गुजरात के प्रमुख Ambaji Shakti peeth से ऐतिहासिक पौराणिक कथाओं सहित सम्पूर्ण जानकारी जो जीवन में बहुत महत्व रखता है। यहां विस्तृत रूप से जानें भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी में।
Table of Contents
1. अंबाजी शक्तिपीठ का परिचय
Ambaji Shakti peeth – ambaji temple history

अंबाजी शक्तिपीठ “Ambaji shakti peeth” भारत के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह गुजरात राज्य के बनासकांठा जिले में अरावली पर्वत शृंखला में स्थित है। यह स्थल देवी सती के ह्रदय भाग के स्थापना से जुड़ा हुआ है यहां सती का ह्रदय गिरा था। यह मंदिर न केवल भक्तों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है, बल्कि इसकी वास्तुकला और गब्बर पर्वत पर स्थित चरण चिह्न इस स्थान को और भी पवित्र बनाते हैं।
वहीं, सोमनाथ मंदिर हिंदू धर्म में अपनी ऐतिहासिक और पौराणिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, जिसे मुगल आक्रमणों के बाद कई बार पुनर्निर्मित किया गया। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से अंबाजी की यात्रा न केवल धार्मिक अनुभव प्रदान करती है, बल्कि यह गुजरात के विभिन्न सांस्कृतिक और प्राकृतिक सौंदर्य स्थलों से भी परिचय कराती है। भक्त इस यात्रा को शक्ति और शिव की भक्ति में लीन होकर एक विशेष आध्यात्मिक अनुष्ठान के रूप में देखते हैं।
2. अंबाजी मंदिर का भौगोलिक स्थान
ambaji temple history
अंबाजी मंदिर गुजरात राज्य के बनासकांठा जिले में स्थित है और यह राजस्थान की सीमा के बहुत करीब है। यह स्थान अरावली पर्वत श्रृंखला में बसा हुआ है, जिससे इसकी भौगोलिक सुंदरता और आध्यात्मिकता और भी बढ़ जाती है। अंबाजी मंदिर अहमदाबाद से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जबकि माउंट आबू, जो राजस्थान का प्रसिद्ध हिल स्टेशन है, यहाँ से केवल 50 किलोमीटर दूर है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग सबसे सुविधाजनक है, क्योंकि गुजरात राज्य परिवहन की बसें और निजी वाहन यहाँ तक नियमित रूप से चलते हैं।
इसके अलावा, निकटतम रेलवे स्टेशन पालनपुर में स्थित है, जो लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर है, और वहाँ से अंबाजी के लिए टैक्सियाँ और बसें आसानी से उपलब्ध होती हैं। निकटतम हवाई अड्डा अहमदाबाद में स्थित है, जहाँ से देशभर के प्रमुख शहरों के लिए हवाई यात्रा की सुविधा है। मंदिर का भौगोलिक स्थान इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाता है, क्योंकि यह अरावली पर्वत श्रृंखला की गोद में बसा हुआ है, जिससे यह प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।
इस क्षेत्र की जलवायु सालभर सुखद बनी रहती है, जो यात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए इसे एक आदर्श स्थल बनाती है। अंबाजी मंदिर के निकट ही गब्बर पर्वत स्थित है, जिसे माता अंबे का मूल स्थान माना जाता है और जहाँ उनके चरण चिह्न स्थित हैं। यहाँ से सूर्यास्त और सूर्योदय का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है, जिससे यह स्थान केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि प्राकृतिक प्रेमियों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र बन जाता है। अंबाजी मंदिर का भौगोलिक स्थान इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को और अधिक बढ़ा देता है, जिससे यह स्थान देशभर के भक्तों और पर्यटकों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण बन जाता है।
3. अंबाजी शक्तिपीठ की पौराणिक कथा
Ambaji temple shaki pith story
अंबाजी शक्तिपीठ की पौराणिक कथा का संबंध देवी सती और भगवान शिव से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना से है। कथा के अनुसार, जब राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया और अपमान किया, तो देवी सती ने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर लिया। इस घटना से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने सती के मृत शरीर को उठाकर तांडव नृत्य करना शुरू कर दिया, जिससे पूरे ब्रह्मांड में प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो गई। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया।
