जानिए लोना चमारी की सिद्धि कैसे करें और पिढ़ुवा प्रश्नोत्तर की अद्भुत तांत्रिक साधना की प्रक्रिया, जहाँ साधक देवी से संवाद कर उत्तर प्राप्त करता है। यह सिद्धि तंत्र, चेतना और आत्मसंवाद का गूढ़ संगम है।
भारतीय तांत्रिक परंपरा में अनेक ऐसी रहस्यमयी साधनाएँ हैं जिनका उद्देश्य केवल अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त करना नहीं, बल्कि अंतःचेतना और ब्रह्मशक्ति के साथ संवाद स्थापित करना भी है। इन्हीं गूढ़ विद्याओं में एक अत्यंत दुर्लभ और रहस्यमयी साधना है — लोनाचामारीन सिद्धि, जिसे साधक वर्ग “पिढ़ुवा प्रश्नोत्तर” के रूप में भी जानते हैं। यह साधना सामान्य दृष्टि से अलौकिक प्रतीत होती है, परंतु इसके भीतर छिपा विज्ञान, चेतना का गूढ़ रहस्य और देवी ऊर्जा का प्रत्यक्ष स्पंदन भारतीय तंत्र की अद्भुत विरासत को उजागर करता है।
यह दैवीय शक्तियों के मार्गदर्शन में चित्रगुप्त वंशज-अमित श्रीवास्तव का कर्म-धर्म लेख साधकों के लिए वेबसाइट amitsrivastav.in पर तंत्र-मंत्र साधना में साधकों के डिमांड पर सुस्पष्ट शैली में, भावनात्मक रूप से तंत्रालोक और विज्ञान की एकरुपता को समायोजित कर लोना चमारी की सिद्धि कैसे करें? और पिढ़ुवा प्रश्नोत्तर विद्या क्या है? विषय पर लिखा गया है।
जो महिला/पुरुष साधकों के लिए स्टेप-बाय-स्टेप उपयोगी जानकारी प्रदान करता है। वृहद जानकारी के लिए देवी प्रेरणा से लिखित पुस्तक प्राप्त करने के लिए भारतीय हवाटएप्स कालिंग सम्पर्क UPI, Google, phones pay नम्बर 07379622843 पर अमित श्रीवास्तव के नाम गुरु दक्षिणा या निर्धारित पुस्तक किमत 521 रूपये भेजकर सम्पर्क किया जा सकता है।
Table of Contents

1. लोनाचामारीन सिद्धि क्या है?
लोनाचामारीन सिद्धि का संबंध प्राचीन कामाख्या, नाथ-संप्रदाय और बंगाल-असम की लोकतांत्रिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। यह साधना देवी तंत्र की उस शाखा का हिस्सा है जो प्रश्नोत्तर विद्या या देवी संवाद विधि कहलाती है।
लोनाचामारीन देवी को शक्ति स्वरूप माना गया है, जो साधक को “दिव्य उत्तर” प्रदान करती हैं। साधक जब पूरी श्रद्धा और साधना-बल से देवी की उपासना करता है, तब उसकी चेतना देवी के स्पंदन से जुड़ जाती है। यह जुड़ाव ही वह बिंदु है जहाँ से प्रश्नोत्तर की ऊर्जा प्रवाहित होती है।
2. पिढ़ुवा प्रश्नोत्तर की रहस्यमयी प्रक्रिया
इस विधि में साधक एक लकड़ी के बने छोटे से गोल टुकड़े, जिसे “पिढ़ुवा” कहा जाता है, का उपयोग करता है। उसके नीचे एक सुपारी, कौड़ी, या शंख का टुकड़ा रखा जाता है। यह संयोग देवी की मूर्ति के समीप या यंत्र के आगे किया जाता है। साधक ध्यान की स्थिति में प्रश्न पूछता है — और कुछ ही क्षणों में पिढ़ुवा धीरे-धीरे घूमना प्रारंभ कर देता है।
यदि पिढ़ुवा दक्षिणावर्त (clockwise) घूमे तो उत्तर “हाँ”, यदि वामावर्त (anticlockwise) घूमे तो “नहीं” माना जाता है। कभी-कभी यह रुक जाता है — जिसका अर्थ होता है “अस्पष्ट” या “देवी मौन हैं।” यह साधारण देखने में जादू जैसा लगता है, किंतु तांत्रिक दृष्टि से यह साधक की आत्मिक ऊर्जा और देवी-तत्व की संवेगीय लहर (psychic vibration) का परिणाम है।
3. यह सिद्धि कहाँ से उत्पन्न हुई
