समाज में रिश्तों की पवित्रता और उनकी गहराई को हमेशा से आदर्श माना गया है। रिश्तों को भावनाओं, विश्वास और सम्मान का प्रतीक माना गया है। लेकिन आधुनिक समय में, इन पवित्र बंधनों के भीतर छिपे स्वार्थ और छल के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। ये न केवल समाज के नैतिक आधार को चुनौती देते हैं, बल्कि रिश्तों की मूल परिभाषा को भी विकृत करते हैं। इस लेख में हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव ऐसे ही कुछ उदाहरणों और उनकी पृष्ठभूमि पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इस कहानी में दिए गए उदाहरण सच हैं किन्तु नाम काल्पनिक हैं। यह कहानी अनेकों जीवन से मेल खा सकती है, क्योंकि ऐसा समाज में आये दिन होता है। इस कहानी का उद्देश्य किसी की भावनाओं व जीवन को ठेस पहुंचाना नही है, बल्कि बदलाव की दृष्टि से विचारणीय है। ऐसी कहानी से सीख लेकर सुधार की आवश्यकता है। अगर यह उदाहरण स्वरूप कहानी आपको किसी के जीवन से जूड़े रिश्तों से मेल खाती है तो महज एक संःयोग है।
शिक्षा, संघर्ष और नैतिकता से जुड़ी मंजू की कहानी

मंजू पासवान की कहानी भारतीय समाज में जातिगत और आर्थिक असमानता के पहलुओं को उजागर करेगी। मंजू, जो अंग्रेजी में एमए और बीएड करने के बावजूद सरकारी नौकरी पाने में असमर्थ रही, अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए प्राइवेट स्कूलों का सहारा लेती रही। लेकिन अत्यन्त पिछड़ी जाति के गरीब परिवार से होने के कारण उसे प्राइवेट स्कूलों में भी नौकरी के मौके नहीं मिलते। यह कहानी यह दर्शाती है कि आज भी कई शिक्षित महिलाएं जातिगत भेदभाव के साथ गरीबी और सामाजिक रूढ़ियों का शिकार हैं। कुवांरी मंजू पासवान अपने गांव से सौ किलोमीटर दूर एक कस्बेनुमा इलाके के स्कूल में सोशल मीडिया फ्रेंड मंगल सिंह कि सिफारिश से नौकरी पाकर, वहां उन्हीं के मकान में रहने लगी। मंजू के मकान मालिक, 45 वर्षीय बदला नाम मंगल सिंह, जो अकेले रहता था, एक दूसरे के जीवन का हिस्सा बने। मंगल सिंह और मंजू पासवान के बीच का रिश्ता समाज के नजरिए से असामान्य था। दोनों के बीच का यह रिश्ता उन परिस्थितियों का परिणाम था, जिनमें दोनों अकेलेपन और भावनात्मक खालीपन से गुजर रहे थे। मंगल सिंह कि पत्नी अर्चना सिंह का लगभग दस वर्षों पहले निधन हो गया था। बेटी हर्षिता सिंह कि शादी एक बड़े घराने के आईएएस अधिकारी से हो चुकी थी। मंगल का एक बेटा अमन सिंह था, जिसकी शादी एक मंत्री कि बेटी अनिता सिंह से हो चुकी थी और पत्नी अनिता अपने पति अमन के साथ दूर दराज क्षेत्र में नौकरी पर रहती थी। ऐसे में मंगल सिंह अपने छोटे कस्बे की हवेली में अकेला रहता था। मंजू उस हवेली में समाज की नजरिये से किराए की कमरे ले रहने लगी। मंजू के सामने भी कुछ हालात ठीक नहीं थे। पढ़ाई में खर्चे का बोझ परिवार की गरीबी के कारण खुद ही उठाने पड़ते थे, साथ ही परिवार के लिए कुछ खर्च की जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती थी। मंजू अपने पढ़ाई और खर्चों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ प्राइवेट स्कूलों में शिक्षिका की नौकरी और बच्चों को कोचिंग पढ़ाया करती थी। मकान मालिक मंगल और प्राइवेट विद्यालय में मंगल सिंह द्वारा एक शिक्षिका के पद पर रखवाई गई मंजू उस हवेली में एक साथ रहने लगे। मंजू अपने जवानी की दहलीज पर कदम रख चूकीं थी उस समय उसकी उम्र 22 वर्ष थी और मंगल सिंह हष्ट-पुष्ट शरीर के साथ 45 के उम्र में बीते दस वर्षों से अकेला जीवन व्यतीत कर रहा था। मंजू को पैसे की कमी थी तो वहीं मंगल सिंह एक जमीदार धनी आदमी था। मंगल सिंह मंजू को धीरे धीरे रूपये पैसे देकर जरूरतों को पूरा करने लगा। मंजू की जवानी पर मंगल सिंह कि नज़र और मंगल के धन-दौलत