जिससे विभिन्न स्थानों पर देवी के अंग गिरे और वे सभी स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि अंबाजी में देवी सती का हृदय गिरा था, जिसके कारण यह स्थान विशेष रूप से शक्तिशाली और पूजनीय बन गया। इसी वजह से इस स्थान को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और यहाँ पर देवी की शक्ति स्वरूप पूजा की जाती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, अंबाजी मंदिर का गब्बर पर्वत से गहरा संबंध है। ऐसा कहा जाता है कि माता अंबे ने इसी पर्वत पर निवास किया था और यहाँ पर उनके चरण चिह्न आज भी देखे जा सकते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी स्थान पर देवी ने महिषासुर जैसे कई दानवों का संहार किया था, जिससे यह स्थल शक्ति उपासकों के लिए विशेष महत्व रखता है। गब्बर पर्वत पर स्थित शक्ति ज्योति भी एक दिव्य रहस्य मानी जाती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह प्राचीन काल से जल रही है और इसमें देवी की अलौकिक शक्ति समाई हुई है। यहाँ आने वाले भक्त माँ अंबे की कृपा प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या और उपासना करते हैं। इस पवित्र स्थल की पौराणिकता और दिव्यता इसे न केवल एक तीर्थ स्थल बल्कि एक आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र भी बनाती है, जहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करने के लिए आते हैं।
4. अंबाजी मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ambaji temple history
अंबाजी मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अत्यंत प्राचीन और रहस्यमयी मानी जाती है। यह मंदिर हजारों वर्षों से शक्ति उपासकों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल रहा है। इसका उल्लेख कई प्राचीन हिंदू ग्रंथों, पुराणों और तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है। स्कंद पुराण, कलिका पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में अंबाजी शक्तिपीठ का विशेष उल्लेख किया गया है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना वैदिक काल से पहले हुई थी और यह स्थल तब से शक्ति उपासना का केंद्र बना हुआ है।
ऐसा कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के मामा कंस ने यहाँ शक्ति की उपासना की थी, और स्वयं भगवान कृष्ण ने भी माता अंबे का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इसके अलावा, महाभारत काल में पांडवों ने भी अपने वनवास के दौरान अंबाजी मंदिर में देवी की आराधना की थी और उनसे विजय का वरदान प्राप्त किया था। इतिहासकारों के अनुसार, मौजूदा मंदिर का निर्माण कई बार किया गया। प्रारंभ में यह एक साधारण गुफा मंदिर था, लेकिन बाद में विभिन्न राजाओं और भक्तों ने इसे भव्य स्वरूप प्रदान किया।
गुजरात के सोलंकी राजाओं ने 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और इसे एक भव्य संरचना में बदल दिया। इसके बाद, 15वीं शताब्दी में महाराणा कुंभा ने इस मंदिर की मरम्मत करवाई। मुगल शासनकाल में मंदिर को कई बार आक्रमणों का सामना करना पड़ा, लेकिन श्रद्धालुओं ने इसे फिर से पुनर्जीवित किया। वर्तमान समय में, यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी वास्तुकला अद्भुत है।
अंबाजी मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहाँ “श्री यंत्र” की पूजा की जाती है, जिसे देवी की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर केवल गुजरात ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में शक्ति उपासना के प्रमुख केंद्रों में से एक है और हर वर्ष लाखों भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।

5. अंबाजी शक्तिपीठ और बाबा बैद्यनाथ धाम का संबंध
अंबाजी शक्तिपीठ और बाबा बैद्यनाथ धाम के बीच एक गहरा आध्यात्मिक और पौराणिक संबंध है। हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि सभी शक्तिपीठों की शक्ति और ऊर्जा का स्रोत एक ही है, लेकिन कुछ शक्तिपीठों के बीच विशेष संबंध होते हैं। अंबाजी शक्तिपीठ, जहाँ देवी सती का हृदय गिरा था, और झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम, जहाँ भगवान शिव स्वयं शिवलिंग रूप में विराजमान हैं, इन दोनों स्थलों को शक्ति और शिव के अनूठे मिलन का प्रतीक माना जाता है।