तांत्रिक परंपरा में माना जाता है कि लोनाचामारीन सिद्धि की उत्पत्ति गोरखनाथ परंपरा और कामरूप तंत्र क्षेत्र से हुई। लोककथाओं के अनुसार, कामाख्या में एक तांत्रिक साधक ने देवी की कृपा से यह सिद्धि प्राप्त की थी। देवी ने उसे यह वरदान दिया कि वह “मन से पूछे प्रश्नों का उत्तर वस्तु के स्पंदन से पा सके।”
धीरे-धीरे यह परंपरा असम, बंगाल, ओडिशा और उत्तर भारत के कुछ तांत्रिक गुरुओं तक पहुँची, जहाँ यह “लोना चमारी सिद्धि” के नाम से प्रसिद्ध हुई।
4. पिढ़ुवा का प्रतीकात्मक अर्थ
“पिढ़ुवा” केवल एक लकड़ी का टुकड़ा नहीं, बल्कि यह मानव चेतना और देवी ऊर्जा के मध्य का सेतु है।
सुपारी या कौड़ी पृथ्वी-तत्व का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि पिढ़ुवा वायु-तत्व का — और जब देवी का आवाहन होता है, तब यह दोनों तत्व मिलकर ऊर्जा-चक्र का निर्माण करते हैं। यही ऊर्जा चक्र पिढ़ुवा को गति देता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण में, यह घूमना देवी का उत्तर नहीं बल्कि साधक के आत्मिक कंपन का भौतिक रूपांतरण है।

5. साधना की प्रक्रिया (संकेत मात्र)
- लोनाचामारीन सिद्धि अत्यंत गूढ़ साधना है। इसके लिए दीक्षा, गुरु की अनुमति और विशिष्ट साधना-काल आवश्यक होता है।
- साधना सामान्यतः इस प्रकार की जाती है—
- साधक को एकांत, शुद्ध और पवित्र स्थान चुनना होता है।
- देवी लोनाचामारीन का यंत्र या प्रतीक स्थापित किया जाता है।
- गुरुदत्त बीजमंत्र से 108 या 1008 जप किए जाते हैं।
- साधक उपवास या मौन व्रत रखता है।
- देवी का ध्यान करते हुए प्रश्नोत्तर पद्धति का प्रयोग किया जाता है।
- साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। बता दें कि तांत्रिक क्रिया मे ब्रह्मचर्य वह नही होता जिसमें संभोग न हो, बल्कि संभोग की ही अहम भूमिका होती है। वाममार्गी साधना योनि तंत्र संभोग पर फलदायी होती है। लोना चमारी अपने गुरु इस्माइल जोगी के साथ वाममार्ग से साधना कर सिद्धि प्राप्त की थी।
- साधना में सत्यता, श्रद्धा और संयम सर्वोपरि माने जाते हैं। देवी के प्रति संशय या असत्य भाव रखने वाला साधक इस विद्या में सफलता नहीं पा सकता।
6. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्याख्या
- आधुनिक विज्ञान के अनुसार, “पिढ़ुवा” के घूमने की घटना ideomotor effect से जुड़ी है — यह वही प्रभाव है जिसके कारण Ouija board या pendulum dowsing जैसी प्रक्रियाएँ कार्य करती हैं।
- जब व्यक्ति अत्यधिक ध्यानावस्था में प्रश्न पूछता है, तो उसका अवचेतन मन सूक्ष्म मांसपेशियों को सक्रिय कर देता है। यह हल्के कंपन पिढ़ुवा को गति देते हैं।
- परंतु तांत्रिक दृष्टि में यह केवल भौतिक कारण नहीं, बल्कि “साधक और देवी की ऊर्जा का एकीकृत संचार” है। दोनों व्याख्याएँ एक-दूसरे को विरोधी नहीं बल्कि पूरक बनाती हैं — जैसे आत्मा और शरीर।
7. देवी लोनाचामारीन का स्वरूप
देवी लोनाचामारीन को गुप्त तांत्रिक देवी कहा जाता है। वह न तो पूर्ण भैरवी हैं और न ही सौम्य शक्ति। उनके स्वरूप में करुणा और न्याय दोनों के तत्व हैं।
वे सत्य बताने वाली देवी हैं — इसलिए प्रश्नोत्तर विधा में उनका आह्वान किया जाता है।
लोकश्रुति में उन्हें “चंद्रमुखी, त्रिनेत्रा, और कपालमालिनी” कहा गया है, जो साधक को अंतर्ज्ञान और साक्षात्कार की शक्ति देती हैं।

