दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपना मेनिफेस्टो BJP manifesto in Delhi जारी किया है, जिसमें जनता को मुफ्त सेवाओं और सुविधाओं का वादा किया गया है। यह रणनीति कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी (आप) के मॉडल को अपनाने जैसा प्रतीत हो रहा है।
जो भाजपा 2014 लोकसभा चुनाव में तमाम वादों जैसे गुजरात के तर्ज पर देश का विकास करेंगे, जगह-जगह हर जगह कर-कारखाने लगाये जायेंगे, ताकि नौकरी के लिए दूर-दराज के इलाकों में युवाओं को न भागना पड़े, स्थिति अब यह है कि दूर-दराज जाने के बाद भी रोजगार या नौकरी नहीं रह गई। कर-कारखाने बंद हो रहे हैं, बेरोजगारी के दौर में पेट भरने भर की कमाई कर पाना मुश्किल हो गया है।
गैस 350 रूपये बहुत महंगा था, आधे दामों पर गैस हर घर को उपलब्ध कराने का काम किया जायेगा, घरेलू गैस एक हजार पार भाजपा सरकार ने कर, बिचौलियों का धंधा बंद कर खुद धंधेबाज बन गयी, मतलब- मोटी रकम सरकार गैस से कमा रही है।
भाजपा मनभावन चुनावी एजेंडा के साथ चुनाव में बाजी मारती गई, 2019 में पुलवामा हमले का लाभ उठा सत्ता में वापसी की उसके बाद “रेवड़ी संस्कृति” की आलोचना करती रही है, वही अब उसी को अपने एजेंडे का हिस्सा बना रही है। यह बदलाव सिर्फ एक राजनीतिक रणनीति है या जनता की मांगों को समझने का प्रयास, इस पर चर्चा जरूरी है।
क्योंकि भारतीय जनता पार्टी जो भी चुनावी एजेंडा लेकर चुनाव मैदान में आती है और जनता को मुर्ख बना चुनाव जीत अपने चुनावी एजेंडा को कूड़ेदान में डाल पांच सालों तक मनमौजी तरीके से सत्ता पर काबिज रहती है। इसके एजेंडा पर भला भरोसा कैसे किया जाए।
भाजपा के बडे-बडे नेताओं को छोड़कर, भाजपा सपोर्टर कहते हैं कि मुफ्त की रेवड़ियां नहीं देंगे। भाजपा के बड़े नेता मंच पर ही मुफ्त की रेवड़ी चुनाव जीतने तक सिर्फ जुबान से बांटते हैं, चुनाव जीतने के बाद जो कहे रहते हैं चुनावी मैदान में, उसके उल्टा करते स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।

गोदी मीडिया क्या आप खबर बनाओगे?
भाजपा ने भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का कर दिया ऐलान, वैसे जो भाजपा चुनावी एजेंडा लेकर आती है, चुनाव जीतने के बाद उसे कभी अमलीजामा नही पहनाती, यह स्थिति 2014 लोकसभा चुनाव जीत के बाद से अब तक देखा जा सकता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की मुफ़्त रेवड़ी पर एक नज़र –
- 👉महिला समृद्धि के तहत महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये दिए जाएंगे
- 👉गर्भवती महिलाओं को 21000 रुपये दिए जाएंगे।
- 👉होली-दिवाली पर एक-एक सिलेंडर मुफ्त दिया जाएगा।
- 👉एलपीजी सब्सिडी 500 रुपये दी जाएगी।
- 👉आयुष्मान भारत को दिल्ली में लागू करेंगे।
- 👉पांच लाख रुपये तक का हेल्थ कवर देंगे।
- 👉गर्भवती महिलाओं को न्यूट्रीशनल पैक दिए जाएंगे।
भाजपा का राजनीतिक विरोधाभास: “रेवड़ी संस्कृति” से लेकर मुफ्त योजनाओं तक
भाजपा ने 2014 लोकसभा चुनाव जीतने के बाद हमेशा “रेवड़ी संस्कृति” को आर्थिक जिम्मेदारी के खिलाफ बताया है। पार्टी और उसके समर्थक बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि मुफ्त सेवाओं से सरकार के संसाधनों पर बोझ पड़ता है। लेकिन, आज भाजपा स्वयं ऐसे ही वादे कर रही है, जो सत्ता में आने के बाद उसके अपने सिद्धांतों के खिलाफ हैं।
भाजपा और आम आदमी पार्टी का टकराव
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने का दावा किया। फ्री सरकारी गुणवत्ता युक्त शिक्षा, चिकित्सा प्राइवेट हास्पीटल के तर्ज पर सरकारी स्वास्थ्य सेवा, बिजली, पानी, महिला बस यात्रा फ्री कर आम आदमी पार्टी, दिल्ली की जनता के दिल पर राज कर रही है।
क्योंकि? महगाई के दौर में सभी जरूरी सुविधाओं को सरकार सभी जन को मुहैया करा रही है। उसके मॉडल में सरकारी स्कूलों, चिकित्सा क्षेत्र और मोहल्ला क्लीनिकों की सराहना होती रही है। हालांकि, भाजपा अक्सर इसे केवल प्रचार और मुफ्तखोरी की संस्कृति करार देती रही है। लेकिन, भाजपा का दिल्ली के मेनिफेस्टो में ऐसे ही वादे करना इस बात को साबित करता है कि वह भी आप के मॉडल को जनता के बीच प्रभावी मानने लगी है।
भाजपा शासित राज्यों की स्थिति: वादों और हकीकत का अंतर

भाजपा ने जहां-जहां सरकार बनाई है, वहां की शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक कल्याण योजनाओं की स्थिति जनता के लिए निराशाजनक है।
शिक्षा का गिरता स्तर
