बुरे काम का बूरा नतीजा, देख भाई चाचा देख भतीजा।
पिछले लेखनी में चित्तौड़गढ़ से रानी पद्मावती और रत्नसेन की प्रेम व बलिदान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को उजागर किया। रानी पद्मावती की सुन्दरता का बखान राजा रतन सिंह द्वारा राज्य से निष्कासित राजगुरु राघव चेतन से सुनकर अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मावती को भी हासिल करने की तमाम कोशिशें की लेकिन रानी पद्मावती को छू भी नहीं पाया। चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव संपादक कि कलम से चित्तौड़ की धरती से रानी पद्मावती की वास्तविक इतिहास को आपने पढ़ा।

अलाउद्दीन खिलजी का पारिवारिक इतिहास
अलाउद्दीन खिलजी कि इतिहास को खंगाला तो देखा वामपंथियों ने जो हमारे हिन्दू बीरो की वीरता भरी इतिहास को इतिहास के पन्नों से हटा मलेक्ष वंशजों का इतिहास हमे पढ़ने के लिए इतिहास के पन्नों में भरा उसमें यह तो छपा ही नहीं… खिलजी कि लाड़ली बेटी फिरोजा का हिन्दू लड़के से बेपनाह प्यार… इसे मै सार्वजनिक कर रहा हूं। आज अलाउद्दीन की लाड़ली बेटी फिरोजा फिर चचेरी बहन बनी बेगम महरू, मलिका-ए-जहाँ तमाम बीवियों को बेनकाब करुंगा।

अलाउद्दीन खिलजी का जन्म 1266-67 में हुआ था। बचपन का नाम अली गुरशास्प उर्फ़ ज़ून्ना खान था, जो शाहबुद्दीन मसूद का बेटा था, जून्ना शुरू से ही पढा लिखा नही, लंपट अईयास था। सगे चाचा जलालुद्दीन खिलजी एक सामान्य तुर्क गुलाम था। शाहबुद्दीन के मृत्यु के बाद भतीजा अलाउद्दीन को चाचा जलालुद्दीन ने पाल-पोस कर एक कुशल सैनिक बनाया फिर अपनी एक सेना का सेनानायक बना दिया और अपनी बेटी महरू, मलिका-ए-जहाँ, अल्प खान की बहन का निकाह भतीजे अलाउद्दीन उर्फ जून्ना से कर दिया। जलालुद्दीन अपनी प्रतिभा और खड्यन्त्र के बल पर दिल्ली सल्तनत को हासिल किया और खिलजी वंश की स्थापना कर शासक बना। जलालुद्दीन भतीजा अलाउद्दीन को बनाया अपना दामाद – जिसे अपने बेटे अल्प खान के समान मानता था, दिल्ली सल्तनत हासिल कर एक छोटा-सा इलाका मानिकपुर जागीर के रूप में दे दिया। अलाउद्दीन को हिन्दूओं से नफ़रत था। अलाउद्दीन मानिकपुर से अपनी महत्वाकांक्षाओं के कीड़े को बड़ा करने लगा वो एक कुशल सेनापति था। अपनी सेना का विस्तार किया और अपने आस पास के हिन्दू राज्य को लूटना शुरू कर दिया, जिसमें अमुल्य जेवरातो के साथ ही ढेरों स्त्रियों को बंधक बना लाया। अपने चाचा व ससुर जलालुद्दीन को मानिकपुर बुलाया, लूट का जश्न मना रहा था। जलालुद्दीन जब मानिकपुर अलाउद्दीन से मिलने आया अपने जश्न 1296 में अपने सगे चाचा व ससुर जलालुद्दीन की हत्या कर 22 अक्टूबर 1296 को दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर तमाम खड्यंत्रो का सामना करते बैठ सबसे अधिक शक्तिशाली शासक तो बन गया लेकिन था अनपढ़ और लंपट, उस समय तक बैसला गुर्जर रामलाल बैसला की पूर्व पत्नी विमला देवी, वाघेला राजपूत कर्ण की पूर्व पत्नी कमला देवी को युद्ध में जीत कर जबरजस्ती धर्म परिवर्तन करा अपनी बेगम बना चुका था। उस लंपट की नस्ल भी आखिर कम कैसे होगी। अलाउद्दीन खिलजी का एक बेटा युवा अवस्था तक दरबारियों के सामने नंगा तो कभी महिलाओं का वस्त्र धारण कर आ जाता था। 1303 के युद्ध में राजा रतन सिंह के पराजय के बाद अलाउद्दीन की मंशा समझ रानी पद्मावती हाथ नहीं लगी अपने सम्मान को बचाने के लिए 1600 रानियों के साथ अग्नि को समर्पित सती हो गई, जिसे प्रथम जौहर कहा गया। अलाउद्दीन चित्तौड़गढ़ का नाम बदल खिज्राबाद कर नाबालिग बड़े बेटे खिज्र खान को गद्दी पर बैठा दिल्ली लौट आया। चचा की हत्या कर 22 अक्टूबर 1296 को गद्दी पर बैठने के बाद 1299 में नवीन मुसलमानों सहित 4000 मंगोलो को इस्लाम धर्म कबूल करवा दिल्ली में बसा लिया था। ईस्वी 1306 अलाउद्दीन के समय में दिल्ली सल्तनत और मंगोलो के बीच रावी नदी सीमा थी। 1310 में होयसल साम्राज्य कोहासिल पर विजय प्राप्त कर लिया।
1984 से पहले का इतिहास का हर पन्ना गवाह है हिन्दू महिला मुस्लिम शासकों के साथ रजामंदी से नही गई। क्रूर शासकों ने अत्याचार की सारी सीमाएं पार कर हिन्दू महिलाओं को जबरजस्ती अपना शिकार बनाया। कही धर्म परिवर्तन कराया तो कहीं रक्त की धारा बहा दी और निर्दयता पूर्वक अत्याचार किया। इन मुस्लिम शासकों के अत्याचार से गरीब हिन्दू समाज का छोटा-बड़ा हिस्सा इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेता था जो आज भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश के सीमा क्षेत्र में अपने को मुस्लिम समुदाय का कहते हुए बसे हुए हैं। वास्तव में इनके पूर्वज इस्लाम कबीले के नही हैं। मलेक्षो का वंशज इस्लामी देश जैसे अरब कंट्री इन सूनी मुस्लिमों को कोई वेट नहीं देता।

