गोगाजी का सम्पूर्ण इतिहास: वीरता, धर्म और नाग देवता की महिमा

Amit Srivastav

गुरु गोरखनाथ शिष्य गोगाजी, जिन्हें गोगा वीर, जाहरवीर गोगा और गोगा पीर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के एक प्रसिद्ध लोक देवता हैं। राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में उनकी महिमा गीत-संगीत, भजन-कीर्तन नाट्यकला के माध्यम से गाई जाती है। गोगाजी को नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है और इन्हें विष से रक्षा करने वाले संरक्षक के रूप में मान्यता प्राप्त है। गोगाजी का इतिहास चमत्कारी घटनाओं, वीरता और धार्मिकता से भरा है, जो इन्हें लोक देवता के रूप में पूजित बनाता है। आइए भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी में जानिये सुस्पष्ट भाषा में गोगाजी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से लोकप्रिय गाथाओं को।

गोगाजी का जन्म और परिवार

गोगाजी का जन्म राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा गांव में 9वीं शताब्दी में हुआ था। उनका जन्म चौहान वंश के एक राजपूत परिवार में हुआ था और उनके पिता का नाम जेवर सिंह तथा माता का नाम बाछल था। कहा जाता है कि गोगाजी का जन्म भगवान शिव के अंश गोरखनाथ जी के वरदान से हुआ था। जन्म की कहानी लम्बी है जिसमें गोरखनाथ गोगा जी की माता बाछल की बहन काछल के द्वारा बाछल कहकर गुरु गोरखनाथ से मां गंगा द्वारा दिया गया प्रसाद ले ग्रहण किया गया, फिर बाछल के लिए गोरखनाथ नागलोक जाकर समुद्र मंथन से निकला गुग्गल तत्क्षक नाग से ले आकर मां बाछल को दिया जिससे गोगा जी की उत्पत्ति हुई। गोरखनाथ से प्राप्त गुग्गल को बाछल ने अपनी बांझ घोड़ी को भी दिया जिससे घोड़ी ने एक नीला घोड़े को जन्म दिया जो गोगाजी का वाहन बना।
गोगाजी का नाम गोगा रखने का दो कारण था एक तो नागलोक से शिव अवतारी गोरखनाथ जी द्वारा लाया गया गुग्गल से जुड़ा है और दूसरी कथा उनके जन्म के समय की एक घटना से भी जुड़ा हुआ है। एक कथा के अनुसार, जब वे छोटे थे, तब एक सर्प ने उनके पास आने की कोशिश की, लेकिन गोगाजी ने निर्भयता से सर्प को वश में कर लिया। इसलिए उन्हें नागों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है।

गोगा जी गुरु गोरखनाथ

गोगाजी का सम्पूर्ण इतिहास: वीरता, धर्म और नाग देवता की महिमा

गोगा जाहरवीर और गुरु गोरखनाथ की बाल लीला राजस्थान और उत्तर भारत की लोक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इन कहानियों में गोगा जी के बचपन के चमत्कारों और गोरखनाथ के आशिर्वाद से जन्म सहित उनके साथ उनकी मुलाकात का उल्लेख किया गया है। यह कथा गोगा जी की आध्यात्मिक शक्ति और उनकी महानता का परिचय देती है।

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गोगा जी का जन्म और बचपन

गोगा जी का जन्म ददरेवा – वर्तमान में राजस्थान के चुरू जिले में स्थित, में हुआ था। गोगा जी को बचपन से ही असाधारण शक्तियां प्राप्त थीं, और उनकी बाल लीलाओं में अनेक चमत्कार होते थे। उनके माता-पिता ने देखा कि उनका बेटा साधारण नहीं है, बल्कि उसमें दिव्य गुण हैं।

