उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले का राजाबारी गांव, से रिश्तों की कड़वी सच्चाई जहां खेतों की हरियाली और नदियों की कलकलाहट जीवन को संगीतमय बना देती है। यह वह जगह थी जहां नागेश्वर रौनियार का जन्म हुआ था। 26 साल का यह युवक, लंबा कद-काठी वाला, सादा सा चेहरा लेकिन आंखों में एक चमक जो सपनों से भरी होती थी। नागेश्वर एक छोटे से दुकानदार का बेटा था, जो गांव की सीमाओं से बाहर निकलने का सपना देखता था।
छह साल पहले, एक बारिश भरी शाम को, उसकी मुलाकात नेपाल की सीमा पार रहने वाली नेहा से हुई। नेहा 22 साल की लंबे काले बालों वाली, मुस्कान ऐसी कि सूरज की किरणें शरमा जाएं। दोनों की नजरें मिलीं, और बस, प्रेम की चिंगारी सुलग उठी।
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उनका प्रेम विवाह हुआ, बिना किसी विरोध के। परिवारों ने खुशी-खुशी सहमति दी, क्योंकि प्रेम की यह कहानी सीमा पार की दोस्ती का प्रतीक बनी। शादी के बाद जीवन एक परी कथा सा लगने लगा। नागेश्वर अपनी छोटी सी दुकान चलाता, जहां वह किराने का सामान बेचता।
नेहा घर संभालती, और दोनों मिलकर सपने बुनते – एक बड़ा सा घर, बेटे की पढ़ाई, और एक दिन नेपाल लौटकर अपना कारोबार शुरू करना। एक साल बाद, उनके जीवन में आया आदविक, छोटा सा राजकुमार। उसकी हंसी घर की दीवारों को गूंजाती, और रातें दोनों के बीच की बातों से रंगीन हो जातीं।
“नेहा, देखो ना, आदविक की आंखें कितनी तेरी जैसी हैं,” नागेश्वर हंसते हुए कहता, जब वह बेटे को गोद में लिए चाय पीता। नेहा मुस्कुराती, “और तेरी जिद की तरह ही है, कभी मानता ही नहीं।” ऐसे ही पल, छोटे-छोटे लेकिन अमूल्य। गांव वाले ईर्ष्या से देखते, “कितना सुखी जोड़ा है ये।” लेकिन जीवन कभी स्थिर नहीं रहता। एक दिन, सब कुछ बदल गया।
नागेश्वर का एक पुराना दोस्त, जितेंद्र, जो उसी गांव का था, उसके जीवन में आया। जितेंद्र, 28 साल का, मजबूत कंधों वाला, लेकिन आंखों में एक छलावा। वह अक्सर नागेश्वर के घर आता-जाता, हंसी-मजाक करता। लेकिन जब नागेश्वर एक छोटे से विवाद में फंस गया – एक जमीन के झगड़े में गलत हाथों से धन उधार ले लिया, जो कानूनी पचड़े में बदल गया – तो वह जेल चला गया। एक साल की सजा। नेहा अकेली पड़ गई।
आदविक के रोने की आवाजें, घर की खामोशी, और बाहर की दुनिया की चुभनें। जितेंद्र ने सहारा दिया। पहले तो भोजन पहुंचाया, फिर बातें कीं, और धीरे-धीरे, नेहा का दिल डोल गया। एक रात, जब चांद बादलों में छिपा था, जितेंद्र ने नेहा का हाथ थामा। “मैं हूं ना, सब संभाल लूंगा।” नेहा ने विरोध नहीं किया। प्रेम का वह बंधन टूट चुका था, नया बंधन बन रहा था।
जेल से लौटने पर नागेश्वर को लगा जैसे घर ही बदल गया हो। दीवारें वही, लेकिन हवा में एक उदासी। नेहा की नजरें मिलीं, लेकिन उनमें वही चमक नहीं थी। आदविक ने पिता को पहचाना, लेकिन नेहा दूर खड़ी रही। “क्या हुआ, नेहा? सब ठीक तो है ना?” नागेश्वर ने पूछा, थके हुए चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए। नेहा ने सिर झुका लिया, “हां, बस… सब ठीक है।”
लेकिन सच धीरे-धीरे बाहर आया। गांव की अफवाहें, पड़ोसियों की फुसफुसाहट। जितेंद्र और नेहा का रिश्ता। नागेश्वर का दिल टूट गया। वह रोया, चिल्लाया, लेकिन नेहा चली गई। बेटे को लेकर जितेंद्र के घर। “वापस आ जा, नेहा। आदविक को तेरी जरूरत है, मेरी भी। हम फिर से शुरू करेंगे।” नागेश्वर की पुकारें हवा में गुम हो जातीं। वह जितेंद्र के घर जाता, दरवाजा पीटता, लेकिन जितेंद्र हंसता, “भाई, अब ये मेरा घर है। जा, अपनी जिंदगी जी।”
दिन बीतते गए। नागेश्वर की आंखों में नींद गायब हो गई। वह रातें भर जागता, पुरानी यादों में खोया रहता। “क्यों हुआ ये सब? मैंने क्या गलती की?” वह खुद से पूछता। गांव के बुजुर्ग सलाह देते, “बेटा, कानूनी रास्ता अपनाओ। बच्चे की कस्टडी के लिए कोर्ट जाओ।” लेकिन नागेश्वर का दिल टूटा था, दिमाग काम नहीं कर रहा था। वह बार-बार नेहा को मनाता, फूल लाता, पत्र लिखता। लेकिन हर बार ठुकराया जाता। जितेंद्र की धमकियां बढ़ गईं, “दूर रह, वरना बुरा होगा।”

नेहा के मन में अपराधबोध था, लेकिन जितेंद्र का प्यार उसे अंधा बना रहा था। “वो तो जेल गया था, अब क्या करेगी तू?” जितेंद्र कहता। नेहा सोचती, लेकिन फैसला नहीं ले पाती। आदविक बीच में फंस गया – मां की गोद में, लेकिन पिता की यादों से परेशान। बच्चे की आंखों में सवाल, “पापा कब आएंगे?”