फिरोजा को हिन्दू बीर सपूत वीरमदेव से प्यार का पर्दाफाश
आज उस मुस्लिम शासकों में सबमें क्रूर शासक अलाउद्दीन खिलजी कि बेटी के प्रेम का पर्दाफाश करुंगा जो अपने अब्बू जान अलाउद्दीन खिलजी से अपनी पसंद की मांग अपना प्रेमी हिन्दू लड़के की मांग की… वर वंरु वीरमदेव, ना तो रहूँगी अकन कुंवारी। अपने अब्बू अलाउद्दीन से कही अगर मै निकाह – शादी करुंगी तो वीरमदेव से करुंगी नही तो पूरी जिन्दगी कुवांरी ही रहूंगी। जो अलाउद्दीन अपनी अत्याचार से हिन्दू महिलाओं का अपहरण कर लिया करता था। उस अलाउद्दीन के लाख प्रयास के बावजूद हिन्दू लड़का वीरमदेव चौहान फिरोजा को ठुकरा दिया। वीरमदेव फिरोजा के लिए अलाउद्दीन को नहीं मिला। जिसके लिए उस समय भारत वर्ष की भूमि पर कुछ भी असम्भव नही था। फिर भी सबसे बड़े सल्तनत की बेटी फिरोजा को उसका प्यार नहीं मिल पाया और अंत में फिरोजा कुवांरी ही हिन्दू रीति-रिवाज से अपने प्रेमी के लिए सती हो गई। यह वह इतिहास जो प्रचेता के मलेक्ष वंशज से जुड़ा है तो इसे अंत तक पढ़िए। जो वर्तमान में इतिहास के पन्नों से छुपा हुआ है.. मलेक्ष वंशज अलाउद्दीन खिलजी कि खुबसुरत लाड़ली बेटी फिरोजा का हिन्दू लड़के से प्यार कि पूरी दास्तान।
अलाउद्दीन खिलजी को हिन्दूओं सहित हिन्दू धर्म व मंदिरों से नफरत था। एक तरफ़ खुबसूरत फिरोजा एक ही नज़र में हिन्दू लड़का वीरमदेव से एकतरफा प्यार कर बैठी तो इस प्रेम कहानी कि शुरुआत कैसे और कब हुई थी आते हैं वहां पर। चाचा की हत्या कर दिल्ली की गद्दी पाने के बाद उसकी भूख पूरे भारतवर्ष को हासिल करने कि हो गई। अब अलाउद्दीन युद्धों का स्यम् नेतृत्व नही करता था।

