रजिया सुल्तान “full story of Razia Sultan” भारतीय इतिहास की पहली और एकमात्र महिला शासक थीं, जिन्होंने 13वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। वह गुलाम वंश (ममलूक वंश) की एक सशक्त शासक थीं, जिन्होंने समाज की रूढ़ियों को तोड़कर शासन की बागडोर संभाली। 13वीं शताब्दी में महिलाओं का शासन करना असंभव माना जाता था, लेकिन रज़िया ने अपने अद्वितीय साहस और कुशल नेतृत्व से यह सिद्ध कर दिया कि एक महिला भी पुरुषों के समान शक्तिशाली हो सकती है।
उनके शासनकाल को उनकी न्यायप्रियता, सैन्य शक्ति और प्रशासनिक कुशलता के लिए याद किया जाता है। हालांकि उनका शासनकाल अल्पकालिक रहा, लेकिन उनकी कहानी इतिहास के पन्नों में एक प्रेरणा के रूप में दर्ज है। पढ़िए इस लेख में भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी में full story of Razia Sultan.
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“Full story of razia Sultan” रजिया का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रज़िया का जन्म 1205 ईस्वी में हुआ था। उनके पिता, शम्सुद्दीन इल्तुतमिश, गुलाम वंश के तीसरे और सबसे प्रभावशाली शासक थे। उन्होंने अपने शासनकाल में दिल्ली सल्तनत को मजबूत किया और प्रशासनिक सुधार किए। रज़िया की माता का नाम कुतुबुद्दीन ऐबक की बेटी था, जिससे वह शाही परिवार से संबंधित थीं। उनके पिता ने उनके भाइयों की तुलना में उन्हें अधिक योग्य और बुद्धिमान समझा, इसलिए उन्होंने रज़िया को बचपन से ही राजकाज और युद्धकला की शिक्षा दिलवाई।
उस समय मुस्लिम समाज में महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने या शासन करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन इल्तुतमिश ने रज़िया को न केवल अरबी और फारसी भाषा का ज्ञान दिलाया, बल्कि उन्हें राजनीति, सैन्य रणनीति और प्रशासन की भी गहरी समझ दी। उन्होंने तलवारबाजी, घुड़सवारी और युद्ध कौशल में भी महारत हासिल की। बचपन से ही रज़िया अपने पिता के साथ दरबार में बैठती थीं और राज्य के महत्वपूर्ण फैसलों को समझती थीं। यह अनुभव आगे चलकर उन्हें दिल्ली का पहला महिला सुल्तान बनने में मददगार साबित हुआ।
रजिया सुल्तान का फोटो

दिल्ली की सुल्तान बनने की यात्रा
1236 में इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद, उनका सबसे बड़ा पुत्र रुक्नुद्दीन फिरोज शाह दिल्ली का सुल्तान बना। हालांकि, वह एक अयोग्य और विलासी शासक था, जो केवल ऐशो-आराम में डूबा रहता था। शासन की वास्तविक बागडोर उसकी माता शाह तुर्कान के हाथों में थी, जिसने सत्ता में आते ही निर्दयतापूर्वक कई लोगों की हत्या कर दी। उसके अत्याचारों से जनता और अमीर (दरबारी सरदार) नाराज हो गए।
जल्द ही, दिल्ली के अमीरों ने विद्रोह कर दिया और रुक्नुद्दीन फिरोज की हत्या कर दी गई। इसके बाद, जनता और अमीरों के समर्थन से रज़िया को दिल्ली की पहली महिला सुल्तान घोषित किया गया। यह घटना ऐतिहासिक थी क्योंकि इस्लामी समाज में महिलाओं का शासक बनना सामान्य नहीं था। रज़िया को सत्ता संभालने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और दृढ़ता से सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत की।
रज़िया सुल्तान की उपलब्धियां “RAZIA SULTAN ” का शासनकाल