यह मान्यता शक्ति और शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप को दर्शाती है, जहाँ शक्ति के बिना शिव अधूरे माने जाते हैं और शिव के बिना शक्ति भी पूर्ण नहीं होती। भक्त मानते हैं कि अंबाजी शक्तिपीठ में माँ अंबे की उपासना करने के बाद यदि बाबा बैद्यनाथ के दर्शन किए जाएँ, तो साधक को शिव और शक्ति दोनों की कृपा प्राप्त होती है। इस कारण से, कई श्रद्धालु इन दोनों तीर्थ स्थलों की यात्रा को एक साथ करने का संकल्प लेते हैं।
इसके अतिरिक्त, एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए थे, तब उनका हृदय अंबाजी में गिरा और उनका हृदय-धड़कन (हृदय की ऊर्जात्मक शक्ति) बाबा बैद्यनाथ धाम में प्रतिष्ठित हुई। इसलिए, इन दोनों तीर्थों को आध्यात्मिक रूप से एक-दूसरे का पूरक माना जाता है। तांत्रिक ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि अंबाजी शक्तिपीठ में साधना करने से साधक को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है, लेकिन उस शक्ति को स्थायित्व देने और जागृत करने के लिए बाबा बैद्यनाथ धाम में शिव साधना करना आवश्यक होता है।
इस रहस्यमयी संबंध के कारण भारत के कई संत और तांत्रिक इन दोनों स्थानों को अपनी साधना स्थली के रूप में चुनते हैं। शिव और शक्ति की इस अलौकिक जोड़ी का यह दिव्य संबंध भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है और उनके जीवन में संतुलन एवं सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
6. भैरव मंदिर – शक्तिपीठ का रक्षक
शक्तिपीठों में माँ शक्ति की उपासना के साथ-साथ भगवान भैरव की पूजा भी अनिवार्य मानी जाती है, क्योंकि वे इन शक्तिपीठों के रक्षक देवता होते हैं। अंबाजी शक्तिपीठ में भी भैरव मंदिर का विशेष महत्व है, जहाँ भक्त शक्ति के साथ-साथ भैरवनाथ की कृपा प्राप्त करने के लिए दर्शन करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब देवी सती के अंग पृथ्वी पर गिरे और शक्तिपीठ स्थापित हुए, तब भगवान शिव ने इन सभी स्थलों की रक्षा के लिए भैरव को नियुक्त किया। भैरव को काल भैरव और बटुक भैरव के नाम से भी जाना जाता है, और वे शिव के रौद्र एवं उग्र रूप माने जाते हैं।
अंबाजी में स्थित भैरव मंदिर इसी पौराणिक परंपरा का हिस्सा है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विशेष रूप से भैरव बाबा की आराधना करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि माँ अंबे के दर्शन तभी पूर्ण माने जाते हैं जब भक्त भैरव मंदिर में जाकर उन्हें प्रणाम करते हैं। अंबाजी शक्तिपीठ में स्थित भैरव मंदिर का रहस्य और उसकी शक्ति भक्तों को विशेष रूप से आकर्षित करती है। मान्यता है कि यहाँ स्थित भैरव की मूर्ति स्वयंभू (स्वतः प्रकट) है और इसमें एक अद्भुत ऊर्जा प्रवाहित होती है। भक्त विशेष रूप से नवरात्रि, कालाष्टमी और पूर्णिमा के दिन यहाँ पूजा-अर्चना करने आते हैं।
क्योंकि इन दिनों में भैरव बाबा की उपासना का फल कई गुना अधिक माना जाता है। इस मंदिर से जुड़ी एक और रोचक कथा यह है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से यहाँ पूजा करता है और माँ अंबे से कोई इच्छा मांगता है, तो भैरव बाबा स्वयं उसकी रक्षा करते हैं और उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसलिए, यहाँ आने वाले श्रद्धालु माता अंबे के साथ-साथ भैरव देवता को भी प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा करते हैं, जिससे उनका जीवन सुख-समृद्धि से भर जाए और वे सभी बाधाओं से मुक्त हो सकें।
7. अंबाजी मंदिर में दर्शन व्यवस्था
अंबाजी मंदिर के आसपास कई महत्वपूर्ण धार्मिक और प्राकृतिक स्थल स्थित हैं, जो इस क्षेत्र को एक प्रमुख तीर्थ और पर्यटन स्थल बनाते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण गब्बर पर्वत है, जिसे माँ अंबे का मूल स्थान माना जाता है। गब्बर पर्वत मंदिर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, और यहाँ पहुँचने के लिए 999 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं या रोपवे की सुविधा ली जा सकती है। गब्बर पर्वत की चोटी पर माँ अंबे के चरण चिह्न स्थित हैं, जिन्हें अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि यही वह स्थान है जहाँ माँ अंबे प्रकट हुई थीं और यही उनकी वास्तविक शक्ति स्थली है।
