भारत, एक ऐसा देश जो अपनी सांस्कृतिक विविधता, नैतिक मूल्यों और प्राचीन परंपराओं के लिए जाना जाता है, आज डिजिटल युग में अश्लील सामग्री (Pornography) पोर्नोग्राफी के प्रसार के कारण एक जटिल सामाजिक और राजनीतिक बहस के केंद्र में है। “अश्लील मुक्त भारत” का विचार कई लोगों के लिए एक नैतिक और सांस्कृतिक आदर्श हो सकता है, लेकिन इसे लागू करना इतना आसान नहीं है। भारतीय सरकार ने समय-समय पर अश्लील सामग्री पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास किए हैं, लेकिन यह मुद्दा तकनीकी, कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों से घिरा हुआ है।
इस लेख में, हम इस मुद्दे के विभिन्न आयामों का गहन विश्लेषण करेंगे और यह समझाने की कोशिश करेंगे कि भारतीय सरकार Pornography and India “अश्लील मुक्त भारत” के लक्ष्य को क्यों हासिल नहीं कर पा रही है।
Table of Contents
1. अश्लीलता क्या है? अश्लील सामग्री का प्रसार और डिजिटल युग
Pornography and India
आज भारत में इंटरनेट की पहुंच अभूतपूर्व स्तर पर है। सस्ते स्मार्टफोन और डेटा प्लान ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ाया है। इस डिजिटल क्रांति के साथ, अश्लील सामग्री तक पहुंच भी आसान हो गई है। वैश्विक स्तर पर पोर्नोग्राफी उद्योग अरबों डॉलर का है, और भारत इस बाजार का एक बड़ा उपभोक्ता है। कुछ जांच पड़ताल व अध्ययनों के अनुसार, अश्लीलता भरा नंगा बीडीओ सामग्री भारत में पोर्न वेबसाइट्स की खपत दुनिया के कई अन्य देशों से अधिक है।
हालांकि, यह सिर्फ तकनीकी उपलब्धता का सवाल नहीं है। अश्लील सामग्री की मांग सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारकों से भी जुड़ी है। भारत जैसे देश में, जहां यौन शिक्षा और खुले संवाद की कमी है, लोग अक्सर अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ऐसी सामग्री की ओर आकर्षित होते हैं। यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्योकि sex रिलेशन हर व्यक्ति कि जरुरत है।
2. सरकारी प्रयास और पोर्नोग्राफी कानूनी ढांचा
Pornography
भारतीय सरकार ने अश्लील सामग्री को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 की धारा 67 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 292 अश्लील सामग्री के उत्पादन, वितरण और प्रसार को अपराध मानती हैं। इसके अलावा, सरकार ने समय-समय पर सैकड़ों पोर्न वेबसाइट्स को ब्लॉक करने के आदेश जारी किए हैं। 2015 में, सरकार ने 857 वेबसाइट्स पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की थी, लेकिन जनता के विरोध और गोपनीयता के मुद्दों के कारण इसे वापस लेना पड़ा।
2021 में, केंद्र सरकार ने डिजिटल सामग्री को विनियमित करने के लिए नए आईटी नियम पेश किए, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और अन्य डिजिटल मीडिया पर नजर रखने का काम किया गया। उन अश्लील सामग्री के नियमों पर सामाजिक और राजनीतिक रूप से फोकस किए गए।
इन प्रयासों के बावजूद, अश्लील सामग्री का प्रसार रुक नहीं रहा है। इसका कारण है तकनीकी बाधाएं। वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन), डार्क वेब, और एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से लोग आसानी से प्रतिबंधित सामग्री तक पहुंच बना लेते हैं। इसके अलावा, वैश्विक सर्वर और क्लाउड-आधारित तकनीक के कारण, ऐसी सामग्री को पूरी तरह से ब्लॉक करना लगभग असंभव है।
3. राजनीतिक आयाम और नैतिक बहस
Pornography and India
अश्लील सामग्री का मुद्दा भारत में एक गहरा राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दा है। एक तरफ, कुछ राजनीतिक दल और सामाजिक समूह इसे “भारतीय संस्कृति के खिलाफ” मानते हैं और इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित करने की वकालत करते हैं। ये समूह अक्सर नैतिकता और पारंपरिक मूल्यों की रक्षा की बात करते हैं। दूसरी तरफ, उदारवादी और प्रगतिशील समूह इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल मानते हैं। उनके अनुसार, वयस्कों को अपनी पसंद की सामग्री देखने का अधिकार है, बशर्ते यह कानूनी सीमाओं के भीतर हो।
