नारी नही – नारंगी है, नारंगी नही – सब रंगी है, ढ़कें तो सब – करूमा, ढ़कें नही तो – नंगी की नंगी है।

त्रियाचरित्र समाहित ऐतिहासिक कहानी
आज के ऐतिहासिक कहानी में स्त्री का तिरिया चरित्र समाहित है। जो भी स्त्री के तिरिया चरित्र को समझ लेता है। वो कभी जीवन में धोखा नही खाता। बिते कल की बात को ही इतिहास कहा जाता है। चित्रगुप्त वंशज संपादक अमित श्रीवास्तव की कलम से इसके पहले एक लोना चमारिन की आपबीती इतिहास को उजागर किया गया। उसे 11 ठाकुरों ने मिलकर किया था बलात्कार, बदले की आग में जल रही खुंखार हुईं लोना चमारी, बनी दुनिया की सबसे बड़ी तांत्रिक और तंत्र बल से कर दी ठाकुर खानदान की खात्मा। उसी लोना चमारिन की दुहाई तांत्रिकों द्वारा शाबर मंत्रों में दी जाती है। आपने अभी तक नहीं पढ़ है तो सबसे नीचे टाइपिंग लिंक पर क्लिक कर पढ़िए या गूगल पर हमें सर्च कर पढ़िए। जितनी भी लोना नाम कि लकड़ी औरत हैं, उनकी सुन्दरता ही बना दिया उनका इतिहास। आज एक ऐसी एतिहासिक इतिहास को उजागर कर रहा हूं, जो अत्यन्त ही दुर्लभ और रोचक है। ऐसे इतिहास को जानने की इच्छा आजकल ज्यादा लोगों को रहती है। इस ऐतिहासिक कहानी के पात्र हैं- राजा सलवान, पहली पत्नी इच्छरा, दूसरी पत्नी लोना, पुत्र पूरणमल, गुरु गोरखनाथ और राजकुमारी सुन्दरा। पूरण कब कैसे और क्यों बना चौरंगीनाथ? वही चौरंगीनाथ जो नौ नाथ में गिने जाते हैं और नाथ सम्प्रदाय में एक स्थान प्राप्त है।

राजा सलवान का इतिहास
1608 ईशा पूर्व की बात है सियालकोट राज्य का एक राजा था सलवान, शालिवान या शालवाहन नाम से भी जाना जाता है। जो जन्म तो उज्जैन के चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शाही परिवार से पाया लेकिन पालन-पोषण एक कुम्हार के घर में हुआ था। वो बहुत ही न्यायप्रिय धर्मात्मा के नाम से प्रसिद्ध था। सलवान का पहला विवाह इच्छरा से हुआ।

लोना कि सुन्दरता पर राजा सलवान हुआ मोहित
कुछ सालों बाद राजा सलवान को पंजाब के सियालकोट गांव चमयारी में एक बहुत ही सुंदर लड़की की जानकारी मिली। राजा सलवान ने उस लड़की को देखा और देखते ही देखते मोहित हो गया। वो लड़की एक चमार परिवार कि थी जिसका नाम था, लोना चमारिन। आपको बता दें लोना नाम कि जितनी भी लड़कियों औरतों के इतिहास को मैंने तलाशा वो सभी बहुत ही सुंदर रही हैं, उनकी सुन्दरता ही उनका इतिहास बना दिया। उसी सुन्दर लोना में एक राजा सलवान की दूसरी पत्नी का भी जिक्र है, जो इस आर्टिकल में बता रहा हूं। सलवान सियालकोट का राजा था इसलिए अपने राज्य कि हर वस्तु पर उसका अधिकार था। राजा सलवान लोना चमारिन से अपनी दूसरी विवाह कर लिया। अब राजा सलवान की दो रानियाँ पत्नी थीं।

