहता है। इस विन्ध्यवासिनी शक्तिपीठ की रक्षा शिव जी बटुक भैरव के रूप मे करते हैं।

दसवीं विन्ध्यवासिनी विन्ध्याचल शक्तिपीठ

यहां कि कुछ प्रमुख मंदिर – संकटमोचक हनुमान मंदिर, रामेश्वर महादेव मंदिर, काली खोह मंदिर, अष्टभुजा मंदिर, सीता संहिता स्थल, सीता कुंड, रामगया घाट आदि प्रमुख हैं। विंध्यवासिनी शक्तिपीठ पहुचने के लिए 1000 से अधिक सीढ़ी मार्ग एवं चढ़ाई मार्ग भी है। यहां रोपवे की सुविधा से भी भक्त मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। देखभाल की जिम्मेदारी सलकनपुर ट्रस्ट करता है। यहां दर्शन के लिए वैसे तो हर समय भक्त जन आते रहते हैं किन्तु सबसे अच्छा समय थोड़ी ठंड में आना अच्छा रहता है। चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि पर भक्तों की भारी भीड़ रहती है। काशी विश्वनाथ वाराणसी से विंध्याचल की दूरी लगभग रेल मार्ग से 83 किलोमीटर प्रयागराज इलाहाबाद से 74 किलोमीटर की है। विंध्याचल के लिए चौतरफा साधन उपलब्ध है। हमारी अन्य पूरी शक्तिपीठ लेखनी पढ़ने के लिए ऊपर थ्री डाट पर क्लिक किजिये साइट पर क्लिक कर शक्तिपीठ टच कर पसंदीदा लेखनी पढ़िए अच्छा लगे तो शेयर किजिये ताकि 51 शक्तिपीठों की हमारी लेखनी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके। गूगल पर हमारी साइड amitsrivastav.in आप सबको प्रिय हो इन्हीं प्रयासों के साथ सुस्पष्ट लेखनी प्रस्तुत करता संपादक भगवान चित्रगुप्त वंशज कि कलम।

दसवीं विन्ध्यवासिनी विन्ध्याचल शक्तिपीठ

दशमी महापर्व पर भगवान श्रीरामचंद्र जी की कृपा सदैव आप भक्त जन पर बनी रहे। विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं जय मां आदिशक्ति जगत जननी स्वरुपा सम्पूर्ण देवियों सहित सभी देवताओं को।

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