अलाउद्दीन से मलिक कफूर का रिस्ता
अलाउद्दीन खिलजी के कुशल सेनापति युद्ध का नेतृत्व करने लगे थे। अलाउद्दीन का एक बहुत ही कुशल सेनापति था… मलिक कफूर इसको हजार दिनारी के नाम से भी जाना जाता है, इसकी सहायता से खिलजी दक्षिण भारत के सभी राज्यों को जीत लिया। मलिक कफूर उर्फ हजार दिनारी नाम आप सब ने सूना ही होगा। वो एक हिजड़ा था। इससे अलाउद्दीन का शारीरिक संबंध भी था, अलाउद्दीन खिलजी वासना का पुजारी था, उसके हरम में 70 हजार से भी ज्यादा पुरुष और महिलाएं थीं। इस तरह से आपको यह पता लग ही गया होगा कि अलाउद्दीन कितना बड़ा लंपट अईयास रहा होगा।

सोमनाथ मंदिर लूट
सोमनाथ मंदिर विदेशी आक्रन्ताओ को आकर्षित करता था। अलाउद्दीन से पहले भी सोमनाथ मंदिर लूटा जा चुका था। अलाउद्दीन की लालसा हुई गुजरात पर विजय हासिल कर सोमनाथ मंदिर लूटने की। 1298 ईस्वी में अलाउद्दीन उलूग खाँन और नुसरत खाँन नाम के दो सेनापति को गुजरात पर विजय प्राप्त कर सोमनाथ मंदिर लूटने के लिए भेज दिया। दिल्ली से गुजरात सोमनाथ के रास्ते में जालौर एक छोटा सा राज्य था। जहां राजपूत शासक कान्हड़देव राज किया करते थे। यह रेगिस्तान से सटा हुआ राज, वीरता के साथ ही देश प्रेम व धर्म के लिए समर्पित जाना जाता था। उलूग खाँन ने राजा कान्हड़देव को एक पत्र भेजा जिसमें लिखा था, मुझे अपने राज्य से होते हुए जाने दिजिये। मै आपके राज्य का कोई अहित नही करुंगा। कान्हड़देव ने पत्र के जबाव में कहां मै अपने राज्य से होकर नहीं जानें दूंगा, इसलिए कि तुम्हारी मंशा सोमनाथ मंदिर लूटने की है।

उलूग खाँन को गुजरात विजय कर सोमनाथ मंदिर लूटना था। वो यहां कान्हड़देव की अवहेलना पर युद्ध कर फंसना नही चाहता था। इसलिए वो दूसरे रास्ते से निकल गया। अहमदाबाद के निकट कर्णदेव वाघेला और अलाउद्दीन की सेना के बीच युद्ध हुआ। राजा कर्णदेव पराजित हो देवगीरी के शासक रामचंद देव के यहां गये। अलाउद्दीन के सैनिकों ने कर्णदेव की संपत्ति लूट स्त्रियों को बंधक बना सूरत, कैम्बे और सोमनाथ को लूट लिया। साथ ही साथ उलूग खाँन सोमनाथ मंदिर की शिवलिंग को भी उखाड़ एक मरी गाय की खाल में लपेट कर ले लिया। उलूग खाँन ने सोमनाथ के लूट में बहुत सारी धन संपदा के साथ ही बहुत सारी स्त्रियों को बंदी बनाकर अलाउद्दीन के हरम में शामिल करने के लिए ले जीत का जश्न मनाते वापस हो रहा था। इधर कान्हड़देव के राज्य में इस घोर अत्याचार, सोमनाथ मंदिर की लूट, शिवलिंग को उखाड़ने व तमाम स्त्रियों के साथ बलात्कार, अपहरण, निर्दोषों की हत्या की चर्चा आमजन के ज़ुबान से हो रही थी। जालौर राज्य का हर नागरिक चाहता था, अलाउद्दीन के इस अत्याचार का मुँहतोड़ जबाव दिया जाए। उसे यह पता नहीं था इस छोटे से राज्य के हर नागरिकों के गर्म खून की चर्चा पूरे भारतवर्ष में प्रचलित है। यहां के नर नारी ही नहीं बल्कि पशु भी अपनी मातृभूमि पर मर मिटना अपना सौभाग्य समझते हैं। लूट की जश्न में उलूग खाँन डूबा हुआ था। लौटने में जालौर की राज्य होते हुए निकल रहा था। राजा कान्हड़देव से पूछने कि जरुरत भी नहीं समझा कि आपके राज्य से होकर जा सकते हैं या नहीं, उस समय किसी सेना को किसी राज्य से होकर जाने के लिए अनुमति लेनी होती थी। उद्दंडता की यह सूचना कान्हड़देव के राजदरबार में पहुंच गया।