राजा के चिंता का कारण
कुछ साल बीत चुका सलवान से कोई पुत्र नही हो रहा था। राजा के लिए चिंता का कारण बन गया। चिंतित राजा सलवान अपने मंत्री, राजपुरोहित, ज्योतिषियों की एक सभा बुलाई और अपने चिंता का कारण बताया। ज्योतिषियों ने राजा सलवान को पुत्रेष्ठी यज्ञ कराने की सलाह दी। पुत्रेष्ठी यज्ञ के फलस्वरूप बड़ी रानी इच्छरा को गर्भ रह गया। समय धीरे-धीरे पूर्ण हुआ और एक बहुत ही सुंदर पुत्र की उत्पत्ति हुई। राजा सरवान बहुत प्रशन्न हो राजपुरोहित और ज्योतिषियों को दरबार में बुलाया और अपने पुत्र का नामकरण करने व कुंडली देखने को कहा। राजपुरोहित व ज्योतिषियों ने नामकरण कर कुंडली बना उस पुत्र की तेजमयी गाथा को बताया और कहा राजन इस पुत्र को 12 साल तक आप नही देख सकते और अन्य किसी के द्वारा पुत्र को देखा गया तो पुत्र के लिए अपशकुन होगा। इसलिए उचित होगा रानी के साथ इस तेजस्वी पुत्र पूरण को रखने की उचित व्यवस्था करें। जहां रानी के अलावा इस पुत्र पर अन्य किसी कि नजर न पड़े।

राजा एक सुन्दर महल का निर्माण कराया जिसमें सारी सुख सुविधा प्रदान किया और रानी इच्छरा के साथ पुत्र को नये महल में रखवा दिया। जो भी रानी और पुत्र पूरण के जरुरत की सामग्री जैसे भोजन पानी मनोरंजन का साधन सब महल में बाहर से ही रखवा दिया जाता था। किसी अन्य कि नज़र 12 साल तक उस बालक पर नही पड़ा। समय के साथ-साथ राजा वृद्ध होने लगा और इधर लोना का शरीर यौन सुख से वंचित था।

रानी लोना चमारी की कहानी
लोना राजा कि दूसरी रानी थी और उसके इर्द-गिर्द दासियों का रहना होता था। अब रानी लोना युवा अवस्था में पहुंच चुकी थी चाह कर भी अन्य किसी से अपने यौन सुख का आंनद नही ले पा रही थी। धीरे-धीरे 12 साल बीत गया, पुरोहित व ज्योतिषियों के कहने पर सलवान ने पुत्र पूरण और इच्छरा को महल में धूमधाम से आमंत्रित किया। पूरण का देखभाल अच्छा से हुआ था इसलिए 12 वर्ष का पूरण शरीर से बहुत ही सुंदर जवान तेजस्वी दिख रहा था। माता द्वारा प्राप्त बालपन शिक्षा से पूरण बहुत कुछ समझ भी गया था। धनुर्विद्या, तलवारबाजी घुड़सवारी आदि में पारंगत था। उस समय का 12 वर्ष इस समय का बच्चा ही कहा जाता है। उस समय तो 12 वर्ष में विवाह भी हो जाता था। भेट मुलाकात लाड़-प्यार के बाद राजा ने पूरण को छोटी रानी के कक्ष में सौतेली मां लोना से मिलने के लिए भेज दिया।

सौतेले बेटे पूरणमल के प्रति हवसी हुईं रानी लोना चमारी
पूरण अपनी छोटी मां से मिलने गया, जब छोटी मां रानी लोना ने पूरण को देखी मन में पूरण से वासना कि इच्छा जाग्रति हो गई। अब धीरे धीरे लोना अपने तन-मन को पूरण के प्रति समर्पित कर पूरण को अपने तन-मन के प्रति आकर्षित करने का प्रयास करने लगी। तब पूरण के समझ में नहीं था ये सब क्या है? क्योंकि पूरण अभी इन सब बातों से अनभिज्ञ था। राजा सलवान पूरण की शिक्षा-दीक्षा प्रारंभ कराया कुछ समय में पूरण को सम्पूर्ण ज्ञान कि प्राप्ति होने लगी। लोना के यौन सुख प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा आप मेरी माँ के समान हो। आपके साथ ऐसा करना पाप है। फिर भी लोना मानने को तैयार नहीं थी।

