जनादेश: 400 पार ब्रिटेन में और भारत में भाजपा का सपना अधूरा- एक समग्र विश्लेषण कारण और उपचार के साथ

Amit Srivastav

ब्रिटेन और भारत, दोनों लोकतांत्रिक देश हैं, लेकिन दोनों की राजनीतिक प्रणाली और जनादेश में बहुत भिन्नता है। हाल ही में, ब्रिटेन में हुए आम चुनावों में 400 से अधिक सीटें जीतने वाली कंजरवेटिव पार्टी ने सत्ता में धमाकेदार वापसी की, जबकि भारत में भाजपा का 400 सीटों का लक्ष्य केवल एक नारा ही बन कर रह गया। आइए, इन दोनों देशों की स्थितियों का विश्लेषण करते हैं और समझते हैं कि क्यों भाजपा अपने लक्ष्य तक पहुंचने में असफल रही। ब्रिटेन का जनादेश जहां ब्रिटिश राजनीति में नया अध्याय लिखा, वहीं भारत में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 400 सीटों के सपने को नई दृष्टि से देखा जा रहा है। दोनो देशों के जनादेश के बाद चुनावी विश्लेषण पर एक नज़र भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की निस्पक्ष कलम से।

ब्रिटेन की ऐतिहासिक जीत: uk

ब्रिटेन का जनादेश 400 पार राजनीतिक विश्लेषकों और जनता दोनों को चौंका दिया। एक पार्टी का 400 से अधिक सीटें जीतना न केवल उसकी जनसमर्थन की प्रमाणिकता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि उसने अपने चुनावी वादों को जनता तक प्रभावी ढंग से पहुंचाया। 2014 भारत की जनता ने जैसे नरेंद्र मोदी के चुनावी वादों पर भरोसा किया ठीक वैसे ही ब्रिटेन की जनता इस चुनाव कंजरवेटिव पार्टी पर भरोसा कर 400 से अधिक सीटों पर भारी बहुमत दी है। चुनाव प्रचार में उनकी रणनीति, जनहित के मुद्दों पर फोकस और विरोधियों पर तीखा हमला, ये सभी कारक इस अभूतपूर्व जीत में अहम भूमिका निभाते हैं।

ब्रिटेन का राजनीतिक परिदृश्य: uk

ब्रिटेन में संसदीय प्रणाली है जिसमें चुनाव के माध्यम से सदन के सभी सदस्यों का चयन होता है। यहां की प्रमुख पार्टियों में कंजरवेटिव पार्टी और लेबर पार्टी हैं। हाल ही में हुए चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी ने 400 से अधिक सीटें जीतकर बड़ी जीत दर्ज की है।
इसका कारण कई प्रमुख मुद्दे और रणनीतियां हैं, जैसे कि:-
ब्रेक्सिट: ब्रेक्सिट के बाद कंजरवेटिव पार्टी ने राष्ट्रीय एकता और आर्थिक स्थिरता पर जोर दिया।
नेतृत्व: पार्टी का नेतृत्व मजबूत और निर्णायक था, जिसने जनता को विश्वास दिलाया।
प्रचार और जनसंपर्क: कंजरवेटिव पार्टी ने अत्यधिक प्रभावी प्रचार अभियान चलाया।

भारत में 400 पार से दूर रही भाजपा एक विश्लेषण: India

जनादेश: 400 पार ब्रिटेन में और भारत में भाजपा का सपना अधूरा- एक समग्र विश्लेषण कारण और उपचार के साथ

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2024 के लोकसभा चुनावों में एक महत्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किया था: 400 से अधिक सीटें जीतना। हालांकि, भाजपा पार्टी इस आकड़े को पूरा नहीं कर पाई। इस विश्लेषण में, हम उन प्रमुख कारणों का अवलोकन करेंगे जिनकी वजह से भाजपा 400 पार का आकड़ा हासिल नहीं कर सकी।

