प्रयागराज, उत्तर प्रदेश का वह पावन तीर्थस्थल जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का त्रिवेणी संगम होता है, यहां स्थित Lalita Devi Shaktipeeth भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक अनमोल रत्न है। यह 51 शक्तिपीठों में से 22वां पीठ माना जाता है, जहां माता सती के दाहिने हाथ की उंगली गिरी थी, और यहीं से जन्म हुआ भैरवेश्वर भैरव के रूप में रक्षक की। 22वां ललिता देवी से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी यहां पढे़ं देवी कामाख्या की मार्गदर्शन चित्रगुप्त जी के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म 51 शक्तिपीठ लेखनी में।
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प्राचीन काल से यह स्थान इलाहाबाद के नाम से विख्यात रहा है, लेकिन इसका वास्तविक स्वरूप त्रिवेणी संगम की पवित्रता में छिपा है, जहां नदियों का मिलन न केवल भौतिक जल की धारा है, बल्कि आत्मा की गहन यात्रा का प्रतीक भी। ललिता देवी, जो त्रिपुरसुंदरी का स्वरूप हैं, यहां शक्तिपीठ मे ललिता नाम से पूजी जाती हैं – यह ऐसी देवी जो सौंदर्य, शक्ति और गुप्त तांत्रिक ज्ञान की प्रतीक हैं।
यह पीठ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक जीवंत ऊर्जा केंद्र है, यहां भक्त न केवल दर्शन के लिए आते हैं, बल्कि अपनी कुंडलिनी को जागृत करने, आंतरिक बाधाओं को दूर करने और दिव्य दर्शन प्राप्त करने के लिए भी आते हैं। गुप्त परंपराओं में इसे ‘ललिता पीठ’ कहा जाता है, जहां श्रीचक्र की साधना से साधक ब्रह्मांड की रचना, स्थिति और संहार की गहन रहस्यों को अनुभव करते हैं। प्रयागराज का यह स्थान, जो कुंभ मेला के दौरान विश्व पटल पर चमकता है, वास्तव में शक्ति की उस ज्योति का स्रोत है जो अज्ञान के अंधकार को चीर देती है।
यहां की वायु में ही वह कंपन है जो मंत्रों को जीवंत बनाता है, और संगम के जल में वह शक्ति जो पापों को धो देती है। ललिता देवी का मंदिर, जो अक्षयवट के निकट स्थित है, प्राचीन काल से तांत्रिक साधकों का आश्रम रहा है, यहां गुरु-शिष्य परंपरा में गुप्त विद्या का आदान-प्रदान होता आया है। यह पीठ न केवल हिंदू धर्म की शाक्त परंपरा का केंद्र है, बल्कि वेदांत, तंत्र और योग के संगम का प्रतीक भी, जहां भक्त को सिखाया जाता है कि शक्ति बाहरी नहीं, बल्कि अंतर्मन की वह ज्योति है जो सृष्टि की आधारशिला है।
आज के आधुनिक युग में भी, जब लोग भौतिक सुखों की दौड़ में लगे हैं, ललिता देवी शक्तिपीठ एक ऐसा द्वार खोलता है जो आध्यात्मिक समृद्धि की ओर ले जाता है, और यही कारण है कि यह स्थान अमित श्रीवास्तव जैसे आध्यात्मिक खोजियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाता है। यहां आकर भक्त न केवल माता के दर्शन पाते हैं, बल्कि अपनी आत्मा की गहन यात्रा पर निकल पड़ते हैं, यहां हर कदम पर गुप्त रहस्यों का उद्घाटन होता है।

Lalita Devi Shaktipeeth story – ललिता देवी शक्तिपीठ की कहानी
ललिता देवी शक्तिपीठ की कथा का मूल स्रोत देवी भागवत पुराण और मार्कंडेय पुराण जैसे ग्रंथों में मिलता है, जहां माता सती की अमर कथा वर्णित है। दक्ष यज्ञ के दौरान अपमानित होकर सती ने योगाग्नि से अपने शरीर का दाह-संस्कार किया, और क्रुद्ध शिव ने उनके शरीर को तांडव नृत्य में उड़ा लिया। विष्णु के सुदर्शन चक्र से शरीर के अंग कटकर 51 स्थानों पर गिरे, और प्रत्येक स्थान शक्तिपीठ बन गया।