इसके अलावा, गब्बर पर्वत से अंबाजी मंदिर का दिव्य दृश्य अत्यंत मनमोहक लगता है, जिससे यह स्थल भक्तों के लिए आध्यात्मिक और प्राकृतिक शांति का अनूठा संगम बन जाता है।
इसके अतिरिक्त, अंबाजी मंदिर के निकट कोटेश्वर महादेव मंदिर स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहाँ स्वयं भगवान शिव ने माता अंबे के दर्शन किए थे और उनकी शक्ति को नमन किया था। इसके अलावा, कमाक्षी मंदिर, मानसरोवर तीर्थ, और श्री जैन तीर्थ तारंगा हिल भी पास में स्थित हैं, जो धार्मिक महत्व रखते हैं।
यहाँ आने वाले श्रद्धालु इन स्थलों पर भी जाकर आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। इसके साथ ही, अंबाजी से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माउंट आबू एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है, जहाँ दिलवाड़ा जैन मंदिर, नक्की झील और गुरु शिखर जैसे दर्शनीय स्थल स्थित हैं। इस प्रकार, अंबाजी के आसपास धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों की एक समृद्ध श्रृंखला है, जो इसे श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक अद्भुत तीर्थस्थल बनाती है।
8. माँ अंबे की मूर्ति का स्वरूप
अंबाजी शक्तिपीठ की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि यहाँ माँ अंबे की कोई पारंपरिक मूर्ति नहीं है, बल्कि “श्री यंत्र” की पूजा की जाती है। श्री यंत्र को देवी शक्ति का प्रतीक माना जाता है और इसे ब्रह्मांड की ऊर्जा का केंद्र कहा जाता है। मान्यता है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इस यंत्र की स्थापना की थी और तब से यह निरंतर पूजित हो रहा है। अंबाजी मंदिर में यह श्री यंत्र गर्भगृह में स्थित है और इसे पर्दे के पीछे रखा जाता है। इसे देखने की अनुमति किसी को नहीं होती, क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। केवल पुजारी ही विधिपूर्वक इसकी पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
भक्तगण जब मंदिर में आते हैं, तो वे इस अदृश्य शक्ति को नमन करते हैं और माँ अंबे की कृपा प्राप्त करते हैं। यह परंपरा इस बात को दर्शाती है कि देवी की शक्ति मूर्ति में नहीं, बल्कि उनकी दिव्य ऊर्जा में निहित होती है। श्री यंत्र की पूजा के पीछे एक गहरी तांत्रिक और आध्यात्मिक मान्यता है। श्री यंत्र त्रिकोणीय रचनाओं और पवित्र रेखाओं का एक ज्यामितीय रूप है, जो सृष्टि की ऊर्जा और संतुलन को दर्शाता है। कहा जाता है कि यह यंत्र स्वयं माँ अंबे का दिव्य स्वरूप है, और इसकी उपासना से जीवन में शक्ति, समृद्धि और सकारात्मकता आती है।
अंबाजी मंदिर में इस यंत्र की स्थापना हजारों वर्षों से चली आ रही है, और यह मंदिर तांत्रिक साधना के लिए भी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। कई भक्त यहाँ नवरात्रि और विशेष अवसरों पर आकर माँ अंबे के श्री यंत्र के समक्ष ध्यान करते हैं और अपनी मनोकामनाएँ माँगते हैं। यही कारण है कि अंबाजी मंदिर को अन्य शक्तिपीठों से अलग एक विशेष आध्यात्मिक और रहस्यमयी स्थान प्राप्त है, जहाँ मूर्ति के स्थान पर देवी के परम ऊर्जा स्वरूप की पूजा की जाती है।
9. अंबाजी मंदिर की वास्तुकला
अंबाजी मंदिर की वास्तुकला अपनी भव्यता और दिव्यता के लिए प्रसिद्ध है, जो गुजराती और राजस्थानी शिल्पकला का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करती है। यह मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित है, जिसकी दीवारों पर सुंदर नक्काशी और जटिल कलात्मक डिज़ाइन उकेरे गए हैं। मंदिर के शिखर की ऊँचाई लगभग 103 फीट है, जिस पर स्वर्ण कलश और ध्वज स्थापित हैं, जो दूर से ही भक्तों को आकर्षित करते हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार और स्तंभों पर की गई नक्काशी में देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं और ज्यामितीय आकृतियों का अद्भुत संयोजन देखने को मिलता है।
