लोकसभा चुनाव 2024 पर नज़र डालें तो देखने को मिल रहा है, पहले हो रहे चुनावों कि अपेक्षा, अब मतदाताओं में लोकतांत्रिक महापर्व पर उल्लास देखने को नही मिल रहा है। चुनाव आयोग के प्रयास से वास्तविक मतदाता ही मतदाता सूची में बचे हुए हैं, फिर भी इस लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत सापेक्ष से कम देखा जा रहा है। घर रहते हुए मतदाता मतदान करने नही जा रहे हैं। इससे स्पष्ट है मतदाताओं के अंदर उल्लास नही है। इसका असर ज्यादातर भाजपा पर पड़ता दिखाई दे रहा है। क्योंकि ज्यादातर सामान्य वर्ग का मतदाता मतदान में रुचि नही ले रहा, जो सामान्य वर्ग मतदाता भाजपा का वोटर माना जाता था। मतदाताओं में चर्चा का विषय है- Click on the link नेताओं को झूठ व लूट की गठरी बांध मंचों पर चुनाव जीतने का नया नया तरीका अख्तियार कर भाषण बाजी मात्र रह गया है। पहले के चुनावी घोषणा पत्र इतना झूठे नही हुआ करते थे। चुनाव के दौरान जो मुद्दे पार्टियां लेकर आती थीं, चुनाव जीत उस पर अमल कर काम करती थीं। लेकिन 2014 मोदी सरकार ने जो भी चुनावी मुद्दा ले लोकसभा चुनाव फतह की उस मुद्दे पर लेस मात्र भी अमल नही किया। कहीं-कहीं मुद्दे उठाने की लोगों ने कोशिश की तो कुछ अलग प्रगंडा रच वास्तविक मुद्दे को भाजपा सरकार में दबा दिया जाता है। पहले जब भाजपा विपक्ष मे रहा करती थी। जनहित के मुद्दों पर देश व्यापी आंदोलन करती और कराती थी, अब देश व्यापी आंदोलन करने वाली ही सरकार चला रही है, कोई किसी मुद्दे को उठाता है तो अलग कुछ जाल फेक कर मुख्य मुद्दे से जनता का ध्यान हटा, उस रचे जाल पर नज़र केन्द्रित करवा दिया जाता है। 2014 लोकसभा चुनावी मुद्दा जो भाजपा का था सबसे अधिक लुभावना था – बेरोजगारी दूर करने, गुजरात के तर्ज पर देश का विकास करने, विदेशों में जमा काला धन वापस लाने, भ्रष्टाचार दूर करने, गैस, डिजल, पेट्रोल सहित महगाई को कम करने जैसी अनेकों मुद्दा भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में था। भाजपा पूरी बहुमत में होकर भी अपने 2014 चुवावी मुद्दे को साकार नही कर पायी। पांच साल बनाम सत्तर साल का नारा था। जनता चुनावी घोषणा पत्र पर विश्वास कर पूरी बहुमत से सरकार बनाई। 2019 में कोई मुद्दा नहीं जो फिर जनता के सामने रखा जाए। क्योंकि जो 2014 में मुद्दा लेकर सरकार बनी उस किसी मुद्दे पर सफलता नही मिला था, संयोग चुनाव लोकसभा 2019 से थोड़ा पहले ही 14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले में 40 सैनिक नाहक में नापाक इरादों से शहीद हो गए। जिसका कोई आतंकि संगठन जिम्मेदारी नही लिया। उससे पहले जो भी हमले होते थे, तुरंत बाद कोई न कोई आतंकि संगठन जिम्मेदारी ले खुद मिडिया के सामने आता था। यह एक गहन मंथन का मुद्दा है, जो भाजपा के लिए सोने में सुहागा साबित हुआ। देश से आतंकवाद का खात्मा नारा दिया गया। मोदी है तो मुमकिन है। एक बार और मौका दिजिये देश की स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी। इस बार सभी मुद्दों पर काम किया जाएगा जनता फिर मोदी सरकार पर बिश्वास कर पूरी बहुमत से सरकार बनाई फिर पांच साल गुजर गया हुआ कुछ भी नहीं। बल्कि बेरोजगारी भ्रष्टाचार महंगाई काला धन वापसी तो बहुत दूर सरकार बनते ही चिटफंड बैकिंग आमजन की जमा पूंजी ले भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर पाक-साफ हो गई जनता के पैसा वापसी का चिंता किसी को नही मतलब सभी मुद्दों पर सरकार फेल हो गई। आप पढ़ रहे हैं भगवान चित्रगुप्त जी के वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम से चुनावी विश्लेषण।

