जीवन के हर क्षेत्र में संस्कारित सफलता प्राप्त करने में शिक्षा की ही अहम भूमिका होती है। प्राचीन शिक्षा एवं व्यवस्था में अब तक अपार परिवर्तन हुआ। ऋषि-मुनियों द्वारा वो गुरुकुल शिक्षा धीरे-धीरे बन्द, रुपरेखा बदल सामान्य गुरुकुल ध्वस्त, काँन्वेंट और अंग्रेजी माध्यम शिक्षा की शुरुआत की गई। काँन्वेंट शिक्षा की शुरुआती तह को समझना होगा….!
काॅन्वेंट पर गर्व क्यूँ ?
आखिर हम भारतीयों को काॅन्वेंट पर गर्व क्यूँ ? काँन्वेंट शब्द पर गर्व न करें, सच समझे। ‘काँन्वेंट’ सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि ये शब्द आखिर आया कहाँ से है, तो आइये हम बताते हैं।
ब्रिटेन का एक कानून लिव इन रिलेशनशिप जो अब अपने भारत में भी कदम फैला चुका है बिना किसी वैवाहिक संबंध किसी लड़का का किसी लड़की का साथ में रहना। साथ में रहते शारीरिक संबंध भी बन जाते हैं, तो इस प्रक्रिया के अनुसार संतान भी पैदा हो जाती हैं, तो उन संतानों को किसी चर्च में छोड़ दिया जाता था। तब ब्रिटेन की सरकार के सामने यह गम्भीर समस्या हुई कि इन बच्चों का क्या किया जाए ? तब वहाँ की सरकार (राजघराना) ने काँन्वेंट खोले अर्थात् जो बच्चे अनाथ होने के साथ-साथ नाजायज थें, उनके लिए काँन्वेंट बने। उन अनाथ और नाजायज बच्चों को रिश्तों का एहसास कराने के लिए उन्होंने अनाथालयों में एक फादर एक मदर एक सिस्टर की नियुक्ति कर दी क्योंकि ना तो उन बच्चों का कोई जायज बाप है ना ही माँ है। तो काँन्वेन्ट बना नाजायज बच्चों के लिए जायज। इंग्लैंड में पहला काँन्वेंट स्कूल सन् 1609 के आसपास एक चर्च में खोला गया था। जिसके ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद हैं और भारत में पहला काँन्वेंट स्कूल कलकत्ता में सन् 1842 में खोला गया था। तब हमारे ऊपर अंग्रेज़ों का हुकुमत था और आज तो लाखों की संख्या में काँन्वेंट स्कूल चल रहे हैं। जब कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने की यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं। मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है। उसमें वो लिखता है कि-
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे। इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने मुहावरे नहीं मालुम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी। उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रुवाब पड़ेगा। अरे ! हम तो खुद में हीन हो गए हैं। जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा? लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। दुनियाभर में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में ही बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है? शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईसा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईसा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी। समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी।
भारत देश में अब भारतीयों की मूर्खता देखिए जिनके जायज माँ बाप भाई बहन सब हैं, वो काँन्वेन्ट में जाते है तो क्या हुआ एक बाप घर पर है और दूसरा काँन्वेन्ट में जिसे फादर कहते हैं।
दुर्भाग्य की बात यह है कि जिन चीजो का हमने त्याग किया अंग्रेजो ने वो सभी चीजो को पोषित और संचित किया। और हम सबने उनकी त्यागी हुई गुलामी सोच को आत्मसात कर गर्वित होने का दुस्साहस किया।

