वर्तमान राजनीति में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच क्या हो सकता है वर्चस्व की लड़ाई? इस पर एक विशेष विश्लेषण राजनीतिक विश्लेषक और सलाहकार अभिषेक कांत पांडेय द्वारा-
राजनीति की दशा और दिशा पर जब सवाल उठता है, तो एक नया सवाल फिर खड़ा हो जाता है। केंद्र की राजनीति में 2014 के बाद सत्ता परिवर्तन का ऐसा रुतबा चला की जनता ने लगातार भारतीय जनता पार्टी को ही चुना। वहीं नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनने वाली भारतीय जनता पार्टी की यह सरकार पिछले कांग्रेस कार्यकाल के उपजे असंतोष का ही परिणाम रहा है। लेकिन 2024 का केंद्रीय चुनाव के बाद स्थितियां बहुत बदल गई है। कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष के रूप में सामने उभर कर आई है। राहुल गांधी का नेतृत्व दमदार जनता के सामने नजर आया है। इधर इंडिया का गठबंधन के घटक दल जिसमें समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में प्रमुख रूप से इंडिया गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ खड़ी हुई है लेकिन इधर दो महीने की राजनीति में समाजवादी पार्टी की राजनीति लड़खड़ा गई है। दरअसल विरोध की राजनीति में समाजवादी पार्टी तुष्टीकरण की राजनीति ही करती आ रही हैं। वैसे भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 और 2022 में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को इसी वजह से सत्ता से बाहर होने का दंश झेलना पड़ रहा है। इंडिया गठबंधन की बात करें तो इसमें राहुल गांधी केंद्रीय रूप से एक सशक्त नेता के रूप में उभर कर सामने आ चुके हैं जो नरेंद्र मोदी के खिलाफ दमदार तरीके से जनता की वकालत कर रहे हैं। वैसे भी लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना बहुत आवश्यक हो जाता है, ऐसे में इस बार राहुल गांधी के ऊपर जनता ने काफी विश्वास जताया है। इधर क्या असेंबली चुनाव में भी कांग्रेस से खुद को स्थापित करने में मजबूती से खड़ी रही है। राजनीति की गोटियां और बिसात बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। राहुल गांधी सशक्त रूप से नजर आ ही रहे हैं, कारण साफ है कि सोशल मीडिया से लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस तक उनकी मौजूदगी जनता को खास बना रही है। 2023 और यह वक्त 2024 का राजनीतिक रूप से भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौतियाँ भरा नजर आ रहा है। मजबूत विपक्ष की भूमिका में शैडो प्रधानमंत्री के रूप में राहुल गांधी नजर आ रहे हैं। मजबूत विपक्ष के आगे सरकार भी हर फैसला सोच समझ कर लेती है क्योंकि? विपक्ष जनता की आवाज बनकर गलत फैसलों के खिलाफ अपनी बातें सांसद और अलग-अलग संसदीय प्रक्रिया द्वारा रख सकती है। सत्ता पक्ष को इस बात का एहसास है इसलिए कई मामलों में बैक फुट पर वर्तमान सत्ता है।
कांग्रेस पार्टी का बढ़ता वर्चस्व
यदि सत्ता पक्ष के विरोध में विपक्ष में कोई मजबूती से खड़ा है तो वह कांग्रेस पार्टी है। जनता वर्तमान सत्ता पक्ष के विकल्प के तौर पर कांग्रेस पार्टी को देख रही है। इंडिया गठबंधन के घटकों को इस बारे में विचार करना चाहिए। खासतौर पर समाजवादी पार्टी को, दरअसल उनका कोई भी आधार उत्तर प्रदेश के अलावा किसी भी राज्य में नहीं है। साथ ही यह बात गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में वर्तमान सत्ता के सामने बौने साबित हो रहे हैं। उनकी कथित तुष्टीकरण की राजनीति अभी भी बंद नहीं हुई है। इस वजह से उत्तर प्रदेश की सत्ता में दशक से बाहर नजर आ रहे हैं। वहीं सत्ता पक्ष की मनमानी गलत फैसले पर सत्ता पक्ष को रोकने के लिए कांग्रेस का नेतृत्व बहुत आवश्यक है।
इंडिया गठबंधन में महत्वपूर्ण है राहुल गांधी

