प्रथम कामाख्या शक्तिपीठ, योनी पीठ, श्रृष्टि का केन्द्र विन्दु, मोक्ष का द्वार, यहीं है जादूई नगरी, त्रिया राज्य, दो अद्भुत रहस्य के साथ

Amit Srivastav

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त्रिया राज्य जादूई नगरी व कामाख्या शक्तिपीठ का रहस्य

प्रथम कामाख्या शक्तिपीठ, योनी पीठ, श्रृष्टि का केन्द्र विन्दु, मोक्ष का द्वार, यहीं है जादूई नगरी, त्रिया राज्य, दो अद्भुत रहस्य के साथ
त्रिया राज्य एक रहस्य- जहां सिर्फ व सिर्फ़ योगन स्वरूपा परियों समान सुन्दर युवतियों का राज है “निलांचल पर्वत” पर त्रिया राज्य जादूई नगरी युगों-युगों से आज भी स्थित है, मान्यतानुसार सिर्फ सुन्दर बालिकाओं की ही पैदाइश होती है बालकों की पैदाइश का अभी तक कोई प्रमाण जादूई नगरी त्रिया राज में नहीं है। यह बात आपको चौकाने वाली लग रही होगी- जहां बालकों का जन्म ही नहीं होता और अन्य जगह ब्याही भी नही जातीं उस जगह में क्या बिना पुरुष स्त्रियां गर्भ धारण करती होगीं? हां तो आखिर कैसे?
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भारत देश में एक ऐसा भी जगह है जो सृष्टि का केंद्र विन्दु माना जाता है जहां जादूगरनीयों का राज त्रिया राज्य मतलब युवतियों का राज्य स्थित है यहां की स्त्रियां परियों समान सुन्दर अपनी इच्छानुसार सब सुख भोगने वाली होती हैं, वो पूरी तरह जादूगरनी तांत्रिक विद्या की खान होती हैं। इस रहस्य से पर्दा उठाते हुए लेखनी को आगे बढ़ा रहा हूं।

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भारत के असम राज्य की राजधानी दिसपुर से सात किलोमीटर निलांचल पर्वत पर दस किलोमीटर दूर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर कछारी गेट जहां से लगभग पांच किलोमीटर कामाख्या देवी मंदिर निलांचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या मंदिर जाने के लिए बस सेवा प्राप्त होती है। ब्रह्पुत्र नदी तट पर्वत निलांचल स्थित मां कामाख्या देवी मंदिर के पीछे से जादूई नगरी त्रिया राज्य जाया जा सकता है।
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कामरूप जिला मे स्थित कामाख्या मंदिर और त्रिया राज जहां से जुड़े रहस्य को बताने के लिए आज लेखनी को धार दे रहे हैं जो अनेक धार्मिक ग्रथों में वर्णित एवं सत्य पर आधारित एकत्रित जानकारी उस जादूई नगरी त्रिया राज्य मतलब सिर्फ़ परियों समान युवतियों स्त्रियों की राज, जादूई राज्य एक तरफ़ का सम्पूर्ण भाग ब्रह्पुत्र नदी से सुरक्षित है दूसरे तरफ़ से घना पहाड़ी जंगल जादूई नगरी के बाद लास्ट में गहरी खाई का एक सीमा निर्धारित है। सम्पूर्ण सीमा क्षेत्र पर प्रवेश वर्जित का बोल्ड लगा हुआ है।

निलांचर पर्वत स्थित मां कामाख्या मंदिर का पिछला भाग को मिला देने पर चारों तरफ से निर्धारित सीमा रेखा पूरी हो जाती है। जानकारी के मुताबिक त्रिया राज निलांचर पर्वत पर स्थित जादूगरनीयों का पवित्र स्थान है।

जहां पुरुषों का जाना वर्जित है अद्भुत अदृश्य स्थान को सीमा रेखा की बाहर से सामान्य आंखों से नही देखा जा सकता सिद्ध पुरुष स्त्री ही सीमा रेखा की बाहर से देख सकते हैं किसी अनभिज्ञ व्यक्ति को उन शक्तियों का उपहास नही करना चाहिए। क्योंकि? घातक परिणाम मिल सकता है। सृष्टि के केन्द्र विन्दु पर स्थित त्रिया राज जादूई नगरी का इतिहास बहुत पुराना है। जादूगरनी धुबुरीन का तो नाम सुना ही होगा यह भी कामरूप की मशहूर है।