शिक्षा की रुपरेखा में जैसे जैसे बदलाव हुआ गुरुकुल की संस्कारी शिक्षा को गिराने और कान्वेंट और अंग्रेजी का बढावा फिर वामपंथियों द्वारा किताबों में बदलाव शिक्षा का ध्वस्तिकरण फिर शिक्षा का निजीकरण बाजारीकरण ये सब शिक्षा मे गुणवत्ता नही लाया बल्कि भारतीय संस्कृति युक्त शिक्षा की रुपरेखा को ध्वस्त कर दिया। गंभीरता से विचार विमर्श किया जाएगा तो स्पष्ट दिखाई देगा शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ने की बजाय घटटा गया है। आज कुछ ही शिक्षण संस्थानों ने शिक्षा के गिरते स्तर को कुछ हद तक बचाए रखा है। परिषदीय बेसिक शिक्षा व्यवस्था को तो सरकार ही ध्वस्त करने में अहम भूमिका निभाई एक तो हर विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूसरा शिक्षकों के जिम्मे गैर शैक्षणिक कार्य शिक्षण कार्य करने वाले शिक्षकों को दो ही नहीं अब चार तरह का पारिश्रमिक बेसिक परिषद एवं माध्यमिक शिक्षा परिषद की शिक्षा व्यवस्था अल्प मात्रा में बचे खुचे शिक्षकों के जिम्मे गैर शैक्षणिक कार्य सौंपा गया और शिक्षा को चौपट कर दिया।

केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड
सरकारी शिक्षण संस्थानों में एक नाम जवाहर नवोदय विद्यालय जो केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड हर जिलों में अपनी कुछ साख को बनाए रखने में सफल था। किन्तु अब स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है। गांव के पचहत्तर एवं शहर के पचीस प्रतिशत होनहार बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था जो अभिभावक गरीबी के कारण अपने होनहार बच्चों को अच्छी शिक्षा, अच्छे-अच्छे विद्यालयों में दिलाने में सक्षम नहीं वैसे बच्चों को अच्छी और निशुल्क शिक्षा के उद्देश्य से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी तेरह अप्रैल सत्र उन्नीस सौ पचासी- छियासी में जवाहर नवोदय विद्यालय नाम से सीबीएसई बोर्ड के माध्यम से हर जिले के लिए एक एक जवाहर नवोदय विद्यालय स्थापित किया जो विद्यालय देश के हर जिलों में अपना परचम लहराता हुआ तेजी से बढ़ा लेकिन अब जवाहर नवोदय विद्यालयों में भी शिक्षा का स्तर गिरना शुरू हो गया है। इसका प्रमुख कारण है स्थायी शिक्षकों की कमी दूसरा जिलेवार विद्यार्थियों के चयन प्रक्रिया में ‘राजीव गांधी की मंशा गरीब होनहार बच्चों का था, राजनीतिक लाभ के चक्कर में जातिय आरक्षण का बढावा, तीसरा बढती मंहगाई के बाद सुविधाओं में वर्तमान सरकार द्वारा कटौती। फिर भी कुछ नवोदय विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था पूराने कर्मठ प्राचार्यो व अध्यापकों के बदौलत अस्वस्थता के कगार पर खड़ा अभी स्वस्थ है। नवोदय विद्यालयों की स्थिति मुझे ज्यादे समय से देखने को मिला- जवाहर नवोदय विद्यालय देवरिया में प्राचार्य डॉक्टर एस पी त्रिपाठी से मुलाकात हुई विद्यालय में आना-जाना रहा बच्चों के प्रति कुशल व्यवहार और शिक्षा के प्रति समर्पण भाव देखकर मन गदगद होता रहा। देवरिया से श्रावस्ती फिर वाराणसी से पुछं जम्मू कश्मीर दुर्गम जगह में प्राचार्य पद पर सेवा देते हुए उत्तर प्रदेश के जवाहर नवोदय विद्यालय मिर्जापुर में रिटायर के कगार पर हैं। हर जगह अपना परचम लहराते रहे हैं। डॉक्टर त्रिपाठी मानक से अधिक दुर्गम जगहों पर नियुक्त रह चुके हैं। जहां भी रहे विद्यालय को बहुत ही बेहतर तरीके से आगे बढ़ाया आज उन पुराने विद्यालयों के बच्चों में डाक्टर त्रिपाठी के प्रति सम्मान देखने को मिलता है।
शिवनाडर फाउंडेशन विद्याज्ञान विद्यालय
