कछुआ और खरगोश की दौड़ में फिर लगी शर्त… लघुकथा

Amit Srivastav

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कछुआ और खरगोश की दौड़ में फिर लगी शर्त… लघुकथा

कछुआ और खरगोश सहयोग और एकजुटता की यह कथा/कहानी हमारे समाज में प्रचलित प्रतिस्पर्धा की मानसिकता को बदलने का प्रयास करती है। कछुआ और खरगोश, जिनकी पारंपरिक कहानी हमें सिखाती है कि “धीमा और स्थिर ही दौड़ जीतता है,” इस बार एक नई सीख देते हैं।
इस लघुकथा की शुरुआत होती है एक दौड़ से, जहाँ कछुए की धीमी गति और खरगोश की तेज चाल को आधार बनाकर लोग उन्हें आंकते हैं। लेकिन जब परिस्थितियाँ बदलती हैं और नदी जैसी बाधा आती है, तो दोनों एक दूसरे की मदद करते हैं। कछुआ अपने पीठ पर खरगोश को बैठाकर नदी पार कराता है, और दोनों एक साथ फिनिशिंग प्वाइंट पर पहुँचते हैं।
यह कहानी बताती है कि जीवन में केवल गति या ताकत महत्वपूर्ण नहीं होती, बल्कि सहयोग और समझ ही असली जीत दिलाती है। जब हम अपनी प्रतिस्पर्धा को एकजुटता में बदल देते हैं, तो हम न केवल बाधाओं को पार करते हैं, बल्कि समाज में नई मिसाल भी कायम करते हैं।

एक बार कछुआ जीता था और खरगोश हार गया था। आज फिर शर्त लगी है, खरगोश और कछुए की दौड़ में कौन प्रथम आता है, किसी को पता नहीं। इस बार दौड़ का ट्रैक ऐसा बना की आधे किलोमीटर तक ज़मीन और आधे किलोमीटर तक नदी के फासले को पार करके फिनिशिंग प्वाइंट पर पहुँचना था।
सभी इंसानों की निगाहें कछुए और खरगोश की दौड़ पर लगी थी। इंसान खचाखच भरे थे, इस दौड़ को देखने के लिए। क्या पुराना इतिहास फिर दोहराया जाएगा… और फिर दौड़ की कमेंट्री शुरू हुई…

कछुआ और खरगोश की दौड़ में फिर लगी शर्त… लघुकथा


(जब कछुआ और खरगोश ट्रैक पर उतरे)

दोनों आपस में कानाफूँसी कर रहे हैं और यह रहा दौड़ शुरू होने का संकेत… यह क्या! खरगोश ने कछुए को अपनी पीठ पर लाद लिया! और बहुत तेजी से भागा। यह देख इंसान हैरान हैं। दौड़ते-दौड़ते नदी के पास पहुँचे और फिर क्या देखते ही कछुआ पानी में उतरा और खरगोश को अपने पीठ पर बैठा लिया। कछुए ने पीठ पर खरगोश को बैठाकर आसानी से नदी पार करा दिया।

दोनों साथ-साथ हैं, फिनिशिंग प्वाइंट पर एक साथ कदम रखा और इस सदी के दोनों विजेता बन गए।
कछुआ और खरगोश दोनों ने एक दूसरे की मदद की प्रतिस्पर्धा में टाँग खींचने वाली उस सोच को बदल दी।
सभी इंसान अवाक रह गए! यह क्या कछुआ और खरगोश दोनों विजेता हैं।

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कथा का सार

कछुए और खरगोश की इस प्रेरक कथा से यह संदेश मिलता है कि सहयोग और आपसी समझ किसी भी प्रतिस्पर्धा से अधिक मूल्यवान है। कछुए ने अपनी सीमाओं के बावजूद खरगोश को नदी पार कराने में मदद की, और खरगोश ने भी कछुए के धीमेपन को नजरअंदाज करते हुए उसकी सहायता की। दोनों ने मिलकर यह साबित किया कि जीत केवल प्रतिस्पर्धा से नहीं, बल्कि एकजुटता और सहयोग से संभव है।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में दूसरों के साथ मिलकर चलने और उनकी ताकत को अपनाने से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।

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मुख्य संदेश

सच्चा विजेता वही है जो अपनी जीत में दूसरों की भागीदारी को महत्व देता है। सहयोग, एकता, और मानवता से ही जीवन की असली दौड़ जीती जा सकती है।

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