इसके अलावा, मंदिर के गर्भगृह को विशेष रूप से इस तरह से बनाया गया है कि वहाँ प्राकृतिक प्रकाश का विशेष प्रभाव पड़ता है, जिससे इसकी दिव्यता और बढ़ जाती है। मंदिर परिसर में सभामंडप, यज्ञशाला और विशाल प्रांगण भी हैं, जहाँ भक्त ध्यान और साधना कर सकते हैं। रात के समय जब मंदिर जगमगाते दीपों और रोशनी से प्रकाशित होता है, तब इसकी सुंदरता और भी अलौकिक प्रतीत होती है, मानो माँ अंबे स्वयं अपनी दिव्य आभा से पूरे क्षेत्र को आलोकित कर रही हों।
10. गब्बर पर्वत – माँ अंबे का निवास स्थान
ambaji temple to gabbar hill
गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित गब्बर पर्वत माँ अंबे का दिव्य निवास स्थान माना जाता है, यहां देवी ने स्वयं प्रकट होकर भक्तों को आशीर्वाद दिया था। यह पर्वत अंबाजी मंदिर से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है और यहां 999 सीढ़ियां चढ़कर भक्त माँ के चरणों तक पहुंचते हैं। गब्बर पर्वत की चोटी पर एक पवित्र ज्योति निरंतर जलती रहती है, जिसे माँ अंबे की दिव्य उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां सती के हृदय का अंश गिरा था, जिससे यह शक्तिपीठ बना। यहां से अंबाजी मंदिर और आसपास का विहंगम दृश्य मन को अद्भुत शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।
11. अंबाजी मेले और उत्सव
अंबाजी मेला और उत्सव, गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित प्रसिद्ध अंबाजी मंदिर में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाए जाते हैं। विशेष रूप से भाद्रपद महीने की पूर्णिमा पर लगने वाला अंबाजी मेला लाखों भक्तों को आकर्षित करता है, जो पैदल यात्रा कर माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस मेले में पारंपरिक लोक नृत्य, भजन-कीर्तन, झांकियां और रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिससे यह धार्मिक आस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत का भी अद्भुत संगम बन जाता है। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना और गरबा उत्सव की धूम रहती है, जहां श्रद्धालु भक्ति और आनंद में सराबोर हो जाते हैं।

12. Ambaji Shakti peeth
नवरात्रि का विशेष महत्व
आध्यात्मिक शक्ति, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा के संचार में निहित है। यह नौ दिनों तक चलने वाला पर्व शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना के लिए समर्पित होता है। इस दौरान उपवास, मंत्र जाप, हवन और भजन-कीर्तन के माध्यम से भक्त आत्मशुद्धि और आत्मसंयम की साधना करते हैं। नवरात्रि केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि आत्मउत्थान और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक भी है। इस पावन अवसर पर घरों और मंदिरों में विशेष सजावट की जाती है, गरबा और डांडिया की धूम रहती है, जिससे समाज में उमंग और उत्साह का वातावरण बनता है।
13. मंदिर में चढ़ावे और प्रसाद की विशेषता
अंबाजी मंदिर में भक्तगण माँ अंबे को श्रद्धा और आस्था के साथ विशेष चढ़ावा अर्पित करते हैं, जिसमें नारियल, चुनरी, फूल, चूड़ियाँ, लाल ध्वज और मिठाइयाँ प्रमुख रूप से शामिल होती हैं। यहाँ चढ़ाए जाने वाले “मोहन थाल” को विशेष प्रसाद माना जाता है, जो देसी घी, बेसन और शुद्ध चीनी से बनाया जाता है। यह प्रसाद अत्यंत पवित्र होता है और इसे ग्रहण करने से भक्तों को माँ अंबे की कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा, मंदिर में चढ़ाए गए नारियल को श्रद्धालु अपने घर ले जाते हैं, क्योंकि इसे शुभ और सौभाग्यदायक माना जाता है।
यहाँ एक और अनूठी परंपरा है—भक्तगण सोने-चाँदी के आभूषण और मणियों को भी माँ अंबे के चरणों में अर्पित करते हैं, जो उनकी श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक होता है। मंदिर में चढ़ाए गए सभी प्रसाद को भक्तों में बाँट दिया जाता है ताकि माँ की कृपा सभी तक पहुँचे। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, यहाँ विशाल भंडारे और प्रसाद वितरण किए जाते हैं, जहाँ हज़ारों श्रद्धालु एक साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस प्रकार, अंबाजी मंदिर में चढ़ावा और प्रसाद केवल भक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि माँ अंबे की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक भी है, जो भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि लाने वाला माना जाता है।
