महाभारत कथा मे मुख्य पात्र पांच पांडवों की कथा आपको पता ही है। पांच पांडवों मे एक नाम आता है, भीमसेन जी का इनकी बहादुरी की कथा से सभी परिचित हैं। हजारों हाथियों का बल, तमाम राक्षसों का वध, इस सब को लिखने से यह आर्टिकल बड़ा हो जायेगा। तो चलते हैं आगे। अज्ञातवास के समय। जब पांच पांडव अज्ञात वास भोग रहे थे, माता कुंती ने कहा भीम भोजन पकाने के लिए लकड़ी की व्यवस्था कर लाओ। भीमसेन जंगल में लकड़ी लाने गये वो जंगल था, काम्यक वन तिरिया मारकोट का घना जंगल जो दैत्य राज हिडिंब के राज्य में था। दैत्य राज हिडिंब महाकाली का भक्त था। जो अपनी देवी के नाम पर बली देता व बली स्वरूप बधी ब्यक्ति या जानवरों को प्रसाद रूप में भोजन कर लेता था। हिडिंब को मनुष्य का मांस बहुत प्रिय था। जब उसके सीमा में कोई मनुष्य आता उसे गंध से पता चल जाता था। जब भीमसेन हिडिंब के सीमा में प्रवेश कर गए हिडिंब अपनी बहन हिडिम्बा को बुलाकर कहा जाओ मनुष्य आया है उसे पकड़ लाओं। हिडिम्बा जंगल के तरफ़ मनुष्य को पकड़ने चली जब भीमसेन को देखी वो मोहित हो मन ही मन प्रेम कर बैठी। हिडिम्बा को लगा वो सुन्दर विशाल हष्ट-पुष्ट मनुष्य शायद मेरे प्रेम प्रस्ताव को इस रुप में स्वीकार न करे। हिडिम्बा मां कामाख्या की भक्त त्रिया राज्य जादूई नगरी कि सिख थी, तंत्र मंत्र कि विद्या में निपुण थी। अपनी तंत्र विद्या से अपने दैत्य रुप को बदल सुन्दर रुपवती युवती का रुप ले, भीमसेन के सम्मुख प्रेमालाप के लिए प्रस्तुत हुई। भीमसेन की नज़र जब सुन्दर युवती पर पड़ी, भीमसेन युवती के प्रेम जाल में फंस गये। हिडिम्बा भीमसेन को जंगल के मध्य ले जाकर अपने प्रेम का प्रस्ताव रखा हिडिम्बा पर मोहित भीमसेन ने प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार कर अपनी मां से आशिर्वाद और भाईयो से मिलाने ले जाने को कहा। हिडिंब मनुष्य रुप में भीमसेन को जल्द अपनी देवी को बली दे आहार बनाने के लिए बेचैन था। देखते देखते हिडिंब खुद ही जंगल में चला आया तो देखा हिडिम्बा उस मनुष्य से प्रेमालाप कर रही थी। क्रोधित हिडिंब ने अपनी बहन को सचेत करते कहा अब इस मनुष्य को मै खुद ही अपनी शिकार बनाऊँगा। हिडिम्बा ने कहा भाई इस मनुष्य को अपने पति रूप में वरण कर चूकी हूं अब इस हमारे पती के प्रति अपने विचारों को बदल हम दोनों के सफल जीवन का आशिर्वाद दे दो। हिडिंब को यह रिश्ता स्वीकार नहीं था भीमसेन का वध करने के लिए ब्याकुल था। हिडिम्बा को सावधान कर हिडिंब भीमसेन पर अपने प्रहार शुरू कर दिया। अन्य दैत्य दानवों कि तुलना में हिडिंब बहुत बड़ा बलवान था। अपने पति धर्म का निर्वाह करती हिडिम्बा भीमसेन को कमजोर देखकर अपने भाई के वार को रोकते हुए अपने भाई हिडिंब का वध कर दी। फिर भीमसेन हिडिम्बा को ले कर अपने शिविर में आये मां कुन्ती से हिडिम्बा की प्रसन्सां कर पत्नी रुप में स्वीकार करने कि बात बताई मा कुन्ती ने अखंड सौभाग्यवती भव का आशिर्वाद ले भीमसेन को हिडिम्बा के साथ माता कुंती ने विदा किया। हिडिम्बा के महल मे भीमसेन अज्ञातवास का कुछ समय बिताये, उचित समय आने पर हिडिम्बा भीमसेन से गर्भ धारण कर माता कुंती के आदेशानुसार विदा कर दी।

घटोत्कच किसका पुत्र था:
एक वर्ष पश्चात एक दैत्य रुपी माता हिडिम्बा और मनुष्य रुप भीम के सम्बन्ध से पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसके सिर पर केश नही था। नाम पड़ा घटोत्कच अर्थात, घट – हाथी का मस्तक + उत्कच मतलब केशहीन, घटोत्कच। घटोत्कच का लालन-पालन माता हिडिम्बा ने किया। हिडिम्बा घटोत्कच को सम्पूर्ण विद्याओं से परिपूर्ण कर दी। एक दिन घटोत्कच नित्य नियम के अनुसार माता के पूजा मे बली देने के लिए जंगल भ्रमण मे कुछ ब्राह्मणों को देख एक को ले जाने की बात कही वहां पिता और तीन पुत्रों मे अपने अन्य कि जान बचाने की सोच अपने जाने के लिए तैयार का वादविवाद चल रहा था। उसी समय भीमसेन की नज़र पड़ी, भीमसेन वहां पहुंच उन ब्राह्मणों का जान बचाने की कोशिश कर खुद बली के लिए चलने को तैयार हो गए। घटोत्कच भीमसेन को अपनी मुठ्ठी के ले आकाश मार्ग से अपने महल पहूॅच गया। हिडिम्बा ने भीमसेन की यह दुर्दशा देख पुत्र पर नाराजगी जताई और परिचय दे क्षमा मांगने के लिए कही। घटोत्कच अपने पिता को पाकर खुश हुआ और क्षमा माँगा। भीमसेन ने पत्नी हिडिम्बा को बली चढ़ाने के लिए मना कर सात्विक विचार जीवन जीने की सलाह दी। अज्ञातवास समाप्त होने की बात बता भीमसेन हिडिम्बा के महल से विदा ले चले आये।


इस प्रकार यह सिद्ध है- दैत्य राज हिडिंब की बहन व कुंती पुत्र भीम की पत्नी हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच था। आगे भाग मे पढ़िए घटोत्कच की पत्नी कौन और कैसे हुई, पुत्र कौन था। घटोत्कच के तीन पुत्रों मे एक बर्बरीक जो खाटू श्याम के रूप में इस कलयुग जनकल्याण मे हैं का सम्पूर्ण गुप्त रहस्य।
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