क्या भोग विलास luxury और मोक्ष एक-दूसरे के विपरीत हैं? आमतौर पर भोग-विलास सांसारिक सुख और मोक्ष आध्यात्मिक मुक्ति को परस्पर विरोधी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि “भोग मनुष्य को बंधन में बाधता है, जबकि मोक्ष उसे बंधनों से मुक्त करता है।” इसी कारण अनेक आध्यात्मिक परंपराएँ भोग-विलास का त्याग कर संन्यास और आत्मसंयम को मोक्ष का वास्तविक साधन मानती हैं। लेकिन भारतीय तंत्र, योग और गीता के दर्शन में यह भी बताया गया है कि यदि भोग को सही दृष्टि और संतुलन के साथ अपनाया जाए, तो वही भोग व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है।
इस लेख में हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव भोग-विलास “संभोग” से मोंक्ष की यात्रा को कैसे पूरा कर सकते हैं, बताने जा रहे हैं। इस विषय पर पहले भी हम लेखनी गूगल पर दे चूकें हैं, जिसका शिर्षक है- मोंक्ष का एक मार्ग – सेक्स ! गूगल से सर्च कर पढ़िए amitsrivastav.in साइड पर। यहां शिर्षक के ब्लू लाइन पर क्लिक कर भी डायरेक्ट पढ़ सकते हैं।
Table of Contents
1. भोग और मोक्ष की पारंपरिक अवधारणा

(A) भोग का अर्थ
भोग का अर्थ है इंद्रियों और मन के माध्यम से संसार का सुख अनुभव करना। इसमें धन, भोजन, काम (यौन सुख), संगीत, वस्त्र, शक्ति और सत्ता जैसी सभी सांसारिक चीजें आती हैं।लेकिन यदि यह भोग अज्ञान, लालच और सिर्फ वासना के अधीन होकर किया जाए, तो यह व्यक्ति को अंधकार में डाल देता है और आत्मा के वास्तविक उद्देश्य से दूर कर देता है।
(B) मोक्ष का अर्थ
मोक्ष का अर्थ है संसार के बंधनों से मुक्त होकर आत्मा का अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित हो जाना। मोक्ष प्राप्त करने के लिए कई परंपराएँ भोग का त्याग कर सन्यास ग्रहण करने पर जोर देती हैं। लेकिन कुछ परंपराएँ यह भी मानती हैं कि सही दृष्टिकोण से भोग को स्वीकार करके भी मोक्ष पाया जा सकता है।
जानिए “luxury” भोग विलास से मोक्ष की यात्रा कैसे संभव है?
तंत्र और शैव परंपरा का दृष्टिकोण
तंत्र और शैव दर्शन में भोग को नकारा नहीं गया, बल्कि इसे आध्यात्मिक उत्थान का एक साधन माना गया है। तंत्र शास्त्रों के अनुसार, संसार का अनुभव करके ही व्यक्ति उससे ऊपर उठ सकता है। इस परंपरा में भोग को “शक्ति” के रूप में देखा जाता है, जिसे यदि सही मार्गदर्शन और आत्मसंयम के साथ अपनाया जाए, तो वह व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है।उदाहरण के लिए आपको बता दें –
↗️ भगवान शिव और शक्ति का मिलन – यह भोग और मोक्ष के संतुलन का प्रतीक है।
↗️ योनि रूप कामाख्या शक्ति पीठ – यहाँ तांत्रिक साधना के माध्यम से भोग को आत्मज्ञान की ओर मोड़ा जाता है।
अनुभव से वैराग्य और आत्मज्ञान
कई महान संतों और गुरुओं ने यह कहा है कि संसार के संपूर्ण अनुभव से ही व्यक्ति उसमें निहित मोह और अस्थिरता को समझ सकता है। Click on the link गूगल पर ब्लाग पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें और अपनी पसंदीदा लेख खोज कर पढें।
गौतम बुद्ध का उदाहरण- राजकुमार सिद्धार्थ बुद्ध अपने बचपन में भोग-विलास से घिरे रहे। लेकिन जब उन्होंने संसार के असली स्वरूप (जन्म, मृत्यु, रोग और दुख) को समझा, तो उनका वैराग्य जागृत हुआ और वे मोक्ष की ओर बढ़े। यहाँ भोग स्वयंऍ मोक्ष का कारण बना, क्योंकि भोग के अनुभव ने ही उन्हें आत्मज्ञान की खोज में धकेला।
