प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने बौद्ध धर्म “Buddhism” की विरासत को पुनर्जीवित करते हुए वैश्विक स्तर पर इसका प्रचार-प्रसार किया। स्वदेश दर्शन योजना, महापरिनिर्वाण एक्सप्रेस, कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन जैसी पहलों से बौद्ध स्थलों का विकास हुआ। लेखिका – स्व0 राम रहस्य महाविद्यालय सिंहपुर चौरी चौरा गोरखपुर बी0एड0 प्रवक्ता रजनी सिंह से जानिए कैसे मोदी सरकार ने बौद्ध संस्कृति, शांति और सह-अस्तित्व के संदेश को आगे बढ़ाया।
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भारत: एक प्राचीन सभ्यता की भूमि
भारत उन कुछ दुर्लभ देशों में से एक है, जिसकी अपनी एक समृद्ध और प्राचीन सभ्यता रही है। इसकी जड़ें मेसोपोटामिया, सिंधु घाटी, वैदिक काल से लेकर वर्तमान तक विस्तारित रही हैं। यह देश आध्यात्मिकता, संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। भारत की आत्मा इसकी आध्यात्मिक विरासत में बसती है, जिसने न केवल अपने नागरिकों को बल्कि पूरे विश्व को शांति और करुणा का संदेश दिया है।
आज भारतीय सभ्यता अपनी प्राचीन जड़ों को सहेजते हुए आधुनिकता के साथ आगे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस तथ्य को भली-भांति समझते हैं कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति उसके अतीत की मजबूत नींव पर ही संभव है। वह मानते हैं कि यदि हमें आत्मविश्वास और सांस्कृतिक गौरव को बनाए रखना है, तो हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहना होगा।
हमारे अतीत की सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करना किसी कठिन तपस्या से कम नहीं है। यह वैसा ही प्रयास है जैसे राजा भगीरथ ने मां गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसी भावना के साथ भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने न केवल भारतीय संस्कृति को एक नई पहचान देने का कार्य किया है, बल्कि बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार और उसके मूल सिद्धांतों को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने का भी कार्य किया है।
आध्यात्मिकता का संदेश: नरेंद्र मोदी और बौद्ध धर्म
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गहरे स्तर पर आध्यात्मिकता को समझते हैं। उनके शासनकाल में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की गई। उन्होंने न केवल भारत में बौद्ध स्थलों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
स्वदेश दर्शन योजना और बौद्ध पर्यटन का विकास
2015 में शुरू की गई स्वदेश दर्शन योजना के तहत बौद्ध तीर्थ स्थलों के विकास के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इस योजना का उद्देश्य बौद्ध धर्म के अनुयायियों को भारत के पवित्र स्थलों की यात्रा में सुविधा प्रदान करना और इन स्थलों के आधारभूत ढांचे को आधुनिक बनाना था। इस योजना के अंतर्गत कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं को लागू किया गया, जिससे देश और दुनिया के बौद्ध तीर्थयात्रियों को लाभ हुआ।

महापरिनिर्वाण एक्सप्रेस: बौद्ध स्थलों को जोड़ने की पहल
बौद्ध धर्म के अनुयायियों की यात्रा को सुगम बनाने के लिए महापरिनिर्वाण एक्सप्रेस नामक विशेष ट्रेन सेवा की शुरुआत की गई। यह ट्रेन बिहार के प्रमुख बौद्ध स्थलों को जोड़ती है, जिससे तीर्थयात्री आसानी से बोधगया, राजगीर, नालंदा, सारनाथ और कुशीनगर जैसे महत्वपूर्ण स्थलों की यात्रा कर सकते हैं।
कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा Buddhism
बौद्ध तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए कुशीनगर में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का शुभारंभ किया गया। यह हवाई अड्डा विशेष रूप से दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और दुनिया के अन्य हिस्सों से आने वाले बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है।
राष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव और सांस्कृतिक संरक्षण
प्रधानमंत्री मोदी ने बौद्ध संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की हैं। उनके कार्यकाल में बुद्ध पूर्णिमा, लुंबिनी महोत्सव और लोसर महोत्सव जैसे बौद्ध पर्वों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी गई। इन महोत्सवों के माध्यम से बौद्ध धर्म और उसकी शिक्षाओं को अधिक व्यापक रूप से प्रचारित करने का कार्य किया गया।
बौद्ध अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ावा