लोना चमारी का सौतेले बेटे पूरणमल के प्रति त्रियाचरित्र
पूरण के साथ यौन सुख प्राप्त करने के लिए तरह-तरह का प्रयास करती रही। एक दिन लोना अपनी दासी से कही आज मेरा और कक्ष का श्रृंगार इतनी अच्छी तरह से करो की मै सुन्दरता कि मूरत लगूं। दासी बाग से बेला-चमेली तरह-तरह की फूल लायी और जो लोना वैसे ही सुन्दरता कि मूरत थी को सजाई, आज तो लोना परियों से भी सुन्दर दिख रही थी कि लोना पूरण को मिलने के लिए बुलाया भेज दी।

रात्रि का समय था, पूरण अपनी छोटी मां के बुलावा को मां का आज्ञा मान कक्ष में चला आया। लोना उस रात्री अपनी दासियों को कक्ष में आने से मना कर दी थी और पहरियों को भी कक्ष के द्वार से दूर रहने का आदेश दे चूकि थी। जब पूरण लोना के कक्ष में प्रवेश किया लोना कक्ष का द्वार बंद कर दी और पूरण के पास बैठ यौन सुख कि इच्छा व्यक्त की लोना का प्रयास सफल नहीं हो रहा था। पूरण ने कहा कि आप मेरे पिता की पत्नी हैं और आप मेरी माँ के समान हैं। ऐसा करना हम दोनों के लिए पाप है। तब लोना ने कहा मै तुम्हें तुम्हारी मां के समान कैसे दिख रही हूँ। तुम्हारी मां और मेरे मे उम्र का अंतर तुम्हें नही दिख रहा, मै तुम्हारे उम्र से थोड़ी ज्यादा हूं। मै सुन्दर हूं, तुम मुझे अपना लो, तुम्हारे पिता वृद्ध हो चुके हैं और मुझे यौन सुख देने में असमर्थ हो चुके हैं। ऐसे में मै कहाँ जाऊँ, कही जाने पर तुम्हारे पिता की बदनामी होगी। क्या तुम अपने पिता की बदनामी सह सकोगे? लोना बात कहते हुए पूरण पर यौन सुख के लिए आशक्त होती गई और पूरण की गोद में बैठ पूरण को अपनी बाहों में भरने का ज्यो ही प्रयास कि पूरण लोना के प्रस्ताव को ठुकरा किनारे हटने लगा। लोना ने कहा तुम मेरे सौन्दर्य का अपमान कर रहे हो, ये तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा। पूरण तेजी से कमरे का द्वार खोला और कमरे से बाहर निकल तेज़-तेज़ कदमों से अपने कक्ष के तरफ़ जाने लगा। यह देख लोना का मन आशंकाओं में डूबने लगा, कहीं पूरण हमारे प्रस्ताव को पिता से जाकर न कह दे। अगर कह दिया तो मै कहीं कि नही रह जाऊँगी। दूसरी सोच कि पूरण मेरे सुन्दर रुप का अपमान किया है, तो उसको सबक सिखा कर ही चैन लूंगी।