यह बहस राजनीतिक दलों के लिए एक दोधारी तलवार है। यदि सरकार सख्त प्रतिबंध लगाती है, तो उसे “सेंसरशिप” और “नैतिक पुलिसिंग” का आरोप झेलना पड़ सकता है, जो युवा और शहरी मतदाताओं को नाराज कर सकता है। वहीं, अगर सरकार इस मुद्दे पर नरम रुख अपनाती है, तो उसे रूढ़िवादी समूहों और धार्मिक संगठनों की आलोचना का सामना करना पड़ता है।
इसके अलावा, यह मुद्दा क्षेत्रीय और सांस्कृतिक संवेदनशीलताओं से भी जुड़ा है। उदाहरण के लिए, दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में, जहां यौन शिक्षा और खुले संवाद को अधिक स्वीकार्य माना जाता है, इस मुद्दे पर रुख उत्तर भारत के रूढ़िवादी क्षेत्रों से अलग हो सकता है। यह अंतर राजनीतिक दलों के लिए नीति निर्माण को और जटिल बनाता है।

4. सामाजिक प्रभाव और यौन शिक्षा की कमी
sex education
अश्लील सामग्री का प्रसार केवल कानूनी या तकनीकी मुद्दा नहीं है; यह सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों से भी जुड़ा है। कई अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि अश्लील सामग्री की अत्यधिक खपत यौन हिंसा, अवास्तविक अपेक्षाओं और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकती है। विशेष रूप से किशोरों और युवाओं में, जो अक्सर ऐसी सामग्री के प्राथमिक उपभोक्ता होते हैं, इसका प्रभाव अधिक गंभीर हो सकता है।
भारत में यौन शिक्षा की कमी इस समस्या को और बढ़ा देती है। स्कूलों में यौन शिक्षा को अक्सर वर्जित माना जाता है, और माता-पिता भी इस विषय पर खुलकर बात करने से हिचकते हैं। नतीजतन, युवा अपनी यौन जिज्ञासा को शांत करने के लिए अश्लील सामग्री की ओर मुड़ते हैं, जो अक्सर अवास्तविक और गलत धारणाएं प्रस्तुत करती है।
5. वैश्विक संदर्भ और तुलना
Pornography and India
अश्लील सामग्री का नियमन एक वैश्विक चुनौती है। कुछ देशों, जैसे चीन और उत्तर कोरिया, ने इंटरनेट पर सख्त नियंत्रण लागू करके इस समस्या को हल करने की कोशिश की है। हालांकि, ये देश लोकतांत्रिक नहीं हैं, और उनकी नीतियां भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लागू करना असंभव है। दूसरी ओर, पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका और यूरोपीय देशों में, अश्लील सामग्री को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में देखा जाता है, लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए सख्त उम्र-प्रतिबंध और कानूनी ढांचे मौजूद हैं।
भारत इन दोनों चरम बिंदुओं के बीच फंसा हुआ है। न तो यह पूरी तरह से इंटरनेट को नियंत्रित कर सकता है, और न ही यह पश्चिमी मॉडल को पूरी तरह से अपना सकता है, क्योंकि सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ अलग हैं।

6. पोर्नोग्राफी –अश्लील साहित्य और प्रार्थना: एक नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
भारत और केन्या जैसे देशों में अश्लील साहित्य (पोर्नोग्राफी) का प्रसार डिजिटल युग में एक गंभीर सामाजिक और नैतिक चुनौती बन गया है। आप पढ़ रहे हैं— माँ कामाख्या देवी के भक्त भगवान चित्रगुप्त वंशज-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी। भारत में, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 और भारतीय दंड संहिता की धारा 292 के तहत अश्लील सामग्री को नियंत्रित करने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन वीपीएन और डार्क वेब जैसी तकनीकों ने इन प्रतिबंधों को अप्रभावी बना दिया है। 2023 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 57.32% युवा यौन जानकारी के लिए अश्लील सामग्री पर निर्भर हैं, जो यौन शिक्षा की कमी को दर्शाता है।
