politics व्यंग्य लेख अभिषेक कांत- राजनीति एक ऐसे पड़ाव पर है जहां धक्का-मुक्की और खींचा-तानी चल रही है। मजेदार बात है कि संसद के बाहर राहुल गांधी का धक्का सबको कर दिया हक्का-बक्का। मीडिया के चैनलों में राहुल का धक्का ऐसा गूंज रहा है, जैसे भूकंप आ ही गया हो। कई तरह के धक्के से देश वैसे ही परेशान है। अब मार्केट में एक नया धक्का आ गया है। चलिए कुछ धक्कों की बात कर लिया जाए।
जुमलेबाजी की राजनीति
अभी कुछ समय पहले अडानी को धक्का दिया गया। यह अलग बात है, अडानी को धक्का अमेरिका की तरफ से मिला। इधर चुनाव से पहले भी धक्के की समाचार आ रही थी। उधर पेपर लीक वाला धक्का भी सामने आया था। महंगाई वाला धक्का-मुक्की तो जोर-जोर से चल रहा है। पहले बहुत तेजी से चलता था, अब धक्का से ही चल रहा है। धक्का देने वाले राजनेता मस्त हैं और धक्का खाने वाली जनता बेहाल हैं।
इधर मीडिया में यह छोटे-छोटे धक्के को एक बड़ा नाम दे दिया गया है, धक्का-कांड। जब किक से स्टार्ट नहीं होता है तो खटारे स्कूटर को धक्का दिया जाता है। हमारे परम मित्र के इस ज्ञान से यह बात समझ में आई कि वह पूरे राजनीति वाले हैं। इधर नेता धीरे-धीरे धक्का दे-देकर दूसरी पार्टी भी बदलते रहे हैं।
वही सुना है कि प्याज की बोरी ने टमाटर को धक्का दे दिया, मंडी में बवाल मच गया है। इधर टमाटर का दाम भी गिर गया उधर प्याज का दाम बढ़ गया, धक्के ने प्याज की इज्जत बढ़ा दी। वही इस धक्के में आलू सीधा-साधा सवाल पूछ रहा है? धक्का तो आम बात है लेकिन इतना बड़ा नुकसान पहली बार हुआ है। आलू दार्शनिक हो जाता है कभी-कभी और बड़े विस्तार से बताता है, “धक्का जीवन का आधार है। धक्के से ही इंसान महान बनता है। धक्का खाकर जो आगे बढ़ता है, वह कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ता है।”
धक्के के आगे सारा कुछ पीछे छूट गया है। कुछ खोजी लोग पीछे छूटे हुए सामान को बटोरने गए तो पता चला कि केले का छिलका धक्का का कारण बना था। अब पता लगाया जा रहा है कि केले का छिलका किसने खाकर फेंका था। फॉरेंसिक जांच हो रही है। शासन प्रशासन तन गई है। जब तक रिपोर्ट आएगी तब तक धक्का-कांड मीडिया पर अपना धक्का वाला कमाल कर जाएगा। कुछ लोग तो अड़ गए कि धक्का वाला वीडियो वायरल होनी चाहिए। पर ऐसा बड़ा धक्का वाला वीडियो वायरल न होने से शॉर्ट रील देखने वालों पर में मायूसी छाई हुई है। देश का इतने बड़े धक्के की कोई वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं हो पाई, आज के चैनलों पर बड़े सवाल उठ रहे हैं।

धक्का किसी सुनामी से कम नहीं था। हिल गया सब कुछ। जैसे-जैसे धक्का कांड की खबरें पन्नों पर और टीवी चैनलों पर छा रही है, वैसे-वैसे कई छोटे-छोटे धक्के वाली खबरें गायब हो गई हैं। बेरोजगारी और महंगाई की धक्का वाली खबर नदारत। नेताजी की बयान वाला धक्का खबरों के पहले पृष्ठ से गायब।
एक मीडिया विशेषज्ञ ने बताया कि पहले गढ्ढे पर चर्चा होती थी, अब धक्के पर चर्चा हो रही है। हम गढ्ढे से निकलकर धक्के तक पहुंच चुके हैं, तभी आम आदमी ने जवाब दिया कि ‘धक्का’ के कई प्रकार होते हैं। नेताओं का नेताओं द्वारा दिया गया धक्का और सरकार के द्वारा आम नागरिकों को दिया जाने वाला धक्का। यह अपने आप में अलग-अलग कैटेगरी है।
सरकार द्वारा आम आदमी को दिया जाने वाला धक्का हमेशा लॉलीपॉप नहीं होता है। बढ़ती महंगाई का धक्का, खराब शिक्षा और स्वास्थ्य का धक्का, भ्रष्टाचार का धक्का, बढ़ते हुए टैक्स का धक्का और घटती हुई कमाई का धक्का आम आदमी को हक्का-बक्का किए हैं, नेताओं का धक्का मुक्की तो नाटक है, उन्हें आपके वोट से मतलब है।