लोकतंत्र खतरे में: क्या सरकार अब सिर्फ गोदी मीडिया चाहती है?

Amit Srivastav

लोकतंत्र खतरे में: क्या सरकार अब सिर्फ गोदी मीडिया चाहती है?

लोकतंत्र खतरे में सच बोलोगे तो जेल जाओगे! बिहार के मुजफ्फरपुर में एक पत्रकार को हथकड़ी में जकड़कर अपराधियों की तरह बैठा दिया गया। जुर्म? बाढ़ राहत की पोल खोलना और धर्मांतरण के षड्यंत्र को उजागर करना। यूट्यूबर पत्रकार मिथुन मिश्रा, जो निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे थे, को प्रशासन ने अपराधी बना दिया। अब सवाल उठता है कि क्या इस देश में पत्रकारिता केवल वही होगी, जो सरकार के गुणगान में लीन रहे? क्या अब सच्चाई बोलने वालों की जगह जेल ही होगी?

लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत होती है—स्वतंत्र मीडिया। लेकिन जब मीडिया को पिंजरे में बंद कर दिया जाए, जब सच्चाई दिखाने वाले पत्रकारों को अपराधी बना दिया जाए, तो समझ लेना चाहिए कि लोकतंत्र की साँसें उखड़ने लगी हैं। पत्रकारों की भूमिका अब सिर्फ सरकारी प्रचार तंत्र तक सीमित कर दी गई है। क्या यही स्वतंत्र भारत का सपना था? या यही है मोदी के अच्छे दिन। एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमाम यू-ट्यूब चैनल वेबसाइट खबर चलाने वालों को सम्मानित करते हैं।

अपनी मन की बात उनके चैनल वेबसाइट से जनता के बीच प्रसारित कराते हैं तो दूसरी तरफ यूट्यूब वेबसाइट चलाने व उस पर काम करने वाले चौथे स्तंभ को मुख्यमंत्री सहित भारतीय सूचना विभाग पत्रकार मानने से इंकार करता है। तो आखिर पत्रकारिता करने वाले देश मे वही पत्रकारिता की श्रेणी में आता है जो सरकार की महिमा मंडन करते खबरों वक्तव्यों को सरकार को फायदा पहुंचाने और जनता का नुकसान करने मे लगा हुआ है। यह भविष्य के लिए चिंता का विषय है।

गोदी मीडिया का स्वर्णकाल

अगर आप सरकार के महिमामंडन में लीन हैं, तो आपका चैनल TRP की ऊंचाइयों को छुएगा। आपके पास सरकारी विज्ञापनों की बरसात होगी। पत्रकारिता नहीं, बल्कि सरकारी भजन गाना ही अब मुख्यधारा की मीडिया की पहचान बन चुकी है। जो सत्ता के कदमों में नहीं झुका, वो देशद्रोही घोषित कर दिया जाएगा। सवाल पूछना अब अपराध बन चुका है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब धीरे-धीरे तानाशाही की गोद में समा रहा है।

गोदी मीडिया दिन-रात सरकार के झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने में लगा रहता है। जब बेरोजगारी चरम पर होती है, तो गोदी मीडिया फिल्मी सितारों के ब्रेकअप की खबरें दिखाता है। जब किसान सड़कों पर उतरते हैं, तो यह मीडिया उनके विरोध को ‘राष्ट्रविरोधी साजिश’ बता देता है। जब कोई निष्पक्ष पत्रकार सरकार से सवाल करता है, तो वही मीडिया उसे ‘देशद्रोही‘ घोषित कर देती है। क्या यही पत्रकारिता रह गई है?

लोकतंत्र खतरे में: क्या सरकार अब सिर्फ गोदी मीडिया चाहती है?

पत्रकारिता का नया नियम: सिर्फ सत्ता की चापलूसी करो!

