पंचतंत्र की रोचक प्रेरणादायक BRAHMINS STORY चार ब्राह्मण की कहानी जो सिखाती है कि ज्ञान के साथ विवेक और तर्कशीलता भी आवश्यक हैं। पूरी कहानी पढ़ें और महत्वपूर्ण जीवन मे अद्भुत शिक्षाएं प्राप्त करें।
यह पंचतंत्र की एक महत्वपूर्ण कथा है जो बताती है कि केवल विद्या ही पर्याप्त नहीं होती, बल्कि विवेक और व्यावहारिक बुद्धि भी आवश्यक होती है। चार ब्राह्मणों की यह कहानी हमें सिखाती है कि ज्ञान का सही उपयोग करने से ही सफलता मिलती है। पूरी कहानी पढ़ें और सीखें कि कैसे अति आत्मविश्वास और अहंकार व्यक्ति को विनाश की ओर ले जा सकते हैं।
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पंचतंत्र की कहानियां 4 BRAHMINS STORY चार ब्राह्मण की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में चार ब्राह्मण मित्र रहते थे। वे सभी अत्यंत विद्वान थे और शास्त्रों का गहन अध्ययन कर चुके थे। उनकी विद्वता इतनी प्रसिद्ध थी कि दूर-दूर से लोग उनके ज्ञान को सुनने के लिए आते थे। हालांकि, इनमें से तीन ब्राह्मण अपने ज्ञान पर अत्यधिक गर्व करते थे और मानते थे कि वे अपनी विद्या के बल पर असंभव को भी संभव कर सकते हैं। वहीं, चौथा ब्राह्मण उतना विद्वान नहीं था, लेकिन उसमें व्यावहारिक बुद्धि और तर्कशीलता थी। वह हमेशा अपने ज्ञान से अधिक अपने विवेक पर भरोसा करता था।
एक दिन, तीनों विद्वानों ने निर्णय लिया कि अब उन्हें अपनी विद्या का सही उपयोग करना चाहिए और राजा के दरबार में जाकर अपना कौशल प्रदर्शित करना चाहिए, जिससे वे यश और धन प्राप्त कर सकें। चौथा ब्राह्मण भी उनके साथ जाने को राजी हो गया, लेकिन वह जानता था कि विद्या के साथ-साथ बुद्धिमानी भी आवश्यक होती है। उनका सफर लंबा था और उन्हें जंगलों से होकर गुजरना पड़ा। यात्रा के दौरान वे चारों मित्र विद्या और ज्ञान पर चर्चा करते रहे। जंगल में चलते-चलते अचानक उन्हें एक पुराना कंकाल दिखाई दिया। पहले ब्राह्मण ने उत्साहित होकर कहा, “यह किसी बड़े पशु का कंकाल प्रतीत होता है।
इसे देखकर लगता है कि यह किसी शेर का हो सकता है।” दूसरे ब्राह्मण ने तुरंत उत्तर दिया, “अगर यह वास्तव में शेर का कंकाल है, तो हमें अपनी विद्या का प्रयोग करके इसे पुनः जीवित करना चाहिए। हमें अपनी शक्तियों को परखने का यह सुनहरा अवसर मिला है।” तीसरा ब्राह्मण भी उनकी बात से सहमत हुआ और बोला, “अगर हम इस मृत शेर को जीवित कर सकें, तो यह हमारी विद्या की श्रेष्ठता का प्रमाण होगा।” लेकिन चौथे मित्र ने घबराकर कहा, “यह मूर्खता होगी। शेर एक हिंसक प्राणी है। अगर यह जीवित हो गया तो हमें मार सकता है। हमें इस विचार को छोड़ देना चाहिए।”
लेकिन तीनों मित्र उसकी बात को अनसुना कर अपनी योजना पर अडिग रहे। पहले ब्राह्मण ने अपनी विद्या का प्रयोग करके शेर के कंकाल को पूर्ण रूप से जोड़ दिया। फिर, दूसरे ब्राह्मण ने मंत्रों का जाप करके उस पर मांस और खाल चढ़ा दी, जिससे वह वास्तविक शेर की तरह लगने लगा। जब तीसरे ब्राह्मण ने उसमें प्राण डालने के लिए मंत्र पढ़ना शुरू किया, तो चौथा ब्राह्मण चिंतित हो उठा। उसने चेतावनी दी, “तुम लोग जो करने जा रहे हो, वह बहुत ही खतरनाक है। शेर का जीवित होना हमारे लिए घातक सिद्ध हो सकता है। हमें इसे रोकना चाहिए।”
लेकिन अहंकार में डूबे तीनों विद्वानों ने उसकी चेतावनी को मजाक समझा और उसे अज्ञानी कहकर उसका अपमान किया। चौथा मित्र समझ गया कि अब इन लोगों को रोकना असंभव है, इसलिए उसने त्वरित निर्णय लिया और पास के एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया, ताकि यदि शेर जीवित हो जाए तो वह सुरक्षित रह सके।
तीसरे ब्राह्मण ने जैसे ही अपने मंत्रों का उच्चारण पूरा किया, शेर की आंखों में जीवन आ गया। वह पहले धीरे-धीरे हिला, फिर जोर से दहाड़ा और देखते ही देखते पूरी तरह से जीवंत हो गया। उसके जीवित होते ही उसकी प्रकृति में कोई बदलाव नहीं आया, क्योंकि वह एक जंगली और हिंसक प्राणी था।