अब आते हैं पूंजीपतियों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा क्षेत्र में योगदान पर। शिवनाडर फाउंडेशन द्वारा संचालित विद्याज्ञान जो ग्रामीण क्षेत्रों के होनहार गरीब परिवारों के बच्चों को साइंटिस्ट्स तक बनाने की लक्ष्य लिए ऊँची एवं महंगी शिक्षा मुहैया कराने में देश भर के शैक्षिक संस्थानों में अपना प्रथम स्थान बना अग्रसर है। शिवनाडर फाउंडेशन विद्याज्ञान के होनहार बच्चों और कर्मठ गुरुजनों सहित प्राचार्य की कर्मठता को देखते हुए, शिवनाडर फाउंडेशन के परियोजना निदेशक एस0 के0 माहेश्वरी से बात किया तो डाॅ0 माहेश्वरी ने बताया शिवनाडर फाउंडेशन गांव के उन गरीब बच्चों को उच्च एवं महंगी शिक्षा प्रदान कराने की जिम्मेदारी लेता है। जिन बच्चों के अभिभावकों के पास महंगी शिक्षा की व्यवस्था नहीं है। देखने को मिलता है शिक्षा क्षेत्र में अनेकों पूंजीपतियों द्वारा संचालित शिक्षा को व्यवसाय समझ निजी शैक्षिक संस्थापनों को शिवनाडर फाउंडेशन द्वारा संचालित विद्याज्ञान विद्यालय के पदचिन्हों पर चलना चाहिए और देश के भविष्य निर्माण में अपना व्यवसाय तलाशने के बजाय निस्वार्थ योगदान देना चाहिए।

सरकारी बजट से संचालित विद्यालय के अध्यापकों को जवाहर नवोदय विद्यालय में बचे-खुचे अध्यापकों से सीख लेनी चाहिए जो मेहनत और लगन से देश के भविष्य निर्माण में योगदान दे रहे हैं। सरकार की मंशा अगर शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने की न होती तो प्राथमिक विद्यालयों से लेकर उच्च स्तरीय विद्यालयों में तमाम विषयों के अध्यापकों की जो जगह खाली है उसे भर कर गैर शैक्षणिक कार्य से मुक्त कर कड़ाई के साथ बच्चों को स्कूली शिक्षा दिलाने का कार्य करती किन्तु सरकार की मंशा ही ऐसी है कि बच्चों को उचित शिक्षा से वंचित कर अज्ञानता का शिकार बना अपने राजनीतिक फायदे को लिया जाए। कान्वेंट पैटर्न पर किताबी ज्ञान प्राप्त कर बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल कर लेना ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं होना चाहिए। शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य संस्कारी होना चाहिए। प्राचीन एवं गुरुकुल शिक्षा मे सर्वप्रथम बड़ो का आदर, छोटों से प्यार, भाषा में मधुरता, कटुता का त्याग, धर्म के प्रति आस्था और नहीं करना चाहिए किसी का अपमान। मतलब संस्कारी शिक्षा कूट-कूट कर भरी जाती थी। गरीब अमीर बच्चों के बीच कोई भेद-भाव नही रहता था। बालपन से सब एक छत के नीचे एक व्यवस्था में बैठ शिक्षा ग्रहण कर युवा अवस्था से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते शर्म हया और बड़ों का सम्मान, छोटों के प्रति दया भाव रखते हुए। सुखमय जीवन बिताने की चेष्टा करते थे। आज हर जगह आरक्षण व्यवस्था, दो तरह की शिक्षा व्यवस्था, संस्कारों का त्याग, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, लूट-खसोट की देन बालपन से युवा अवस्था में आते-आते परिवार में मतभेद एक दूसरे का अपमान आप स्वार्थ मन में भरा पड़ा है यह सब ध्वस्त शिक्षा का ही देन है। ऐसे-ऐसे लोगों के पद चिन्हों पर चल जब शिक्षा क्षेत्र में जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी निभाने लगेगें फिर भारतीय शिक्षा के गिरते स्तर को रोका जा सकता है। और सरकार को चाहिए देश भर में एक पाठ्यक्रम सभ्य समाज निर्माण युक्त शिक्षा व्यवस्था की आवश्यकता पर बल देते हुए गुणवत्ता में सुधार के मद्देनजर भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने में समर्थ पाठ को पाठ्यक्रम में समावेश किये जाने पर विचार विमर्श करे, जो बच्चों में संस्कार भर सके।
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नयी शिक्षा नीति 2023
नई शिक्षा नीति को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है। हमारी भारतीय संस्कृति और सनातनी इतिहास को बच्चों के पाठ्यक्रमों में शामिल कर, अध्यापकों की कमी को पूरी करते हुए, गैर शैक्षणिक कार्य से मुक्त कर, बच्चों को समुचित शिक्षा दिलाने का कार्य करना सरकार की दायित्व है।
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