हर युग में कुछ न कुछ जुड़ाव देखने को मिलता है जो त्रिया राज जादूई नगरी आज भी अपने अस्तित्व को बरकरार रखा है।

जो व्यक्ति भुल भटक या स्वेच्छा से उस सीमा रेखा को पार कर जाता है वो भटकते हुए त्रिया राज्य में पहुंच अपनी सूझबूझ खो जाता है और उन सुन्दर युवतियों के बस में रहकर उनकी वासना पूर्ति करता उनकी इच्छानुसार तंत्र-मंत्र, जादू-टोना सीखता या पशु-पक्षी, जीव-जंतु का रुप प्राप्त कर जंगलों में सुख-दुख भोगता है।

त्रिया राज्य कि तमाम देवीयां गुरु संरक्षण में कि गयी सिद्धियों से सम्पूर्ण सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।

उन त्रियों की राज से उनकी इच्छा के बिना कोई भी उनकी सीमा रेखा से बाहर नहीं निकल सकता। इसका अनेकों प्रमाण धर्म शास्त्रों में मिलता है। शिव अवतारी महाबली हनुमान, मछनदरनाथ, गोरखनाथ जैसे अवतारी पुरुष त्रिया जाल में फंस गए तो आप हम सामान्य पुरुषों का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है उन योगनियो की इच्छा के बिना निकल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। प्रथम कामाख्या शक्तिपीठ, योनी पीठ, श्रृष्टि का केन्द्र विन्दु, मोक्ष का द्वार, यहीं है जादूई नगरी, त्रिया राज्य, दो अद्भुत रहस्य के साथ

नाथपंथ में गुरु गोरखनाथ के गुरु मछनद्रनाथ त्रिया राज्य की सीमा रेखा में प्रवेश कर गए थे जो रानी मैनाकिनि के जाल में फंस अपनी सूझबूझ खो महारानी मैनाकिनि की इच्छापूर्ति करते हुए बहुत समय व्यतीत किया इधर-उधर शिष्य गोरखनाथ अपनी योग माया से पता लगा स्त्री रुप में त्रिया राज में प्रवेश किया अपनी तंत्र विद्या से गोरखनाथ अपने गुरु मछनद्रनाथ को छुड़ाने का अथक प्रयास में लगे थे।
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तभी हनुमानजी अनभिज्ञता बस उस सीमा रेखा से अपनी शक्ति के साथ टकरा गये जादूई नगरी के वज्र प्रहार से मूर्छित हो गए अचेतावस्था में प्रभु श्रीराम का स्मरण किया प्रभु श्रीराम उपस्थित होकर अपनी शक्तियों से देख हनुमानजी को वहां से वापस होने का सलाह दिया लेकिन हनुमानजी की लालसा थी ऐसी कौन सी शक्ति है जो मुझे मूर्छित कर दी तब प्रभु श्रीराम ने निलांचर पर्वत की वृतांत को बता हनुमान जी को साथ लेकर ब्राह्मण भेष में त्रिया राज्य कि सीमा के अंदर अर्धरात्रि में गुरु गोरखनाथ के समक्ष प्रस्तुत हुए। एक दूसरे ने त्रिया राज में प्रवेश का प्रयोजन पूछा गोरखनाथ ने बताया।
अपने गुरु मछनद्रनाथ को त्रिया जाल से मुक्त करा ले जाने आया हूं तब हनुमान जी ने कहा हमारे सहयोग से महारानी मैनाकिनि को मछनद्रनाथ त्रिया राज में यौन सुख प्रदान कर रहा है हनुमानजी गोरखनाथ को तत्काल त्रिया राज से चले जाने के लिए कहा तब गोरखनाथ ने अपने गुरु को छुड़ाये बगैर न जाने की जिद्द की बात बढ़ते देख श्रीराम ने हनुमान जी से पूछा क्या युगों-युगों तक महारानी मैनाकिनि को यौन सुख भोगने का वरदान दिये हो? और मछनद्रनाथ को… तब हनुमानजी ने कहा नही, प्रभु श्रीराम ने कहा तब तो आपका दिया वरदान का मान भी बच गया और गोरखनाथ के साथ मछनद्रनाथ जाने को राजी हो तो जायें इन लोगों के विवेक पर छोड़ हनुमानजी यहां से निकल चलो।
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गोरखनाथ बहुत ही मुश्किल से अपनी तंत्र विद्या से अपने गुरु मछनद्रनाथ को त्रिया राज से निकाल ले गये। दूसरी बार में सोरठी/ बिरजाभार को जादूगरनी हिरीया जिरीया दो बहनों के चंगुल से छुड़ाने गयें गुरु गोरखनाथ अपनी सभी विद्या में फेल हो अपनी जान बचा भाग आये थे। सोरठी बिरजाभार की जीवन गाथा पुराने समय से बिरहा के माध्यम से गाया जाता है।
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महाभारत काल में भीम पुत्र घटोत्कच की माता हिडिम्बा जो जादूई नगरी त्रिया राज क्षेत्र कि शिष्या थी काम्यक वन दिमापुर दैत्य राज हिडिंब की बहन थी दैत्य राज हिडिंब महाकाली का भक्त था काली को बली देने के लिए अज्ञातवास के दौरान भीम को बंधक बना लाने के लिए भेजा हिडिम्बा को भेजा हिडिम्बा भीम पर मोहित हो दूर जंगल में ले जाकर छूपा रखी थी।
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हिडिम्बा राजकुमारी काम्यक वन निवासी मायावी हर तंत्र-मंत्र जादूई योग माया से भरी पूरी परि समान सुंदरी थी जो खुद ही भीम सहित भ्राता हिडिंब को पराजित कर अपनी त्रिया जाल में बांधकर शादी कर यौन सुख प्राप्त कर घटोत्कच को जन्म दिया जो घटोत्कच महाभारत युद्ध में अकेले ही पूरी कौरव सेना पर हाहाकार मचा दिया था। कर्ण जो वाण अर्जुन से अपने अपमान का बदला लेने के लिए रखा था हाहाकार को देखते हुए दुर्योधन के उकसाने पर घटोत्कच पर चलाना पड़ा।