14. मंदिर के आसपास के प्रमुख स्थल
अंबाजी मंदिर के आसपास कई प्रमुख धार्मिक और दर्शनीय स्थल स्थित हैं, जो इस क्षेत्र को आध्यात्मिक और पर्यटन के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण बनाते हैं। सबसे प्रमुख स्थल गब्बर पर्वत है, जिसे माँ अंबे का वास्तविक निवास माना जाता है। यहाँ देवी के चरण चिह्न स्थित हैं, और भक्त 999 सीढ़ियाँ चढ़कर या रोपवे के माध्यम से इस पवित्र स्थान तक पहुँच सकते हैं। इसके अलावा, अंबाजी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोटेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जहाँ एक पवित्र जलधारा भी बहती है। पास ही मानसरोवर तीर्थ स्थित है, जिसे आध्यात्मिक रूप से अत्यंत पवित्र माना जाता है।
जैन धर्म के अनुयायियों के लिए तारंगा हिल जैन मंदिर एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जो अपनी भव्य स्थापत्य कला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा, अंबाजी से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माउंट आबू राजस्थान का एक प्रमुख हिल स्टेशन है, जहाँ दिलवाड़ा जैन मंदिर, नक्की झील, और गुरु शिखर जैसे दर्शनीय स्थल मौजूद हैं। इन धार्मिक और प्राकृतिक स्थलों के कारण अंबाजी क्षेत्र न केवल श्रद्धालुओं बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षक स्थल बन गया है, जहाँ आध्यात्मिक शांति और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
15. गब्बर पर्वत की यात्रा
gabbar hill
गब्बर पर्वत, जिसे अंबाजी मंदिर की पवित्र भूमि का अभिन्न हिस्सा माना जाता है, श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा का केंद्र है। गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित यह पर्वत माता अंबा का मूल स्थान माना जाता है, जहां उनकी दिव्य पादुका विराजमान हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी होती है, बल्कि प्रकृति की गोद में बसे इस पर्वत पर चढ़ाई करना भक्तों के लिए एक अद्भुत अनुभव भी होता है।
गब्बर पर्वत तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को लगभग 999 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो उनकी भक्ति और समर्पण की परीक्षा का प्रतीक मानी जाती हैं। हालांकि, अब एक रोपवे सुविधा भी उपलब्ध है, जिससे श्रद्धालु सहजता से माता के दर्शन कर सकते हैं। पर्वत की चोटी से पूरे क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है, जो मन को शांति और आंतरिक संतोष प्रदान करता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था, और तभी से यह स्थान देवी शक्ति की असीम कृपा से पूरित है।
यहां की यात्रा भक्तों को यह अहसास कराती है कि भक्ति का मार्ग कठिनाइयों से भरा हो सकता है, लेकिन यदि श्रद्धा और समर्पण सच्चे हों, तो हर बाधा पार की जा सकती है। गब्बर पर्वत की यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आत्मसाक्षात्कार का माध्यम भी है, जहां व्यक्ति सांसारिक चिंताओं से मुक्त होकर ईश्वरीय शक्ति का साक्षात्कार करता है।
16. अंबाजी मंदिर का amazing आध्यात्मिक प्रभाव
अंबाजी मंदिर का अद्भुत आध्यात्मिक प्रभाव भक्तों के मन, आत्मा और जीवन पर गहराई से पड़ता है। यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक दिव्य ऊर्जा केंद्र है, जहाँ श्रद्धालु आकर शांति, शक्ति और भक्ति का अनुभव करते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में माता सती की ऊर्जा स्वयं विद्यमान है, जो हर भक्त को आंतरिक बल और सकारात्मकता प्रदान करती है। अंबाजी मंदिर में प्रवेश करते ही एक अलौकिक शांति का अनुभव होता है, मानो व्यक्ति सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर एक आध्यात्मिक संसार में प्रवेश कर रहा हो।