जैसे ही उसने अपने चारों ओर देखा, उसने तीनों ब्राह्मणों को अपने शिकार के रूप में पहचान लिया। अहंकार और अपनी विद्या की शक्ति पर अत्यधिक विश्वास करने वाले तीनों ब्राह्मण अब किसी भी तरह की रक्षा के लिए तैयार नहीं थे। वे इस बात का अनुमान नहीं लगा सके थे कि उनका ज्ञान ही उनकी सबसे बड़ी भूल साबित होगा। अगले ही क्षण, भूखा और क्रूर शेर उन पर झपटा और कुछ ही पलों में उसने उन तीनों को मारकर खा लिया। वे तीनों अपनी विद्या और शक्ति पर अत्यधिक भरोसा करने के कारण अपनी जान गंवा बैठे। पेड़ पर बैठे चौथे ब्राह्मण ने यह सब अपनी आंखों से देखा।
उसने मन ही मन सोचा, “ज्ञान और बुद्धि का सही उपयोग न किया जाए, तो वह विनाश का कारण बन सकता है। मेरे मित्रों ने अत्यधिक अहंकार और बिना सोचे-समझे अपने ज्ञान का उपयोग किया, जिसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। अगर वे थोड़ी भी व्यावहारिक समझदारी दिखाते और मेरी चेतावनी पर ध्यान देते, तो आज वे जीवित होते।” जब शेर वहां से चला गया, तो चौथा ब्राह्मण पेड़ से उतरा और दुखी मन से अपने नगर की ओर वापस लौट गया। उसके मित्रों का घमंड और अति आत्मविश्वास उनकी मृत्यु का कारण बना था, जबकि उसकी व्यावहारिक बुद्धि ने उसकी जान बचा ली थी।
नगर लौटकर चौथे ब्राह्मण ने लोगों को यह घटना सुनाई और कहा, “सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान ही पर्याप्त नहीं होता। यदि उसमें व्यावहारिक बुद्धि का समावेश न हो, तो वह अनर्थकारी हो सकता है। विद्या का सही उपयोग तभी संभव है जब उसमें विवेक और तर्कशीलता भी शामिल हो।” नगरवासियों ने उसकी बात को गंभीरता से लिया और यह कहानी पूरे राज्य में फैल गई। यह घटना एक महत्वपूर्ण सीख बन गई कि सिर्फ ज्ञान अर्जन ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि उसे सही समय और सही परिस्थिति में उपयोग करना भी आना चाहिए। बहुत से लोगों ने इस कहानी से प्रेरणा ली और अपने अहंकार को त्यागकर तर्कशीलता को अपनाने की कोशिश की।
समय बीतता गया, लेकिन इस कहानी की शिक्षा हमेशा याद रखी गई। यह कथा हमें यह सिखाती है कि विद्या तभी उपयोगी होती है जब उसके साथ विवेक और सावधानी भी हो। किसी भी विषय में श्रेष्ठ होना अच्छी बात है, लेकिन उसका सही उपयोग और व्यावहारिक समझ होना उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। यदि कोई व्यक्ति अपनी विद्या का उपयोग बिना सोचे-समझे करता है, तो वह अपने साथ-साथ दूसरों के लिए भी घातक हो सकता है। अहंकार, अज्ञान और लापरवाही का परिणाम सदैव विनाशकारी होता है, इसलिए ज्ञान के साथ-साथ सही निर्णय लेने की क्षमता भी आवश्यक होती है।
इस कहानी से हमें यह भी सीख मिलती है कि हम अपने ज्ञान पर गर्व तो करें, लेकिन कभी भी अति आत्मविश्वास और अहंकार में अंधे न बनें। केवल पढ़ाई या शास्त्रों का ज्ञान हमें सफलता की ओर नहीं ले जा सकता, जब तक कि हम उसमें व्यावहारिक बुद्धि का समावेश न करें। प्रत्येक कार्य को करने से पहले हमें उसके परिणामों पर विचार करना चाहिए और अपनी बुद्धिमत्ता का सही उपयोग करना चाहिए। यदि तीनों ब्राह्मणों ने चौथे मित्र की चेतावनी को गंभीरता से लिया होता, तो वे अपनी जान बचा सकते थे। लेकिन उनकी मूर्खता और अहंकार ने उन्हें विनाश की ओर धकेल दिया।
चार ब्राह्मण की कहानी से मिलने वाली सीख
अंततः, यह कथा हमें यह महत्वपूर्ण सीख देती है कि बुद्धिमानी और सतर्कता ही सच्चे ज्ञान की पहचान होती है। केवल पुस्तकीय ज्ञान ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि उसे सही समय पर, सही तरीके से और विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग करना भी अत्यंत आवश्यक होता है। मूर्खतापूर्ण अहंकार और बिना सोचे-समझे लिए गए निर्णय व्यक्ति को विनाश की ओर ले जा सकते हैं। इसलिए, हमेशा अपने ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक बुद्धि और समझदारी को भी विकसित करना चाहिए। Click on the link ब्लाग पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।






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