अब 2024 लोकसभा चुनाव में ऐसे मुद्दे को लेकर पक्ष-विपक्ष का वादा है- जिसपर जनता को लेशमात्र भरोसा नहीं है। चुनावी मुद्दे में एक नया अध्याय जोड़ा गया, पूरी बहुमत वाली भाजपा सरकार द्वारा पोटेंशियल सुपरपावर मतलब यह कि सम्भावना है, कि भारत विश्व महाशक्ति में शामिल हो जाए। झूठ का पुलिंदा मतलब मोदी है तो मुमकिन है। विश्व महाशक्ति में क्या गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, के पायदान पर खड़ा कोई भी देश अबतक शामिल हुआ जो भारत को लेकर सम्भावना व्यक्त किया जा रहा है। कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत देखा जाए तो अंदर ही अंदर खोखला हो चुका है, यहां बडी-बडी गोदी मिडिया यह नही दिखा सकती मोदी की सरकार बनने के बाद देश आये दिन कितना कर्ज से लदता जा रहा है। जो सोने की कीमत 2014 लोकसभा चुनाव से पहले 20 से 25 हज़ार चल रहा था आज दस साल में बढ़कर 70 से 80 हजार चला गया। देश की आर्थिक स्थिति क्या है? इसको सार्वजनिक करना मूर्खतापूर्ण संदेश देना है, क्योंकि बड़ी-बड़ी मिडिया संस्थाओं का भाजपा के हाथ बिक जाना वास्तविक स्थिति से जनता को अवगत न कराना देश हित में अहितकारी है। धीरे-धीरे जनता को समझ आने लगी है। बड़ी बड़ी मिडिया संस्थाओं द्वारा सरकार का पक्षपात करते खबरों को दिखाना मतलब बिकना ही है। छोटी-छोटी मिडिया संस्थाओं का आम जन तक ज्यादा पहुंच नही जो वास्तविक जानकारी का आदान प्रदान हो सके।।

2014 लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश 2017 विधानसभा चुनाव नोटबंदी के बाद आया। जिसमें मंचों से भाषणबाजी हुई केन्द्र से दिया जा रहा धन उत्तर प्रदेश सरकार जनहित में खर्च नही कर रही है। इसलिए कि केन्द्र सरकार की बदनामी हो। साथ ही नोटबंदी में जो आम जन को प्रदेश की सपा कार्यकताओं नेताओं ने जो धांधली की जरूरत मंद लोगों को पैसा बदलने से रोक अपना दबदबा दिखा बैकों से आम जन की जरुरत भर पैसा नही पाने दिया। भाजपा की सरकार बनते ही जांच-पड़ताल करा दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। 2017 में उत्तर प्रदेश कि जनता पूरी बहुमत से देश के सबसे बड़े राज्य में भाजपा की सरकार बनाई। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाये गये। योगी आदित्यनाथ ऐसे बदल गये जैसा किसी ने सोचा भी नहीं था। सारे जनहित की सोच रखने वाले सरकार की फायदे सहित अपने नेता विरादरी के भविष्य को उज्ज्वल करने में लगे हुए हैं। नेताओं कि फैसिलिटी कैसे बढ़ाई जाए बस वही तक सोचा जाता है आम कर्मियों सहित देश प्रदेश के लगभग पचास प्रतिशत बेरोजगारों को लेकर सोचने की जरूरत ही नहीं रह गई है। देश में बढ़ती महंगाई के मद्देनजर संविदा कर्मियों के परिवार कि जीविका एक मजदूर की मजदूरी से भी कम मे कैसे चल रही होगी दसों वर्ष में कोई बढ़ोतरी नहीं जब कि सोने की किमत से देखा जाए तो 20 से 25 हजार का सोना पचहत्तर हजार पार मतलब महगाई दस वर्ष में तीन गुना से अधिक बढ़ गई। दस सालों से राज कर रही भाजपा सरकारों को संविदा कर्मियों की स्थिति का पता ही नहीं है। अगर देश में भाजपा अच्छी सरकार चला रही होती तो आज मतदाताओं में मायूसी के जगह लोकतांत्रिक महापर्व पर उत्साह देखने को मिलता। चारों तरफ़ मायूसी छाई लोकतंत्र महापर्व चल रहा है, देश प्रदेश में सन्नाटा पसरा है, जैसे कि देश में कुछ है ही नहीं। अब जो भी हो चुनाव नतीजा जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ करते 4 जून को आ ही जायेगा।
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