समाज चुप था। गांव में ऐसी कहानियां आम हैं – प्रेम के नाम पर विश्वासघात। लेकिन कोई बोलता नहीं। महिलाओं को दोष, पुरुषों को मजाक। लेकिन यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं थी; यह पूरे समाज का आईना थी। जहां संवाद की कमी, भावनाओं का दमन, और त्वरित फैसलों ने सब बर्बाद कर दिया।
12 सितंबर की वह रात। चांदनी रात नहीं, बादल घने थे। नेहा ने नागेश्वर को फोन किया, “मिलना है, बिस्मिल नगर में। आखिरी बार।” नागेश्वर का दिल धड़का। शायद लौट आएगी। वह तैयार हो गया, साफ कपड़े पहने, मुस्कान लाने की कोशिश। बिस्मिल नगर पहुंचा, एक छोटे से ढाबे पर। नेहा वहां थी, साड़ी में, लेकिन चेहरे पर उदासी। “शराब लाई हूं, पी लो। पुरानी यादें ताजा करेंगे।” नेहा ने कहा। नागेश्वर ने मना किया, लेकिन नेहा की आंखों में आंसू देखकर मान गया। एक गिलास, दो, तीन। नेहा ने खुद बीयर ली, साथ पी। बातें हुईं – पुरानी, मीठी। नागेश्वर की आंखें भारी हो गईं, नींद आ गई।
जब वह सो गया, नेहा का चेहरा बदल गया। डर, गुस्सा, पछतावा – सब मिला। उसने दुपट्टा निकाला, नागेश्वर के पैर बांध दिए। फोन निकाला, जितेंद्र को बुलाया। “आ जा, अब हो गया।” जितेंद्र आया, आंखों में क्रूरता। “ये तंग कर रहा था, खत्म कर दो।” दोनों ने मिलकर गला दबाया। नागेश्वर जागा, चीखा, लेकिन देर हो चुकी। जितेंद्र के हाथों में चाकू, वार हुए। खून बहा, तड़पाहट हुई, और फिर शांति। नागेश्वर चला गया, अपनी अधूरी कहानी लेकर।
हत्या के बाद का डर। नेहा रोई, लेकिन जितेंद्र ने सांत्वना दी, “चल, सब ठीक हो जाएगा। शव को ठिकाने लगाते हैं।” उन्होंने कपड़े उतारे, पानी से धोया – सबूत मिटाने को। फिर बाइक पर लादा। आदविक को आगे बैठाया, छोटा सा बच्चा, जो कुछ समझ नहीं पा रहा। 25 किलोमीटर, निचलौल-सिंदुरिया मार्ग। रास्ते में शव घिसटा, लेकिन वे रुके नहीं। फेंक दिया सुनसान जगह पर।
अब भागने का प्लान। मुंबई, नई जिंदगी। गोरखपुर ट्रेन पकड़ने चले। लेकिन नागेश्वर के पिता को शक हो गया। बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट। पुलिस हरकत में। मोबाइल लोकेशन ट्रैक, परतावल के पास दबोच लिया। पूछताछ में टूट गए दोनों। नेहा रोई, “मैंने गलती की।” जितेंद्र चुप। मामला कोर्ट में, हत्या का चार्ज।
यह कहानी खत्म नहीं हुई। यह एक शुरुआत है – सकारात्मक बदलाव की। जब खबर फैली, गांव सन्नाटे में डूब गया। लेकिन कुछ युवा इकट्ठे हुए। “ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं? कैसे रोकें?” उन्होंने फैसला किया, एक समूह बनाया – “रिश्तों का पुल”। इस समूह का मकसद— संवाद सिखाना, काउंसलिंग देना, कानूनी जागरूकता फैलाना।
पहला कदम: स्कूलों में वर्कशॉप। क्राइम लव स्टोरी लेखक अमित श्रीवास्तव, गूगल टाप वेबसाइट्स amitsrivastav.in ने मदद की। जहां ऐसी कहानियों का पर्दाफाश होता है, लाखों लोगों द्वारा शेयर होता है, इसलिए कि समाज मे सकारात्मकता आये, समाज को झकझोरें। नागेश्वर की कहानी को आधार बनाकर एक वर्कशॉप डिजाइन की। “प्रेम क्या है? विश्वासघात क्यों? और सुधार कैसे?”