सामाजिक और आर्थिक मुद्दे:

महंगाई और बेरोजगारी: महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने भाजपा सरकार की लोकप्रियता पर गहरा असर डाला। मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए बढ़ती महंगाई एक बड़ा चिंता का विषय रही है। बेरोजगारी की बढ़ती दर ने युवाओं के बीच असंतोष बढ़ाया, जिससे भाजपा के खिलाफ मतदाताओं में नाराजगी उत्पन्न हुई।

कृषि संकट:

किसानों की समस्याएं, विशेषकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और कृषि सुधार कानूनों को लेकर असंतोष, भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी रही। किसानों के आंदोलन ने ग्रामीण इलाकों में भाजपा के समर्थन को कम किया।

क्षेत्रीय दलों की मजबूती:

क्षेत्रीय दलों का उभार: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) जैसे क्षेत्रीय दलों ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। अन्य राज्यों में भी क्षेत्रीय दलों की मजबूती ने भाजपा के सीटों की संख्या को प्रभावित किया।

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण:

क्षेत्रीय दलों ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मुद्दों का उपयोग कर भाजपा के खिलाफ जनसमर्थन जुटाया। धार्मिक और जातीय समीकरणों ने भाजपा की चुनावी रणनीति को कमजोर किया। तो वही उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से उतारे गए उम्मीदवार भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुए और खुद बसपा का सफाया हुआ।

रणनीतिक गलतियाँ:

उम्मीदवारों का चयन: कुछ स्थानों पर भाजपा द्वारा उम्मीदवारों का चयन विवादास्पद रहा। पार्टी के भीतर गुटबाजी और असंतोष ने भी चुनाव परिणामों पर नकारात्मक प्रभाव डाला।

चुनावी प्रचार की रणनीति:

भाजपा की चुनावी प्रचार रणनीति में कुछ खामियाँ थीं। विपक्षी दलों ने बेहतर और ज्यादा प्रभावी प्रचार किया, जिससे मतदाताओं को प्रभावित करने में सफलता मिली। तो वही भाजपा के मुखिया नरेंद्र मोदी बचकानी बातें मंचों से कह कह कर अपना ही नुकसान किया। भारतीय गोदी मीडिया चुनाव में भाजपा की पक्षधर रही किन्तु आमजन दस सालों से भारतीय गोदी मीडिया के चर्चा को देख समझ सोशल मीडिया यूट्यूब वेबसाइट से गठबंधन की मेनिफेस्टो पर भरोसा कर मतदान किया।

विपक्षी एकजुटता:

महागठबंधन:

कई राज्यों में विपक्षी दलों ने एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाए, जिससे मतों का विभाजन रोका गया और भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा। भले ही मोदी मिडिया गठबंधन की मेनिफेस्टो को नही दिखाया फिर भी महागठबंधन की भाषण को सुनने जानने के लिए जनता निस्पक्ष सोशल मीडिया पर ध्यान देती रही।

नेतृत्व का असर:

राहुल गांधी, अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी नेताओं ने अपनी नेतृत्व क्षमता को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया, जिससे मतदाताओं का विश्वास भाजपा के बजाय विपक्षी दलों की ओर बढ़ा।

भारत में भाजपा का 400 का नारा:

दूसरी ओर, भारत में भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 लोकसभा भारी बहुमत से जीती थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में 350 सीटें जीतने का सपना देखा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इस लक्ष्य को पाने के लिए व्यापक प्रचार अभियान चलाया। भाजपा का “सबका साथ, सबका विकास” का नारा, राष्ट्रवाद और मजबूत नेतृत्व का संदेश, फरवरी 2019 पुलवामा हमले का जबाव और विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं ने भाजपा को जनता के बीच लोकप्रिय बनाया। फरवरी 2019 चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन पुलवामा हमला नरेंद्र मोदी को पुनः सत्ता में लाने का कारण बना। 350 के सापेक्ष 303 सीटें मिली। नरेंद्र मोदी कि बचकानी बातें शुरू से ही झूठे वादे 2024 में भाजपा को नुकसान पहुंचाने में मदद की 400 पार के लक्ष्य से कोशों दूर गठबंधन सहित 292 पर सीमट गयी। जिसका फायदा इंडिया गठबंधन को मिला।

