अन्तर्वासना – अश्लीलता के फालोवर्स सबसे ज्यादा

Amit Srivastav

भोजपुरी फिल्म और गीतों से बच्चों का मन अश्लीलता से भरता रहा है। शारीरिक और मानसिक छेड़छाड़ जो युवा अवस्था में, खासकर गृहस्थ जीवन में आने पर उत्पन्न होनी चाहिए वो अब छोटे-छोटे बच्चों में उत्पन्न होने लगी है। भोजपुरी फिल्म व गीत गानों के माध्यम से खुलेआम अश्लीलता पडोसी जा रही, कि तब तक डिजिटल युग का प्रारंभ हो गया। डिजिटल युग के आगमन से हर घर, हर हाथ में अच्छी खासी मोबाइल उपलब्ध हो गई है। यूट्यूब गूगल आदि प्लेटफार्म पर काम करने वालों द्वारा अपना फालोवर्स बढ़ाने और आय का स्रोत मजबूत करने के लिए जो अश्लीलता पडोसी जा रही है उसका उपयोग नही ज्यादातर दुरुपयोग हो रहा है। भले ही गूगल या यू-ट्यूब पर कार्यरत 18+ के लिए लाभदायक अपने पोस्ट शेयर करते हैं। किन्तु उसका उपयोग किसी न किसी तरह से 18+ से नीचे वाले बच्चे ज्यादा कर रहे हैं। जो बच्चों में ही कामोत्तेजना को बढ़ावा देता है और अनायास ही सम्बन्ध बनाये जा रहे हैं। क्षणभर का आनंद आगे जीवन में कष्टकारी हो सकता है।

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अज्ञानता के साथ स्थापित संबंध किसी भी उम्र में कष्टकारी ही होता है। भारत वैसे भी यौन शिक्षा बच्चों को दे पाने में अन्य देशों से बहुत पीछे है। आधा ज्ञान फिर भी अभिमान वाली कहावत चरितार्थ कर भारत में 90 प्रतिशत लोग अपने आपको या पार्टनर को तमाम मुसीबतों सहित बीमारियों के चपेट में ला देते हैं। फिर अनावश्यक बोझ बीमारियों से निपटने का झेलते हुए अपनी व पार्टनर कि जिन्दगी नर्क बना मृत्यु को प्राप्त होते हैं। पहले जमाने की याद को थोड़ा ताज़ा किजिये देखिए जब अश्लीलता सार्वजनिक नहीं थी थोड़ी बहुत पत्रिका व पाकेट बुको तक सीमित थी तब यौन शिक्षा से व्यक्ति युवा अवस्था गृहस्थ जीवन में जाते हुए कुछ जानकार हो जाता था। तब इतनी यौन संबंध से उत्पन्न बीमारियां नही थी। पहले के लोग पीरियड्स आने पर कितनी सावधानी से रहते थे इसका अंदाजा आज के युवा पीढ़ी को नही है लेकिन आज पीरियड्स सम्बन्ध मजाक कहूं या शौख बना दिया गया है।

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सर्वेक्षण के मुताबिक रेड लाइट एरिया में पीरियड्स वाली औरतों का डिमांड तक बड गया है। अनुमानतः 90 प्रतिशत लोगों को इतना भी ज्ञान नहीं किस स्थिति में सम्बन्ध क्या फलदायी होता है, क्या फायदा और क्या नुकसान होता है। इसका खामियाजा बाद में भुगतना पड़ रहा है कि तमाम महिलाओं को यौन सम्बन्धित समस्या मर्दो को कमजोरी सहित तमाम बीमारियों से ग्रस्त होना पड़ रहा है। समय रहते अगर सरकार द्वारा नीचले स्तर से यौन शिक्षा पाठ्यक्रम को स्थानीय भाषा के माध्यम से जोड़ा जाता तो यौन सम्बन्धित बिमारियों से बचाव कर पाना कम पढ़े लिखे लोगों को भी कर पाना संभव हो जाता। आज के समय में शिक्षा निजीकरण के कारण इतनी महंगी होती जा रही है कि हर किसी के बस की बात नही ज्ञान अर्जित के उद्देश्य से आगे मेडिकल साइंस तक कि पढ़ाई की जा सके। ऐसी स्थिति में नीचले स्तर पर ही बच्चों की मनोदशा को ध्यान में रखते हुए हेल्थ एजुकेशन सेक्स एजुकेशन पर विवाद न करते हुए स्थानीय भाषा में अनिवार्य रूप से पढ़ाये जाने की जरूरत है।

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दुर्भाग्य है जब कोई सेक्स एजुकेशन पर कुछ बोलने की कोशिश करता है तो उसके बातों के अर्थ का अनर्थ बना राजनीति शुरू कर दी जाती है जो आम जन के हित में कतई नहीं है। आम जन अधिकतम किसी तरह अब बारहवीं तक कि पढ़ाई करवा ले वही बहुत होगा। अब धीरे धीरे लोगों के मन में यह भाव उत्पन्न होने का समय आ रहा है कि ज्यादा पढ़ाई में धन और समय खर्च कर क्या फायदा जब नौकरी मिलनी नही है तो। आने वाली एक दो पीढ़ी ही होड़ में स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर पायेगी उसके बाद की पीढ़ी नौकरी की यही दशा रही तो पढ़ाई करने से उचित कोई समय सहते टेक्निकल कार्य सीखने का प्रयास करेगी। अब नयी शिक्षा नीति द्वारा निर्मित किताबों से जो कुछ ज्ञानवर्धक जानकारी थी वो भी धीरे-धीरे हटाते हुए वैकल्पिक व्यवस्था के तहत शिक्षा देने के उद्देश्य से किताबें तैयार कि जा रही है जो बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण नही है। कम से कम सनातन धर्म और पूर्वजो का वास्तविक इतिहास भी बताया जाता ताकि आने वाली पीढ़ी को पता होता हमारे पुर्वज ऋषि मुनि व देवता थे जिनके हम वंशज हैं। आज आधुनिक युग में हम ये भूलते जा रहे हैं कि हमारे पुर्वज कौन थे हमे गोत्र कैसे किससे मिला।

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याद रह रहा तो तो बस वासना उत्पन्न करने वाली भोजपुरी फिल्मों के गीत संगीत। जिसका न कोई शाब्दिक अर्थ होता है न ही किसी के लिए हितकर होती है। आधे-अधूरे अश्लीलता भरी रोमांस को दिखाकर बच्चों के मन को वापस से भरा जा रहा है। मन में वासना के उत्पन्न होने से अनायास ही शारीरिक सम्बन्ध बनाये जा रहे हैं जो युवा व युवतियों के लिए आगे चलकर कष्टकारी ही सिद्ध हो रहा है।

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