वीरमदेव की वीरता से अलाउद्दीन कि सेना परास्त
रोज दिन नित्य संगीत से गूंजने वाले राज्य में खिलजी के द्वारा किया गया, अत्याचार से पूरा राज्य छूब्ध था। सोमनाथ मंदिर विध्वंस लूट-पाट और स्त्रियों के साथ हुई बलात्कार अत्याचार की शोक में डूबे राजा कान्हड़देव एक आपात बैठक बुलाई, सभा राजा कि मौन से, मौन साधें बैठी थी। राजा कन्नड़देव कुछ समय बाद लंबी सांस छोड़ते अपना मौन तोड़ कहा… उलूग खाँन को दंडित करने कौन जायेगा। अपने राजा के इस बात पर पूरी मौन सभा मुस्कुरा उठी उस राज्य का हर व्यक्ति बलिदानी था। सभा में बैठे हर किसी का सर गर्भ से ऊपर उठकर बोल रहा था मै जाऊंगा, मै जाऊंगा। इस बोल से दरबार गूंजने लगा था, कि पुत्र वीरमदेव ने कहा महाराज उलूग खाँन को दंडित करने का अधिकार मुझे दिया जाना चाहिए। मै आपका ज्येष्ठ पुत्र हूं, इसलिए पहले यह अधिकार मेरा होता है। राजा कान्हड़देव अपने सिंहासन से उठकर वीरमदेव के पास आये और कहा अलाउद्दीन की सेना क्रुर सेना है क्या आपको यह पता है? तब वीरमदेव ने कहा क्या आपको अपने पुत्र के पराक्रम पर भरोसा नहीं है? तब राजा ने कहा मुझे अपने से ज्यादा पुत्र आप पर भरोसा है, कितनी सेना लेकर जायेगें। तब वीरमदेव ने कहा मुझे सेना की जरुरत नहीं, मै अपनी छोटी टुकड़ी ही लेकर जाउँगा। राजा का सर चकराने लगा कि सिर्फ पांच सौ कि छोटी-सी टुकड़ी से उलूग खाँन की आठ हजार से अधिक क्रुर सैनिकों से युद्ध करोगे। राजा ने कहा सोच लिजिये पुत्र वीरम किसी भी हाल में उलूग खाँन की सेना से सोमनाथ का पवित्र शिवलिंग को ले जाने से रोकना है और बंधक बनी स्त्रियों को छुड़ाना है, इसमे किसी भी तरह की शिथिलता छम्य नही होगा। तब वीरमदेव ने अपनी तलवार हवा में लहराते हुए कहा अपनी मातृभूमि की कसम खाता हूं, किसी भी तरह आपके आदेश का पालन करुंगा।