पर मंजू की नज़र पड़ने से दोनों के बीच शारीरिक भूख उत्पन्न होने लगी। दोनों का अलग-अलग बिस्तर अब एक हो चुका था। मंगल को अब न अपने जीवन में पत्नी कि कमी खल रही थी, न मंजू अब अंदरुनी तौर से कुवांरी रह चुकी थी। दोनों के बीच फिजिकल रिलेशन नियमित रूप से कायम हो गया। यह रिश्ता एक दूसरे की सहमति पर आधारित था, लेकिन इसके पीछे छिपा स्वार्थ और शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति का उद्देश्य इसे केवल एक “सुविधाजनक समझौता” बना देता है। मंगल के कहने पर मंजू पासवान ने अपनी एक खूबसूरत गरीबी में पली-बढ़ी क्लास की सहेली हम उम्र हर्षिता को बुलाई, हर्षिता जब अपनी सहेली मंजू से मिलने आई हवेली देखकर दंग रह गयी। उस दिन मंजू ने हर्षिता को अपने पास रहने के लिए कह, रोक ली। रात में तीनों एक साथ गर्मा गरम भोजन करने डाइनिंग रूम में बैठे, मंगल ने दारू की बोतल खोल मंजू के हाथ में दिया, मंजू तीन पैग बनाने के लिए तीन ग्लास लगाई। हर्षिता ने कहा यार यह क्या है? मंजू ने कहा जीवन का चरम सुख, आज तुम भी लेकर देखो। हर्षिता मंजू की पूरी रणनीति समझ भी नही पाई और कभी दारू देखी भी नहीं थी। उस रात हर्षिता अपनी सहेली व मंगल के साथ हवेली में स्वादिष्ट भोजन सहित दारू भी पी ली। कुछ समय बाद हर्षिता को दारू का नशा शरीर का संतुलन बिगाड़ने लगा, मंजू अपना सहारा दे हर्षिता को बिस्तर पर ले गयी, गर्मी की रात थी कमरे में एसी स्लो कर हर्षिता के कपड़े उतार लिटा दी। फिर मंगल से कही “देख लिजिए” अपनी तरह ही सील पैक सहेली आपको सौंप आपकी इच्छा का सम्मान कर रही हूं। अब मंगल और मंजू दोनों कमरे में एक साथ प्रवेश किए, हर्षिता के नग्न शरीर की खूबसूरती देख मंगल की आंखों में वासना का चमक चरम सीमा को छू रहा था, हाथों व होठों से बदन को सहलाना शुरू किया, नशे के बाद भी हर्षिता को मंगल के स्पर्श से शरीर में झनझनाहट महसूस हो रही थी, रह-रहकर हर्षिता के मुख से सिसकारी निकल रही थी। हर्षिता के अंगों को उत्तेजित कर मंगल फिजिकल संबंध बनाने लगा। नसें के साथ पहली बार के संबंध में थोड़ी दर्द के साथ चरम सुख का एहसास भी हो रहा था। भरपूर मस्ती के बाद एक चादर ओढ़कर तीनों नग्न बदन सो गए। भोर होते-होते हर्षिता का नशा उतर चुका था। जब आंखे खोलकर देखी तो नग्न थी, बीच में मंगल दूसरे तरफ सहेली मंजू भी नग्न बदन सोई हुई थी। हर्षिता के होश उड़ गये, तब तक मंजू भी उठ कर कही यार अभी सोई रहो, क्यो टेन्शन ले रही? जीवन का चरम सुख इसी में ही तो है। हर्षिता कुछ घबड़ाते हुए उठी तब मंजू भी उठ हाथों का सहारा दे बाथरूम के तरफ ले गई और कही देखो कभी कोई कमी नहीं होगी और बाथरूम से निकल तिजोरी खोल चाभी दे बोली जितनी मर्जी यहां रहकर खर्च करो सब हम दोनों का ही रहेगा। हर्षिता रूपयों की रखी गड्डी और आभूषण देख अपने आप को संभालने लगी और अपने इरादे बदल हामी भर दी। अगले दिन मंजू हर्षिता को यह समझा कर रहने के लिए राजी कर ली कि घर बता दो मेरी नौकरी मंजू के साथ स्कूल में लग गयी और यहां सेलरी अच्छी मिलेगी, इसलिए कुछ दिनों बाद घर आऊंगी। हर्षिता ने ऐसा ही किया और परिवार कि सहमति से रह गयी। दो दिनों बाद रविवार को सुबह हर्षिता के माता-पिता मिलने आये तो फैसिलिटी देखकर दंग रह गये। मंजू और हर्षिता ने मंगल सिंह का परिचय अंकल के रूप में करवाया और बताया अंकल जी कभी-कभी यहां आते हैं, दो चार घंटे रूक शहर की अपनी हवेली पर चले जाते हैं। मंगल ने कहा ये दोनों मेरी बेटी ही तो हैं इन्हें ही अपनी हवेली दे मै अनिश्चित रहता हूं। यह जानकर हर्षिता के माता-पिता बहुत खुश हुए कि इतनी बड़ी हवेली और अच्छी तनख्वाह की नौकरी हमारी बेटी को मंजू के वजह से मिला हुआ है। दिन ढ़लने से पहले ही हर्षिता को खुश देखकर माता-पिता बिदा हो अपने गांव