वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, सत्यवती कौन थी रहस्यमयी गुप्त इतिहास

Amit Srivastav

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प्रेम से शुरू हुआ महाभारत लेखक और रचयिता वेदव्यास, जी हां यहां महाभारत के रचयिता मतलब रचने वाले और लिखने वाले दोनों एक ही पात्र हैं – वेदव्यास, वैसे तो महाभारत की शुरुआत पराशर ऋषि और सत्यवती की प्रेम से ही हुआ। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से गुप्त रहस्यों को उजागर कर रहा हूं जो बहुत ही मार्मिक एवं विचारणीय है। इस गुप्त रहस्य से बहुत सारे लोग अनजान होगें। चौकाने वाली सत्य बात तो यह है – प्रेम से शुरू हुआ महाभारत और यह प्रेम उत्पन्न कब और कैसे हुआ वहां से अपनी लेखनी को हम भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव अपनी कलम को धार दे रहे हैं। तो आईए पहले अठारह पुराणों की रचना करने वाले वेदव्यास जी की उत्पत्ति कैसे हुई बहुत ही गुप्त रहस्य को उजागर कर बता दें, उनके माता पिता कौन थे, जन्म कैसे हुआ, जीवन परिचय सहित कैसे हुए महाभारत के रचयिता।

वेदव्यास का जीवन परिचय

वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, सत्यवती कौन थी रहस्यमयी गुप्त इतिहास

पराशर वंश “मे उत्पन्न वेदव्यास” – शक्ति के पुत्र पराशर मुनि हुए जो महर्षि वशिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के दृष्टा और ग्रंथकार हैं। ऋषि पराशर के पिता का देहांत इनके जन्म के पूर्व हो चुका था, अतः इनका पालन-पोषण इनके पितामह वशिष्ठजी ने किया था। इनकी माता का नाम अदृश्यंति था, जो कि उथ्त्य मुनि की पुत्री थी। पराशर के पुत्र ही कृष्ण द्वैपायन- अर्थात वेदव्यासजी हैं, जिन्होंने महाभारत लिखी थी। महाभारत सहित अठारह ग्रंथों को भी वेदव्यास ने लिखा है। वेदव्यास सात अमर विभूतियों मे से एक माने जाते हैं। यहां यह तो मालूम हो गया कि वेदव्यास पराशर वंश मे जन्म लिए थे इनकी माता कौन थी अब इस रहस्य को आगे जानिए।

वेदव्यास की माता का नाम:

देव लोक कि लंपट अप्सरा ब्रह्माजी द्वारा श्रापित होकर मछुआरे के यहां जन्म पाईं, जो यहां पृथ्वीलोक पर भी लंपट स्वभाव कि सुन्दर युवती थी। जिसका नाम था सत्यवती, परिवार के भरण-पोषण मे पिता मछुआरे की सहयोगी थी। नाव खेविका के साथ साथ मछली पकड़ने कि कला से परिपूर्ण थी, लंपट सत्यवती ने अपने कुंवारेपन मे पराशर मुनि से अवैध सम्बन्ध बना गर्भ धारण कर वेदव्यास को जन्म दिया। इस प्रकार वेदव्यास के माता का नाम सत्यवती पिता पराशर मुनि हैं। वेदव्यासजी की माता सत्यवती के रुप जाल मे फंस हस्तिनापुर महाराज शांतनु ने अपनी पहली पत्नी गंगा के चले जाने पर विवाह किया। प्रेम से शुरू हुआ महाभारत।

वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ:

वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, सत्यवती कौन थी रहस्यमयी गुप्त इतिहास

सत्यवती एक दिन नदी किनारे पराशर मुनि को देख उन्हे अपने त्रिया जाल मे बांध प्रेम करने लगी। सत्यवती के रुप जाल मे फंसे पराशर मुनि अपनी सूझबूझ खो कुंवारी सत्यवती के साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किया। फलस्वरूप कुंवारी सत्यवती गर्भवती हो गई। धीरे-धीरे समय पूरा हुआ और सत्यवती एक पुत्र को जन्म दी। पराशर मुनि से सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न अवैध संतान को जंगल मे छोड़ दिया गया, जिसका परवरिश साधु-संतों ने किया। सत्यवती को अपने पुत्र से मोह और माता पुत्र का गुप्त सम्बन्ध बना रहा।