भाजपा शासित राज्यों में सरकारी स्कूल बुनियादी ढांचे और शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। विद्यार्थियों का प्रदर्शन और नामांकन दर लगातार गिर रही है। शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण ने आम जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ा दिया है।
स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा
आयुष्मान भारत योजना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं जमीनी स्तर पर कारगर साबित नहीं हो रही हैं। सरकारी अस्पतालों में बुनियादी सेवाओं की कमी और डॉक्टरों का अभाव आम बात है। स्वास्थ्य खर्च के कारण हर साल लाखों परिवार गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं।
Click on the link गूगल ब्लाग पर अपनी पसंदीदा लेख पढ़ने के लिए ब्लू लाइन पर क्लिक किजिये।
आर्थिक चुनौतियां और महंगाई
महंगाई दर उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। पेट्रोल, डीजल, और रसोई गैस जैसी बुनियादी जरूरतों की कीमतें आसमान छू रही हैं। बढ़ते टैक्स और महंगे प्राइवेट विकल्पों ने आम जनता का बजट बुरी तरह बिगाड़ दिया है।
मीडिया की भूमिका: सत्ता का प्रचार तंत्र बनता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
लोकतंत्र में मीडिया को सत्ता और जनता के बीच संतुलन बनाने का काम करना चाहिए। लेकिन आज की स्थिति में मीडिया सत्ता के प्रचार तंत्र के रूप में काम कर रहा है।
सवाल पूछने की संस्कृति का ह्रास
मीडिया विपक्ष से सवाल पूछने और सत्तापक्ष की आलोचना से बचने में लगा हुआ है। जनता के असली मुद्दे—बेरोजगारी, महंगाई, और शिक्षा-स्वास्थ्य की दुर्दशा—कवरेज से गायब हो रहे हैं। सरकार की विफलताओं पर चर्चा के बजाय, मीडिया एजेंडा सेटिंग के माध्यम से सत्ता का बचाव करता दिख रहा है।
लोकतंत्र के लिए खतरा
यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। अगर सरकार से सवाल पूछने वाले संस्थान कमजोर होंगे, तो जनता के अधिकारों का हनन होगा और सत्ता निरंकुश हो जाएगी।
भाजपा के वादे: 10 साल की हकीकत और नया भ्रम
भाजपा ने 2014 में सत्ता में आने से पहले “अच्छे दिन” का वादा किया था। अच्छे दिन कब आएंगे यह किसी को पता भी नहीं चल रहा है फिलहाल जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। रोजी-रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य निम्न व मध्यम वर्ग के लिए दिनोंदिन मुसीबत खड़ा बनता जा रहा है।
2014 के वादे और उनकी वास्तविकता
महंगाई–
महंगाई कम करने का वादा किया गया था, लेकिन आज स्थिति उलट है।
रोजगार–
हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा किया गया था, लेकिन बेरोजगारी दर उच्चतम स्तर पर है।
कृषि सुधार–
किसानों की आय दोगुनी करने का वादा 2022 तक पूरा नहीं हो पाया।
डिजिटल इंडिया–
तकनीकी योजनाओं की शुरुआत तो हुई, लेकिन डिजिटल डिवाइड के कारण ग्रामीण इलाकों में इसका असर सीमित है।
मेनिफेस्टो की चुनौतियां और सीमाएं
भाजपा का दिल्ली मेनिफेस्टो मुफ्त सेवाओं और लोकलुभावन योजनाओं से भरा हुआ है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, और आधारभूत ढांचे के विकास के बड़े वादे किए गए हैं। लेकिन, सवाल यह है कि जब पार्टी अपने शासित राज्यों में इन क्षेत्रों में सुधार नहीं कर पाई, तो दिल्ली में कैसे करेगी?
जनता के मुद्दे और भाजपा की प्राथमिकता
भाजपा का मुख्य फोकस आज भी बड़े पैमाने पर प्रचार और विपक्ष पर हमला करने पर है। लेकिन, जनता की वास्तविक समस्याएं यह हैं-
महंगाई–
जीवन-यापन की बढ़ती लागत से हर वर्ग परेशान है।
बेरोजगारी–
युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही, और रोजगार सृजन के प्रयास विफल रहे हैं।
स्वास्थ्य और शिक्षा–
सरकारी सेवाओं की दुर्दशा ने जनता को प्राइवेट सेवाओं का महंगा विकल्प चुनने पर मजबूर किया है।
वादों की सच्चाई और जनता का विश्वास
भाजपा का मेनिफेस्टो वादों से भरा हुआ है, लेकिन पिछले दस वर्षों के प्रदर्शन को देखते हुए इन वादों पर भरोसा करना कठिन है। जनता को आज सिर्फ वादों की नहीं, बल्कि ठोस नीतियों और परिणामों की जरूरत है।
अगर भाजपा को जनता का विश्वास जीतना है, तो उसे प्रचार से ज्यादा प्रदर्शन पर ध्यान देना होगा। लोकतंत्र की मजबूती के लिए मीडिया और अन्य संस्थानों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहना होगा।
दिल्ली का चुनाव भाजपा के लिए एक बड़ा परीक्षण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पार्टी जनता को केवल वादों से लुभा पाएगी या असली मुद्दों को हल करने की ओर बढ़ेगी।