गुरु गोरखनाथ का आगमन

एक दिन गुरु गोरखनाथ, जो कि नाथ संप्रदाय के महान योगी और संत थे, बाछल की अपने प्रति भक्ति से प्रसन्न हो ददरेवा आए। ऋषि मुनियों जानकर बाछल के पति युवराज जेवर सिंह के द्वारा तैयार कराई गयी नौ लक्खा बाग जो सुख चुकी थी। वहीं विश्राम करने के लिए रुके, जिससे सुखा बाग हरा-भरा हो गया, इसकी सूचना चारों तरफ फैल गई। तभी गुरु गोरखनाथ का एक शिष्य भोजन के लिए भिक्षाटन करते दरबार में गया मां बाछल ने गोरखनाथ के शिष्य से यह जानकर कि गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ है, गुरु गोरखनाथ को भोजन कराने बाग में आई और अपनी दुख व्यक्त की गोरखनाथ अगले दिन सुबह आने के लिए कहा यह जानकारी काछल को अपनी ननद से प्राप्त हुई अगले सुबह काछल बाग में जाकर गोरखनाथ से आशिर्वाद ग्रहण कर वापस महल में चली आई फिर बाछल जब बाग में गुरु गोरखनाथ से मिलने गयी तो गोरखनाथ वहां से प्रस्थान कर गये पीछा करते करते गोरखनाथ से जा मिली गुरु गोरखनाथ इस छल में भगवान शिव की महिमा समझ काछल से उत्पन्न होने वाले दो पुत्रों को श्राप दे दिया और बाछल के लिए नागलोक जाकर गुग्गल ला देकर एक तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया और वहां से प्रस्थान कर 12 वर्ष बाद वापस गए और गोगाजी से मिलकर शिक्षा-दीक्षा दी।

बाल लीलाओं का प्रदर्शन

गुरु गोरखनाथ ने गोगा जी के साथ कुछ परीक्षाएं लीं, जिनमें गोगा जी ने अपनी असाधारण शक्तियों का प्रदर्शन किया। एक प्रमुख घटना में, गोरखनाथ ने गोगा जी से कहा कि वे उन्हें अपना पवित्र गुरु मंत्र दें। गोगा जी ने बिना किसी झिझक के गोरखनाथ को गुरु रूप में स्वीकार किया और उनकी शिक्षाओं को आत्मसात किया।

गोरखनाथ और गोगाजी का गुरु-शिष्य संबंध

गोरखनाथ और गोगा जी के बीच एक गहरा आध्यात्मिक संबंध स्थापित हुआ। गोरखनाथ ने गोगा जी को अनेक योग और साधना की विधियां सिखाईं। गोगा जी ने गुरु गोरखनाथ से न केवल साधना की विधियां सीखीं, बल्कि जीवन की अनेक महत्वपूर्ण शिक्षाएं भी प्राप्त कीं।

गोगाजी की बाल लीलाओं का महत्त्व

गोगा जी की बाल लीलाओं का महत्व यह है कि उन्होंने बचपन से ही अपनी असाधारण शक्तियों और दिव्यता का परिचय दिया। गुरु गोरखनाथ के साथ उनका संबंध उनकी आध्यात्मिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जिससे उन्हें अपने जीवन के महान कार्यों को करने की प्रेरणा और दिशा मिली।

गोगाजी का धार्मिक और सामाजिक योगदान

गोगाजी का जीवन समाज की सेवा और धर्म की रक्षा में समर्पित रहा। उन्होंने समाज में भाईचारे, समानता और साहस के महत्व को बढ़ावा दिया। वे समाज में फैले अन्याय और अनीति के खिलाफ आवाज उठाते थे, और यही कारण है कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों में उनकी गहरी श्रद्धा है। गोगाजी को सभी धर्म के अनुवाई श्रद्धापूर्वक मानते हैं।

गोगाजी की धार्मिक पहचान: नाग देवता

गोगाजी को नागों का देवता माना जाता है। भारत में सर्प पूजा का एक विशेष महत्व है और गोगाजी को नागों के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उनके पास सांपों पर नियंत्रण था और वे विष से बचाने में समर्थ थे। उनकी यह शक्ति उनकी साधना का परिणाम मानी जाती है और उन्हें शिव का एक रूप भी माना जाता है। उनके अनुयायी नाग पंचमी के अवसर पर उन्हें विशेष पूजा अर्पित करते हैं।

गोगाजी की कितनी पत्नी थी

गोगाजी की पहली पत्नी पाबूजी के भाई बूडोजी की पुत्री केलमदे से और दूसरी विवाह तंदुली नगरी के राजा सिंघा की पुत्री सिरियल से हुआ था। इस प्रकार गोगाजी की दो पत्नियाँ थीं।