लोना चमारी के मंत्र — कामरू देश कामाख्या देवी, जहां बसैं इसमाइल जोगी। इस्माइल जोगी की लगी फुलवारी, फूल चुनैं लोना चमारिन। जो लेई यहु फूल की बास, वहिकी जान हमारे पास। घर छोडै़ घर-आंगन छोडै़, छोडें कुटुम्ब मोह की लाज, दुहाई लोना चमारिन की। लोना चमारिन की सम्पूर्ण तंत्र-मंत्र साधना विधि-विधान लिखित ग्रंथ बुक प्राप्त करने के लिए भारतीय हवाटएप्स कालिंग सम्पर्क नम्बर 07379622843 पर सम्पर्क करें।
8. प्रश्नोत्तर विद्या का उद्देश्य
तांत्रिक शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है —
“सिद्धिर्न सत्यं यदि न धर्ममार्गे।”
अर्थात्, यदि सिद्धि धर्ममार्ग के विपरीत हो, तो वह विनाश का कारण बनती है।
इसलिए प्रश्नोत्तर विधा का उद्देश्य केवल भविष्यवाणी या जिज्ञासा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक मार्गदर्शन है।
साधक इस विधा से अपने साधन-पथ, निर्णय, या गुरु-आदेश के विषय में देवी से संकेत प्राप्त करता है।
9. साधक के लिए आवश्यक नियम
- ब्रह्मचर्य और सत्य का पालन।
- गुरु के आदेश के बिना प्रश्न न पूछना।
- देवी का आह्वान केवल शुद्ध भावना से करना।
- परिणाम को परीक्षा या मनोरंजन न बनाना।
- प्रश्न केवल धर्म, साधना, या जीवनमूल्यों से संबंधित होना चाहिए।
- जो साधक इन नियमों का पालन नहीं करता, उसके जीवन में अस्थिरता और भ्रम उत्पन्न हो सकता है।
10. चेतना और ऊर्जा का रहस्य
जब साधक देवी का ध्यान करता है, तो उसका सहस्रार चक्र (मस्तक के शीर्ष का केंद्र) सक्रिय होता है।
इस समय सूक्ष्म ऊर्जा मेरुदंड से ऊपर उठकर आत्मिक तरंग के रूप में फैलती है। यही तरंग पिढ़ुवा के नीचे स्थित पृथ्वी-तत्व से टकराकर वृत्ताकार गति में परिवर्तित हो जाती है।
इस प्रकार देवी की शक्ति “साधक के माध्यम से” गति करती है — यह प्रक्रिया ब्रह्मांड की “संवेग-ऊर्जा” (vibrational energy) का साक्षात उदाहरण है।
11. देवी का मौन और संकेत
कभी-कभी पिढ़ुवा बिल्कुल नहीं घूमता। इसे देवी का “मौन” कहा जाता है।
इसका अर्थ होता है — या तो प्रश्न उचित नहीं, या समय अनुकूल नहीं, या साधक की चेतना अस्थिर है।
यह स्थिति साधक के लिए आत्मपरीक्षण का संकेत है कि वह पहले अपने भीतर शुद्धता और श्रद्धा को पुनः स्थापित करे।
12. लोक परंपराओं में उपयोग
पूर्वोत्तर भारत, बंगाल, ओडिशा और नेपाल के कुछ हिस्सों में यह विद्या आज भी “गुरुमुखी तंत्र” के रूप में प्रचलित है।
गाँवों में जब किसी व्यक्ति को संदेह होता है — जैसे चोरी, बीमारी का कारण, या खोई वस्तु का स्थान — तो तांत्रिक पिढ़ुवा प्रश्नोत्तर विधि से देवी से उत्तर प्राप्त किया जाता है।
हालाँकि अब यह विधि गुप्त रखी जाती है, क्योंकि असिद्ध या अधूरी साधना से यह “विपरीत प्रभाव” भी दे सकती है।
13. साधना में गुरु की भूमिका
गुरु इस साधना का आधार हैं। वे ही साधक के शरीर और मन को इस ऊर्जा के योग्य बनाते हैं।
गुरु साधक को यह सिखाते हैं कि प्रश्न पूछने से पहले मन को कैसे स्थिर किया जाए, क्योंकि अस्थिर मन के प्रश्नों का उत्तर भी अस्थिर होता है।
कहावत है — “देवी मन में ही वास करती हैं, मन शांत हो तो देवी स्वयं उत्तर देती हैं।”
14. आधुनिक युग में अर्थ और उपयोग
आज के तकनीकी युग में जब लोग भविष्यवाणी के लिए ज्योतिष या कार्ड रीडिंग का सहारा लेते हैं, लोनाचामारीन सिद्धि चेतावनी देती है कि “सत्य उत्तर बाहर नहीं, भीतर है।”