प्रयागराज में सती की दाहिने हाथ की उंगली गिरी, जो कर्म और सृजन का प्रतीक है – उंगली जो बिना बोले संकेत देती है, वैसे ही ललिता देवी बिना शब्दों के भक्तों के मन की इच्छाओं को पूर्ण करती हैं। इस घटना के बाद शिव ने भैरव रूप धारण किया, और यहां भैरवेश्वर के रूप में स्थापित हुए, जो पीठ के रक्षक बने। गुप्त कथाओं में कहा जाता है कि यह उंगली गिरते ही संगम के जल में विलीन हो गई, लेकिन उसकी शक्ति मंदिर की भूमि में प्रतिष्ठित हो गई, जिससे यह स्थान ‘अलोप’ या रहस्यमयी हो गया।
अलोपी देवी मंदिर के रूप में भी जाना जाने वाला यह पीठ, वास्तव में ललिता देवी का ही स्वरूप है, जहां मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है। प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों जैसे तंत्रराज तंत्र में वर्णित है कि यह पीठ श्रीविद्या परंपरा का मूल केंद्र है, जहां ललिता त्रिपुरसुंदरी की साधना से साधक ‘त्रिपुर’ – तीनों लोकों, तीन गुणों और तीन अवस्थाओं को पार कर लेते हैं।
कथा के अनुसार, जब सती का अंग गिरा, तो भूमि कांप उठी, और नदियां उफान पर आ गईं, लेकिन ललिता देवी के उद्घोष से शांति स्थापित हुई। यह घटना न केवल दुख की कथा है, बल्कि शक्ति के पुनरुत्थान की भी – जहां मृत्यु से जीवन का जन्म होता है। भक्तों के बीच प्रचलित एक गुप्त कथा यह है कि रात्रि के समय, जब मंदिर निर्जन होता है, तो भैरवेश्वर और ललिता देवी के बीच संवाद होता है, जो केवल दीक्षित साधकों को सुनाई देता है, और यह संवाद कुंडलिनी जागरण के मंत्रों से भरा होता है।
प्रयागराज के स्थानीय लोकगीतों में इसे ‘हाथ की उंगली का चमत्कार’ कहा जाता है, जहां कहा जाता है कि जो भक्त यहां सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसके हाथों में सफलता की रेखाएं उभर आती हैं। यह कथा न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि प्रतीकात्मक भी – दाहिना हाथ जो सकारात्मक कर्म करता है, वैसे ही यह पीठ सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है।
आधुनिक शोधकर्ताओं के अनुसार, यह स्थान पुरातात्विक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, जहां खुदाई में प्राचीन यज्ञकुंड और तांत्रिक चिन्ह मिले हैं, जो दर्शाते हैं कि वैदिक काल से यहां शक्ति पूजा चली आ रही है। ललिता देवी की कथा हमें सिखाती है कि दुख के बाद भी शक्ति का उदय होता है, और प्रयागराज का यह संगम उसी उदय का प्रमाण है।
Lalita Devi Shaktipeeth ललिता देवी शक्तिपीठ वास्तुकला
मंदिर की वास्तुकला और संरचना ललिता देवी शक्तिपीठ को एक जीवंत मंडल की तरह बनाती है, जहां हर कोना गुप्त ऊर्जा से ओतप्रोत है। मुख्य मंदिर नागर शैली में निर्मित है, जिसकी ऊंचाई लगभग 103 फीट है, और प्रवेश द्वार 41 फीट ऊंचा, जो भक्तों को स्वागत करने के लिए हमेशा खुला रहता है। गर्भगृह में ललिता देवी की स्वयंभू मूर्ति स्थापित है, जो काले पत्थर से बनी है, और उनकी चार भुजाएं हैं – एक में कमल, दूसरी में त्रिशूल, तीसरी में अभय मुद्रा, और चौथी में वरद मुद्रा।
मूर्ति के चारों ओर सोने की जरी वाली वस्त्र और रत्न जड़े आभूषण सजे रहते हैं, जो नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से सजाए जाते हैं। मंदिर परिसर में भैरवेश्वर का अलग मंदिर है, जहां शिवलिंग स्वयंभू है, और उसके ऊपर भैरव की मूर्ति विराजमान है। गुप्त तांत्रिक परंपरा के अनुसार, गर्भगृह के नीचे एक गुप्त कक्ष है, जहां श्रीचक्र यंत्र स्थापित है, जो केवल गुरुओं को दिखाया जाता है।