गोगाजी की पत्नी और परिवार

गोगाजी की पहली पत्नी का नाम केलमदे दूसरी सिरियल थी, और उनके पुत्र का नाम हर्ष था। उनकी पत्नी केलमदे धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और अपने पति के साथ समाज की सेवा में योगदान करती थीं। हर्ष ने अपने पिता की वीरता और धर्म के कार्यों को आगे बढ़ाया।

गोगाजी का मंत्र

गोगाजी के भक्त उन्हें प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए एक विशेष मंत्र का जाप करते हैं। यह मंत्र इस प्रकार है।
ॐ जाहरवीराय गोगाय नमः
जाहरवीर गोगा जी को बुलाने का एक लोकप्रिय मंत्र है, जो श्रद्धालुओं द्वारा संकट या परेशानी के समय गोगा जी की सहायता प्राप्त करने के लिए जपा जाता है। यह मंत्र इस प्रकार है।
लंगूर वीर गोगा, मेरी बिगड़ी बना देना, कर जोर।
इस मंत्र को श्रद्धा और विश्वास के साथ जपने से भक्तों का मानना है कि जाहरवीर गोगा जी संकट के समय उनकी सहायता के लिए प्रकट होते हैं। इसे विशेष रूप से सांपों के डर और अन्य खतरों से सुरक्षा के लिए जपा जाता है।
जाहरवीर गोगा जी का गायत्री मंत्र इस प्रकार है।
ॐ जाहरवीराय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो गोगा: प्रचोदयात्।
इस मंत्र का जाप गोगा जी की कृपा प्राप्त करने, सुरक्षा और शांति के लिए किया जाता है। गायत्री मंत्र की तरह, यह मंत्र भी ध्यान और श्रद्धा के साथ किया जाने वाला यह मंत्र शांति और सकारात्मक उर्जा प्रदान करती है।

जाहरवीर गोगा जी, जिन्हें गोगा वीर या गोगाजी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय लोक संस्कृति और इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। गोगा जी राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं, और उन्हें सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनके भक्त उन्हें ‘जाहरवीर’ भी कहते हैं, जो उनके साहसिक और वीरतापूर्ण व्यक्तित्व का प्रतीक है।


चमत्कार और लोक कथाएं

गोगा जी के चमत्कारों की कई कहानियां राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, और मध्य प्रदेश में प्रचलित हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा यह है कि गोगा जी ने अपनी तपस्या और योग साधना से नाग देवता को प्रसन्न किया और उनसे वरदान प्राप्त किया। उन्हें सांपों से रक्षा करने की शक्ति मिली, और इसलिए वे नाग देवता के रूप में पूजे जाते हैं।

वीरता और युद्ध

गोगा जी एक महान योद्धा भी थे। उन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े। कहा जाता है कि उन्होंने महमूद गजनवी के आक्रमणों के खिलाफ भी संघर्ष किये थे। उनकी वीरता के कारण उन्हें ‘जाहरवीर’ की उपाधि दी गई।

गोगाजी की समाधि और पूजा

गोगा जी की समाधि राजस्थान के गोगामेड़ी गाँव हनुमानगढ़ जिले में में स्थित है, और इसे एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में माना जाता है। हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को यहां एक बड़ा मेला लगता है, जिसे ‘गोगा नवमी’ के नाम से जाना जाता है। इस मेले में देशभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं और गोगा जी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

गोगा जी की पूजा

गोगा जी की पूजा मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और पंजाब में की जाती है। उनके मंदिर को ‘गोगापीर’ कहा जाता है। उनके भक्त उन्हें दूध, रोटी, और बाजरा चढ़ाते हैं और नाग देवता से सांपों से सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं।

गोगा जी का जीवन, उनकी वीरता और उनके चमत्कारों की कहानियां आज भी लोगों में आस्था और प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी पूजा और उनकी कहानियां भारतीय लोक संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा हैं।
उपरोक्त मंत्र गोगाजी के प्रति श्रद्धा प्रकट करता है और भक्तों को साहस, बल और संकटों से मुक्ति प्रदान करने के लिए उपयोग होता है।