राजनीतिक मतभेद और चुनौतियां:

भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहां विभिन्न राज्य अपनी अलग-अलग राजनीतिक और सामाजिक संरचनाएं रखते हैं, वहां जनहितैषी कार्य किए बगैर 400 सीटों का लक्ष्य प्राप्त करना कठिन है। 2014 मोदी ने वादा किया जनता को भरोसा था। जो जनता ने मोदी को पुर्ण बहुमत दी। अपने किए वादों को पूरा नही किए। 2019 में तत्काल हुए पुलवामा हमला भाजपा को सत्ता में लाने का काम किया। विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दलों का मजबूत आधार, स्थानीय मुद्दों की प्राथमिकता और भाजपा की अपनी नीतियों को लेकर विभिन्न समुदायों में मिश्रित प्रतिक्रिया ने इस लक्ष्य को और जटिल बना दिया है। 2024 महागठबंधन का मेनिफेस्टो जनता को आकर्षित किया और जनता को लगा दूध से जला मुह मठ्ठा फूंक कर पीता है तो अब इंडिया गठबंधन में काग्रेस सत्ता में आती है तो जनहितैषी कार्य करेगी जो खासकर भाजपा कि ही सरकार द्वारा लाई गई संविदा व्यवस्था, पुरानी पेंशन योजना अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा समाप्त के बाद सत्ता से बेदखल पुनः 2014 में मोदी के मेनिफेस्टो पर भरोसा कर जनता एकक्ष बहुमत दी पेंशन योजना पुनः चालू करने की मांग सहित बेरोजगारों को रोजगार देना मुख्य लक्ष्य होना चाहिए था।

भविष्य की संभावनाएं:

भविष्य में भाजपा के लिए 400 सीटों का सपना सच हो सकता है, अगर वह अपनी नीतियों को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू कर सके और जनता के बीच अपने समर्थन को और मजबूत बना सके। इसके लिए पार्टी को अपने नेतृत्व में स्थिरता बनाए रखनी होगी, विभिन्न समुदायों की भावनाओं का सम्मान करना होगा, और जनहित के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। भारत में संविदा व्यवस्था भाजपा सरकार में अटलबिहारी बाजपेयी द्वारा लाई गई व्यवस्था है और भारत में संविदा कर्मियों कि आर्थिक स्थिति दयनीय है जो गांवों में रहने वाले लगभग 15 से 20 परिवार हैं और वो दस साल से केंद्र में चल रही भाजपा सरकार से निराश हो चुके हैं। उन्हें भाजपा कैसे अपने प्रभाव में ला सकेंगी खुद भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान में गठबंधन से बनी सरकार पर निर्भर है। अगर ये परिवार भाजपा से पूरी तरह टूट जाते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाल की आस से भाजपा में जुड़े हुए थे। क्योंकि अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार ने देश की आर्थिक स्थिति खराब कि दशा में कर्मचारियों की पेंशन खत्म किया था, साथ ही एक बड़ी गलती यह थी नेताओं कि पेंशन व्यवस्था बहाल रखा वो भी मनचाहे तरीके से। उस पुरानी पेंशन बहाल की आस इस वर्तमान चुनाव में गठबंधन सरकार से जुड़ते देखा गया। बेरोजगारों ने भी भाजपा का दामन छोड़ दिया क्योंकि बेरोजगार युवाओं की मजाक उड़ाई गयी थी बेरोजगार युवा चाय पकौड़े की दुकान करें। इस तरह की बचकानी बातें भाजपा के लिए इस चुनाव नुकसान पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। नरेंद्र मोदी अपनी जनसभा को संबोधित करते अपने लोकसभा वाराणसी में शिक्षा मित्रों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से आये आदेश के समय हमदर्दी जताते आश्वासन दिया था सम्मान वापस दिलाने के लिए हम रास्ता निकाल रहे हैं अगर अपने जुबान पर कायम रहे होते तो एक बड़ा समुह भाजपा से नाराज न होता।