यहाँ की आरती, मंत्रोच्चार और घंटियों की ध्वनि मन को एक विशेष आध्यात्मिक ऊंचाई पर ले जाती है। माता अंबा की कृपा से भक्तों के जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ दूर होती हैं, और उन्हें नया आत्मबल प्राप्त होता है। यह मंदिर हमें यह सिखाता है कि सच्ची शक्ति केवल भौतिक संसार में नहीं, बल्कि हमारी आत्मा के भीतर भी विद्यमान होती है, जिसे जागृत करने के लिए भक्ति, साधना और सच्चे संकल्प की आवश्यकता होती है।
अंबाजी मंदिर की आध्यात्मिकता केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक भी है, क्योंकि यहाँ आने वाले असंख्य भक्त एक साथ दिव्य ऊर्जा का अनुभव करते हैं और अपनी श्रद्धा को और अधिक प्रबल बनाते हैं। यही कारण है कि यह स्थान केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आत्मसाक्षात्कार का एक केंद्र भी है, जहाँ व्यक्ति अपनी आस्था को मजबूत कर जीवन में नई दिशा प्राप्त करता है।
17. अंबाजी मंदिर की आर्थिक और सामाजिक महत्ता
अंबाजी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इसकी आर्थिक और सामाजिक महत्ता भी अत्यंत व्यापक है। यह मंदिर लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, जिससे स्थानीय व्यापार, पर्यटन और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। मंदिर के आसपास का क्षेत्र छोटे व्यापारियों, दुकानदारों, होटल और यात्रा सेवा प्रदाताओं के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक केंद्र बन गया है। यहाँ हर वर्ष मनाए जाने वाले भव्य मेले और त्योहार न केवल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करते हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाते हैं।
इसके अलावा, मंदिर प्रशासन द्वारा विभिन्न सेवा योजनाएँ चलाई जाती हैं, जिनमें भोजन वितरण, गौशाला संचालन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ शामिल हैं, जिससे समाज के वंचित वर्गों को सीधा लाभ मिलता है। यह मंदिर धार्मिक सहिष्णुता और सामुदायिक एकता का प्रतीक भी है, जहाँ विभिन्न पृष्ठभूमियों से आए लोग एक साथ श्रद्धा और समर्पण के भाव से एकजुट होते हैं। इसके माध्यम से सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलता है और लोगों के बीच सहयोग और परोपकार की भावना उत्पन्न होती है।
कुल मिलाकर, अंबाजी मंदिर केवल भक्ति का स्थान नहीं, बल्कि यह आर्थिक विकास, सामाजिक सेवा और सांस्कृतिक एकता का एक जीवंत केंद्र भी है, जो समाज को आध्यात्मिकता और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। Click on the link गूगल ब्लाग पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
18. अंबाजी मंदिर में सेवा और दान
अंबाजी मंदिर में सेवा और दान का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह केवल पूजा-अर्चना का स्थान नहीं, बल्कि मानवता की सेवा और परोपकार का केंद्र भी है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु न केवल अपनी भक्ति अर्पित करते हैं, बल्कि सेवा और दान के माध्यम से अपने पुण्य कर्मों को भी बढ़ाते हैं। मंदिर में भोजन प्रसाद की व्यवस्था, असहाय और जरूरतमंद लोगों के लिए सहायता, गौसेवा और धार्मिक अनुष्ठानों में सहयोग जैसे विभिन्न सेवा कार्य किए जाते हैं।
दान की परंपरा यहाँ केवल आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं, बल्कि तन, मन और धन से की गई हर सेवा का विशेष महत्व है। कई भक्त मंदिर में स्वेच्छा से श्रमदान करते हैं, तो कुछ जरूरतमंदों के लिए अन्न, वस्त्र और अन्य आवश्यक सामग्रियाँ प्रदान करते हैं। मंदिर प्रशासन द्वारा भी विभिन्न सामाजिक और धार्मिक सेवा कार्य संचालित किए जाते हैं, जिससे यह स्थान केवल भक्ति का केंद्र नहीं, बल्कि सामाजिक उत्थान और मानव सेवा का प्रेरणास्त्रोत भी बन जाता है।
सेवा और दान का यह भाव हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति केवल ईश्वर की आराधना में ही नहीं, बल्कि समाज की भलाई के लिए किए गए कर्मों में भी निहित है। अंबाजी मंदिर में किया गया प्रत्येक सेवा कार्य न केवल भक्त के पुण्य को बढ़ाता है, बल्कि उसे आंतरिक शांति और संतोष की अनुभूति भी कराता है, जो भक्ति का सर्वोच्च फल माना जाता है।