युद्ध भूमि से भले ही आपका पुत्र जिन्दा लौट कर आये या न आये खिलजी कि सेना को परास्त कर पवित्र शिवलिंग और बंदी बनाई गई मासूम स्त्रियों को अपने राज्य में ही रोक लूगा। राजा कान्हड़देव वीरम को प्रस्थान का आदेश दिया और इधर अपने सेनापति को पूरी सेना तैयार कर वीरम की सेना के पीछे चलने को कहा। उधर उलूग खाँन की भारी सेना को जालौर सीमा में ही शाम होने लगी अपना पडाव डालने के लिए अभी रेगिस्तान कि भूमि में अपनी कैंट लगा ही रहे थे, कि वीरमदेव की वह छोटी-सी टोली अंधाधुंध आक्रमण कर दिया और महज़ एक घंटे में ही खिलजी कि उतनी बड़ी सेना को परास्त कर दी। अलाउद्दीन की सेना को स्पाट भूमि पर युद्ध करने का अभ्यास था। रेगिस्तान कि भूमि में उनके लिए चल पाना भी मुश्किल लग रहा था और वीरमदेव की सेना रेतीली भूमि में युद्ध का अभ्यस्त थी। किसी तरह उलूग खाँन अपनी जान बचाकर महज़ सौ कि संख्या में भाग गया। वीरमदेव सहित वो पांच सौ सैनिक सोमनाथ की शिवलिंग सहित लूट का सब धन संपदा और लगभग तीन हज़ार स्त्रियों को साथ ले अपने राजमहल को वापस आये। वीरमदेव की इस जीत से पूरे राज्य में जयघोष हो रही थी उत्सव का माहौल था। यह युद्ध वीरमदेव का अपनी धर्म की रक्षा के लिए था। सोमनाथ भगवान शिव का पवित्र शिवलिंग वापस लेना था और मासूम लड़कियों औरतों को छुड़ाने की, न कि उन आक्रान्ताओ के जैसा धर्म परिवर्तन कराने का। राजा कान्हड़देव सोमनाथ का शिवलिंग पुनः स्थापित किया और एक भव्य मंदिर की नींव रख मंदिर निर्माण का कार्य शुरू कराया। कुछ दिनों बाद अलाउद्दीन खिलजी का एक दूत मैत्रीपूर्ण पत्र लेकर कान्हड़देव के दरबार में हाज़िर हुआ।
वीरमदेव की वीरता से प्रभावित हुईं अलाउद्दीन कि लाड़ली बेटी फिरोजा एक नज़र में ही हुआ था एकतरफ़ा प्यार
उस पत्र में अलाउद्दीन द्वारा वीरमदेव की बहादुरी का बखान था और मैत्री सम्बन्ध बनाने व प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिए वीरमदेव को दिल्ली दरबार में आने का निमंत्रण, कान्हड़देव दूत को दूतावास में ठहरने का आदेश दिया। अगले दिन की बैठक में राजदरबार में इस विषय पर चर्चा हुई सभी का कहना था यह अलाउद्दीन का खड्यत्र है। इस प्रस्ताव को ठुकरा देना चाहिए। तभी वीरमदेव ने कहा जब प्रेम पूर्वक आये हुए निमंत्रण को खड्यत्र जानकर ठुकरा दिया जाएगा। तब भी हमारा अपमान है, महाराज। आप इस प्रस्ताव को स्वीकार कर मुझे अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में जानें का आदेश दिजिये। हम वीरों का कर्तव्य है, कोई छल से भी हमें निमंत्रण दे तो उसे स्वीकार कर परिस्थितियों का सामना करना। वीरमदेव के इस साहस पर कान्हड़देव ने वीरमदेव को दिल्ली दरबार में जाने की अनुमति दे दी। वीरमदेव खिलजी के दरबार में हाज़िर हुए तब वहां सब उस 22 वर्षीय बालक कि सुन्दरता को देखकर आश्चर्य चकित हो रहे थे और मन ही मन विचार करने लगे कि अब तो जालौर का राज भी अपना हुआ। इसे तो यूँ ही मसल दिया जाएगा। उधर एक चेहरा ऐसा भी था जो एक नज़र में ही अपना दिल दे बैठी और अनायास ही चेहरे पर मुस्कान बिखर जाया करती, इतना सुंदर आज तक तो एक से बढ़कर एक महारथी देखी, लेकिन कोई पुरुष इतना सुंदर और बलवान होगा सोची भी नहीं थी। फिरोजा वीरमदेव की बहादुरी से परिचित हो चुकी थी और सामने देखते ही देखते उस हिन्दू लड़के को एकतरफ़ा अपना दिल दे पती रुप में मन ही मन वरण भी कर ली। वीरमदेव को अतिथि कक्ष में रुकने कि व्यवस्था कर दिया गया।