गोगाजी कि मृत्यु कैसे हुई

गोगाजी का धरती में समाना- गोगाजी के धरती में समाने का एक रहस्यमयी और चमत्कारी इतिहास है। कहा जाता है कि जब गोगाजी का अंतिम समय आया, तब उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे स्वयं को धरती में विलीन कर लें ताकि वे हमेशा अपने अनुयायियों और उनके परिवारों की रक्षा कर सकें। यह घटना उनके गहरे भक्तिभाव और समाज सेवा के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है। माना जाता है कि वे आज भी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और नागों के विष से बचाते हैं।

गोगाजी के साथ पांच खोपड़ियों का रहस्य

गोगाजी के साथ पाँच खोपड़ियों का रहस्य भी प्रसिद्ध है। लोककथाओं के अनुसार, उनके पास पाँच खोपड़ियाँ थीं जो उनके पांच प्रमुख अनुयायियों की प्रतीक हैं, जिन्होंने गोगाजी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह भी माना जाता है कि ये खोपड़ियाँ जीवन के पांच प्रमुख तत्वों का प्रतीक हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। ये तत्व मानव जीवन का आधार माने जाते हैं, और गोगाजी का इस पर नियंत्रण था।


गोगाजी का मंदिर और पूजा स्थल

गोगाजी का मुख्य मंदिर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी में स्थित है, जहाँ प्रति वर्ष श्रावण मास के दौरान एक विशाल मेला लगता है। हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग यहाँ बड़ी संख्या में दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर में लोग गोगाजी से विषैले जीवों से बचने के लिए प्रार्थना करते हैं और उनके द्वारा दी गई शक्ति की कामना करते हैं। गोगामेड़ी का मेला एकता और भाईचारे का प्रतीक है, जो हिन्दू-मुस्लिम सहित सभी समुदायों को जोड़ता है।

गोगाजी का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

गोगाजी के प्रति लोगों की गहरी आस्था उनके सामाजिक महत्व को दर्शाती है। उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास का कारण उनकी वीरता, समाज सेवा, और धार्मिकता है। उनकी कथाओं और चमत्कारों ने समाज में एकता और साहस को बढ़ावा दिया है। उनके इतिहास में कई ऐसे पहलू हैं जो हमें यह सिखाते हैं कि धर्म और समाज की सेवा के लिए समर्पण कितना महत्वपूर्ण होता है।

गोगाजी के ऐतिहासिक इतिहास लेखनी का उद्देश्य

गोगाजी का सम्पूर्ण इतिहास हमें एक वीर और धर्मपरायण व्यक्ति की कहानी बताती है, जिसने न केवल अपने समाज की सेवा की बल्कि कठिन समय में भी लोगों को साहस दिया। नागों के देवता के रूप में पूजित गोगाजी आज भी अपने भक्तों के लिए संकटमोचक के रूप में माने जाते हैं। उनका जीवन और उनकी कथाएँ हमें एकता, साहस, और विश्वास के प्रति प्रेरित करती हैं।
गोगा जाहरवीर और गुरु गोरखनाथ की बाल लीला एक महत्वपूर्ण कथा है, जो गोगा जी के जीवन के प्रारंभिक चरणों और उनकी आध्यात्मिक यात्रा के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करती है। यह कथा दर्शाती है कि गोगा जी की असाधारण शक्ति और दिव्यता बचपन से ही प्रकट थी, और गुरु गोरखनाथ के साथ उनका संबंध उनकी साधना और शक्ति को और भी प्रबल बनाने में सहायक हुआ।

Click on the link गुरु गोरखनाथ का जन्म कैसे हुआ गुरु कौन थे मृत्यु कैसे हुई शाबर मंत्र सम्पूर्ण विधि-विधान तंत्र-मंत्र की जानकारी के लिए यहां क्लिक किजिये पढ़िए एक क्लिक में गोरखपुर से जुड़ी ऐतिहासिक इतिहास।

2 thoughts on “गोगाजी का सम्पूर्ण इतिहास: वीरता, धर्म और नाग देवता की महिमा”

    • जय जय जाहरवीर गोगाजी। गोगाजी सभी पाठकों कि मनोकामना पूरी करेंगें अधिक से अधिक शेयर किजिये ताकि दुर्लभ जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सके।

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