19. अंबाजी मंदिर तक कैसे पहुँचे
अंबाजी मंदिर तक पहुँचने के लिए सड़क, रेल और हवाई मार्ग से सुविधाजनक परिवहन उपलब्ध है। सड़क मार्ग से यह मंदिर गुजरात और राजस्थान के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। अहमदाबाद, गांधीनगर, पालनपुर और माउंट आबू से अंबाजी के लिए नियमित बस सेवाएँ और टैक्सी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अहमदाबाद से अंबाजी की दूरी लगभग 180 किलोमीटर है, जिसे कार या बस से लगभग 4 घंटे में तय किया जा सकता है।
रेल मार्ग की बात करें तो अंबाजी के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड (राजस्थान) है, जो मंदिर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है। आबू रोड स्टेशन से अंबाजी के लिए बसें और टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं। यह रेलवे स्टेशन दिल्ली, मुंबई, जयपुर और अहमदाबाद जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
यदि आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं, तो सबसे नजदीकी हवाई अड्डा सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, अहमदाबाद है, जो अंबाजी से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ से आप टैक्सी या बस लेकर अंबाजी मंदिर पहुँच सकते हैं। इसके अलावा, उदयपुर हवाई अड्डा भी एक विकल्प हो सकता है, जो अंबाजी से लगभग 150 किलोमीटर दूर है। कुल मिलाकर, अंबाजी मंदिर तक पहुँचना सुविधाजनक है, और हर साल हजारों श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं।
20. सोमनाथ मंदिर से अंबाजी मंदिर
Somnath temple to Ambaji Shaktipeeth, distance
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से अंबाजी शक्तिपीठ की दूरी लगभग 430 किलोमीटर है, और इसे सड़क मार्ग द्वारा तय करने में लगभग 8 से 9 घंटे लगते हैं। गुजरात के इन दो प्रमुख धार्मिक स्थलों के बीच यात्रा करने के लिए बस, टैक्सी और निजी वाहन की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। सोमनाथ, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, भगवान शिव का प्रमुख तीर्थस्थल है, जबकि Ambaji Shaktipeeth देवी शक्ति का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
इन दोनों तीर्थों की यात्रा भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है, क्योंकि यह शिव और शक्ति की आराधना का संगम प्रस्तुत करती है। सोमनाथ से अंबाजी जाने वाले मार्ग में जूनागढ़, राजकोट, अहमदाबाद, और पालनपुर जैसे शहर आते हैं, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध हैं।

21. Ambaji Shakti pith से आध्यात्मिक संदेश
Ambaji Shaktipeeth अंबाजी शक्ति पीठ केवल एक तीर्थ स्थान नहीं, बल्कि शक्ति, श्रद्धा और आत्मज्ञान का प्रतीक है। यह वह दिव्य स्थान है जहां माता सती का हृदय गिरा था, और तब से यह स्थल भक्तों के लिए अनंत शक्ति और कृपा का स्रोत बना हुआ है। अंबाजी की उपासना हमें यह संदेश देती है कि स्त्री शक्ति केवल सृजन और पालनहार ही नहीं, बल्कि संहार की शक्ति भी है, जो अधर्म और अज्ञान का नाश करती है। यह शक्ति पीठ हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति केवल पूजा और अनुष्ठानों तक सीमित नहीं, बल्कि हमारे विचारों और कर्मों में भी परिलक्षित होनी चाहिए।
अंबाजी का आशीर्वाद हमें धैर्य, साहस और सत्य के मार्ग पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है। जब हम उनकी उपासना करते हैं, तो हम न केवल उनकी कृपा प्राप्त करते हैं, बल्कि अपने भीतर भी एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास का संचार महसूस करते हैं। यह शक्ति पीठ हमें यह भी सिखाता है कि सच्ची भक्ति का अर्थ केवल मंदिरों में जाना नहीं, बल्कि अपने जीवन में धर्म, करुणा और न्याय को अपनाना है। अंबाजी हमें यह अहसास कराती हैं कि जीवन में आने वाली चुनौतियाँ केवल परीक्षा हैं, और यदि हम श्रद्धा और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते हैं, तो कोई भी बाधा हमारे मार्ग को रोक नहीं सकती।






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