इस संदर्भ में, कई धार्मिक समुदाय अश्लीलता के प्रभाव से बचने के लिए प्रार्थना और शास्त्रीय शिक्षाओं पर जोर देते हैं। उदाहरण के लिए, ईसाई समुदायों में, विशेष रूप से केन्या में, प्रार्थना बिंदु (prayer points) और बाइबिल के शास्त्रों का उपयोग यौन पापों और व्यसनों से मुक्ति के लिए किया जाता है। बाइबिल के मत्ती 5:28 (“जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले, वह अपने हृदय में उसके साथ व्यभिचार कर चुका”) और 1 कुरिन्थियों 6:18 (“हर पाप से भागो, विशेष रूप से यौन पाप से”) जैसे शास्त्रों का उल्लेख करते हुए, प्रार्थनाएं व्यक्तियों को आत्म-नियंत्रण और पवित्रता की ओर प्रेरित करती हैं।
केन्या में, 2025 में चर्च और सामुदायिक संगठन अश्लीलता के खिलाफ जागरूकता अभियान चला रहे हैं, जिसमें प्रार्थना सभाएं और युवाओं के लिए मार्गदर्शन सत्र शामिल हैं। भारत में भी, हिंदू और इस्लामी शिक्षाएं यौन संयम और नैतिक जीवन पर जोर देती हैं, जैसे कि गीता में आत्म-नियंत्रण (अध्याय 6, श्लोक 16) और कुरान में नज़र नीची रखने (सूरह अन-नूर 24:30) की सलाह। हालांकि, इन धार्मिक प्रयासों को सरकारी नीतियों और यौन शिक्षा के साथ जोड़ने की आवश्यकता है, ताकि अश्लीलता की मांग को जड़ से कम किया जा सके।
7. पोर्नोग्राफी— नीतिगत और सामाजिक चुनौतियां: यौन शिक्षा और प्रार्थना का समन्वय
अश्लील साहित्य के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए भारत और केन्या दोनों में नीतिगत और सामाजिक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन चुनौतियां गंभीर हैं। भारत में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने किशोर शिक्षा को बढ़ावा देने की बात की, लेकिन यौन शिक्षा को स्पष्ट रूप से शामिल करने से बचा गया, क्योंकि सांस्कृतिक और धार्मिक समूह इसे “पश्चिमी प्रभाव” मानते हैं। 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक यौन शिक्षा को यौन अपराधों को कम करने के लिए आवश्यक बताया, लेकिन राज्यों की स्वायत्तता और शिक्षक प्रशिक्षण की कमी इसे लागू करने में बाधा बनी हुई है।
केन्या में, सरकार ने 2013 के डिजिटल मीडिया रेगुलेशन एक्ट के तहत अश्लील सामग्री पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, लेकिन तकनीकी सीमाओं और सामाजिक स्वीकार्यता की कमी ने इसे प्रभावी होने से रोका। वहां के चर्च, जैसे कि केन्या क्रिश्चियन प्रोफेशनल्स फोरम, प्रार्थना और शास्त्र-आधारित काउंसलिंग के माध्यम से युवाओं को अश्लीलता के व्यसन से मुक्त करने पर जोर दे रहे हैं।
उदाहरण के लिए, भजन 119:9 (“युवा अपनी राह को कैसे शुद्ध रखे? तेरे वचन का पालन करके”) और रोमियों 12:2 (“इस संसार के अनुरूप न बनो, बल्कि अपने मन के नवीकरण से बदल जाओ”) जैसे शास्त्र प्रार्थना सभाओं में उपयोग किए जाते हैं। भारत में, कुछ गैर-प्रकाशित सरकारी सर्वेक्षणों (2023) ने संकेत दिया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अश्लील सामग्री की खपत शहरी क्षेत्रों से अधिक तेजी से बढ़ रही है, लेकिन इस जानकारी को सार्वजनिक करने से बचा गया, क्योंकि यह सामाजिक विवाद को जन्म दे सकता है।
दोनों देशों में, प्रार्थना और धार्मिक शिक्षाओं को यौन शिक्षा के साथ समन्वित करने की आवश्यकता है, ताकि नैतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक साथ काम कर सकें। यह एक दीर्घकालिक रणनीति होगी, जिसमें सरकार, धार्मिक संगठन, और समुदायों को मिलकर काम करना होगा।
8. भारत और केन्या में अश्लील साहित्य से संबंधित हाल की गिरफ्तारियां: एक सामाजिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य
भारत में अश्लील साहित्य, विशेष रूप से बाल अश्लील सामग्री, के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हाल के वर्षों में तेज हुई है। 2023 में, केरल पुलिस ने ऑपरेशन P-हंट 23.1 के तहत 12 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया और 142 मामले दर्ज किए, जिसमें 270 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए गए। इन उपकरणों में मोबाइल फोन, हार्ड डिस्क, और लैपटॉप शामिल थे, जिनमें बच्चों से संबंधित आपत्तिजनक सामग्री थी। पुलिस ने संदिग्धों के उपकरणों में बच्चों की तस्करी से संबंधित चैट भी पाए, जिससे इस अपराध की गंभीरता और जटिलता का पता चलता है।