सरकार का स्पष्ट संदेश है—हमसे सवाल मत पूछो। अगर पूछोगे तो पुलिस की लाठियाँ तैयार हैं। पत्रकार अब सरकार की मंशा के खिलाफ कुछ नहीं कह सकते। मीडिया की भूमिका अब सिर्फ चमचागिरी तक सीमित हो गई है। बाढ़ पीड़ितों की चीखें सुनाने वाला पत्रकार जेल में और सरकार की वाहवाही करने वाला गोदी मीडिया चैनलों पर सुर्खियों में।

पत्रकारों को अब दो विकल्प दिए जा रहे हैं—या तो सत्ता की जय-जयकार करो, या फिर जेल जाने के लिए तैयार रहो। निष्पक्ष पत्रकारों को धमकाया जा रहा है, उनके खिलाफ फर्जी मामले दर्ज किए जा रहे हैं, उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। यह एक सोची-समझी रणनीति है ताकि जनता तक सच्चाई न पहुँचे।

धर्मांतरण पर बोलोगे तो अपराधी कहलाओगे?

मिथुन मिश्रा ने गाँव-गाँव में हो रहे ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण पर रिपोर्टिंग की। उन्होंने दिखाया कि कैसे गरीब और दलित समुदाय को लालच देकर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। लेकिन सरकार ने मिशनरियों को रोकने के बजाय, सच्चाई दिखाने वाले को ही अपराधी बना दिया। क्या सरकार अब इस खेल में शामिल है? क्या सच बोलना अब गुनाह हो गया है? एक तरफ़ सनातन धर्म की जय जयकार हो रही है, पीठ पीछे सनातन धर्म को तोड़वाने मे मदद कि जा रही है।

जब धर्म परिवर्तन कराने की वास्तविकता को दिखाने वाले पत्रकारों को अपराधी बनाकर जेल में बंद कर देना ही है तो स्पष्ट रूप से यहां दिखाई दे रहा है कि सरकार और सरकारी तंत्र समाज में दिखाते अपने को कुछ हैं और वास्तव में हैं कुछ और ही। कहीं ऐसा तो नहीं चुनावी चंदा जैसे नाम पर धर्म परिवर्तन कराने और उसमे मदद करने के लिए देश के जिम्मेदार लोगों को अगल-बगल से फंड आ रहा है।

क्या यह महज संयोग है कि मिशनरियों द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण पर बोलने वालों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है? क्या सरकार की चुप्पी इस बात की ओर इशारा नहीं करती कि वह इस खेल का हिस्सा है? जब कोई पत्रकार इस सच्चाई को उजागर करता है, तो उसे झूठे मुकदमों में फँसा दिया जाता है। क्या यही लोकतंत्र है?

लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील

मीडिया पर सरकारी शिकंजा कस चुका है। निष्पक्ष पत्रकारिता करने वालों को या तो धमकाया जाता है या जेल में डाला जाता है। जनता की आवाज बनने वाले पत्रकारों की अब खैर नहीं। यह लोकतंत्र नहीं, बल्कि तानाशाही का नया युग है, जहाँ सरकार से सवाल पूछना गुनाह और सत्ता की जय-जयकार करना देशभक्ति बन चुका है।

लोकतंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता उतनी ही जरूरी है जितनी इंसान को सांस लेने के लिए हवा। लेकिन जब सत्ता अपने विरोधियों को कुचलने के लिए पुलिस और प्रशासन का दुरुपयोग करने लगे, जब निष्पक्ष पत्रकारों को अपराधी बना दिया जाए, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि लोकतंत्र अब खतरे में है।

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आखिर कब जागेगी जनता?

जब तक जनता नहीं जागेगी, तब तक इस तानाशाही का अंत नहीं होगा। आज मिथुन मिश्रा को जेल में डाला गया है, कल कोई और पत्रकार होगा, और फिर आम आदमी। अगर अभी विरोध नहीं किया गया, तो एक दिन ऐसा आएगा जब हर विरोधी स्वर को कुचल दिया जाएगा। क्या हम ऐसा लोकतंत्र चाहते हैं?

अब यह जनता को तय करना है कि उसे सच बोलने वाले पत्रकार चाहिए या केवल सरकार की महिमा मंडन जय-जयकार करने वाले चमचे? अगर निष्पक्ष पत्रकारिता को बचाना है, तो अभी आवाज उठानी होगी, क्योंकि कल बहुत देर हो सकती है। अगर सत्य खबर स्वीकार है तो शेयर। Click on the link गूगल ब्लाग पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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