देवरिया। श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन, दूसरे और तीसरे स्कन्द की कथा- आचार्य सोमनाथ पांडे ने यजमान संतोष, विनोद, प्रमोद कुमार श्रीवास्तव के यहां पनीका बाजार में किया। बता दें 4 बजे अपरान्ह से रात्रि 8 बजे तक चल रही कथा कि शुरुआत में दूसरे दिन श्रीमद्भागवत की गुणगान करते भगवान के 23 वे अवतार का मार्मिक वर्णन करते हुए 24 वे अवतार कल्कि अवतार का पूर्वानुमान को उजागर करते हुए बताया।

जब-जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।। अर्थात जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, दुष्टों का प्रभाव बढ़ने लगता है, तब सज्जनों की पीड़ा हरने के लिए प्रभु का अवतार होता है।
पंडित सोमनाथ ने श्रोताओं को कथा का रसपान कराते बहुत ही रोचक प्रसंग शिव द्वारा पार्वती को सुनायी गयी अमर कथा को बताया।
अमरनाथ हिन्दी के दो शब्द ‘अमर’ अर्थात ‘अनश्वर’ और ‘नाथ’ अर्थात ‘भगवान’ को जोडने से बनता है। जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व के रहस्य को प्रकट करने के लिए कहा जो वे उनसे लंबे समय से छुपा रहे थे। तो यह रहस्य बताने के लिए भगवान शिव, पार्वती को हिमालय की गुफा में ले गए ताकि उनका यह रहस्य कोई अन्य ना सुन पाए और वहीं भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया। कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, आप अजर-अमर हैं और मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर फिर से वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है। मेरी इतनी कठोर परीक्षा क्यों? और आपके कंठ में पड़ी यह नरमुण्ड माला तथा आपके अमर होने का रहस्य क्या है? पार्वती की उत्सुकता को देखकर भगवान शिव ने माता पार्वती से एकांत और गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनने को कहा जिससे कि अमर कथा कोई अन्य जीव ना सुन पाए क्योंकि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता वह अमर हो जाता। शिव ने पार्वती को परम पावन अमरनाथ की गुफा में अपनी साधना की अमर कथा सुनाई जिसे हम अमरत्व कहते हैं। भगवान भोलेनाथ ने अपनी सवारी नंदी को पहलगाम पर छोड़ दिया, जटाओं से चंद्रमा को चंदनवाड़ी में अलग कर दिया और गंगाजी को पंचतरणी में तथा कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया। इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। अगला पड़ाव गणेश पड़ता है उस स्थान पर भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया। जिसको महागुणा का पर्वत भी कहा जाता है। पिस्सू घाटी में पिस्सू नामक कीड़े को भी त्याग दिया। इस प्रकार महादेव ने जीवनदायिनी पांचों तत्वों को भी अपने से अलग कर दिया। इसके बाद माता पार्वती को लेकर अपने पवित्र गुप्त अमरनाथ की गुफा में प्रवेश किया और अमर कथा माता पार्वती को सुनाना शुरू किया। कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई और वह सो गईं जिसका शिवजी को पता नहीं चला। भगवान शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे। उस समय दो सफेद कबूतर शिव जी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे। भगवान शिव को लगा कि माता पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रहीं हैं। इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली। कथा समाप्त होने पर भगवान शिव का ध्यान पार्वती की ओर गया जो सो रही थीं। तब महादेव की दृष्टि कबूतरों पर पड़ी तो वे क्रोधित हो गए और उन्हें मारने के लिए आगे बढ़े। इस पर कबूतरों ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी। इस पर भगवान शिव ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे। वही कबूतर का जोड़ा अजर-अमर हो गया। आज भी इन दोनों कबूतरों का दर्शन भक्तों को प्राप्त होता है और इस तरह से वह गुफा अमर कथा की साक्षी हो अमरनाथ गुफा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
विष्णु के सम्पूर्ण अवतारों का वर्णन करते चतुर छलिया कृष्ण अवतार में महाभारत से जुड़ी कथा का श्रवण कराते अमर अश्वत्थामा की गाथा और भीष्म पितामह द्वारा द्रोपदी को सौभाग्यवती होने की आशिर्वाद का मार्मिक वर्णन किया। अमर अश्वत्थामा के रहस्य को कुछ इस प्रकार बताया।

