india vs bangladesh: की वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन, भारत पर क्या हो सकता है असर- एक समग्र विश्लेषण

Amit Srivastav

Updated on:

बांग्लादेश, जिसे पहले “East” पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था, अपनी नींव धार्मिक आधार पर रखी गई थी। 1971 में भारत ने उसे स्वतंत्रता दिलाई। उस समय, धार्मिक एकता को राष्ट्रीय पहचान का आधार माना गया था। लेकिन वर्तमान विश्व व्यवस्था में यह दृष्टिकोण बदल रहा है। आज, कई देशों में लोकतंत्र और कट्टरता के नाम पर तानाशाह उभर रहे हैं। यह दिखाया तो जाता है कि यह देश लोकतांत्रिक हैं, लेकिन असल में लोकतंत्र की सच्चाई से यह कोसों दूर हैं। धार्मिकता के नाम पर जनता को भ्रमित किया जा रहा है और लोकतांत्रिक मूल्यों को नजरअंदाज किया जा रहा है।

अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार और विकास:

दुनिया के विभिन्न देशों में अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार का असर उनके विकास पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। कुछ देश जैसे अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, और ब्रिटेन- US, CANADA, AUSTRALIA, SOUTH AFRICA, UK, rainbow countries  “रेनबो कंट्रीज” कहे जाते हैं क्योंकि यहाँ विभिन्न समुदायों के लोग उच्च पदों पर आसीन हैं। इसके विपरीत, जहाँ अल्पसंख्यकों के प्रति असहिष्णुता का व्यवहार होता है, वहां विकास संभव नहीं है।
बांग्लादेश Bangladesh के संदर्भ में, यदि अल्पसंख्यकों के प्रति असहिष्णुता जारी रहती है, तो अगले दो-तीन दशकों में वहां निवेशकों का आना कठिन हो सकता है। यह एक गंभीर समस्या है जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।

india vs bangladesh – भारत का लोकतंत्र: एक आदर्श

भारत का लोकतंत्र एक उदाहरण है जहाँ पढ़े-लिखे वर्ग और आम जनता दोनों में इतनी समझ है कि प्रदर्शन में हिंसा न हो। किसान आंदोलन के समय सेना को बुलाने का प्रयास किया गया था, लेकिन सेना ने साफ़ कर दिया था कि यह एक सिविल मुद्दा है और इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। यह एक लोकतांत्रिक जवाब था, जिसने सरकार को यह समझने पर मजबूर किया कि केवल राजनीतिक फायदे के लिए लोकतांत्रिक मुद्दों को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। वर्तमान समय में जब Bangladesh की सीमाओं के अंदर शेख हसीना द्वारा देश की स्थिति बिगड़ने पर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे भारत में पनाह लिया गया, और बंग्लादेश में गृह युद्ध छिड़ गया, हिन्दू बहन-बेटियों की इज्जत लूटी जाने लगी, हिन्दू मंदिरों को तोड़ दिया गया। हिन्दूओं के ऊपर अत्याचार पर अत्याचार होने की खबरें आने लगी, तो बंग्लादेश की सीमा से सटी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, बंग्लादेश की मुद्दे पर हमे या हमारे सांसदों विधायकों को कुछ नहीं कहना, देश का मुद्दा है, देश के प्रधानमंत्री जैसा निर्णय लेगें सहस्र स्वीकार कर वैसा ही किया जायेगा। विपक्ष के नेतृत्व वाली बहुदलीय जन प्रतिनिधियों ने भी इस मुद्दे पर अब तक कुछ वक्तव्य नही दिया जो भी करना हो देश के प्रधानमंत्री निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। यह एक एकता का सराहनीय संदेश है।

india vs bangladesh: की वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन, भारत पर क्या हो सकता है असर- एक समग्र विश्लेषण

राजनीतिक उद्देश्य और लोकतांत्रिक मुद्दे:

आज भी समय नहीं बिगड़ा है, लेकिन यह अंदाजा लगाया जा सकता है अगर राजनीतिक उद्देश्य साधने के लिए लोकतांत्रिक मसलों को अनदेखा किया गया तो एक बुलबुला यहाँ भी बन सकता है। यहां भारत की सरकारों में भी तानाशाही देखने को मिलता रहा है। हठ्ठी मढ्ढी पिचास की तरह सरकारें ठान कर तानाशाही दिखाती हैं, जब जनता अपनी समस्याओं अपनी मांगों को लेकर शाति पूर्वक धरना-प्रदर्शन के माध्यम से सरकार तक पहुंच जाती हैं। प्रदर्शनकारियों कि बातों को ऐसे नज़र अंदाज करते देखा जाता है जैसे किसी प्रकार की हमदर्दी ही न हो। उत्तर प्रदेश में लाखों की संख्या में शिक्षा मित्र अपनी मांगों को लेकर बार-बार शाति पूर्वक धरना-प्रदर्शन करते देखे गए हैं अगर वो अपनी मांग को लेकर वैसे ही बांग्लादेशियों के तरह उग्र हो जाते तो लाखों परिवारों से पहुँचने वाले शिक्षा मित्रों को रोक पाना मुश्किल हो सकता है, जब प्रदर्शन कारी उग्र होते हैं तो आग में धी डालने वाले सहयोगी भी मिल सकते हैं फिर तानाशाही और हठ्ठी होने का परिणाम बंग्लादेश जैसा भी हो सकता है सत्ता उखाड़ फेको फिर गृह युद्ध। किसी भी प्रदर्शनकारियों से बातचीत करना ही एकमात्र रास्ता है। समस्याओं पर उचित विचार कर मांगों को मानना बुद्धिजीवी सरकार का सही निर्णय। सामाजिक बदलाव समय की मांग होते हैं, लेकिन बदलाव अपने अनुसार करना समझदारी नहीं है। किसी को बिना कारण जेल में डाल देना भी उचित नहीं है।

चीन का उदय और भारतीय सतर्कता:

चीन चारों ओर से खुद को मजबूत कर रहा है। उत्तर-पूर्व में अरुणाचल, लद्दाख़ और बाकी पड़ोसी मुल्क उसके आर्थिक सहयोगी बन चुके हैं। इस स्थिति में भारत को सतर्क रहना आवश्यक है। केवल ऐप बैन करके पीठ नहीं थपथपाई जा सकती है क्योंकि वैश्विक स्तर पर दोनों देशों की बड़ी मार्केट हैं।
भारत को अपनी आंतरिक और बाहरी नीतियों में सामंजस्य बिठाना होगा ताकि वह अपनी संप्रभुता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कर सके। बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना भी महत्वपूर्ण होगा ताकि क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे और विकास की संभावनाएं बढ़ें। आज बांग्लादेशी हिन्दू अपनी जान बचाने की खातिर भारत के सीमावर्ती इलाकों के पास बांग्लादेश में डेरा डाल भारत आने कि कोशिश में लगे हुए हैं। पहले रोहिगिया मुसलमान भारत में आकर बसे अब शायद हिन्दूओं की बारी है, जो भारत आकर बसे।
बांग्लादेश का भविष्य उसकी नीतियों और अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार पर निर्भर करता है। भारत को भी अपने लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत रखने के लिए सजग रहना होगा। क्षेत्रीय स्थिरता और विकास के लिए जरूरी है कि धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों को बुद्धिमानी से संभाला जाए, जनहित के मुद्दों पर विचार किया जाए आये दिन राजनीतिक लाभ लेने की खातिर आरक्षण का खेल खेलना सत्ताधारी पार्टियों के लिए उचित नहीं है जिस दिन आरक्षण से तंग युवाओं का गुस्सा फूटा भारत में भी बंग्लादेश जैसी स्थिति बनते देर नही लगेगी इस आर्टिकल के माध्यम से सरकार को यह सलाह देना लेखक का धर्म व कर्म है विवेकपूर्ण होकर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की जाए।

