कामेश्वरी यक्षिणी तंत्र शास्त्र की एक प्रमुख यक्षिणी हैं, जिन्हें प्रेम, आकर्षण, वशीकरण और सिद्धि प्रदान करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। यह साधना अत्यंत गुप्त और प्रभावशाली होती है, जिससे साधक विशेष आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ प्राप्त कर सकता है। कामेश्वरी यक्षिणी साधना मुख्य रूप से उन लोगों के लिए होती है जो….
✔ मनचाही प्रेमिका या जीवनसाथी को प्राप्त करना चाहते हैं।
✔ व्यक्तित्व में आकर्षण और प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं।
✔ वशीकरण और सम्मोहन शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं।
✔ मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियाँ विकसित करना चाहते हैं।
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कामेश्वरी यक्षिणी का परिचय

कामेश्वरी यक्षिणी को प्रेम और सौंदर्य की देवी माना जाता है। इनके बारे में तंत्र ग्रंथों में कहा गया है कि यह ब्रह्मांड की आकर्षण शक्ति का स्रोत हैं। इनका स्वरूप अत्यंत सुंदर, मोहक और तेजोमयी होता है। 51 शक्तिपीठों में प्रथम नीलांचल पर्वत वासिनी कामाख्या शक्तिपीठ योनी पीठ की देवी को कामेश्वरी और भैरव को कामेश्वर जो ब्रह्मपुत्र नदी के दीप मे कामाख्या शक्तिपीठ से चार किलोमीटर दूर गुवाहाटी में स्थित हैं। प्रति वर्ष महादेव के इस कामेश्वर और शक्ती रूप कामेश्वरी रूप का विवाह सम्पन्न होता है। यक्षिणियाँ शिव शक्ति से जुड़ी स्वतंत्र देवियाँ हैं। देवी कामेश्वरी संभोग की देवी दस महाविद्या मे से एक है। इनके कृपा मात्र से यौन जीवन सुखमय होता है।
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कामेश्वरी यक्षिणी का स्वरूप और प्रतीक
कामेश्वरी यक्षिणी को लाल रंग के वस्त्र पहने हुए देखा जाता है। यह कमल के फूल पर विराजमान होती हैं। उनके हाथों में पुष्पमाला, पान और दर्पण होते हैं। इनके दर्शन से मन और आत्मा शुद्ध हो जाती है।
कामेश्वरी यक्षिणी का तंत्र ग्रंथों में उल्लेख
रुद्रयामल तंत्र और कुब्जिका तंत्र में कामेश्वरी यक्षिणी का विशेष रूप से वर्णन मिलता है। इन्हें तंत्र सिद्धियों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। यह वशीकरण और आकर्षण शक्तियों को जाग्रत करने वाली देवी मानी जाती हैं।
जानिए कामेश्वरी यक्षिणी साधना की तैयारी कैसे करें
साधना के लिए उपयुक्त समय और स्थान
✔ शुभ दिन शुक्रवार, पूर्णिमा, या होली की रात।
✔ समय रात्रि 10:00 बजे से 12:00 बजे के बीच।
✔ स्थान एकांत और पवित्र स्थान – मंदिर, श्मशान, या साधना कक्ष।
कामेश्वरी साधना के लिए आवश्यक सामग्री
🔹 लाल या पीले रंग का वस्त्र
🔹 गुलाब या कमल के फूल
🔹 सफेद चंदन या केसर
🔹 कामेश्वरी यंत्र (यदि संभव हो)
🔹 दीपक (घी का) और अगरबत्ती
🔹 लाल आसन
कामेश्वरी साधना के विशेष नियम
✔ साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
✔ सात्त्विक और शुद्ध आहार लें।
✔ नकारात्मक विचारों से बचें और मन को शांत रखें।
कामेश्वरी यक्षिणी साधना की विधि
(i) साधना प्रारंभ करने की प्रक्रिया
स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। एक शांत और एकांत स्थान पर लाल रंग का आसन बिछाएं। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। दीपक जलाकर कामेश्वरी यंत्र (यदि हो) को स्थापित करें। फूल, चंदन, और धूप से यंत्र और देवी की पूजा करें।
(ii) ध्यान और मंत्र जाप
पहले 5-10 मिनट तक अपने ईष्ट का ध्यान करें फिर देवी का ध्यान करें। फिर मुख्य मंत्र का जप प्रारंभ करें।
(iii) मूल मंत्र और जाप विधि
||ॐ ह्रीं ऐं क्लीं कामेश्वरी यक्षिणी स्वाहा ||
प्रतिदिन 108 माला (11,000 बार) जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। जाप रुद्राक्ष या स्फटिक माला से कि जाती है। हर दिन जाप के बाद गुलाब या कमल का फूल अर्पित किया जाता है।
साधना में सफलता प्राप्त के संकेत
जब साधना सफल होने लगती है, तो साधक को कुछ विशेष संकेत मिलते हैं- जैसे
✔ स्वप्न में देवी के दर्शन होने लगता है।
✔ तेजस्विता और आकर्षण का बढ़ावा मिलता है।
✔ साधना स्थल पर अचानक सुगंध का अनुभव होता है।
✔ मन में शांति और दिव्यता का अनुभव होता है।
कामेश्वरी साधना के लाभ
✔ प्रेम और आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
✔ मनचाही व्यक्ति को वश में किया जा सकता है।
✔ आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
✔ वाणी में आकर्षण का प्रभाव आता है।
✔ व्यक्तित्व तेजस्वी बनता है।
कामेश्वरी यक्षिणी साधना में विशेष सावधानियाँ
साधना को गुप्त रखें, अन्यथा इसका प्रभाव कम हो जाता है।तंत्र साधना का दुरुपयोग न करें, वरना विपरीत प्रभाव हो सकता है। यदि किसी भी प्रकार की नकारात्मक अनुभूति हो, तो तुरंत साधना रोक दें। गुरु मार्गदर्शन के बिना यह साधना न करें, क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली साधना है।
कामेश्वरी यक्षिणी साधना का संक्षेपण
कामेश्वरी यक्षिणी साधना अत्यंत प्रभावशाली है और यदि नियमपूर्वक की जाए तो साधक को अपार सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं। यह साधना न केवल आकर्षण शक्ति को जाग्रत करती है, बल्कि साधक को दिव्य आभा और शक्ति भी प्रदान करती है।
Disclaimer: यह जानकारी तंत्र शास्त्र पर आधारित है। इसे करने से पहले योग्य गुरु का मार्गदर्शन अवश्य लें। बिना गुरु का तंत्र-मंत्र ज्ञान पूर्ण नहीं होता। अगर आप किसी भी साधना को नीलांचल पर्वत पर माँ कामाख्या देवी मंदिर के प्रांगण में करते हैं तो माँ कामाख्या देवी को गुरु रुप में मानकर साधना कर सकते हैं। यहां किसी अतिरिक्त गुरु की आवश्यकता नहीं है। जय मां कामाख्या देवी।
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