अब लोना अपनी तिरिया चरित सौतेले बेटा पूरण के प्रति प्रकट की और अपने वस्त्र फाड़ रोते चिल्लाते राजा के शयनकक्ष के तरफ़ दौड़ते भागी। राजा सलवान के कक्ष में जा जमीन पर गिर जोर-शोर से रोने लगी। राजा अपनी रानी का फटा-चिथड़ा वस्त्र देखकर हैरान हो, तुरंत उठा और रानी को उठाने का प्रयास करते पूछा- रानी तुम्हारा यह हाल किसने किया? लोना को राजा के इन्हीं प्रश्नों का इन्तज़ार था। लोना रोते गिड़गिड़ाते कही, राजन आप नही मानोगे, ये हाल मेरा किसने किया। राजा ने कहा जो भी किया, तुम बताओं मै उसे मृत्यु दंड दूंगा। अब तो जो लोना चाहती थी वहीं राजा ने कह दिया। तब लोना रोते हुए कही राजन मै पूरण को अपना पुत्र मानती हूं और पूरण कहता है आप मेरी माँ नही हो। मेरी माँ तो इच्छरा है। मेरे साथ यौन संबंध बनाने का जबरजस्ती किया और मै विरोध कि तो मेरे कपड़े फाड़ इज्जत लूटने का भरपूर प्रयास किया। मै किसी तरह भाग कर आपके कक्ष तक आ पहूंची हूं। वो दौड़ाते हुए धमकी दे रहा था, जा मेरे पिता से तु अपनी बात मनवा भी नहीं सकोगी और मै तुम्हारे साथ यौन संबंध स्थापित ही करुंगा। अब तो राजन मुझे अपनी इज्जत बचाना बहुत मुश्किल हो गया है। पूरन ज्यादा ही मेरी सुन्दरता पर मोहित हो चुका है। कहता है, पिता वृद्ध हो चुके हैं और तुम मुझे अपना लो, मै तुम्हें अपनी मां नही मानता। मेरी उम्र से थोड़ी ही ज्यादा उम्र की हो। मै तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में देखना चाहता हूं। राजन मै आपकी रानी पतिव्रता नारी हूं। आपके अलावा किसी दूसरे पूरुष को कैसे छूने दूंगी अपने आपको। वो कहता है पिता वृद्ध हो चुके हैं, तो मै उसे समझाने का बहुत प्रयास कि वृद्ध हैं तो क्या हुआ? मुझे उनकी सलामती के अलावा उनसे मुझे चाहिए भी नहीं कुछ। तो मुझपर झपट पड़ा और बहुत जोर जबरजस्ती किया मेरे कपड़े फाड़ दिया। राजन मुझे अपने पुत्र के हवस का शिकार होने से बचा लिजिये। इतनी बातें सुनकर राजा का क्रोध अपने पुत्र के प्रति सातवें आसमान पर पहुंच गया और राजा जल्लाद को बुलाने का बुलावा भेज दिया।

रात्री की अंतिम पहर बितते ही पूरण को बंदी बना राजमहल में लाया गया, जल्लाद को पूरण का हाथ पांव काट मृत्यु दंड देने का राजा ने आदेश दे दिया। जल्लाद तो जल्लाद ही होता है लेकिन पूरण जल्लाद को बेकसूर नज़र आ रहा था। किन्तु राजा, पूरण की एक न सूनी और राजा का हुक्म था। तो जल्लाद को पालन करना ही था। राजा के हुक्म के मुताबिक पूरण का हाथ-पैर काट, जल्लाद पूरण को जंगल के तरफ़ फेकने ले जा रहा था कि पूरण के शरीर से एक तेज प्रकट हुआ। जिसे जल्लाद ने सह नही सका। जल्लाद वहीं जंगल के कुएं में फेंक महल में वापस आ राजा को बताया कि पूरण का हाथ-पैर काट जंगल के कुएं में फेंक दिया गया है। अब वो मृत्यु को प्राप्त हो गया है। रानी इच्छरा को यह दुख सहा नही जा सका और वो पुत्र के वियोग में पागल सी हो गयी। पूरण कुएं में कराहता रहा। किन्तु किसी कि हिम्मत नहीं कि वहां तक जा सके।