फिरोजा का मन अब वीरमदेव को पाने के लिए बेचैन कर रहा था कि अपने अब्बू अलाउद्दीन खिलजी से जाकर मिली और अपनी पसंद एक तोह्फ़ा की ख्वाहिश रखी। अलाउद्दीन की सबसे लाड़ली बेटी जो थी, कहा मांगो क्या मांगना चाहती हो। तुम सबसे बड़ी सल्तनत की बेटी हो, तुम्हें क्या मांगने कि जरुरत पड़ रही है। जो भी चाहिए बताओं तुम्हें अभी दूंगा। फिरोजा अपने अब्बू को जानती थी। विनय पूर्वक कही मुझे प्यार हो गया है और मुझे अपना प्यार चाहिए, तो झट से खिलजी ने कहा बताओं वो कौन है जिसे मेरी बेटी प्यार करने लगी है। अभी लाकर दे दूंगा। तब फिरोजा ने कहा अब्बू मुझे वीरमदेव से प्यार हो गया है। खिलजी के माथे पर चिंता कि लकीरें दौरने लगी वो सब हिन्दू लड़कियों को प्रताड़ित कर अपने यहां तो लाना चाहते थे। लेकिन अपनी बहन बेटियों को हिन्दू धर्म में नहीं जाने देना चाहते थे। फिरोजा ने कहा वर वंरु वीरमदेव, ना तो रहूँगी अकन कुंवारी। अगर मैं निकाह या शादी करुंगी तो वीरमदेव से ही करुंगी नही तो पूरी जीवन कुंवारी रहूंगी। खिलजी फिरोजा को वचन दिया कहा ठीक है तुम्हारा निकाह वीरमदेव से करा दूंगा। अगले दिन वीरमदेव को खिलजी अपने दरबार में बुलाया और अपने बगल के सिंहासन पर बैठाकर सब खैरियत पूछ कहा हे राजकुमार आप इस्लाम धर्म स्वीकार कर हमारी बेटी फिरोजा से निकाह कर लिजिए। मै आपको अपने दामाद और बेटी फिरोजा आपको पती रुप में पाना चाहती है। इसपर वीरमदेव कुछ समय चुप्पी साधे कहा मुझे इस प्रस्ताव पर विचार करने का समय दिजिये, महाराज। दरबार में बैठे सभी खिलजी के इस प्रस्ताव पर हैरत में थे, कि इतना बड़ा सल्तनत का बादशाह छोटे से हिन्दू राजकुमार के साथ अपनी बेटी का निकाह करना चाहता है। लेकिन खिलजी के प्रस्ताव पर बोलने की हिम्मत वहां बैठे किसी मे नही थी। वीरमदेव अपने अतिथि कक्ष में चले गए मन में विचार विमर्श करते चिंतित थे। संध्या काल पूजा-अर्चना का समय हो गया। जिसका उन्हें ज्ञात भी नहीं था। द्वार पहरी वीरमदेव के कक्ष के करीब गया और कहा राजकुमार आपका पूजा वंदन का समय हो गया है और एक सौदागर आपसे मिलने की इजाजत चाहता है।

वीरमदेव ने कहा भेजो क्या लाया है, सौदागर ने। थोड़ी देर में सौदागर वीरमदेव के कक्ष में प्रवेश किया और कहा क्या दिखाऊँ, राजकुमार? परीयों की तस्वीर दिखाऊँ ? वीरम ने कहा कुछ भी दिखाओ। सौदागर अपनी झोली में हाथ डाल एक सुंदर लड़की का फोटो निकाल, दिखाया पूछा कैसी लगी और दिखाऊँ, तब वीरम ने कहा दिखाओ एक के बाद एक करके सात तस्वीर निकाल कर दिखाया। तब वीरम ने कहा ये सब एक ही परी की अलग-अलग तस्वीर है। किसी और परी का नही है क्या? तब सौदागर ने कहा राजकुमार वीर ये परी आपसे बहुत प्यार करती है। इससे अधिक आपको प्यार करने वाली कोई और हो ही नहीं सकती। वीरम चौक कर कहे, कैसे आपको पता, मै तो इसे देखा भी नहीं, न ही इसके प्यार का प्रस्ताव स्वीकार किया। मुझे विश्वास नहीं, तब फिरोजा इधर-उधर देखी और अपनी दाढ़ी मूंछें हटा माथे से साफा हटा वीरम के समक्ष खुलकर प्रस्तुत हो गई। तब वीरम ने कहा फिरोजा तुम्हारी इतनी हिम्मत, तब फिरोजा ने कहा मेरे प्यारे सोनगरे के शरदार आप के पास जब इतना हिम्मत की हमारे अब्बू की दसों हजार सेना को एक घंटे में परास्त कर दिया तो सबसे बड़ी सल्तनत की बेटी फिरोजा के पास इतना भी हिम्मत नहीं जो अपने द्वारा वरण किए गए वर से मिल सकूं। हे प्राण प्रिये आप मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर विवाह किजिये। मै आपको खोना नहीं चाहती, न मै आपके बगैर जिन्दा रह सकती। फिरोजा का प्यार वीरम को आकर्षित कर रहा था। सहज भाव से वीरम ने कहा फिरोजा तुम्हारा स्पर्श मुझे, तुम्हे अस्वीकार करने का इज़ाज़त नही दे रहा है। तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था, कि क्या जबाव दूं। फिरोजा ने कहा मै आपको पती रुप में वरण कर चुकी हूं, अगर आप मुझे नहीं मिले तो मै पूरी जिन्दगी कुवांरी रह जाउंगी। किसी अन्य से निकाह नही करुंगी अब, आप सोच लिजिए। फिरोजा फिर अपनी दाढ़ी मूँछ लगाई और झट से निकल चली। अगले दिन वीरम खिलजी के दरबार में प्रस्तुत हुए खिलजी बहुत ही आदर भाव से स्वागत किया अपने पास बैठा पूछा विचार कर लिए राजकुमार, तब वीरम ने कहा मै फिरोजा से विवाह करने के लिए तैयार हूं, लेकिन मै इस्लाम कबूल नही करुंगा, फिरोजा को हिन्दू धर्म में आना होगा। खिलजी बहुत समझाने का प्रयास किया, फिर वीरमदेव ने कहा मुझे अपने राज जाने की इजाजत दिजिये। वहां जाकर ही अब विचार विमर्श करना होगा। उल्लास व सम्मान के साथ वीरमदेव को विदा किया और जल्द दामाद के रूप में अपने आंगन आने का निवेदन किया।