बर्बरीक की माता घटोत्कच की पत्नी दैत्य राज मोरंग की बहन मोरंगी भी त्रिया राज्य जादूई नगरी कि सीख थी जिसे कामाख्या देवी का खड़ग वरदान स्वरूप प्राप्त था उसके सामने स्यम् श्रीकृष्ण भी नतमस्तक हुए थे।

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कृष्ण के पौत्र अनुरुध को उषा के पास ले जाने वाली चित्रलेखा जादूगरनी त्रिया राज की ही थी। जो भी कालाजादू नजर बंद तंत्र-मंत्, टोने-टोटके किसी भी युगो सहित अब भी हो रहा रहा है उसका मुल जड़ सृष्टि का द्वार कहा जाने वाला कामाख्या मंदिर से जुड़ा है। आज कलियुग में भी हर तांत्रिकों द्वारा त्रिया राज कि…
जादूगरनी तांत्रिक विद्या सिद्धी के लिए योगिनी डायन लूना चमारी की शावर मंत्र द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। जिससे तांत्रिक कोई भी खटकर्म करने में सफल होते हैं।

कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। कामाख्या देवी का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ है

धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग हुआ था। इक्यावन शक्तिपीठों में से यहां सबसे प्रमुख महाशक्ति पीठ नीलांचल पर्वत पर स्थित सृष्टि का द्वार मां कामाख्या देवी के नाम से प्रसिद्ध है। सृष्टि का द्वार इसलिए कहा जाता है कि जब राजा दक्ष की पुत्री सती बिन बुलावा राजा दक्ष की यज्ञ में गयीं और देवों के देव महादेव के लिए कोई न स्थान था न ही सम्मान क्रोधित हो अपने शरीर को भस्म कर दीं तब शिव अपने प्रलयकारी रुप में सती को लेकर भ्रमण करने लगे तब आदिशक्ति की आज्ञा का पालन करते विष्णु जी ने शिव का मोह भंग करने के लिये माता सती के शव को अपने चक्र सुदर्शन से इक्यावन भाग किया था।

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सती का योनि गर्भ भाग नीलांचल पर्वत पर स्थापित हुआ जो सृष्टि का द्वार कहा जाता है। अन्य भाग जहां जहां गिरा स्थापित हुआ शक्तिपीठ कहा जाता है। इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा। बल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल धारा निकलती रहती है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि भाग की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। मंदिर से कई अन्य रोचक बातें जुड़ी है, आइए जनते हैं…

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कामाख्या जोकी आज भी बहुत ही शक्तिशाली पीठ है। यहां वैसे तो सालों – साल भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंतोत्सव, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।