को चले गए। मंजू के माता-पिता भी आते-जाते रहते थे और अपनी बेटी को खुश देखकर खुश थे लेकिन खुशी का अंदरूनी कारण दोनों के माता-पिता को पता नहीं चल रहा था। अब मंजू ने अपने साथ हर्षिता को भी इस खेल में शामिल किया और मंगल सिंह अपने एक मित्र काली सिंह को शामिल कर लिया। काली सिंह कभी-कभी रात को आता और गरमा गरम पार्टी होती हजारों खर्च कर रात बीता काली सिंह चला जाता था। मंजू के इशारे पर काली सिंह को हर्षिता खुश करती और सारे रुपये इकट्ठा अपने पास रखती। दोनों ने धीरे-धीरे रूपये तो बहुत इकट्ठा कि लेकिन समाज के नजर में कुवांरी दिखते हुए कुंवारी नही रह गयी थीं। यह पूरी कहानी महज संबंधों के आदान-प्रदान का माध्यम बन गई। बीच-बीच में मंजू और हर्षिता पेट से होती रही और गर्भपात करवाती रही लम्बे सालों बाद घर वालों ने विवाह किया, बार-बार गर्भपात के कारण विवाहित जीवन में मां बनने का सुख डाक्टर के मुताबिक दोनों खो चुकीं हैं मंजू व हर्षिता डाक्टर के मुताबिक अब मां नही बन सकती हैं। यह कहानी स्पष्ट दिखाता है कि जब लोग परिस्थितियों का फायदा उठाते हैं, तो रिश्तों की गरिमा और सीमाएं खत्म हो जाती हैं।

शहरी जीवन और झूठे रिश्ते: मंजीत और ममता का त्रिकोण
शहरी समाज में रिश्तों के रूप और उनकी सीमाओं को मंजीत सिंह, ज्योति सिंह और ममता यादव की कहानी से समझा जा सकता है। मंजीत सिंह और ज्योति सिंह जो पति-पत्नी हैं, अपनी शादीशुदा जिंदगी से ऊब चुके थे। दूसरी ओर, महेश यादव और उसकी पत्नी ममता यादव, जो किराए पर रह रहे थे, इस रिश्ते का केंद्र बन गए। मंजीत, ममता पर मोहित हो गया और ज्योति ने महेश को अपने करीब लाने के लिए ममता को अपनी बहन बनाने का दिखावा किया। इन झूठे रिश्तों की आड़ में, शारीरिक और मानसिक इच्छाओं की पूर्ति का खेल चलता रहा। यह कहानी यह दर्शाती है कि जब रिश्ते केवल शारीरिक इच्छाओं तक सीमित हो जाते हैं, तो उनका आधार कमजोर और अस्थिर हो जाता है। इस तरह की कहानी समाज में व्यापक रूप से देखी जा सकती है। विस्तृत रूप से पढ़ने के लिए हमें हवाटएप्स 7379622843 पर डिमांड करें और अपने विचार कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं कहानी कैसी लग रही है।

झूठे रिश्तों और उनके परिणामों का प्रभाव लेखक का संदेश – इन कहानियों में झूठे रिश्तों और अस्वस्थ इच्छाओं की पूर्ति का जो चित्रण है, वह समाज में नैतिकता की गिरावट को उजागर करता है। ऐसे रिश्तों के नतीजे कई बार दर्दनाक और हानिकारक होते हैं।
अप्रत्याशित गर्भधारण
जब इन रिश्तों के परिणामस्वरूप फिजिकल रिलेशन से महिलाएं गर्भवती हो जाती हैं, तो पुरुष अक्सर उनका साथ छोड़ देते हैं। या जहां संबंध लंबे समय के लिए एक दूसरे से जरूरत पूर्ण बना रहता है, वहां यौन शिक्षा के अभाव में बार-बार गर्भपात भी होता है। यह न केवल महिलाओं की स्थिति को कमजोर करता है, बल्कि उनके मानसिक और सामाजिक जीवन को भी बुरी तरह प्रभावित करता है।
परिवार और समाज पर प्रभाव
इन संबंधों के कारण परिवारों के बीच विश्वास की कमी बढ़ जाती है। यह बच्चों, पत्नियों, और माता-पिता जैसे निर्दोष लोगों को भी प्रभावित करता है। जब रिश्ते हद से आगे बढ़ जाते हैं तो परिवार भी बिखर जाता है और समाज से चरित्र हरण का आरोप भी लगता है। अगर इन सब मामलों का नियमित सर्वेक्षण देखा जाए तो अनुमानतः कम से कम 50 प्रतिशत सम्बन्ध गुप्त रूप से नाजायज़ बनाये जाते हैं।
सामाजिक मूल्यों का पतन
समाज में जब रिश्तों का इस्तेमाल स्वार्थ सिद्धि के लिए किया जाता है, तो यह नैतिकता और मूल्यों का पतन दर्शाता है। ऐसे उदाहरण समाज के लिए एक बुरा संदेश देते हैं। सम्बन्ध पर जब गैर कि नजर पड़ती है तो उसी मे से ज्यादातर के साथ बलात्कार का मामला भी सामने आता है।
समाज को क्या सीखना चाहिए?