प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल बौद्ध धर्म को सांस्कृतिक रूप से बढ़ावा दिया, बल्कि अकादमिक रूप से भी इसके अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाए। उन्होंने भीमराव अंबेडकर सेंटर के अंतर्गत 200 करोड़ रुपये की लागत से एक विशाल बौद्ध अध्ययन विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई।
इसके अलावा, लद्दाख में लद्दाख महोत्सव के माध्यम से बौद्ध संस्कृति को प्रोत्साहित किया गया। इस महोत्सव के दौरान बौद्ध धर्म से जुड़ी सांस्कृतिक और पारंपरिक कलाओं को प्रदर्शित किया जाता है, जिससे न केवल स्थानीय लोग बल्कि पर्यटक भी बौद्ध परंपराओं से जुड़ सकें।
अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन: भारत की ऐतिहासिक मेजबानी
प्रधानमंत्री मोदी की बौद्ध धर्म में गहरी रुचि को देखते हुए 2021 में पहली बार भारत ने अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन की मेजबानी की। यह सम्मेलन वैश्विक स्तर पर बौद्ध धर्म के महत्व को बढ़ाने और उसके मूल सिद्धांतों को साझा करने का एक महत्वपूर्ण अवसर बना। इस सम्मेलन के माध्यम से भारत ने एक बार फिर बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक केंद्र के रूप में अपनी पहचान को सशक्त किया।
शांति और सह-अस्तित्व का संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि भगवान बुद्ध का जीवन शांति, सद्भाव और सह-अस्तित्व का प्रतीक है। उन्होंने 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा था—
“हम उस देश के वासी हैं, जिसने दुनिया को युद्ध नहीं, बुद्ध दिया है।”
आज भी दुनिया में ऐसी शक्तियां मौजूद हैं, जो घृणा, आतंक और हिंसा फैलाने का कार्य कर रही हैं। ऐसे समय में, प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि यदि मानवता में विश्वास रखने वाले सभी लोग एक साथ आएं और बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को अपनाएं, तो हम एक शांतिपूर्ण और समृद्ध विश्व का निर्माण कर सकते हैं।
भगवान बुद्ध की शिक्षाओं की प्रासंगिकता
वैशाख उत्सव (7 मई 2020) के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था— जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए भगवान बुद्ध का संदेश हमारी सभ्यता और संस्कृति को नई दिशा देता रहा है। उन्होंने भारत की संस्कृति को महान और समृद्ध बनाया है।
वर्तमान समय में, जब समाज, राजनीति और वैश्विक परिस्थितियां लगातार बदल रही हैं, तब भी भगवान बुद्ध का संदेश प्रासंगिक और प्रेरणादायक बना हुआ है।
बुद्ध और बौद्ध केवल एक नाम या धर्म नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं। यह विचारधारा करुणा, अहिंसा, शांति और मानवता पर आधारित है, जिसे आत्मसात करके ही हम एक बेहतर समाज और बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने न केवल अपनी प्राचीन बौद्ध विरासत को पुनर्जीवित करने का कार्य किया है, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर भी नई पहचान दी है। उनके प्रयासों से भारत आज बौद्ध धर्म के मूल संदेश को दुनिया के हर कोने तक पहुंचाने का कार्य कर रहा है, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी इस अद्वितीय आध्यात्मिक धरोहर से प्रेरणा ले सकेंगी।
रजनी सिंह की लेखनी का साल्ट पैराग्राफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अपनी प्राचीन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत—अहिंसा, करुणा और शांति—आज के अशांत विश्व में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। मोदी सरकार द्वारा स्वदेश दर्शन योजना, महापरिनिर्वाण एक्सप्रेस, कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन जैसी पहलें भारत को पुनः बौद्ध धर्म के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित कर रही हैं। यह न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत का पुनरुद्धार है, बल्कि इसकी वैश्विक कूटनीति को भी नया आयाम देता है।
प्रधानमंत्री मोदी का यह संदेश—
“भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं, बुद्ध दिया है,”—उनकी नीतियों में स्पष्ट रूप से झलकता है। जब दुनिया शांति, सह-अस्तित्व और मानवता की ओर नए रास्ते तलाश रही है, तब भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को अपनाकर भारत एक नए युग की ओर अग्रसर है। यह आध्यात्मिक जागरण न केवल बौद्ध तीर्थ स्थलों के विकास का प्रतीक है, बल्कि विश्व मंच पर भारत की सांस्कृतिक शक्ति को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचा रहा है।
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