वर्कशॉप में बच्चे सुनते। “देखो, नागेश्वर और नेहा की तरह, अगर बातें न करें, तो क्या होता है?” एक लड़की बोली, “मां-पापा झगड़ते हैं, लेकिन बात क्यों नहीं करते?” अमित ने कहा, “बात करो। परिवार में साप्ताहिक मीटिंग रखो। भावनाएं शेयर करो।”
दूसरा सबक: कानूनी रास्ता। नागेश्वर ने कोर्ट क्यों नहीं गया? युवाओं को सिखाया गया – डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, चाइल्ड कस्टडी लॉ। “अगर रिश्ता टूटे, तो कोर्ट जाओ, न कि हिंसा।” एक वकील आए, केस स्टडी शेयर की। नेहा-जितेंद्र का केस उदाहरण बना – आजीवन कारावास की सजा, लेकिन पछतावा बाकी।
तीसरा: महिलाओं का सशक्तिकरण। नेहा जैसी महिलाएं अक्सर दबाव में आ जातीं। ग्रुप ने महिलाओं के लिए सेल्फ-डिफेंस क्लास शुरू कीं। “नहीं, हिंसा का जवाब हिंसा नहीं। मजबूत बनो, आवाज उठाओ।” नेहा की मां आईं, आंसू पोछते हुए बोलीं, “मेरी बेटी गलत रास्ते पर चली गई। लेकिन तुम्हारी ये पहल… उम्मीद जगाती है।”
आदविक? वह अब दादा-दादी के पास। ग्रुप ने उसके लिए फंड रेज किया, पढ़ाई के लिए। “बच्चों को न भुगतना पड़े मां-बाप की गलतियां।”
महीनों बाद, राजाबारी बदला। “रिश्तों का पुल” ने 50 से ज्यादा वर्कशॉप किए। amitsrivastav.in पर स्टोरी पब्लिश हुई – “रिश्तों की आग: एक सबक”। लाखों ने पढ़ा, शेयर किया। कमेंट्स आए “ये स्टोरी मेरी जिंदगी बदल गई। अब पत्नी से बात करता हूं।”
एक जोड़ा आया, झगड़े में। काउंसलिंग ली, अलगाव टल गया। एक लड़की, अफेयर में फंसी, सलाह ली – रुक गई। समाज में बहस छिड़ी— “प्रेम में विश्वासघात क्यों? शिक्षा की कमी?”
अमित की साइट ने इसे प्रचलित बनाया। गूगल सर्च से विश्व भर में पहुंचा। “सकारात्मक बदलाव छोटे कदमों से।” पुलिस ने भी पार्टनरशिप की – क्राइम प्रिवेंशन वर्कशॉप। महराजगंज एसपी बोले, “ऐसी घटनाएं कम होंगी, अगर जागरूकता हो।”
नेहा जेल में। पत्र लिखा ग्रुप को “मुझे माफ करो। मैंने गलती की। लेकिन तुम्हारी कोशिश… आदविक को मजबूत बनाएगी।” जितेंद्र चुप, लेकिन सजा ने सबक सिखाया।
दो साल बाद। आदविक स्कूल में, टॉपर। “पापा की याद आती है, लेकिन दादाजी कहते हैं, जीवन आगे बढ़ता है।” ग्रुप ने हॉटलाइन लॉन्च की – रिश्तों की परेशानी पर कॉल। सैकड़ों कॉल्स, सैकड़ों जीवन बचाए।
नागेश्वर की याद में एक पार्क बनाया गया – “शांति वाटिका”। वहां बेंच पर लिखा— “बात करो, समझो, प्यार करो।” गांव वाले घूमते, सोचते। समाज बदल रहा है। प्रेम अब सिर्फ आकर्षण नहीं, जिम्मेदारी है।
यह कहानी खत्म नहीं, जारी है। हर पाठक, हर श्रोता, बदलाव का हिस्सा। क्योंकि एक गलती पूरे समाज को सिखा सकती है – सकारात्मकता की राह पर चलो।

amitsrivastav.in Google side पर यह मूल क्राइम लव स्टोरी, वास्तविक घटना से प्रेरित काल्पनिक तत्वों से युक्त, शैक्षणिक उद्देश्य के लिए प्रकाशित साझा करने योग्य है।

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