इन कहानियों से हमें यह समझना चाहिए कि समाज में नैतिकता, जिम्मेदारी और शिक्षा का सही उपयोग कैसे किया जाए। आज इंटर्नेट और हाथोंहाथ एनड्राइड मोबाइल न चाहते हुए स्त्री-पुरुष को भी अनैतिक रूप से गैर स्त्री-पुरुष के साथ फिजिकल रिलेशन का बढ़ावा दे दिया है। इस पर परिवार के जिम्मेदार सदस्यों को ध्यान देना चाहिए।
महिलाओं के लिए समान अवसर
मंजू पासवान जैसी महिलाएं, जो जातिगत और सामाजिक भेदभाव का सामना कर रही हैं, उन्हें समाज में समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उचित मार्ग से आय का श्रोत होना चाहिए। यह सरकार कि अहम जिम्मेदारी है। समाज में बेरोजगारी का बढ़ावा खासकर महिलाओं को अनैतिक संबंधों के तरफ़ ढकेल रहा है। जिसका जीता जागता उदाहरण सोशल मीडिया साइट से देखा जा सकता है।
रिश्तों में पारदर्शिता
झूठे रिश्तों के कारण न केवल व्यक्तिगत जीवन, बल्कि पूरे समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रिश्तों में पारदर्शिता और सम्मान बनाए रखना जरूरी है।
शारीरिक इच्छाओं पर नियंत्रण
रिश्ते केवल इच्छाओं की पूर्ति का माध्यम नहीं हैं। समाज को यह समझने की जरूरत है कि रिश्तों का आधार विश्वास और सहानुभूति होना चाहिए।
संवेदनशील शिक्षा
शिक्षा केवल ज्ञान देने का माध्यम नहीं है। यह नैतिकता, जिम्मेदारी, और समाज में योगदान करने की भावना भी सिखाती है। खासकर यौन शिक्षा पर ध्यान देते हुए आवश्यक जानकारी समय से पूर्व देने की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए ताकि अनैतिक संबंधों से उत्पन्न होने वाली शारीरिक समस्याओं को समय रहते युवक-युवतियों को पता चल सके।
रिश्तों की पवित्रता को बचाने की चुनौती एक संदेश
रिश्ते हमारी सामाजिक संरचना का आधार होते हैं। जब लोग स्वार्थ, इच्छाओं, और क्षणिक सुख के लिए रिश्तों का उपयोग करते हैं, तो यह समाज में नैतिकता की गिरावट का संकेत है। हमें रिश्तों की पवित्रता और मूल्यों को बनाए रखने के लिए एकजुट होकर काम करना होगा। समाज को यह समझने की जरूरत है कि रिश्ते केवल भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों तक सीमित नहीं होते, बल्कि यह एक गहरे विश्वास और जिम्मेदारी पर आधारित होते हैं। इन कहानियों से हमें यह सीखने की जरूरत समाज को अमूल्य संदेश है कि सही निर्णय, नैतिकता, और जिम्मेदारी कैसे हमारे समाज को एक बेहतर दिशा में ले जा सकते हैं। यौन शिक्षा के अभाव में अनैतिक फिजिकल रिलेशन से बार-बार गर्भ धारण करने की नौबत आ जाती है और बार-बार गर्भपात जरूरत पर मां बनने की संभावना खत्म कर देती है।