वेदव्यास की मृत्यु कैसे हुई:

वेदव्यास की मृत्यु नही हुई। वेदव्यासजी सात चिरंजीवी मे से एक हैं। वेदव्यासजी पर विघ्नहर्ता गणेश जी की कृपा बनी रही जिसके फलस्वरूप महाभारत काव्य की रचना गणेश गुफा के पास अपने व्यास गुफा मे किए थे। महाभारत सहित अठारह ग्रंथों को वेदव्यास ने लिखा है।

इस गुप्त रहस्यों को एकत्रित यहां विस्तार पूर्वक जिसमें तमाम प्रश्नों का उत्तर समाहित होगा, का शुरुआत करते हैं।

पराशर ऋषि और सत्यवती की प्रेम कहानी सहित हस्तिनापुर महाराज शांतनु

वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, सत्यवती कौन थी रहस्यमयी गुप्त इतिहास

आदिवासी से हुई राजरानी सत्यवती, इन नामों से भी जाना जाता है। मत्स्यगंधा, गंधवती, योजनगंगा, अद्रिका, अच्छोदा सत्यवती अपने पिछले जन्म में देवलोक की लंपट अप्सरा थी। कुछ कारण वश ब्रह्माजी ने पृथ्वीलोक पर मछुआरे के यहां जन्म लेने का श्राप दे दिया। श्रापित अप्सरा मछुआरे के यहां एक मत्स्य मतलब मछली के पेट से जन्म पाकर मत्स्यगंधा नाम पाईं इसके शरीर से मछली के जैसा गंध आता था जो बहुत सुन्दर थी, पराशर ऋषि सुन्दर रुप को देखकर मोहित हो गये और मत्स्यकन्या अपने त्रिया जाल मे पराशर ऋषि को बाध शारीरिक संबंध बनाने लगी, युवा अवस्था आते ही लंपट युवती हुईं। जिसका नाम सत्यवती पड़ा। पराशर कैसे आये मत्स्यगंधा के त्रिया जाल में? एक नदी किनारे अपने कार्य मे लगी हुई थी कि उसकी नज़र ऋषि पराशर पर जा पड़ी। सत्यवती ऋषि पराशर को अपने त्रिया जाल मे बाध कर प्रेम करने लगी। सत्यवती के रुप जाल मे पराशर मुनि को फंसते देर नही लगा। धीरे-धीरे प्रेम शारीरिक सम्बन्ध मे परिवर्तित हो गया। फलस्वरूप सत्यवती गर्भवती हो गई। धीरे-धीरे समय व्यतीत हुआ और एक सुन्दर सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति हुई। लोकलाज के कारण पुत्र को जंगल मे छोड़ दिया गया। जिसकी परवरिश साधू-संतो ने किया। साधुओं की मंडली मे पले-बढ़े कृष्ण द्वैपायन- अर्थात वेदव्यासजी शुरू से ही ज्ञान से परिपूर्ण थे। ऋषि पराशर हस्तिनापुर महाराज शांतनु के पुरोहित थे। शांतनु एक दिन गंगा किनारे गये, जहां एक सुन्दर युवती को देखकर मोहित हो गये। वो स्यम् गंगा थी। शांतनु ने गंगा से विवाह का प्रस्ताव रखा। गंगा महाराज शांतनु का प्रस्ताव इस वचन के साथ स्वीकार कि हमारे मार्ग मे बाधा उत्पन्न नही करेगें। मै जो करूंगी अपनी स्वेच्छा से करुंगी। शांतनु गंगा को अपनी पत्नी रुप में स्वीकार किया। धीरे-धीरे गंगा के गर्भ से शांतनु के पुत्र होते गए और उन पुत्रों को गंगा अपने जल मे प्रवाहित करती जा रही थी। वचन के अनुसार महाराज शांतनु गंगा को रोक पाने मे असमर्थ थे। क्योंकि जब गंगा को अपनी मर्जी करने से रोका जाता, गंगा शांतनु से दूर चली जाती। सात पुत्रों को मां गंगा अपने जल में प्रवाहित कर चुकी थी। आठवें पुत्र के रूप मे भीष्म पितामह कि उत्पत्ति हुई। इस बार महाराज शांतनु अपना धैर्य खो दिए और गंगा को पुत्र जल में प्रवाहित करने से रोक दिए। गंगा आठवें पुत्र को छोड़कर शांतनु से दूर चली गई। अब महाराज के पास कोई रानियाँ नही थी। पुत्र को लेकर रहने लगे।

वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, सत्यवती कौन थी रहस्यमयी गुप्त इतिहास

पराशर मुनि ने बताया एक बहुत सुंदर युवती सत्यवती है उसे आप देखकर मोहित हो जाएंगे। महाराज शांतनु नदी पार जाने के लिए नाव की सवारी कि, नाव खेविका के रूप में सुंदर युवती को देख शांतनु मोहित हो गए। सत्यवती ने महाराजा शांतनु के रूप मे परिचय जान प्रेम भाव से प्रस्तुत हुई। फिर शांतनु सत्यवती से विवाह कर अपनी महारानी बना लिए। सत्यवती के गर्भ से शांतनु के दो पुत्र हुए। जिनका नाम चित्रांगद और विचित्रवीर्य पड़ा।

शांतनु के मृत्यु के बाद अविवाहित चित्रांगद युद्ध मे मारा गया। अभी विचित्रवीर्य का भी विवाह नही हुआ था। महारानी सत्यवती चिंतित थी। सौतेले पुत्र भीष्म पितामह ने अपनी सौतेली माता सत्यवती से चिंता का कारण जान, क्षत्रिय वंशिय कन्या कि तलाश मे निकल रहे थे, कि पता चला काशी नरेश कि तीन पुत्रियों का स्वयंवर रखा गया है। भीष्म पितामह युद्ध कला मे निपुण थे। हस्तिनापुर से काशी के लिए प्रस्थान किया। स्वयंवर कार्यक्रम मे एक से बढ़कर एक पराक्रमी राजा महाराजाओं की उपस्थिति थी। भीष्म पितामह सभी को पराजित कर काशी नरेश कि तीनों पुत्रियों का हरण कर हस्तिनापुर सौतेली माता सत्यवती के समक्ष प्रस्तुत हुए और विचित्रवीर्य से विवाह कराने को कहा। काशी नरेश कि बड़ी पुत्री अम्बा पहले से ही राजा शाल्व से प्रेम करती थी, जिसका वरण स्वयंवर मे करने वाली थी। अम्बा ने हस्तिनापुर जाकर किसी अन्य से विवाह करने के लिए इन्कार कर दिया तब भीष्म पितामह अम्बा को राजा शाल्व को प्रस्तुत किया। राजा शाल्व ने अपहरण की गई प्रेमिका अम्बा से विवाह करने से इंकार कर दिए। अम्बा जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम कि शरण मे चली गई। जिसे न्याय चाहिए था और भीष्म पितामह से बदले की आग में जलने लगी। काशी नरेश की दूसरी पुत्री अंबिका व तीसरी अंबालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ कर दिया गया। कुछ समय पश्चात विचित्रवीर्य की अकाल मृत्यु हो गई। अब हस्तिनापुर राज्य का कोई उत्तराधिकारी नही था।

वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, सत्यवती कौन थी रहस्यमयी गुप्त इतिहास