गोरखनाथ का पूरणमल पर उपकार, शिष्य बन बने – चौरंगीनाथ
रात्रि होने को थी, गुरू गोरखनाथ का जत्था वहीं आते आते थक चुका था। गुरु गोरखनाथ के कहने पर सभी नाथ साधु शिष्यों ने वही उस रात के लिए अपना पडाव डाल दिया। भोजन बनाने के लिए कुएं से पानी लाने कुछ शिष्य गयें तो उस कुएं से किसी के कराहने की आवाज़ सूनी। शिष्य सन्यासी दौड़ते हुए गुरू गोरखनाथ के पास आये और बताया उस कुएं से किसी के कराहने की आवाज़ आ रही है। त्रिकालदर्शी गुरु गोरखनाथ कुएं के तलहटी पर जाकर देखे तो उस बालक में शिव के मष्तिक पर विराजमान चांद का आभास हुआ। सब शिव की लीला समझ गए और कटे हाथ-पैर वाले बालक को अपनी योग माया से बाहर निकाला। गुरू गोरखनाथ तो सब जान ही चुकें थे। फिर भी पूरण ने अपनी पीड़ा भरी गाथा बताई।

भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान चांद का दूसरा जन्म राजा सलवान के पुत्र के रूप में इच्छरा के गर्भ से देख, हठ योगी गुरू गोरखनाथ पूरण को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया। तेजमयी गुरु गोरखनाथ की कृपा से पूरण का दर्द समाप्त हो गया और अपने जीवन का उद्देश्य का पता चल गया। अब गुरु गोरखनाथ की कृपा, तंत्र विद्या से पूरण को हाथ-पैर मिल गया। गुरु गोरखनाथ के बताएं मार्ग पर पूरण चलने लगा और तंत्र विद्या सहित कठिन साधना प्रारंभ कर दिया। एक दिन गुरु गोरखनाथ के सेवा में लगा शिष्य पूरण चलते-चलते राजकुमारी सुन्दरा के राज्य में चला गया सभी योगीजन को भूख-प्यास लगी थी। गुरु का आदेश हुआ शिष्य पूरण आज हम लोग यही विश्राम करेगें तुम भोजन कि व्यवस्था करो। गुरु का आदेश मान भिक्षाटन के लिए निकल ही रहा था, तब गुरु ने चेताया इस राज्य की राजकुमारी बहुत निर्दयी है। साधु संतो को भिक्षा नही देती मृत्यु दंड दे देती है। पूरण गुरु के बात को सुनकर कहा गुरुदेव आप निश्चिंत रहिए। मै शीघ्र भोजन का प्रबन्ध कर आता हूं। पूरण उसी राज्य के राजमहल में भिक्षाटन के लिए चला गया, जहां को लेकर गुरु ने चेताया था। महल के द्वार पर पहुंच भिक्षा के लिए आवाज लगाई – अलख निरंजन, द्वार पहरी देखा ये तो योगी है तुरंत पास आया और कहां योगीराज आपको मालूम नही क्या? राजकुमारी सुंदरा योगीयों साधुजनों को भिक्षाटन के लिए आने पर मृत्यु दंड देती हैं। आप बहुत सुन्दर स्वभाव के दिख रहे हैं। तत्काल यहां से चले जाईए, क्यो जान गंवाने आ गए हैं? फिर योगीराज पूरण ने कहा कि मेरा कर्तव्य है, अपने गुरु व गुरु भाईयों के भोजन कि व्यवस्था करना।