महाभारत युद्घ में द्रोणाचार्य का वध करने के लिए पाण्डवों ने झूठी अफवाह फैला दी कि अश्वत्थामा मारा गया। इससे द्रोणाचार्य शोक में डूब गया और पाण्डवों ने मौका देखकर द्रोणाचार्य का वध कर दिया। अपने पिता की छल से हुई हत्या का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने पाण्डवों की हत्या का प्रण लिया। अश्वत्थामा पाण्डवों के शिविर में रात्रि काल में धर्म विरुद्ध पांच पाण्डव हत्या का विचार ले चला गया जहां पांच पाण्डवों की जगह पाण्डव पुत्र सोये हुए थे। पांच पाण्डवों के भ्रम में पाण्डव पुत्रों की, हत्या कर भागा तब भीम ने अश्वत्थामा का पीछा किया और अष्टभा क्षेत्र जो वर्तमान में गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा के पास स्थित है। वहां दोनों के बीच गदा युद्घ हुआ। वहां भीम की गदा जमीन से टकराने के कारण एक कुण्ड बन गया। पास ही में अश्वत्थामा कुंड भी है। मानना है आज भी रात के समय अश्वत्थामा मार्ग से भटके हुए लोगों को रास्ता दिखाता है। द्रोणनगरी में स्थित टपकेश्वर स्वयंभू शिवलिंग महर्षि द्रोणाचार्य की सिर्फ तपस्थली मानी जाती है। यहीं गरीबी के कारण दूध नहीं मिलने पर अश्वत्थामा ने भगवान से दूध प्राप्ति के लिए छह माह तक कठोर तपस्या की थी। अश्वत्थामा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दूध प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और पहली बार अश्वत्थामा ने दूध का स्वाद चखा।

भागवत वक्ता पंडित सोमनाथ ने अश्वत्थामा का नाम कैसे पड़ा इसकी एक बड़ी रोचक कथा को बताया। अश्वत्थामा ने जब जन्म लिया तब अश्व के समान घोर शब्द सुनाई दिया। इसके बाद आकाशवाणी हुई कि यह बालक अश्वत्थामा के नाम से प्रसिद्घ होगा। अश्वत्थामा के सिर पर जन्म से ही एक मणि मौजूद थी। द्रौपदी ने अर्जुन की प्रार्थना पर गुरु पुत्र को प्राण दान दे दिया लेकिन सजा के तौर पर मणि छिन लिया और उसके बाल काट लिए। उन दिनों बाल काट लेने का मतलब मृत्युदंड माना जाता था। महाभारत युद्घ समाप्त होने के बाद कौरवों की ओर से सिर्फ तीन योद्घा बचे थे कृप, कृतवर्मा और अश्वत्थामा। कृप हस्तिनापुर चले आए और कृतवर्मा द्वारिका। शाप से दुःखी अश्वत्थामा को व्यास मुनि ने शरण दिया।
बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुघात सुहाई।।
महाभारत काल का एक व्यक्ति जिसके बारे में यह गुण रहस्य है कि वह आज भी जिंदा है। इस व्यक्ति का नाम है अश्वत्थामा। यह कौरव और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था। इसने महाभारत के युद्घ में कौरवों की ओर से युद्घ किया था। लेकिन अपनी एक गलती के कारण इसे एक शाप मिल जिसके कारण यह दुनिया खत्म होने तक जीवित रहेगा और भटकेगा। अश्वत्थामा को दुनिया खत्म होने तक भटकने का शाप देने वाले भगवान श्री कृष्ण थे। यह शाप श्री कृष्ण ने इसलिए दिया क्योंकि इसने पाण्डव पुत्रों की हत्या उस समय की थी जब वह सो रहे थे। इसने ब्रह्माशास्त्र से उत्तरा के गर्भ को भी नष्ट कर दिया था। गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या से क्रोधित होकर श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को भयानक शाप दिया। अश्वत्थाम के इस घोर पाप का अनुचित लेकिन एक बड़ा कारण था। आचार्य सोमनाथ पांडे ने रहस्यों को उजागर करते गंगा पुत्र भीष्म पितामह की कथा का रसपान कराया। बीच-बीच में गीत व भजनों से श्रोताओं का मन मोहे रखा। हर पल तुम्हारी याद आती रहे राधव आती रहे… नैनो में तुम्हारी छवि समाती रहे राधव समाती रहे… फुलो व कलियों में तेरी खुशी हो, बुलबुल की गीतों में तेरी हंसी हो….
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