ललही छठ पूजा: कथा, विधि-विधान एवं पूजन सामग्री

Amit Srivastav

ललही छठ पूजा जिसे “ललई छठ” या ललही छठी के नाम से भी जाना जाता है। यह ललई छठ पूजा मुख्य रूप से उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मनाया जाता है। ललई छठ पर मां छठी से व भगवान सूर्य देव से आशिर्वाद की कामना की जाती है। यह छठ पूजा विशेष रूप से महिलाओं द्वारा संतान की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए मनाया जाता है। ललही छठ मुख्यतः कृष्ण पक्ष की खष्ठी तिथि को मनाई जाती है, और इसमें व्रत पूजा और कथा का विशेष महत्व होता है।

ललही छठ व्रत का महत्व:

ललही छठ का संबंध हिंदू धर्म की देवी छठी माता से है, इस ब्रत में उगते और डूबते सूर्य को अर्घ भी दिया जाता है, जिसमें सूर्य देव की भी उपासना की जाती है। छठ माता जिन्हें बच्चों की रक्षक और संतान की देवी माना जाता है छठ व्रत में पती की लम्बी उम्र की कामना भी कि जाती है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों के सुख समृद्धि और पती सहित बच्चों की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह पर्व धार्मिक आस्था के साथ-साथ सामाजिक समरसता और पारिवारिक एकता का प्रतीक है।

पूजा की विधि-विधान:

ललही छठ पूजा: कथा, विधि-विधान एवं पूजन सामग्री

1- व्रत की तैयारी:
छठ पूजा से एक दो दिन पहले ही व्रत रखने वाली महिलाएं अपने व्रत की पूरी तैयारी कर लेती हैं। तरह-तरह के पकवान फल मूल चढ़ावे के लिए तैयार की जाती है। व्रतधारी महिलाएं इस दिन शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखती हैं।
2- पूजा का स्थान:
यह छठ पूजा भी कतिकी छठ के जैसे ही छठ स्थान पर होती है जहां छठ स्थान उपलब्ध नही होता वहां घरों में पूजा स्थान या आंगन या खुले स्थान में की जाती है। पूजा स्थल को गेरू और चावल से बने अल्पना या लेप से सजाया जाता है और विधि विधान से पूजा की जाती है। पूजा अपनी आस्था के अनुसार होती है। व्रती महिलाओं को इसकी जानकारी रहती है।
3- स्नान और शुद्धिकरण:
ललही छठ पूजा के के दिन व्रतधारी महिलाएं स्नान करके स्वच्छ नया वस्त्र धारण करती हैं और पूजा स्थान पर पूरी शुद्धता के साथ जाती हैं।
4- पूजा सामग्री की व्यवस्था:
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे कि चावल, पान, सुपारी, नारियल, फल, पुष्प, दीपक, धूप और विशेष रूप से लड़ाई छठ के लिए बनने वाले पकवान तैयार किए जाते हैं। छठ पूजा में अपनी छमता अनुसार जितना सब उपलब्ध हो जाता है सब चढ़ावे के लिए पूजा सामग्री में रखा जाता है।
5- मूर्ति स्थापना और पूजा:
ललही छठ पर्व पर माता शष्ठी की प्रतिमा या फोटो पूजा स्थान पर स्थापित किया जाता है। जहां छठ पूजा स्थान उपलब्ध रहता है वहां स्थान पर ही जाकर पूजा किया जाता है। पूजा स्थान पर व्रतधारी महिलाएं दीपक प्रज्वलित कर मंत्रोचार के साथ पूजा करती हैं और छठ माता को पुष्प फल पकवान धूप-बत्ती आदि अर्पित करती हैं।
6- कथा वाचन:
पूजा के दौरान ललही छठ कथा का वाचन किया जाता है, जिसमें इस छठ पूजा का महत्व और देवी शष्ठी की महिमा का वर्णन होता है।

ललही छठ की कथा:

ललही छठ या हलषष्ठी का व्रत उत्तर भारत में महिलाओं द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस व्रत की महिमा विशेष रूप से संतान के स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि के लिए मानी जाती है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यह व्रत रखा जाता है। इस दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं और हल से जुताई की गई खेत का कोई भी वस्तु का सेवन नहीं करतीं। व्रत की कथा से संबंधित अनेक लोक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा इस प्रकार है।

कथा का प्रारंभ:

