अब तक आप सब ने हमारे शक्तिपीठ लेखनी में क्रमशः पढ़ा…
प्रथम शक्तिपीठ कामाख्या जहां सती का योनी भाग स्थापित है। इस शक्तिपीठ को श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति धाम माना जाता है, सम्पूर्ण शक्तिपीठों में यह सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ है। इसका प्रमाण देवासुर संग्राम में दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने दिया है, नरकासुर इसी सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ को, दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर नष्ट करने आया था। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को नरक मार्ग से आकर दर्शन नही करना चाहिए। जो देवी कामाख्या के कहने पर नरकासुर अर्ध निर्माण किया है। शुक्राचार्य कामाख्या शक्तिपीठ को नष्ट करने के बाद सभी शक्तिपीठों का अस्तित्व स्वतः समाप्त होने की बात कही थी। कामाख्या शक्तिपीठ, निकट त्रिया राज्य से सिद्धि प्राप्त… सम्पूर्ण वर्णन अपने प्रथम शक्तिपीठ लेखनी – कामाख्या शक्तिपीठ श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति का द्वार में किया हूं। गुप्त रहस्यों को उजागर करते माता की महिमा का वर्णन हमारी लेखनी से समाज को प्राप्त हो और माता के प्रति आस्था व्याप्त हो, इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए। नवरात्रि के पावन पर्व पर शक्तिपीठ लेखनी की आंशिक अंश के बाद, भारत देश की चर्चित सिद्ध शक्तिपीठ में स्थापित मां वैष्णो देवी जम्मू-कश्मीर पर अद्भुत रहस्य को उजागर करते आप सभी भक्त जन को लेखनी समर्पित कर रहा हूं।
दूसरे शक्तिपीठ के रूप में झारखंड राज्य के रजरप्पा में, दस महाविद्याओं में से एक छठवीं महाविद्या धारण करने वाली, नग्न रुपा भवानी असुरों का संहार करने के बाद अपने ही सिर को काटकर सहचरीयों संग अपना रुधीर पान कर भुख को शांत करने वाली छिन्नमस्तिका भवानी, इस भवानी को जैसी मनोकामना के साथ पूजा जाता है वैसा ही फल प्राप्त होता है।
तीसरी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित हिंगलाज भवानी उग्रतारा शक्तिपीठ मोक्ष प्रदान करने वाली। हिंगलाज शक्तिपीठ की पूजा-अर्चना मुस्लिम समुदाय भी करता है, इस शक्तिपीठ को मुस्लिम समुदाय अपनी नानी पीर के रूप में मानता है। यहां दर्शन करने वाली स्त्रीयों को हजियाजी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार यहां आने वाले भक्तों की आत्मा को शुद्ध और पवित्र होने के बाद मोंक्ष का मार्ग सुलभ हो जाती है।
चौथी बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट पर स्थापित शक्तिपीठ जो जन्म मरण से मुक्ति प्रदान करने वाली है। अपने प्रिय काशी में विराजमान बाबा विश्वनाथ जी का दर्शन करने वाले श्रद्धालु जन देवाधिदेव महादेव कि प्रिया विशालाक्षी देवी मणिकर्णिका घाट पर, यहां सती के कान का कुंडल गीरा था, इस शक्तिपीठ रुप विशालाक्षी देवी का भक्त जन दर्शन कर पूर्ण रूप से अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।
पांचवीं त्रिपुरमालिनी वक्ष शक्तिपीठ देवी तालाब जालंधर पंजाब राज्य में एकमात्र शक्तिपीठ, यहां सती का एक स्तन गीरा था। इस शक्तिपीठ का इतिहास, शिव पुत्र असुर राज जलंधर पत्नी वृंदा के साथ, विष्णु द्वारा छल से पतिव्रत धर्म नष्ट कर, ख़ुद विष्णु वृंदा द्वारा श्रापित हो शालिग्राम पत्थर बने, वृंदा द्वारा इस पृथ्वी पर औषधि रुप में तुलसी का पौधा बन तुलसी और शालिग्राम विवाह से जूड़ा है।