महर्षि वाल्मीकि का उदाहरण- पहले डाकू “रत्नाकर” भोग और अपराध में लिप्त थे। लेकिन जब उन्हें ज्ञान हुआ कि यह संसार क्षणभंगुर है, तो उन्होंने वैराग्य अपनाया और ऋषि बन गए। बाद में उन्होंने रामायण की रचना की और मोक्ष के मार्ग पर चल पड़े। इसका अर्थ यह है कि भोग तब तक बंधन है, जब तक व्यक्ति उसमें आसक्त रहता है। लेकिन जब भोग के नश्वर होने का ज्ञान हो जाता है, तब वही भोग वैराग्य और मोक्ष का द्वार खोल देता है।
गीता और निष्काम कर्मयोग का मार्ग
भगवद गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं- कर्म किए बिना कोई भी मनुष्य मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। लेकिन जो व्यक्ति आसक्ति और फल की इच्छा से मुक्त होकर कर्म करता है, वही सच्चे मोक्ष का अधिकारी बनता है। इसका अर्थ यह है कि संसार से भागने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि संसार में रहते हुए भी स्वयं को इससे परे रखना ही सच्चा मोक्ष है। सांसारिक सुख का भोग भरपूर करो, ताकि मन से कुछ और पाने की व्याकुलता खत्म हो सके लेकिन उसमें लिप्त मत हो। धन, शक्ति, प्रेम और भोग का आनंद लो, लेकिन मोह मत करो। भोग में रहते हुए भी जो भोग से परे हो जाए, वही सच्चा मुक्त आत्मा है।
संतुलन ही वास्तविक मोंक्ष का मार्ग
यदि कोई व्यक्ति पूरी तरह असंतुलित रूप से भोग में डूब जाता है, तो वह अज्ञान में चला जाता है। और यदि कोई व्यक्ति भोग से पूरी तरह भागता है, तो वह जीवन के वास्तविक अनुभव से वंचित रह जाता है। इसलिए, वास्तविक मोक्ष भोग और वैराग्य के बीच संतुलन में है। सांसारिक सुखों का भोग करो जब इच्छा विधि-विधान से संभोग करो, मन में उपजी इच्छा को दबा कर मन प्रसन्न नही कर सकते। मन को सदा प्रसन्न रखो। मोंक्ष का मार्ग सुलभ हो जाता है।
संक्षिप्त विवरण भोग से मोक्ष कैसे प्राप्त करें?
जागरूकता और संतुलन के साथ भोग करना चाहिए। भोग का त्याग आवश्यक नहीं, बल्कि उसे जागरूकता और संयम के साथ अपनाना चाहिए। बिना आसक्ति के भोग करने वाला व्यक्ति ही वास्तविक मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
भोग से वैराग्य का जागरण-
जब व्यक्ति भोग-विलास का पूरा अनुभव कर लेता है, तब उसे उसकी अस्थिरता का ज्ञान होता है। यह ज्ञान ही वैराग्य और मोक्ष की ओर ले जाता है। जब तक मन में भोग-विलास संभोग की इच्छा जागृत होती है, मन ब्याकुल होता है और साधना में मन नहीं लगता, इसलिए मन को वैराग्य मे लगाने के लिए संभोग एक उत्तम मार्ग है।
गीता के कर्मयोग का पालन
जीवन में रहते हुए भी स्वयं को भोग से अलग रखना ही मोक्ष का सच्चा मार्ग है। मोक्ष केवल जंगलों और गुफाओं में ध्यान लगाने से नहीं, बल्कि संसार में रहते हुए भी आत्मज्ञान प्राप्त करने से मिलता है।
भोग-विलास से मोंक्ष का मार्ग अंतिम विचार
भोग और मोक्ष परस्पर विरोधी नहीं हैं, बल्कि सही दृष्टिकोण से भोग को अपनाने वाला व्यक्ति मोक्ष की ओर बढ़ सकता है।अज्ञानी के लिए भोग बंधन है, लेकिन के लिए भोग भी मोक्ष का साधन बन सकता है। त्याग और भोग का संतुलन ही वास्तविक आनंद और मुक्ति का मार्ग है। “जिसने संसार को पूर्ण रूप से अनुभव कर लिया और फिर भी उससे परे हो गया, वही सच्चा मुक्त आत्मा है।”
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