मुझे राज दरबार से भिक्षा लेनी ही है। फिर जोर से आवाज़ लगाई – अलख निरंजन। आवाज इतना तेज था कि पहरी को जाकर बताने की जरूरत भी नहीं पड़ी और राजकुमारी सुन्दरा हाथ में तलवार लिए महल से बाहर आ गई। राजकुमारी योगी पूरण को देखते ही देखते मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ी। योगीराज पूरणमल सुन्दरा के करीब गयें। कुछ समय में मुर्छा से बाहर आईं, सुन्दरा के हाथों से तलवार गिर गया। तब योगीराज ने पूछा आप साधुजनों की हत्या क्यो करती हैं? हत्या करना पाप है तब सुन्दरा ने बताया हमारे राज के ज्योतिषियों ने बताया था। इस राजकुमारी का विवाह एक योगी से ही होना निश्चित है। मुझे पहचानने का कोई दूसरा मार्ग नहीं, इसलिए मै ऐसा करती हूं। जिस साधू, योगी के सामने असहाय पड़ जाउंगी वह छत्रपति परिवार का होगा और वही मेरा पति होगा। राजकुमारी पूरण के सामने अपने विवाह का प्रस्ताव रख दी तब पूरण ने कहा मै पारिवारिक जीवन से दूर एक योगी हूं मै विवाह नही कर सकता। पूरण ने कहा देवी मै गुरु गोरखनाथ और अपने गुरु भाईयों के भोजन के लिए भिक्षाटन के लिए आया हूं। मुझे शीघ्र भोजन का प्रबन्ध करना है। भिक्षा दे दो ताकि मै अपना दायित्व पूरा कर सकूं। राजकुमारी सुन्दरा गुरु गोरखनाथ के नाम से परिचित थी। पूरण से कहीं योगीराज आप थोड़ा विश्राम किजिये, मै उत्तम भोजन का प्रबन्ध कर आती हूं। थोड़ी देर में राजकुमारी स्वादिष्ट पकवान तैयार करा लेकर आयीं और अपने साथ गुरु गोरखनाथ का दर्शन भोजन कराने के लिए साथ ले चलने का निवेदन कि। राजकुमारी का निवेदन स्वीकार कर पूरण राजकुमारी को गुरु भोजन कराने के लिए ले चला। राजकुमारी गुरु गोरखनाथ का चरण वन्दन कर सभी को प्रणाम कि गुरु गोरखनाथ से आज्ञा ले भोजन परोसी। भोजन बहुत ही स्वादिष्ट था, योगीजन का आत्मा तृप्त हुआ। प्रेम पूर्वक करायें गये भोजन से प्रसन्न हो गुरु गोरखनाथ ने राजकुमारी को वर्दान मागने को कहा, तब सादर भाव से राजकुमारी गुरु गोरखनाथ का चरण वन्दन करते कही मेरी एक ही इच्छा है कि आप विधि-विधान से मेरी विवाह अपने शिष्य पूरण से करा मुझे आशिर्वाद दिजिये। त्रिकालदर्शी गुरु गोरखनाथ ने देखा यही विधि का विधान है। पूरण के साथ विवाह का वर्दान दे दिया।

चौरंगीनाथ का राजकुमारी इच्छरा से विवाह अपने राज्य वापसी की कहानी
पूरण का गुरु आदेश पर शाही ठाठ-बाट में विवाह हुआ। गुरु का आशिर्वाद दोनों को मिला। फिर गुरु गोरखनाथ पूरण से बने चौरंगीनाथ को अपने राज्य में जाकर तपस्या करने का आदेश दिया। जो अपने राज महल तक ले जाने का एक मार्ग था, लेकिन पूरण अनभिज्ञ था। अब चौरंगीनाथ सियालकोट के उस जंगल को गया, जहां हाथ-पैर काटकर कुएं में उसे फेक दिया गया था। वहां उसकी ख्याति बढ़ती जा रही थी कि ऐसे में बात राजा सलवान के पास पहुंचा। अपने राज्य में जो जंगल सूखे पड़ गये थे, वो हरा-भरा हो गया है। वहां एक तपस्वी आया है जिससे हर किसी कि मुराद पूरी हो रही है। राजा सलवान योगीराज चौरंगीनाथ को अपने महल बुलाया और कहां मेरी कोई संतान नहीं है आगे मेरे राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा इस बात की चिंता मुझे सता रही है। तब चौरंगीनाथ ने कहा अपनी रानियों को बुलाईए। रानी इच्छरा का तो हालत ठीक नहीं था फिर भी दोनों रानियाँ राजदरबार में आईं। तब चौरंगीनाथ ने कहा महाराज आपको तो पहले ही बड़ी रानी इच्छरा के गर्भ से एक तेजस्वी पुत्र प्राप्त हो चुका है। तब राजा शालवाहन ने कहा कि वो मेरा पुत्र बहुत खोटा था। जो अपनी ही छोटी मां के साथ दुराचार करने की कोशिश की। मैंने उसे न्याय के अनुसार मृत्यु दंड दे दिया। तब चौरंगीनाथ ने कहा राजन आप न्यायप्रिय कैसे हो सकते हैं, आप तो अपनी पत्नी कि ही बात मान दंड निर्धारित कर दिया।