यहां लाखों तीर्थ यात्री देवी दर्शन पूजन के लिए आते हैं। यह भारत के तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक प्रमुख तीर्थस्थल है। इस मंदिर का निर्माण कटरा से कुछ दूरी पर स्थित हंसाली गांव का रहने वाला, मां वैष्णो देवी के प्रथम प्रिय भक्त पंडित श्रीधर के प्रयास से महाराजा गुलाब सिंह ने करवाया था। श्रीधर एक गरीब निसंतान ब्राह्मण था। नवरात्रि ब्रत उपरांत कन्या भोजन के लिए गांव की कन्याओं को बुलाया लेकिन कोई अपनी कन्याओं को नही भेजा। मुहुर्त निकलता देख श्रीधर और पत्नी सुलोचना चिंतित थीं, देवी नौ रुपों सहित लंगूर हनुमानजी बाल रुप में कन्या भोजन के लिए पधारे। भक्ति भाव से देवी प्रसन्न हो, श्रीधर को अपने घर सभी को भंडारे पर बुलाने की बात कही। दिव्य कन्या की बात मान कर श्रीधर आस-पास के गांवों में अपने घर भंडारे का निमंत्रण देने लगा। कोई छूट न जाएं मां की आज्ञा मान निमंत्रण देता जा रहा था। सभी गाँव वाले उपहास उड़ा रहे थे। श्रीधर को मां वैष्णो के ऊपर अटूट विश्वास था, मां की कृपा है तो सब मां करेगी। निमंत्रण गुरु गोरखनाथ के शिष्य भैरवनाथ को भी दिया था। जो बहुत बड़ा तांत्रिक था। नियत समय पर सभी निमंत्रित जन भंडारे में आ गए। वैष्णो माता की भक्ति का अलख जगाते पंडित श्रीधर से गांव के सभी इर्ष्या करते थे। श्रीधर की तब कोई सन्तान न होने की वजह से, श्रीधर पत्नी सुलोचना को ताने-बाने मारती औरतें हेय दृष्टि से देखती थी। श्रीधर और पत्नी सुलोचना मां की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया करती थी। घर में भंडारे के लिए कुछ भी अन्न नही था, श्रीधर और सुलोचना दोनों ने माता का आवाह्न किया, मां बालिका रुप में प्रकट हो, माता अन्नपूर्णा की सहायता से सभी को भंडारे में अनेकों प्रकार का शुद्ध शाकाहारी स्वादिष्ट भोजन करा रही थी, तभी भैरवनाथ अपने गणों के साथ शक्ति को अपने बस में करने की लालसा लिए भंडारे में पहुंचा और भोजन करने बैठ गया।
वहीं भैरवनाथ को आते देख पवनपुत्र हनुमानजी ब्राह्मण भेष में माता का सहयोगी बनने आ गए। माता हर किसी के पसंद की पकवान एक ही दिव्य पात्र से परोस रही थी, यह देख भैरवनाथ अपनी पसंद मांसाहारी भोजन मदिरा पान का डिमांड किया। मां के बहुत समझाने के बाद कि यह ब्राह्मण के यहां का शुद्ध भंडारा है इसमे मांसाहारी भोजन नहीं मिलेगा, तब भी नहीं माना और मां को अपने बस में करने के लिए पकड़ना चाहा। तब माता वहां से वायु रुप हो त्रिकूट पर्वत की ओर चली गई। मां की रक्षा में मां के साथ हनुमानजी थे। हनुमानजी को प्यास लगी तब हनुमानजी ने मां से आग्रह किया मां ने बांण चलाकर त्रिकूट पर्वत से एक जलधारा निकालीं, जलधारा से हनुमानजी ने अपनी प्यास बुझाया और माता ने अपने केश धोए। यह वही पवित्र जलधारा आज बाणगंगा के नाम से जानी जाती है। इसके पवित्र जल को पीने और स्नान करने से भक्तों की सारी थकान दुख दर्द दूर हो जाती है। मां के पीछे-पीछे तांत्रिक भैरवनाथ पीछा करते त्रिकूट पर्वत पर आ पहुंचा। यहां हनुमानजी एक बृद्ध ब्राह्मण का रुप ले भैरवनाथ को समझाया जिनके पीछे पड़े हो ये स्यम् आदिशक्ति कि अंश हैं। हनुमानजी की बात न मान भैरवनाथ आगे बढ़ने लगा। तब मां गुफा के दूसरे भाग में चली गई जो अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी नाम से प्रसिद्ध है। अर्द्धकुमारी गुफा से पहले माता की चरण पादुका है यह वही स्थान है, जहां से मां मुड़कर भैरवनाथ को देखते हुए भागी थी। पंडित श्रीधर पत्नी सुलोचना माता की पदचिन्हों को देखते हुए त्रिकूट पर्वत के समीप सिंधु नदी के पश्चिमी तट पर जा बैठे और माता की भक्ति में लीन हो गए। मां वैष्णो देवी त्रिकूट पहाड़ी में गुफा का निर्माण कर नौ महीने तक छूपी रही और तपस्या करती रही। तब तक हनुमानजी गुफा में सुरक्षित मां तक भैरवनाथ को जाने से रोके रखा, जब भैरवनाथ के पाप का घड़ा भर गया, तब मां गुफा से बाहर आई और भैरवनाथ माता से युद्ध करने लगा। मां वैष्णो देवी महाकाली का आवाह्न कर भैरवनाथ का वध किया। यह वही स्थान भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर देवी महाकाली दाएँ, देवी महासरस्वती बाएं, देवी महालक्ष्मी मध्य, पिण्डी रुप में इस गुफा में विराजमान हैं। इस तीनों पिण्डियों के सम्मिलित रूप को ही वैष्णो देवी का रुप माना जाता है।

1 thought on “नौवीं वैष्णो देवी सिद्ध शक्तिपीठ”