रज़िया का शासनकाल केवल चार वर्षों तक चला, लेकिन इस दौरान उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए, जो उन्हें एक महान शासक के रूप में स्थापित करता है। रजिया सुल्तान अपने शासनकाल में कई सुधार लागू किए, जो सल्तनत की समृद्धि और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण थे।
1. प्रशासनिक सुधार
रज़िया ने प्रशासन को अधिक व्यवस्थित और प्रभावी बनाया। उन्होंने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई और योग्य अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया। उन्होंने जनता की समस्याओं को सुनने के लिए एक जनता दरबार की स्थापना की, जहाँ आम नागरिक अपनी शिकायतें सीधे सुल्तान के सामने रख सकते थे।
2. सेना का सशक्तिकरण
रज़िया को युद्धकला और सैन्य रणनीति में गहरी रुचि थी। उन्होंने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया और कई महत्वपूर्ण दुर्गों और शहरों को मजबूत किया। उन्होंने सेना में योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ कीं और धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया।
3. धार्मिक सहिष्णुता
रज़िया ने अपने शासन में धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोगों को समान रूप से अधिकार दिए और उनके प्रशासन में कई हिंदू अधिकारी भी थे। उन्होंने मंदिरों और मस्जिदों की सुरक्षा सुनिश्चित की और सभी धर्मों के लोगों के साथ न्याय किया।
4. महिलाओं की स्वतंत्रता
रज़िया का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने महिलाओं की शक्ति को दर्शाया। उन्होंने पुरुषों की तरह पोशाक पहनकर शासन किया और घुड़सवारी व युद्ध अभियानों में स्वयं भाग लिया। उनके इस कदम से समाज में महिलाओं की स्थिति को लेकर एक नई सोच विकसित हुई।
रजिया सुल्तान की चुनौतियाँ और षड्यंत्र
रज़िया का शासनकाल जितना प्रभावशाली था, उतना ही संघर्षों से भरा हुआ भी था। उनकी शक्ति और नीतियों से तुर्की अमीर (सरदार) नाखुश थे, क्योंकि वे किसी महिला के शासन को स्वीकार नहीं करना चाहते थे। उनकी सबसे बड़ी चुनौती तब आई जब उनके करीबी सलाहकार और सेनापति मलिक जमालुद्दीन याकूत के साथ उनकी मित्रता को गलत तरीके से प्रचारित किया गया। कुछ अमीरों को लगा कि रज़िया एक गैर-तुर्क को अधिक महत्व दे रही हैं, जिससे तुर्क सरदारों में नाराजगी बढ़ गई। इस असंतोष का फायदा उठाकर ग़ियासुद्दीन बलबन और अन्य अमीरों ने विद्रोह कर दिया।
1240 में, रज़िया को हराकर बंदी बना लिया गया और उन्हें भटिंडा के गवर्नर अल्तूनिया के पास भेजा गया। बाद में, रज़िया और अल्तूनिया ने विवाह कर लिया और दिल्ली पर पुनः अधिकार करने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे।
रज़िया सुल्तान की प्रेम कहानी
रज़िया सुल्तान की जिंदगी सिर्फ एक शासक के रूप में संघर्षों से भरी नहीं थी, बल्कि उनकी प्रेम कहानी भी सत्ता, षड्यंत्र और समाज की रूढ़ियों के बीच उलझी हुई थी। इतिहास में उनके सबसे करीबी व्यक्ति के रूप में मलिक जमालुद्दीन याकूत का नाम आता है, जो एक हब्शी (अफ्रीकी मूल का) ग़ुलाम था और रज़िया की शाही अस्तबल (घुड़साल) का प्रभारी था। याकूत न केवल एक कुशल योद्धा और वफादार सहयोगी था, बल्कि वह रज़िया के दिल के भी बेहद करीब था। याकूत रजिया का अंगरक्षक था, रजिया के साथ गुप्त संबन्ध था।