सौतेले बेटे पूरणमल से बना चौरंगीनाथ ने दिया रानी लोना चमारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान
राजा कुछ समझ नहीं पाया कि चौरंगीनाथ ने कहा रानी लोना अगर सही सही बात बताएं तो उन्हें एक सुन्दर सुयोग्य पुत्र होगा। इतना सुनकर लोना सारी बात कह दीं, कि पूरण की सुन्दरता और जवानी को देखकर मै अपने आपको रोक नहीं पाई थी। पूरण मुझे यौन सुख देने से मना कर दिया, मुझे लगा एक तो वो मेरी सुन्दरता का अपमान किया, दूसरा डर था कही हमारी जोर जबरजस्ती को वो अपने पिता से कह दिया तो मै कहीं कि नही रह जाऊँगी। राजन आप तो तभी मुझे यौन सुख देने में असमर्थ बुड्ढे हो चुके थे। जब पूरण दूसरे महल में दीदी इच्छरा के साथ रहता था। मै यौन सुख के लिए ब्याकुल रहती थी। मुझे पूरण को अपनाने के अलावा दूसरा कोई मार्ग नहीं दिखाई दे रहा था। तो मैनें ही पूरण के साथ सम्बन्ध स्थापित करना चाही, पूरण नही चाहा।

इतनी बात सुनकर राजा को ऐसा लगा कि प्राण पखेरु ही उड़ जायेगें। जैसे पुत्र के वियोग में राजा दशहरा के उड़ गए थे। पूरण से बना चौरंगीनाथ जब देखा कि मेरे आखों के सामने ही मेरा पिता पुत्र वियोग में प्राण त्याग देगा। तब चौरंगीनाथ ने कहा राजन वो आपका पुत्र मै ही हूं। आंखें खोलिए राजा को जैसे लगा कि खुशी का ठिकाना ही नहीं है। जिस माँ की आंखों की ज्योति चली गई थी रोते-रोते उस मां इच्छरा के आंख की ज्योति वापस आ गयी और स्तन से दूध टपकने लगा। राजा सलवान और रानी इच्छरा पूरण को गले लगा प्यार दुलार करने लगे और लोना को अपने किए पर पछतावा हो रहा था। पूरण का पैर पकड़ना चाही तब तक पूरण झपट कर ऐसा करने से रोका और अपनी छोटी मां को अपने पर पुत्र का अधिकार दे अपने गले लगा लिया। अब पूरण ने कहा राजन आपको मुझ जैसा ही पुत्र प्राप्ति छोटी मां के गर्भ से होगा। छोटी माँ को भी अपने गर्भ से पुत्र सुख का अनुभव होगा। जिसका नाम होगा रिसालू वही इस राज्य का उत्तराधिकारी होगा। अब महल में खुशियां ही खुशियां थी। तब तक चौरंगीनाथ अपने गुरु के पास जाने कि आज्ञा मांगी मां इच्छरा का ह्दय दुखों से भरने लगा। रोकने का प्रयास कि तो कहा मां आपकी देखभाल के लिए राजकुमारी सुन्दरा आपके साथ रहेगी और आप के अन्तिम समय में मै आपके पास आ जाऊंगा। मुझपर आपका जितना हक है उससे अधिक गुरु गोरखनाथ का है, जो मुझे दूसरा जीवन प्रदान किया है। मै एक योगी हूं मै यह राज सुख नहीं भोग सकता। राजकुमारी से बनी पत्नी सुन्दरा को वचन दे चौरंगीनाथ अपने गुरु गोरखनाथ के सानिध्य में चले गये।