इसके अलावा, 2025 में, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने नोएडा में एक दंपति, उज्ज्वल किशोर और नीलू श्रीवास्तव, को एक वयस्क वेबकैम स्टूडियो चलाने और साइप्रस-आधारित अश्लील वेबसाइटों को सामग्री आपूर्ति करने के आरोप में छापेमारी की, जिसमें 15.66 करोड़ रुपये की अवैध विदेशी रेमिटेंस का खुलासा हुआ। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67B और POCSO अधिनियम, 2012 के तहत बाल अश्लील सामग्री को देखना, वितरित करना या संग्रहीत करना गंभीर अपराध है, जिसमें सात साल तक की सजा और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
इन गिरफ्तारियों से पता चलता है कि सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियां डिजिटल युग में अश्लील सामग्री के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय हैं। किन्तु तकनीकी चुनौतियां डार्क वेब और एन्क्रिप्टेड प्लेटफार्म जटिल बना रहे हैं। आपको बता दें कि सरकार और सरकारी एजेंसियों को ऐसे कारोबार तब तक नहीं दिखाई देता जब तक आम जन की आवाज बन पत्रकार या समाजसेवी जन मामले को हाइलाइट नही करते।
आजकल बेरोजगारी और महंगाई के दौर में तेजी से सोशल साइट्स पर प्लेबॉय, काल ब्वाय, जिगोलो सर्विस, प्रेगनेंट जाॅब जैसे आफर तेजी से दिया जा रहा है और आये दिन मौजमस्ती के साथ नौकरी के लालच में बेरोजगार युवाओं के साथ ठगी हो रही है लेकिन सरकार और सरकारी महकमा को नजर नहीं आ रहा है। शिकायत के बाद कही आ भी गया तो ज्यादातर लोग जो साइबर क्राइम को बढ़ावा देने वाले हैं बच जा रहे हैं। क्योकि वे न अपने नामों से धंधे में जुड़े होते हैं न कोई साक्ष्य सामने छोडते हैं।
बहुत गहन जांच पड़ताल के बाद मै इन विषयों पर लेखनी के माध्यम से अपने amitsrivastav.in वेबसाइट पर चर्चा किया हूं जो तमाम लोगों को ठगी का शिकार होने से बचाने मे लेख सार्थक सिद्ध हो रहा है।
9. केन्या में अश्लील साहित्य पर कार्रवाई और सामाजिक प्रभाव
केन्या में अश्लील साहित्य के खिलाफ कार्रवाई मुख्य रूप से बाल अश्लील सामग्री और अवैध डिजिटल सामग्री पर केंद्रित है, लेकिन भारत की तुलना में इस क्षेत्र में कम प्रचारित मामले सामने आए हैं। हाल के वर्षों में, केन्या पुलिस ने इंटरपोल और अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सहयोग से छापेमारी की है। उदाहरण के लिए, 2018 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने एक व्हाट्सएप ग्रुप “KidsXXX” के मुख्य प्रशासक निखिल वर्मा को गिरफ्तार किया, जिसमें केन्या सहित कई देशों के 114 सदस्य शामिल थे।
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यह मामला बाल अश्लील सामग्री के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को उजागर करता है। केन्या में, केन्या डिजिटल मीडिया रेगुलेशन एक्ट, 2013 के तहत अश्लील सामग्री को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया है, लेकिन तकनीकी सीमाओं और सामाजिक जागरूकता की कमी ने इसे प्रभावी होने से रोका है। चर्च और धार्मिक संगठन, जैसे कि केन्या क्रिश्चियन प्रोफेशनल्स फोरम, प्रार्थना सभाओं और बाइबिल-आधारित काउंसलिंग के माध्यम से युवाओं को अश्लीलता के व्यसन से मुक्त करने के लिए सक्रिय हैं,
जिसमें फिलिप्पियों 4:8 (“जो कुछ सत्य, सम्मानजनक, और पवित्र है, उस पर ध्यान दो”) जैसे शास्त्रों का उपयोग किया जाता है। हालांकि, केन्या में अश्लील सामग्री से संबंधित हाल की गिरफ्तारियों पर विशिष्ट डेटा सीमित है, जो संभवतः सामाजिक वर्जनाओं और कम रिपोर्टिंग के कारण है। दोनों देशों में, अश्लील साहित्य के खिलाफ कानूनी और धार्मिक प्रयासों को यौन शिक्षा के साथ समन्वित करने की आवश्यकता है, ताकि इस समस्या को जड़ से संबोधित किया जा सके।