कांग्रेस का अपना एक इतिहास रहा है जिसमें सत्ता के उनके विकास के दावे इस समय भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की हड्डी बनती हुई नजर आ रही है। दरअसल 2014 के चुनाव में जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी ने अपने कैंपेन में कांग्रेस को निशाना बनाया अब उसकी उल्टी चाल 2024 में शुरू हो चुकी है। जनता समझ चुकी है कि विकास के नाम पर जो छलावा किया जा रहा है, वह बनावटी मीडिया तंत्र का एक लेखा-जोखा है।
इसके इधर देखा जाए तो धरातल पर राहुल गांधी बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं, हालांकि इस बात को भुलाने के लिए समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव किसी भी तरह की कोर कसर छोड़ नहीं रहे हैं। लेकिन तुष्टीकरण की राजनीति उनका दामन पकड़े हुए है, ऐसे में अखिलेश यादव का जन आधार उत्तर प्रदेश के बाहर बनता हुआ नजर नहीं आ रहा है। बात करते हैं आम आदमी पार्टी का जो सशक्त रूप से पंजाब और दिल्ली की राजनीति में जड़ जमायी हुई है। इंडिया गठबंधन में आम आदमी पार्टी अपने वर्चस्व की लड़ाई दिल्ली में जहां लड़ रही है। वहीं पर हरियाणा में अपने जन आधार को मजबूत करने में आगे बढ़ रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश की जातिगत राजनीति में समाजवादी पार्टी या फिर बहुजन समाजवादी पार्टी रही हो इनका बस एक ही वोट बैंक रहा, जो सोशल इंजीनियरिंग के सहारे चलता रहा है, जो अब ध्वस्त हो चुका है। दरअसल हिंदुत्व के एजेंट में भारतीय जनता पार्टी ने बाजी मार ली है। लेकिन इस बात को भी जानना जरूरी है कि कांग्रेस के बढ़ते हुए जन आधार समाजवादी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ा कर सकता है। अगर इस बात को इस नजरिए से देखा जाए तो इंडिया गठबंधन के दूसरे घटक दलों में कांग्रेस मजबूती से आगे बढ़ रही है, जिस पर समाजवादी पार्टी दूसरे राज्यों में खुद को स्थापित करने के लिए कांग्रेस से कई तरह के कठिन सौदेबाजी भी कर सकती है। हालांकि कांग्रेस का जन आधार पूरे भारत में समाजवादी पार्टी से काफ़ी ज्यादा है। ऐसे में जनता समाजवादी पार्टी की जगह पर भारतीय जनता पार्टी के विकल्प की रूप में राहुल गांधी यानि कि कांग्रेस को देख रही है।
आने वाले समय में देखना दिलचस्प होगा की राजनीति के इस 2024 के दौर में क्या कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच में किसी तरह का मन-मुटाव होने वाला है। राजनीति विश्लेषकों को अगर देखा जाए तो इसकी संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। वहीं राहुल गांधी अपने दूसरे स्टेप में खुद को स्थापित करने में सफल हो रहे हैं, तो कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ नए सिरे से खड़ा करने में भी सफलता अर्जित कर रहे हैं।
ऐसे में राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठता है कि राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव में किसका वर्चस्व अधिक है। हालांकि यह बातें मीडिया में कुछ दिन बाद सामने आनी बाकी है। राजनीति का जो वर्तमान खेल चल रहा है, इससे अनुमान तो यही लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में तुष्टीकरण एक बड़ा खेल समाजवादी पार्टी की तरफ से हो सकता है। लेकिन यह भी नहीं बोलना चाहिए कि कांग्रेस का जन आधार उत्तर प्रदेश में बहुत तेजी से बढ़ा है और गठबंधन के चलते ही समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में सीटों का फायदा होता है।
हम यहां बात फ्लोटर्स मतदाता की करेंगे जो 2024 के लोकसभा चुनाव में किस तरीके से भारतीय जनता पार्टी से खुद को अलग करते हुए इंडिया गठबंधन को चुना है लेकिन उनके मन में बस एक सवाल सामने था कि विकल्प के रूप में कांग्रेस सामने आ रही है। कई मीडिया रिपोर्ट की माने तो कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में बेहतर काम कर रही है दरअसल भारतीय जनता पार्टी के सीटों पर काम होना और उसे अपने बल पर बहुमत ना मिलना इसका सबसे बड़ा कारण खुद भारतीय जनता पार्टी की असफल नीतियां रही है इसके साथ ही कांग्रेस की जबरदस्त रणनीति ने सफलता को हासिल कर लिया और इसके पीछे निसंदेह राहुल गांधी की मेहनत है।