सोमनाथ मंदिर के पुजारी की बेटी से विवाह कर ठुकराया अलाउद्दीन का प्रस्ताव
वीरम अपने राज्य को वापस आये दरबार में सन्नाटा पसरा हुआ था। राज दरबार में पहुंचे तो राजा कान्हड़देव राजकुमार वीरम से कुशल छेम पूछा, तब वीरम दरबार में सन्नाटे का कारण पूछा, तब राजा कान्हड़देव ने कहा, हे वीर खिलजी के सैनिकों द्वारा अपहरण कर ले जायी जा रही उन युवतियों के भविष्य पर विचार विमर्श किया गया तो सामने एक बात आई अगर उन युवतियों में से किसी एक का वरण कोई वीर युवक कर ले। तो शेष सभी को अन्य युवक पत्नी बनाने के लिए तैयार हैं। तब वीरम ने कहा कोई वीर युवक तैयार हुआ, तो राजा कान्हड़देव का इशारा खुद अपने पुत्र वीरम के तरफ़ था, देख वीरम ने कहा महाराज मै आपके प्रस्ताव को स्वीकार करता हूं। आप विवाह की तैयारी किजिये। राजदरबार वीरम के विचार पर जय जयकार करने लगी। कुछ समय बाद फिर कान्हड़देव ने पूछा अब ये बताईयें युवराज अलाउद्दीन का व्यवहार क्या रहा, आपके प्रति। वीरम ने कहा मेरी वीरता का बखान खिलजी दरबार में हो रही थी और मेरे स्वागत में कोई कमी नहीं थी। अलाउद्दीन अपनी बेटी की शादी के लिए कह रहा था। सबके माथे पर चिंता कि लकीरें खिंच गयी। कान्हड़देव ने पूछा तो आपका क्या ख्याल है, तो वीरम ने कहा कि जो आप सबका ख्याल है वही मेरा ख्याल है। आप विवाह की तैयारी कर किसी एक से मेरा विवाह सम्पन्न कराईए ताकि अन्य सभी युवतियों को अपना सौभाग्य प्राप्त हो। कान्हड़देव सोमनाथ मंदिर के पुजारी की पुत्री से वीरमदेव का विवाह कर दिया और राज्य के युवकों द्वारा अन्य युवतियों का विवाह करा दिया गया। अपने विचारों को वीरमदेव एक पत्र के माध्यम से खिलजी को भेज दिया।