पुराने समय की बात है। एक गांव में एक निर्धन ब्राह्मण दंपति रहता था। उनके कई संतानें थीं, लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी कोई भी संतान जीवित नहीं रहती थी। संतान की मृत्यु से ब्राह्मण और उसकी पत्नी अत्यधिक दुखी थे। उनकी निरंतर संतानों की मृत्यु ने उनके जीवन को दुखों से भर दिया था। उन्होंने कई उपाय किए, अनेक व्रत और पूजा-अर्चना की, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला।
एक दिन, एक साधु उस गांव में आया। वह घर-घर जाकर भिक्षा मांगता था। जब वह ब्राह्मण के घर पहुंचा, तो उसने ब्राह्मण की पत्नी को अत्यधिक दुखी देखा। साधु ने उससे दुख का कारण पूछा। ब्राह्मण की पत्नी ने अपनी पीड़ा साधु के सामने रख दी। उसने कहा कि उसके सभी बच्चे जन्म के कुछ समय बाद ही मर जाते हैं, और इसने उसके जीवन को निराशा से भर दिया है।
साधु ने तपस्या के बल पर ब्राह्मण की पत्नी के पिछले जन्म के कर्मों को देखा और उसे बताया कि उसके इस जन्म में हो रही संतानों की मृत्यु का कारण उसके पिछले जन्म का पाप है। पिछले जन्म में वह एक गौ माता थी, और उसने गलती से अपने बछड़े को मार दिया था। इस पाप का फल उसे इस जन्म में अपनी संतान की मृत्यु के रूप में मिल रहा है।
साधु ने ब्राह्मण की पत्नी को हलषष्ठी व्रत करने का परामर्श दिया। उसने कहा कि इस व्रत को करने से उसका पाप मिट जाएगा और उसकी संतानें दीर्घायु होंगी। साधु ने यह भी बताया कि इस दिन महिलाएं हल से जुड़ी कोई भी वस्तु, जैसे गेहूं, चावल, या अन्य अनाज का सेवन नहीं करतीं। केवल गाय के दूध से बने प्रसाद का ही सेवन किया जाता है। साथ ही, व्रत में विशेष रूप से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।
ब्राह्मण की पत्नी ने साधु के कहे अनुसार श्रद्धा से व्रत रखा। उसने पूरे दिन निराहार रहकर पूजा की और भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना की। व्रत के अंत में उसने प्रसाद ग्रहण किया और अपने पाप के लिए भगवान से क्षमा मांगी। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद दिया कि अब उसकी सभी संतानें जीवित रहेंगी और स्वस्थ रहेंगी।
व्रत के बाद ब्राह्मण दंपति के घर एक पुत्र का जन्म हुआ और वह स्वस्थ और दीर्घायु हुआ। इसके बाद जन्म लेने वाली सभी संतानों ने दीर्घायु प्राप्त की। तब से ब्राह्मण की पत्नी ने हर वर्ष यह व्रत विधिपूर्वक करना प्रारंभ कर दिया। इस व्रत की महिमा सुनकर गांव की अन्य महिलाएं भी इसे करने लगीं।
ललही छठ के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। व्रत के दौरान वे हल से जुड़ी किसी भी वस्तु का सेवन नहीं करतीं। विशेष रूप से वे मांस, मछली, हल्दी, तेल, और गेहूं से बनी वस्तुओं का परहेज करती हैं। इस दिन महिलाएं मिट्टी की बनी गउ माता और बछड़े की प्रतिमा की पूजा करती हैं और अपने बच्चों की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।

कथा का संदेश:

इस कथा का संदेश यह है कि कोई भी पाप हमें जीवन में कष्टों का सामना करवा सकता है, लेकिन सच्चे मन से भगवान की आराधना करने से और अपने कर्मों को सुधारने से पापों का नाश हो सकता है। साथ ही, यह ललही छठ व्रत मातृत्व की महिमा और संतान के प्रति माताओं के अटूट प्रेम और समर्पण को दर्शाता है।
7- अर्घ्य और प्रसाद:
पूजा के अंत में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है। ललही छठ प्रसाद मे मुख्यतः ललही छठ पूजा के विशेष पकवान होते हैं।

पूजा सामग्री:

1. पान और सुपारी: पान और सुपारी का विशेष महत्व है, इसे देवी को अर्पित किया जाता है।
2. फल: मौसमी फल जैसे केला, सेब, और नारियल पूजा में अनिवार्य होते हैं।
3. पकवान: इस दिन विशेष पकवान जैसे पूड़ी, कचौड़ी, और हलवा तैयार किए जाते हैं।
4. दीपक और धूप: दीपक और धूप का उपयोग पूजा के दौरान वातावरण को पवित्र बनाने के लिए किया जाता है।
5. चावल और गेरू: अल्पना बनाने के लिए चावल और गेरू का उपयोग किया जाता है।
6. मिट्टी की मूर्ति: देवी शष्ठी की मिट्टी की मूर्ति का उपयोग भी किया जाता है।
ललही छठ पूजा एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है, जिसमें महिलाओं द्वारा अपने परिवार की भलाई और संतान की लंबी उम्र की कामना की जाती है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक एकता को भी बढ़ावा देता है। ललही छठ का विधि-विधान और पूजा सामग्री व कथा हमें प्रकृति और परंपराओं के साथ जोड़े रखते हैं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

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