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10. आगे की राह: समाधान और चुनौतियां
Pornography and India
अश्लील मुक्त भारत “Pornography and India” का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कुछ संभावित समाधान निम्नलिखित हो सकते हैं—
1. यौन शिक्षा को बढ़ावा देना:
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स्कूलों और समुदायों में व्यापक यौन शिक्षा लागू करके, युवाओं को स्वस्थ यौन व्यवहार और जिम्मेदार निर्णय लेने के लिए तैयार किया जा सकता है। सही रूप से Sex Education अश्लील सामग्री की मांग को कम कर सकता है।
2. तकनीकी समाधान:
सरकार और टेक कंपनियों को मिलकर ऐसे टूल विकसित करने चाहिए जो नाबालिगों को अश्लील सामग्री से बचाएं, जैसे कि उम्र सत्यापन सिस्टम और मजबूत फ़िल्टरिंग तकनीक। साथ ही Sex Education की उपयोगी जानकारी जो नितांत आवश्यक है, जैसे कि Sex methods फायदे और नुकसान स्थानीय भाषा में सार्वजनिक रूप से दी जाए।
3. सामाजिक जागरूकता:
अभियान चलाकर लोगों को अश्लील सामग्री के नकारात्मक प्रभावों के बारे में शिक्षित किया जा सकता है। साथ ही सार्थकता धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बताकर अनावश्यक खोज से बचाया जा सकता है। sex का सही ज्ञान तमाम बिमारियों का निदान है तो वहीं अज्ञानता बिमारियों को जन्म देती है। महिलाओं पुरुषों में तमाम बिमारियों का उत्थान sex कि अज्ञानता के कारण ही उत्पन्न होती है। इसमें परिवारों, शिक्षकों और समुदायों को शामिल करना होगा।
4. कानूनी सुधार:
मौजूदा कानूनों को और स्पष्ट और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना वैश्विक स्तर पर संचालित होने वाली वेबसाइट्स को नियंत्रित करना मुश्किल है। आज जो वेबसाइट गलत तरीके से जितना ज्यादा अश्लीलता परोस रही है उसका टीआरपी उतना ही ज्यादा बढ़ रहा है। अपनी कमाई के चक्कर में तोड-मोड़ कर जानकारी देना देश व समाज हित में नही है।
हालांकि, इन समाधानों को लागू करना आसान नहीं है। तकनीकी बाधाएं, सामाजिक प्रतिरोध, और राजनीतिक दबाव इसे जटिल बनाते हैं। इसके अलावा, अश्लील सामग्री का मुद्दा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामूहिक नैतिकता के बीच एक नाजुक संतुलन की मांग करता है। दर्शकों के लिए क्या उपयोगी है और क्या उपयोगी नही है लेखक तो ध्यान रखता है किन्तु वे लोग जो वेबसाइट से सिर्फ पैसा कमाने का लक्ष्य रखा है और रिसर्च जानकारी इकट्ठा करने का ज्ञान नहीं है वे दर्शकों को भ्रमित कर रहे हैं और प्राथमिक ज्ञान के अभाव में दर्शक समझ पाने मे असमर्थ होते हैं कि यह सही है या गलत।
लेखक का अंतिम विचार
अश्लील मुक्त भारत Pornography and India का विचार सतह पर आकर्षक लग सकता है, लेकिन यह एक जटिल और बहुआयामी समस्या है। भारतीय सरकार के लिए इस लक्ष्य को प्राप्त करना केवल तकनीकी या पोर्नोग्राफी कानूनी उपायों से संभव नहीं है; इसके लिए सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक सुधारों की भी आवश्यकता है। साथ ही, राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर संवेदनशीलता और संतुलन के साथ काम करना होगा, ताकि न तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन हो और न ही सामाजिक मूल्यों की अनदेखी। दर्शकों पाठकों को सही ज्ञान की प्राप्ति हो इसका सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
इसके लिए एक दीर्घकालिक और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सरकार, नागरिक समाज, और टेक्नोलॉजी कंपनियां एक साथ काम करें। केवल तभी भारत इस चुनौती का सामना कर सकता है और एक ऐसी डिजिटल दुनिया बना सकता है जो नैतिकता और स्वतंत्रता दोनों का सम्मान करे।






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