पिढ़ुवा केवल माध्यम है, असली उत्तर हमारे चेतन मन की गहराई में छिपा होता है।
इस दृष्टि से यह विद्या आज भी आत्मसंवाद की प्राचीन भारतीय पद्धति है, जो हमें अपने भीतर झाँकने की प्रेरणा देती है।
15. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
मनोविज्ञान के अनुसार, जब कोई व्यक्ति श्रद्धा और ध्यान की अवस्था में प्रश्न पूछता है, तो उसका अवचेतन मन “उत्तर खोजने” की स्थिति में सक्रिय हो जाता है।
पिढ़ुवा का घूमना उसी मानसिक ऊर्जा का बाह्य संकेत है — जैसे मन का अदृश्य निर्णय धीरे-धीरे दृश्य रूप में प्रकट हो रहा हो।
इसलिए इसे “देवी संवाद” कहा जाता है — क्योंकि देवी वस्तुतः अंतरात्मा की चेतना ही हैं।
16. इस सिद्धि की शक्ति और खतरे
तांत्रिक ग्रंथों में कहा गया है कि लोनाचामारीन सिद्धि के माध्यम से साधक किसी भी प्रश्न का उत्तर जान सकता है, लेकिन अगर साधक में “अहंकार” या “भ्रम” आ जाए तो यही शक्ति विनाशकारी हो जाती है।
कई लोककथाओं में ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ साधक ने देवी के आदेश की अवहेलना की और उसका जीवन दुखद हो गया।
अतः इस सिद्धि को केवल निष्काम भाव और गुरु आज्ञा से ही ग्रहण करना चाहिए।
17. देवी के संकेत और समय
कभी-कभी देवी सीधे उत्तर नहीं देतीं, बल्कि संकेतों के माध्यम से उत्तर भेजती हैं — जैसे दीपक का टिमटिमाना, घंटी का कंपन, या किसी शब्द का अनायास सुनाई देना।
यह सब देवी की ऊर्जा के कंपन हैं जो साधक के आसपास के वातावरण में प्रकट होते हैं।
इसलिए तंत्र में कहा गया है — “प्रश्नोत्तर केवल घूमने में नहीं, वातावरण के हर संकेत में छिपा है।”
18. तंत्र और विज्ञान का संगम
यदि इस सिद्धि को गहराई से देखा जाए तो यह आधुनिक विज्ञान और तंत्र के बीच का सेतु है।
विज्ञान इसे “micro muscle response” कहता है, जबकि तंत्र इसे “देवी का स्पंदन” मानता है।
दोनों दृष्टियाँ एक ही सत्य को दो अलग भाषाओं में व्यक्त करती हैं — कि ऊर्जा सदा गतिशील है और चेतना उसे दिशा देती है।
19. साधक का अनुभव
जो-जो साधक इस विद्या में सिद्ध होता है, वह कहता है कि जब प्रश्न पूछा जाता है, तो भीतर से एक कंपन उठता है — जैसे कोई अदृश्य शक्ति उत्तर दे रही हो।
कई बार पिढ़ुवा घूमने से पहले ही साधक को उत्तर मन में सुनाई देता है।
यह अवस्था “देवी-संवाद” कहलाती है — जो केवल एक सिद्ध साधक को प्राप्त होती है।
20. पिढ़ुवा प्रश्नोत्तरी आत्मसंवाद की दिव्य विद्या
लोनाचामारीन सिद्धि और पिढ़ुवा प्रश्नोत्तर वास्तव में किसी “जादू” का नाम नहीं, बल्कि मानव चेतना की गहराई से संवाद की एक तांत्रिक कला है।
यह हमें यह सिखाती है कि देवी बाहर नहीं, हमारे भीतर ही वास करती हैं। जब हम पूर्ण श्रद्धा और शुद्धता से प्रश्न करते हैं, तो उत्तर स्वयं हमारे भीतर से निकलता है — पिढ़ुवा केवल उसकी भौतिक अभिव्यक्ति है।
इस सिद्धि का सच्चा उद्देश्य जीवन के निर्णयों को देवी की प्रेरणा और आत्मज्ञान के प्रकाश में लेना है।
अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि —
“लोनाचामारीन सिद्धि वह रहस्य है जहाँ मनुष्य अपनी आत्मा के माध्यम से देवी से प्रश्न करता है और ब्रह्मांड स्वयं उत्तर देता है।”
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Aap ka lekh bhut hi gyanvrdhk rhta hai niymit samay nikal padhti hu. Sadr namskar guru ji🙏🙏