दोनों की मित्रता दरबार में चर्चा का विषय थी, क्योंकि याकूत तुर्क नहीं था और दिल्ली सल्तनत के कुलीन वर्ग उसे अपने बराबर नहीं मानते थे। रज़िया ने अपनी परवाह किए बिना याकूत को ऊँचे पदों पर बिठाया, जिससे तुर्की सरदारों में गहरी नाराजगी फैल गई। कई लोगों का मानना था कि रज़िया और याकूत के बीच सिर्फ़ राजनीतिक रिश्ता नहीं, बल्कि गहरी भावनात्मक जुड़ाव भी था। इसी कारण दरबार के कई षड्यंत्रकारी अमीरों ने इसे उनके खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया।
इस प्रेम कथा का दुखद अंत तब हुआ जब 1240 में तुर्की अमीरों ने विद्रोह कर दिया और रज़िया के खिलाफ षड्यंत्र रचकर उनके वफादार प्रेमी सेनापति याकूत की हत्या कर दी। कहा जाता है कि जब बलबन और अन्य अमीरों की सेना ने रज़िया पर हमला किया, तो उन्होंने सबसे पहले याकूत को मार डाला, जिससे रज़िया कमजोर हो गईं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि याकूत को युद्ध में मारा गया, जबकि कुछ अन्य स्रोतों के अनुसार, उन्हें पकड़कर रज़िया के सामने ही बेरहमी से मार दिया गया था।
याकूत की मृत्यु के बाद, रज़िया को बंदी बना लिया गया और भटिंडा के गवर्नर इख्तियारुद्दीन अल्तूनिया के हवाले कर दिया गया। बाद में, रज़िया और अल्तूनिया ने विवाह कर लिया, लेकिन यह रिश्ता परिस्थितियों का परिणाम था, न कि प्रेम का। अंततः, रज़िया और अल्तूनिया दोनों की हत्या कर दी गई, और इस तरह उनकी प्रेम कहानी भी अधूरी रह गई। आज भी इतिहास में रज़िया और याकूत का रिश्ता प्रेम, वफादारी और सत्ता के षड्यंत्रों के बीच एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है।
रजिया किसकी पत्नी थी
रज़िया सुल्तान के विवाह को लेकर इतिहास में अलग-अलग कथाएँ प्रचलित हैं, लेकिन प्रामाणिक रूप से यह माना जाता है कि उन्होंने भटिंडा के गवर्नर इख्तियारुद्दीन अल्तूनिया से विवाह किया था। रज़िया और अल्तूनिया का रिश्ता प्रेम पर नहीं, बल्कि राजनीतिक परिस्थितियों पर आधारित था। जब तुर्की अमीरों ने रज़िया के खिलाफ षड्यंत्र रचकर उन्हें बंदी बना लिया और भटिंडा भेज दिया, तब अल्तूनिया ने रज़िया को अपने पास रखा।बाद में, रज़िया ने अपनी रिहाई और पुनः सत्ता प्राप्त करने के लिए अल्तूनिया से विवाह किया। इस विवाह के पीछे रणनीतिक कारण थे, क्योंकि अल्तूनिया भी दिल्ली के तुर्की सरदारों से नाराज था और वह रज़िया के साथ मिलकर दिल्ली पर पुनः अधिकार करना चाहता था।
रज़िया सुल्तान की मृत्यु कैसे हुई और विरासत
7 अक्टूबर 1240 को, रज़िया और उनके पति अल्तूनिया को एक युद्ध में पराजित कर दिया गया। पराजय के बाद उन्हें पकड़ लिया गया और बेरहमी से हत्या कर दी गई। उनकी मृत्यु के बाद, उनका नाम इतिहास में अमर हो गया।
रजिया सुल्तान का कब्र कहां है
रज़िया की कब्र आज भी दिल्ली में स्थित है, जो उनके अद्वितीय साहस और संघर्ष की गवाही देती है। उनके जीवन पर कई फिल्में, टीवी धारावाहिक और साहित्यिक कृतियाँ बनी हैं। Click on the link गूगल ब्लाग पर अपनी पसंदीदा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
रजिया सुल्तान के इतिहास से सीख
रज़िया सुल्तान एक महान योद्धा और न्यायप्रिय शासक थीं। उन्होंने यह साबित किया कि महिलाओं को कमजोर समझने की धारणा गलत है। उन्होंने अपने अद्वितीय नेतृत्व और अदम्य साहस से समाज की रूढ़ियों को चुनौती दी और एक मिसाल कायम की। उनका जीवन संघर्ष, साहस और शौर्य की एक प्रेरणादायक कहानी के रूप में ऐतिहासिक इतिहास है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उदाहरण बनी रहेगी।

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