भारत सरकार क्यों नहीं कर रही है बांग्लादेशी हिंदुओं की मदद

मुस्लिम देश में अल्पसंख्यक के रूप में हिंदुओं के ऊपर अत्याचार होने की घटनाएं कोई आम नहीं है यह घटना कई बार पाकिस्तान अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश में देखने को मिली है। ताजा घटनाक्रम में जहां बांग्लादेश में तख्ता पलट बताया जा रहा है शेख हसीना वहां की प्रधानमंत्री अपने देश को छोड़कर भारत की शरण में आ गई हैं। ऐसी परिस्थितियों में बांग्लादेश में लोकतंत्र लगभग समाप्त हो चुका है, वहां के कट्टरपंथी मुस्लिम हिंदुओं को सताना शुरू कर दिया है। आखिर भारत सरकार का क्या कदम होगा वहां के हिंदुओं को बचाने के लिए यह एक पहेली की तरह सामने नजर आ रही है दरअसल मीडिया में बांग्लादेश में हो रही हिंदुओं के ऊपर हिंसक हमले को लेकर चिंता जताई जा रही है अलग-अलग खबरें भारत और दुनिया की मीडिया में दिखाई जा रही है। ‌ ऐसे में देखा जाए तो क्या परिस्थितियां बनती है कि भारत सरकार वहां के हिंदुओं के हित में शक्त कदम उठाए, इसके बारे में हम यहां पर आपको कुछ जानकारी विषय विशेषज्ञ के हवाले से देने जा रहे हैं।

Button

बांग्लादेश के हिंदू नेता गोबिंदा प्रमाणिक ने एक साक्षात्कार में बताया कि जो हिंसा हो रही है, वहां अवामी लीग के नेताओं पर लोगों का गुस्सा टूट रहा है। जो हमले हो रहे थे वह अवामी लीग के नेताओं के ऊपर हो रहे थे। अवामी लीग के हिंदू और मुसलमान नेताओं के घरों पर हिंसा हो रही थी लेकिन अब स्थिति संभाल ली गई है। शेख हसीना के इस्तीफा के बाद जब स्थिति हिंसक हो गई तो लोगों का गुस्सा सत्ता पक्ष के ऊपर था इसलिए इस तरह की घटनाएं बंगलादेश के सत्ता पक्ष के नेताओं हिंदुओं और मुसलमानों पर हमले हो रहे थे लेकिन निर्देश दिया गया है कि इस तरह के हमले न हो इसलिए बांग्लादेश की हिंदुओं की सुरक्षा के लिए वहां पर गार्डिंग की जा रही है। ‌ इधर मीडिया में जो खबरें हिंदूओं पर हिंसा होने की आ रही है। वह मीडिया का प्रोपेगेंडा है।‌

राजनीतिक घटनाक्रम को अगर समझें तो आप पाएंगे कि बांग्लादेश में वहां के मुस्लिम कट्टरपंथी अल्पसंख्यक हिंदुओं पर जुल्म उठा रहे हैं। ‌आपको बता दे कि अवामी लीग राजनीतिक पार्टी को बंद कर दिया गया है। वहीं JNP और घटक दल बांग्लादेश में आतंक मचाए हुए हैं। एक तरह से उनकी सोच कट्टरपंथी वाली है। हिंदुओं के खिलाफ वहां जो घटनाएं हिंसक खबरों में आ रही है वह बेहद गलत और सर्वनक है। ‌लेकिन भारत की कूटनीति सफल होते हुए नजर नहीं आ रही है। ‌खुले मंच में भारत को वहां पर हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाहिए। जैसे एक वक्त था इज़राइल अपनी आवाज उठाई थी। ‌

अब सवाल उठता है कि अगर भारत सरकार बांग्लादेश के हिंदुओं की मदद करें तो वह किस तरीके से कर सकती है। दरअसल वहां पर अब लोकतंत्र नहीं रह गया है ऐसे में बांग्लादेश के हिंदू नागरिक भारत के बॉर्डर के सीमा पर अपने आप को बचाते हुए भारत सरकार से गुहार लगाते हुए भी नजर आ रहे हैं, कि उन्हें शरण दिया जाए। ‌भारत सरकार CAA NRC के तहत बांग्लादेशी हिंदुओं को अपने यहां शरण दे सकती है। ‌ लेकिन सवाल उठता है क्या भारत सरकार ऐसा करेगी जबकि मीडिया की खबरों में इस बात को उठाया जा रहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय वहां पर हिंदू है और उन पर कट्टरपंथी हमला कर रहे हैं ऐसे भी भारत की जिम्मेदारी बनती है कि हिंदुओं की जान बचाएं। ‌

हो सकता इस सवाल का जवाब जल्दी सरकार द्वारा दिया जाना शुरू हो जाए लेकिन खबरों के मुताबिक अभी केवल एक तरह का मीडिया में सवाल ही उठाया जा रहा है जबकि सरकार द्वारा कूटनीतिक प्रयास असफल दिखाई देते हुए नजर आ रहे हैं। ‌

Leave a Comment