ब्रिटेन व भारत के चुनावी विश्लेषण- निष्कर्ष:

ब्रिटेन “uk” में कंजरवेटिव पार्टी की 400 से अधिक सीटें जीतने की सफलता और भारत “india” में भाजपा का 400 सीटों का लक्ष्य पूरा न कर पाना, दोनों देशों की राजनीतिक प्रणाली, रणनीतियों और जनसाधारण के मुद्दों पर निर्भर करता है। ब्रिटेन की 400 सीटों की ऐतिहासिक जीत और भारत में भाजपा के 400 सीटों के नारे के बीच का अंतर इस बात का प्रतीक है कि राजनीतिक सफलता केवल प्रचार और नारेबाजी पर निर्भर नहीं करती, बल्कि जनसमर्थन, सही नीतियों और जमीनी काम की भी आवश्यकता होती है। समय के साथ, भारतीय राजनीति में भी ऐसे क्षण आ सकते हैं जब कोई पार्टी इस ऐतिहासिक लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगी। फिलहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में भाजपा और इंडिया गठबंधन सहित अन्य पार्टियां किस प्रकार अपनी रणनीतियों को बदलती हैं और जनता के बीच अपने समर्थन को और मजबूत बनाती हैं। वर्तमान लोकतंत्र में विपक्ष मजबूती से अपनी भूमिका निभा रहा है और संविदा कर्मियों को पक्की नौकरी पुरानी पेंशन योजना और अग्निवीर जैसी योजना, स्थाई नौकरी की मांग, विपक्ष द्वारा संसद में उठाने की मांग से पहले अगर सत्ता पक्ष इन मुद्दों पर ध्यान दे व्यवस्था को ठीक करती है तो श्रेय भाजपा को जाना तय है और इसका लाभ आने वाले चुनावों में भाजपा को मिलेगा। भाजपा चुक करती है और विपक्ष इन मुद्दों को लेकर सरकार को घेरता है, उसके बाद अगर भाजपा सरकार विपक्ष की मांग को मान आगे बढ़ता भी है तो उसका लाभ आने वाले समय में विपक्ष को ही मिलेगा। अगर भाजपा इन जनहित मुद्दों पर विचार नहीं कर पाई तो निसंदेह भाजपा को सत्ता से बाहर होने कि स्थिति पैदा हो सकती है। जैसा कि वर्तमान लोकसभा चुनाव में देख चुके हैं इंडिया गठबंधन के पास प्रधानमंत्री का कोई चेहरा न होते हुए भी मजबूत हुई और अब जिस तरह राहुल गांधी संसद में मजबूती के साथ बोलते नज़र आ रहे हैं उससे देश की जनता को गांधी परिवार से ही राहुल गांधी प्रधानमंत्री के लायक उम्मीदवार दिखाई देने मे देर नही लगेगी। युवाओं को राहुल गांधी से आस दिखाई देना शुरू हो गया है कि राहुल गांधी युवा नेता हैं और युवाओं की समस्या बेरोजगारी आदि पर विचार कर निर्णय लेने में चूक नही करेगें। देश में बेरोजगारों कि बढ़ती संख्या महंगाई और संविदा कर्मियों कि दिनोंदिन हो रही दयनीय स्थिति भाजपा को सम्पूर्ण सत्ता से बेदखल करने का कारण होगा। सिर्फ धर्म के नाम पर राजनीति करने से आम जन की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता है।

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