गाजीपुर। समाजसेवा और मानवाधिकार के क्षेत्र में कार्यरत CIF के राष्ट्रीय संयुक्त निदेशक, UNIP के प्रदेश अध्यक्ष और इंटरनेशनल ह्यूमैनिटेरियन डिवीजन (IHDMD) के प्रतिनिधि सुजीत सिंह के नाम का बीते नौ महीनों से सुनियोजित तरीके से दुरुपयोग किया जा रहा था। कुछ असामाजिक तत्व उनके नाम का सहारा लेकर ब्लैकमेलिंग, धमकी और अवैध वसूली जैसी संगीन आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त थे। यह पूरी गतिविधि एक संगठित गिरोह की तरह चल रही थी, जो खुद सुजीत सिंह को भी धमकाने और नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर चुका था। सुजीत सिंह ने इस गंभीर मामले की सूचना मिर्जापुर पुलिस को समय-समय पर दी, लेकिन दुर्भाग्यवश पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

पुलिस की इस निष्क्रियता से आहत होकर सुजीत सिंह को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। उन्होंने 13 जनवरी 2025 को पहली शिकायत न्यायालय में दर्ज कराई, जिसके आधार पर संगम राज पाण्डेय, शिवशंकर शुक्ला और रोशन शर्मा के खिलाफ ब्लैकमेलिंग, धमकी और लूटपाट का मुकदमा दर्ज किया गया। उन्होंने अपनी शिकायत में स्पष्ट बताया कि यह लोग उनके नाम का इस्तेमाल कर आम नागरिकों से धन वसूल रहे हैं, और खुद उनके साथ भी बदसलूकी कर चुके हैं। पुलिस ने पहले तो इस मामले को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब सुजीत सिंह ने कानूनी रास्ता अपनाया, तब कहीं जाकर एफआईआर दर्ज हुई।
पहले मुकदमे के बाद भी जब आरोपियों के हौसले कम नहीं हुए और उन्होंने एक और घटना को अंजाम दिया, तो 5 मार्च 2025 को सुजीत सिंह ने दूसरी शिकायत न्यायालय में दर्ज कराई। इस बार मामला और भी गंभीर था, क्योंकि इस एफआईआर में मिर्जापुर जिले के जिगना थाने के दो पुलिस उपनिरीक्षक—सुशील त्रिपाठी और राजेश पाण्डेय—को नामजद किया गया, जिन पर अपराधियों से मिलीभगत का आरोप है।
इसके साथ ही सैल सिंह (कुसुम) निवासी मवैया प्रयागराज, अल्का सिंह, संगम राज पाण्डेय, शिवशंकर शुक्ला, पंकज श्रीवास्तव (वाराणसी), विक्रम सिंह (प्रयागराज) और चार अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भी केस दर्ज कराया गया। इस तरह कुल 11 लोगों को नामजद किया गया, जिनमें से कुछ पर पहले मुकदमे में भी आरोप लगे थे।
चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम में एक महिला भी शामिल पाई गई, जिसके खिलाफ भी मामला दर्ज हुआ है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह गिरोह न केवल प्रभावशाली है, बल्कि इसमें महिला और पुलिस विभाग के अधिकारी तक शामिल हैं। इस तरह सुजीत सिंह अब तक कुल 12 लोगों के खिलाफ दो अलग-अलग मुकदमों में केस दर्ज करा चुके हैं।
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इस पूरे प्रकरण में सबसे चिंताजनक पहलू मिर्जापुर पुलिस की संदिग्ध भूमिका है। सुजीत सिंह का साफ कहना है कि पुलिस की निष्क्रियता केवल लापरवाही नहीं, बल्कि संभावित मिलीभगत का संकेत है। यदि पुलिस ने समय पर कार्रवाई की होती, तो ना केवल यह गिरोह उजागर हो जाता, बल्कि आम नागरिकों की भी रक्षा हो सकती थी। पुलिस द्वारा जानबूझकर टालमटोल करना और बार-बार शिकायतों को नजरअंदाज करना, इस बात को और पुख्ता करता है कि विभाग के कुछ अधिकारी इन अपराधियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
अब जब न्यायालय के आदेश से दो मुकदमे दर्ज हो चुके हैं, तो सवाल उठता है कि क्या मिर्जापुर पुलिस अब अपनी जिम्मेदारी निभाएगी या फिर मामले को दबाने की कोशिश करेगी। गाजीपुर समेत पूर्वांचल के कई जिलों में इस खबर को लेकर चर्चा तेज हो गई है और लोग पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। यह मामला केवल एक व्यक्ति के सम्मान और सुरक्षा का नहीं, बल्कि पूरे कानून व्यवस्था की साख का है।
इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी स्वयं सुजीत सिंह ने दी है, जो न केवल एक जिम्मेदार सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार की रक्षा के लिए काम कर रहे संगठनों से भी जुड़े हैं। समाज अब पुलिस प्रशासन से जवाब की मांग कर रहा है, और उम्मीद करता है कि न्यायिक प्रक्रिया के तहत दोषियों को सजा मिलेगी।
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