चौरंगीनाथ तपो स्थली से चमत्कार
बारह वर्षों तक हरिद्वार के भर्तृहरि गुफा में धूनी रमा कठोर साधना किए। इन्हे गुरु दीक्षा मत्स्छन्द्र नाथ ने और उपदेश गुरु गोरखनाथ ने दिया। पूरण से हुए चौरंगीनाथ अपने नाथ सम्प्रदाय की सबसे बड़ी गद्दी हरियाणा में स्थापित किया। जो आज अस्थल बोहल बाबा मस्त नाथ जी का डेरा के नाम से प्रसिद्ध है। यहां चौरंगीनाथ जी की अखंड ज्योति आज भी जल रही है। अब चौरंगीनाथ के चमत्कार को उजागर कर रहा हूं। चौरंगीनाथ तपस्या कर रहे थे। उसी समय कुछ बंजारे अपने खच्चर पर गुड़ लाद जा रहे थे। तपस्थली आते आते रात होने लगी आश्रम देख बंजारों ने वहीं रूकने का फैसला किया। आग जलाने के लिए बाबा के आश्रम में एक बंजारा आग की लूत्ती लेने आया। चौरंगीनाथ ने उस बंजारे से पूछा क्या समान लेकर जा रहे हो? बंजारा सोचा गुड़ बता दूँ तो कहीं बाबा मांग लेगा तो बोरी खोल देनी पड़ेगी। बहुत झनझट होगा तो उस बंजारे ने झूठ बोल दिया नमक ले जा रहे हैं।

बाबा चौरंगीनाथ ने कहा ठीक है नमक ही होगा। अब अगले दिन बंजारों ने अपनी गुड़ कि बोरी बाजार पहुंच खोली तो सब गुड़ के जगह नमक का ढेला ही था। बंजारे आपस में चर्चा करने लगे ऐसा कैसे हो सकता है। हम सब गुड़ लेकर चले यहां नमक है। तब उस बंजारे ने कहा रात आग लेने आश्रम में गया था। वहां बाबा ने पूछा क्या ले जा रहे हो? तो मैनें झूठ बोल दिया नमक है, तो उसने कहा ठीक है – नमक ही होगा। बंजारों का मुखिया बाबा के पास दौडते हुए आया और बाबा चौरंगीनाथ के कदमों में सर पटक अपने आदमी से हुई गलती के लिए झमा मांगी। बाबा चौरंगीनाथ प्रसन्न होकर कहे जाओ गुड़ ही है और अच्छा मुनाफा मिलेगा। वापस बंजारा हाट में गया सब गुड़ हो गया था और बहुत ऊंची दामों पर बिका मुनाफ बहुत हुआ।

चौरंगीनाथ मंदिर
बंजारा खुशी-खुशी चौरंगीनाथ के आश्रम में आकर चरणबद्ध निवेदन किया बाबा मै यहां आपके लिए कुटिया बनाना चाहता हूं। बाबा चौरंगीनाथ आग्रह को स्वीकार कर लिए और बंजारों ने एक साढ़े सात फिट मोटी चौड़ी दिवाल के साथ मंदिर नुमा कुटिया बनाईं इस मंदिर में आज भी चौरंगीनाथ की स्मृति में अखंड ज्योति निरंतर जल रही है।
अपनी माता इच्छरा को अंतिम समय में वापस आने का दिए वचन के अनुसार चौरंगीनाथ सियालकोट राज्य को चले गए। मृत्यु के बाद माता को मुखाग्नि दिया। पत्नी सुन्दरा को दिए वचन का पालन किया फलस्वरूप एक सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई जो हरियाणा नाथ सम्प्रदाय का उत्तराधिकारी बन अपनी नाथ परंपरा का निर्वाह किया। राजा सलवान और सौतेले बेटे पूरण के साथ यौन सुख की कामना करने वाली तिरिया चरित्री रानी लोना चमारिन का पुत्र जिसका नाम रिसालू हुआ वही रिसालू सलवान के राज का अगला उत्तराधिकारी बना।

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