चिंतित सत्यवती पराशर मुनि से उत्पन्न अपने पुत्र ऋषि वेदव्यास को बुलाई और अपनी इच्छा व्यक्त की दोनो विधवा बहु अंबिका और अंबालिका के साथ रहकर पुत्र उत्पन्न करने की जो हस्तिनापुर का वारिस हो सके। सत्यवती की इच्छा से वेदव्यास के कक्ष में अंबिका, अम्बालिका के साथ दासी भी रहने लगी थी। जब अंबिका से वेदव्यास मिले, अंबिका जटाधारी, दाढ़ी वाले वेदव्यास को देखकर अपनी आंखें बंद कर लीं जिसके फलस्वरूप एक अंधे पुत्र का जन्म हुआ। जब वेदव्यास अम्बालिका को गर्भ धारण कराने के लिए मिले अम्बालिका डर से पीली पड़ गई थी जिसके कारण डरपोक रोग ग्रस्त अल्पायु पुत्र हुआ, वहीं दासी निडर थी जिससे सुयोग्य पुत्र उत्पन्न हुआ। इस प्रकार वेदव्यास और अंबिका से धृतराष्ट्र, वेदव्यास अम्बालिका से पांडू, वेदव्यास और दासी से विदुर की उत्पत्ति हुई। सत्यवती पुत्र वेदव्यास अपना कार्य सम्पन्न कर अपने आश्रम चले गए। अंबिका अम्बालिका और दासी ने अपने अपने पुत्रों को पाल-पोस शिक्षा-दीक्षा दे, दिला युवा अवस्था प्रदान की। गांधार नरेश कि पुत्री गांधारी से धृतराष्ट्र, राजा कुंतीभोज की पुत्री कुंती जो कृष्ण की बुआ थी व माद्री से पांडू, दासी पुत्र विदुर की पत्नी यदुवंशी थी जिसका नाम सुलभा था, विवाह सम्पन्न हुआ। पांडु का वंश नहीं चला। कुंती को ऋषि दुर्वासा से मंत्रोच्चार सहित वरदान प्राप्त था कि जिसका स्मरण करोगी उससे पुत्र की प्राप्ति होगी। दुर्वासा के मंत्र कि सत्यता जानने के लिए कुंती ने अपने कुँवारे पन मे ही सुर्य का स्मरण कि थी जिससे सुर्य पुत्र कर्ण की पैदाइश हुई। लोकलाज के डर से कर्ण को नदी में बहा दिया गया था। जिसकी मित्रता दुर्योधन से हुई और महाभारत युद्ध मे अपने मित्र की तरफ़ से भाईयों से युद्ध किया था। पांडु के मृत्यु के बाद धृतराष्ट्र राज्य का कार्यभार सम्भाले तब कुंती से उत्पन्न पुत्र राज्य का कार्यभार सम्भालने के अवस्था में नही थे। धृतराष्ट्र से गांधारी को सौ पुत्रों की उत्पत्ति हुई। जब कुंती पुत्र अपना राज्य लेने आये धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन एक रत्ती भूमि भी देने को तैयार नहीं था। महाभारत कथा मे युद्ध का कारण दुर्योधन बताया गया है जबकि मेरा मानना है जैसी करनी वैसा फल आज नहीं तो मिलेगा कल वाली कहावत महाराज शांतनु और लंपट सत्यवती से ही शुरू हो चुका था। प्रेम सम्बंध से शुरू हुआ था महाभारत कि नीव पड़ना किन्तु दुर्योधन को बताया गया है महाभारत का कर्णधार। कुछ पीढ़ी पीछे चलकर देखने से स्पष्ट होता है, लंपट सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न होने वाले महाभारत के कर्णधार हुए। वंशावली पर गहन मंथन करने वाले हमारे इस कथन की सत्यता को समझ सकते हैं।
अब आगे बढ़ते हैं अम्बा और भीष्म की तरफ़। शिव जी की घोर तपस्या कर वरदान मांग अपने को अग्नि मे समर्पित कर महाराज द्रुपद के यहाँ जन्म ली। काशी नरेश कि ज्येष्ठ पुत्री अम्बा अब द्रुपद के यहाँ न पुत्र के रूप मे न पुत्री के रूप में बल्कि नामर्द थी। जिसका नाम शिखंडी था। कुरुक्षेत्र महाभारत युद्ध मे अपने पिता द्रुपद भ्राता धृष्टद्युम्न के साथ अर्जुन के रथ पर दसवें दिन सवार हो भीष्मपितामह के मृत्यु का कारण बनी। इस प्रकार अम्बा ने अपने प्रेमी शाल्व से अलग करने का भीष्मपितामह से बदला ली थी।
अर्जुन कि वाण से भीष्म मृत्यु को प्राप्त हुए। जबकि भीष्म को इच्छामृत्यु का वर्दान प्राप्त था। भीष्म को वाणो की सैंया मिलना भी उनके कर्मों का फल था। भीष्म ने कृष्ण से पूछा इस तरह के दुख का कारण क्या हम तो अपने सौ जन्मों को देख चुका ऐसा कोई पाप कर्म नही जिसका फल मुझे मिल रहा है, तब कृष्ण ने कहा थोड़ा और पीछे जाकर देखिए तब भीष्म ने देखा खुद एक राजा थे। काफिला चल रहा था रास्ते में एक सर्प था जो हट नही रहा था। सिपाहियों ने आकर कहा उसपर राजा ने कहा सर्प को उठाकर झाड़ी में फेक कर आगे बढ़ो। सिपाहियों ने सर्प को झाड़ी में फेक दिया झाड़ी काटों से भरा था सर्प उसमे बचने का जितना प्रयास करता कांटों में फंसता जाता। काटों मे फंसा सांप तड़प-तड़प जान दी उसी कर्म का फल भीष्म पितामह ने वाणों की सैंया रुपी कांटे मे फंसकर भोगा था।
महाभारत समाप्ति के बाद अर्जुन का पुत्र बब्रुवाहन ने अपने पिता अर्थात अर्जुन का सिर काट दिया। जिससे अर्जुन मृत्यु को प्राप्त हुए। तब गंगा जी बहुत जोर-जोर से हंसी थी। गंगा का अर्जुन से प्रतिशोध वहीं पूरा हुआ। गंगा अर्जुन को अपने पुत्र भीष्म का शत्रु मानने लगी थी जब कृष्ण का साथ पाकर शिखंडी के सहायता से अर्जुन ने गंगा पुत्र भीष्म को वाण मारा था।
इस तरह देखा जाए तो हस्तिनापुर महाराज शांतनु के वंशजों ने नही बल्कि पराशर मुनि व मछुआरे के घर जन्मीं लंपट सत्यवती के पुत्र वेदव्यास जी महाभारत लिखे व रचें, और इन्ही के वंशजों ने महाभारत लड़ा था। पराशर मुनि के वंश की एक शाखा महाभारत के महारथी भी हैं। पराशर ऋषि ने अनेक ग्रंथों की रचना की जिसमें से ज्योतिष के ऊपर लिखे गए उनके ग्रंथ बहुत ही महत्वपूर्ण रहे।ज्योतिष के होरा, गणित और संहिता तीन अंग हुए जिसमें होरा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। होरा शास्त्र की रचना महर्षि पराशर के द्वारा हुई है।

