बंग्लादेश में हिन्दुओं पर आतंकी हमला मंदिरों को तोड़ने हिन्दुओं को मारने काटने दुकानों को लूटने का सिलसिला तेज हो गया है। सेना मुखदर्शक बन तमाशा देखती रही और जेलों में बंद आतंकी जेलों से निकल आतंक का खुला प्रदर्शन कर रवाना हो गए। आखिर क्या मिला शेख हसीना को आरक्षण देने से फायदा? आरक्षण व्यवस्था लागू करने के साथ ही खत्म करने की मांग का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया गया मांगो को न मानने का नतीजा हुआ देश व्यापी आंदोलन। 5 अगस्त को बढ़ते तनाव को देखते हुए बंग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने पद से इस्तीफा दे एक मोटर साइकिल से अपने बहन के यहां चली गई कुछ समय बाद ही उपद्रवियों ने शेख हसीना के कार्यालय फिर आवास पर धावा बोल सम्पत्ति का लूटपात किया। शेख हसीना अपनी बहन की हेलिकॉप्टर से अचानक भारत के लिए रवाना हो अपनी जान बचा पाने में सफल तो हो गई लेकिन हिंसा की चपेट में आज बंग्लादेश में बसे अल्प हिन्दूओं को उपद्रवियों ने निशाना बना अल्प हिंदुओं का तहस-नहस कर दिया। हिन्दू मंदिर तोड़ दिए गए और हिन्दुओं की दुकानें लूट हिन्दुओं पर हमला किया गया। बंग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रही हिंसा को देख सब चुप्पी साधे हुए हैं। भारत में आकर शेख हसीना अपनी जान तो बचा ली लेकिन न भारत उन अल्प हिन्दुओं का रक्षक बन सामने आ रहा न शेख हसीना के समर्थक। विश्व के किसी देश में मुसलमानों पर हुए हमले पर सभी देश एक्सन में दिखाई देता है किन्तु हिन्दुओं पर हो रहे हमलों पर अपने को सनातन धर्म का रक्षक के रूप में दिखाने वाला देश भी चुप्पी साध लेता है। देश के आईटी सेल को लगाकर जनता के बीच सिर्फ मैसेज फैलाया जाता है कि हिंदू खतरे में है।

निष्पक्ष मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह समझ में आता है-
1000 से अधिक के स्टूडेंट की हत्या की गई। आम लोगों पर फायरिंग कराई गई। शेख हसीना के समर्थक और गुंडो ने इस आंदोलन को हिंसक बना दिया। एक प्रतिशत से कम लोगों के लिए 40% से अधिक आरक्षण का प्रावधान गलत तरीके से करने पर 99% जनता शेख हसीना के तानाशाह के खिलाफ हो गई।
आंदोलन करने वाले को इन्होंने आतंकवादी और गद्दार कहा। शेख हसीना की तानाशाही के कारण जनता ने क्रांतिकारी आंदोलन किया। लोकतंत्र के इस प्रोटेस्ट को दबाने के लिए शेख हसीना ने हर तरह का हथकंडा अपनाया। उनके समर्थक और गुंडे इस आंदोलन को हिंसक बनाकर बांग्लादेश की युवाओं जया जी आंदोलन को कुचलना चाहा। ताकि विद्यार्थियों की क्रांतिकारी आंदोलन को गलत ठहराया जा सके और प्रदर्शन को दबाया जा सके। विद्यार्थियों के इस आंदोलन में जनता भी शामिल हो गई और सेना ने आंदोलनकारियों को सह दिया।
लोकतंत्र में शेख हसीना एक तानाशाह के रूप में उभर कर सामने आ गई। उसके फैसले देश से हित के बजाय देश को तोड़ने वाला साबित हुआ। आरक्षण के दायरे को केवल एक प्रतिशत जनता के लाभ के लिए बढ़ाने वाला उसका फैसला आखिरकार विद्यार्थियों में क्रांति का बीजरोपण किया। इसके पश्चात विद्यार्थियों की आंदोलन को दबाने के लिए अपने गुंडागर्दी और समर्थकों का सहारा लिया जिस कारण आंदोलनकारी हिंसक को गया। युवाओं के आंदोलन को देखकर जनता भी इस आंदोलन के पक्ष में खड़ी हो गई।
वहीं सरकारी भर्तियों में शेख हसीना के समर्थक और गुंडे सरकारी पदों पर आसीन होते रहें है। विपक्ष को खत्म करने का नारा शेख हसीना ने अपने देश में दिया था। शेख हसीना अपने इन अंतिम 6 महीने में पूरी तरह से तानाशाह हो गई थी।
इस स्थिति में, जनता का शेख हसीना के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन करना जायज था, क्योंकि उन्होंने लोकतंत्र के मूल्यों का उल्लंघन किया और तानाशाही की ओर बढ़ गई थी। शेख हसीना की गलत नीतियों का खामियाजा अल्प हिन्दुओं को भोगना पड़ रहा है।
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