अम्बुवाची मेला तांत्रिकों का सिद्धी स्थल

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प्राचीन काल से ही मां कामाख्या देवी की प्रथम पूजा अप्रत्यक्ष रूप से त्रिया राज कि योगिनियों द्वारा किया जाता रहा है। अम्बुवाची मेला के दौरान जहां हर तरह की तंत्र-मंत्र सिद्धी के लिए हर जगह से तांत्रिक, अघोरि व जादूगर आते हैं वहीं त्रिया राज जादूई नगरी कि जादूगरनी योगिनीयां सिद्ध पीठ से अन्य रुपों में बैठ अपने तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्त करती हैं जिन्हें बहुत ही बडे-बडे तांत्रिक पहचान उन्हें अपनी गुरु बना सिद्धी पा लेते हैं।

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हर साल यहां अम्बुबाची मेला के दौरान पास में स्थित ब्रह्पुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है। आपको बता दें की मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबो गरीब प्रसाद दिया जाता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, पहले ही सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद चौथे दिन जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह सफेद वस्त्र माता के रजस्वला से लाल भीगा होता है।
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इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। पंडों द्वारा इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। यहां से हर तरह की मनोकामना पूरी होती है मनोकामना पूरी करने के लिए यहां कन्या पूजन व भंडारा कराया जाता है। इसके साथ ही यहां पर नर पशुओं की बली दी जाती है। कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। मंदिर परिसर में जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है। मुराद पूरी होने के बाद घंटी या त्रिशूल का चढ़ावा पूरी किया जाता है। कहा जाता है माँगी गई मुराद जरूर पूरी होती है लेकिन अगर किस्मत में लिखा नही होता है तो घंटी या त्रिशूल का चढ़ावा में तरह तरह के व्यवधान उत्पन्न हो जाता है जिससे अनिष्टकारी परिणाम प्राप्त होता है।

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इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां का मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है। माना जाता है कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं। कामाख्या के तांत्रिक और साधू चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं। कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है।

माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनो तक मंदिर के पट बंद रहते है। तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते हैं। तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह कामाख्या मानी जाती है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर अधिक मात्रा में काला जादू भी किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति काला जादू से ग्रसित है तो वह यहां आकर इस समस्या से निजात पा सकता है।

इस महा शक्तिपीठ का दर्शन कुँवारे बालक बालिकाओं के लिए निषेध है कहा जाता है या तो कुँवारे नाथ पंथ का योगी हो या तांत्रिक विद्या ग्रहण किया हो या यज्ञोपवित गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर चुका हो वही माता के योनि भाग में स्थापित मां कामाख्या देवी के दर्शन का अधिकारी है। सती की योनि भाग में स्थापित हर जगह शिव लिंग की पूजा-अर्चना करने का सबको अधिकार है सिर्फ योनि भाग कि पूजा-अर्चना जो कामाख्या मंदिर सृष्टि के द्वार स्थापित है का अधिकार सबको प्राप्त नही है।

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17 thoughts on “प्रथम कामाख्या शक्तिपीठ, योनी पीठ, श्रृष्टि का केन्द्र विन्दु, मोक्ष का द्वार, यहीं है जादूई नगरी, त्रिया राज्य, दो अद्भुत रहस्य के साथ”

  1. इस 2023 में अंबुआची मेला कामाख्या शक्तिपीठ पर 22 जुन से शुरू हो रहा है 26 जुन से मंदिर का कपाट खुलेगा और दर्शन पूजन होगा।

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  2. आज 22 जुन से अम्बुआची मेला शुरू हो गया मंदिर का कपाट बंद श्रद्धालुओं का तांता लगा रहेगा चार दिवसीय उत्सव पर पूरे असम क्षेत्र में बना रहेगा कोई अन्य उत्सव नही होगा। योनी रूपा शक्तिपीठ कामाख्या देवी की जय हो 🙏🙏🚩🚩

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  3. आज 22 जुन से अम्बुआची मेला शुरू हो गया मंदिर का कपाट बंद श्रद्धालुओं का तांता लगा रहेगा चार दिवसीय उत्सव पर पूरे असम क्षेत्र में बना रहेगा कोई अन्य उत्सव नही होगा। योनी रूपा शक्तिपीठ कामाख्या देवी की जय हो 🙏🙏🚩🚩

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