वेदव्यास के पुत्र का नाम:

वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, सत्यवती कौन थी रहस्यमयी गुप्त इतिहास

वेदव्यास की पत्नी आरुणी से उत्पन्न वेदव्यास के पुत्र शुकदेव जी हुए जिन्होंने श्रीमद्भागवत गीता लिखा। वेदव्यास का अंबिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पांडु, और दासी से विदुर जी का जन्म हुआ।

इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि महाभारत महाराज शांतनु के वंशजों से नही बल्कि महाभारत के लेखक वेदव्यास जी पिता पराशर ऋषि की कुवांरी प्रेमिका माता सत्यवती से उत्पन्न वंशजों के बीच हुआ। महाराज शांतनु तो बस सत्यवती से चित्रांगद व विचित्रवीर्य को उत्पन्न किए, चित्रांगद के मृत्यु बाद, विचित्रवीर्य का भीष्मपितामह ने काशी नरेश की पुत्रियों का अपहरण कर मात्र विवाह कर दिया। जो विचित्रवीर्य अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया फिर त्रियाचरित्री सत्यवती अपने नाजायज़ पुत्र वेदव्यास से अपनी दो बहुओं का गर्भ धारण कराई, उसी के वंश मे अंधे धृतराष्ट्र कि गांधारी पुत्रों और रोगग्रस्त पांडु की ऋषि दुर्वासा को प्रसन्न कर वरदान पाने वाली पत्नी कुन्ती के स्मरणीय उत्पन्न पुत्रों ने महाभारत लड़ी। गांधारी और कुन्ती की दास्तान भी हैरान कर देने वाली है। इस दास्तान को कभी आगे लेख मे।

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