अलाउद्दीन की बेटी फिरोजा को ठुकरा पत्र का दिया जवाब
मामो लाजे भाटियां कुल लाजे चौहान।
जे मैं परणु तुरकणी तो पश्चिम उगे भान।।
अगर मैं तुरकणी से शादी करु तो मामा यानी भाटी कुल और स्यम् चौहान का कुल लज्जित हो जायेगा। ऐसा तभी हो सकता है, जब पूरब की जगह पश्चिम से सूर्योदय हो। यह सुनकर अलाउद्दीन खिलजी लज्जित हो आग बबूला हो गया और उसने युद्ध का एलान कर दिया। तुरंत जालौर के एक छोटे से राजा कान्हड़देव और राजकुमार वीरमदेव पर गरज पड़ा और छोटे से राज्य पर कलिमुद्दीन की देखरेख में डेढ़ लाख की सेना भेज दिया। पांच सालों तक युद्ध चलता रहा अलाउद्दीन की लाखों की सेना युद्ध भूमि में परास्त होती गई अंत में खुद अलाउद्दीन अपनी बड़ी सेना ले युद्ध भूमि में कूद पड़ा। अलाउद्दीन खिलजी वीरनदेव को अपनी बेटी की खुशी के खातिर अपना दामाद बनाना चाहता था। वो चाहता था, वीरमदेव उसके दामाद के रूप में किसी भी तरह से उसके घर आयें। अलाउद्दीन की लाड़ली बेटी वीरमदेव से बेपनाह प्यार करती थी। वीरमदेव की इच्छा जानने से पहले ही अपना शौहर मान चुकीं थी। कान्हड़देव बीर गति को प्राप्त हुए फिर युवराज वीरमदेव भी परास्त हुए। जालौर की सभी रानियों ने अपने को अग्नि में समर्पित कर दी। वीरमदेव का सर काट अलाउद्दीन अपनी बेटी को ले जाकर दिया और कहा बेटी मै वीरमदेव को तो नहीं ला सका उसका सर काट तुम्हारे कदमों में डालने के लिए लाया हूं। फिरोजा के सामने प्रस्तुत सर घूम गया।

तज तुरकाणी चाल हिन्दूआणी हुई हमे।
भो-भो रा भरतार, शीश न घूण सोनीगरा।।
अर्थात सोनगरे के शरदार तू अपनी शीश न घूमा तूं हमारे जन्म जन्मांतर का भरतार है आज मै तुरकाणी से हिन्दू बन गयी अब हम दोनों की इस जनम का अंतिम मिलन अग्नि कि ज्वाला में होगा। फिरोजा अपनी महल में एक हिन्दू रानी से पूछी आपके हिन्दू धर्म में पती के मृत्यु के बाद क्या करना होता है। तो उसने कहा अगर तूं इतना ही चाहती थी वीरनदेव को पती मान चुकीं होती तो आज वीरमदेव के मृत्यु के पश्चात तूं राजमहल की सुख भोग नही कर रही होती अपने पती की हुईं इस निशंक हत्या पर तूं भी उसके शव के साथ सती हो जाती। जैसे जालौर के सभी स्त्रियों ने अपने पतियों के बलिदान पर अपने आपको सभी ने अग्नि को समर्पित हो गई। फिरोजा सज-धज कर अपने वरण की पती वीरमदेव का शीश लेकर यमुना नदी में छलांग लगा दी अगले दिन मछुआरों ने देखा, एक सुन्दर युवती की बाहों में एक शीश था जो यमुना नदी में तैर रहा था। मछुआरों ने शव को यमुना नदी से बाहर निकाला और यह बात अलाउद्दीन खिलजी के दरबार तक जा पहुंची। अलाउद्दीन अपनी लाड़ली बेटी फिरोजा को मृत्यु के बाद देखा उसकी बाहों में भरा वीरमदेव का शीष था का अंतिम संस्कार जालौर राज्य में ले जाकर किया। जालौर के सोनगरा के पहाड़ी पर स्थित पूराने किले में फिरोजा का समाधि स्थल है जो फिरोजा के छतरी नाम से जाना जाता है।

अलाउद्दीन की मृत्यु
क्रूर निर्दयी लंपट दुराचारी शासक अलाउद्दीन खिलजी कि हत्या उसके कुशल सेनापति मलिक कफूर जो हिजड़ा था, से अलाउद्दीन का शारीरिक सम्बन्ध था, ने गद्दी की लालच में मिठी जहर दे 6 जनवरी 1316 को कर दिया। अब आगे बहुत जल्द बेनकाब करुंगा, लंपट अईयास अलाउद्दीन खिलजी की हत्या के बाद उसकी बेगमों, बीवियों का क्या हुआ ? अगले लेख में।
बुरे काम का बूरा नतीजा देख भाई चाचा देख भतीजा….


आपके लेख/ कहानियां बहुत सुन्दर, आनंदायक, रोचक ऐतिहासिक है।
आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं।
Thanks
आप सभी देश विदेश के पाठकों को समर्पित भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम सदैव निस्पक्ष सुस्पष्ट लेखनी के लिए समर्पित रहेगी ये आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास के साथ उम्मीद करता हूं। प्रिन्ट मीडिया संपादक।
बहुत ही रोचक जानकारी