यह यंत्र 9 अवरणों वाला है, जिसमें 43 त्रिभुज हैं, और इसका बिंदु केंद्र ललिता देवी की कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है। मंदिर के चारों ओर अक्षयवट का वृक्ष है, जो अमरता का प्रतीक है, और इसके नीचे साधक ध्यान करते हैं। संगम के निकट होने से मंदिर की वायु में नदी की पवित्रता घुली रहती है, जो पूजा के दौरान मंत्रों को और प्रभावशाली बनाती है। मंदिर का निर्माण 1987 में पुनर्निर्मित हुआ, लेकिन इसका मूल स्वरूप प्राचीन है, जहां दीवारों पर तांत्रिक मंडल उकेरे गए हैं।
रात्रि में मंदिर की दीपमालाएं जलती हैं, जो श्रीचक्र के प्रकाश को प्रतिबिंबित करती हैं। भक्तों के लिए अलग-अलग मंडप हैं – एक स्नान के लिए, एक पूजा के लिए, और एक ध्यान के लिए। गुप्त जानकारी के अनुसार, मंदिर के पूर्वी कोने में एक गुप्त कुंड है, जहां केवल दीक्षित साधक स्नान करते हैं, और यह कुंड कुंडलिनी शुद्धिकरण के लिए जाना जाता है। मंदिर का परिसर 5 एकड़ में फैला है, जहां बगीचे में विभिन्न जड़ी-बूटियां लगी हैं, जो तांत्रिक औषधियों के लिए उपयोग होती हैं।
यह वास्तुकला न केवल सौंदर्यपूर्ण है, बल्कि ऊर्जा विज्ञान पर आधारित है, जहां हर दिशा पंच महाभूतों से जुड़ी है – पूर्व अग्नि, दक्षिण जल, पश्चिम वायु, उत्तर पृथ्वी, और केंद्र आकाश। ललिता देवी का मंदिर प्रयागराज को एक तांत्रिक राजधानी बनाता है, जहां हर पत्थर में शक्ति का संगीत बजता है।

Lalita Devi Shaktipeeth रीति-रिवाज
ललिता देवी शक्तिपीठ में पूजा और रीति-रिवाज इतने विविध और गहन हैं कि वे भक्त को सांसारिक से आध्यात्मिक की ओर ले जाते हैं। दैनिक पूजा प्रातःकाल 5 बजे से शुरू होती है, जब पुजारी माता का अभिषेक करते हैं – दूध, दही, घी, शहद और जल से। इसके बाद षोडशोपचार पूजा होती है, जिसमें 16 प्रकार के उपहार चढ़ाए जाते हैं, जैसे फूल, चंदन, अगरबत्ती और नैवेद्य। मध्याह्न में भैरव पूजा होती है, जहां काला तिल और सरसों का तेल चढ़ाया जाता है। संध्या आरती के दौरान घंटियां बजती हैं, और ‘जय ललिता माता’ का जयकारा लगता है।
नवरात्रि के दौरान मंदिर में विशेष सजावट होती है, जहां माता के नौ रूपों को अलग-अलग सजाया जाता है – प्रत्येक दिन एक नया वस्त्र और आभूषण। कुम्भ मेले के समय लाखों भक्त यहां आते हैं, और संगम स्नान के बाद दर्शन का विशेष महत्व है। गुप्त तांत्रिक रीति के अनुसार, अमावस्या की रात्रि में ‘ललिता होम’ किया जाता है, जहां अग्नि कुंड में घी और जड़ी-बूटियां अर्पित की जाती हैं, और मंत्र जप से कुंडलिनी जागरण होता है।
ललिता सहस्रनाम का पाठ यहां विशेष फलदायी माना जाता है – कहा जाता है कि एक बार पाठ से ही पाप नष्ट हो जाते हैं, और नियमित पाठ से मोक्ष प्राप्ति होती है। भक्तों को सलाह दी जाती है कि पूजा के दौरान लाल चंदन का तिलक लगाएं, जो शक्ति को आकर्षित करता है। वार्षिक उत्सवों में ललिता पंचमी पर व्रत रखा जाता है, जहां केवल फलाहार किया जाता है, और संध्या में माता को खीर चढ़ाई जाती है। गुप्त साधना में ‘श्रीविद्या दीक्षा’ अनिवार्य है।
- ललिता त्रिपुरसुंदरी (ललिता देवी) को जागृत करने के लिए पंचदशी मंत्र (श्रीविद्या साधना का परम गुप्त और प्रभावी मंत्र) अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह मंत्र 15 अक्षरों का होता है और इसे श्रीविद्या पंचदशी या श्रीविद्या महामंत्र भी कहा जाता है। यह मंत्र तीन खण्डों (कूट) में विभाजित है —
- 1. वाग्भव कूट (क्लिष्ट) – ज्ञान और वाणी का प्रतीक
- 2. कामराज कूट (मध्य) – काम (सृजन शक्ति) और इच्छा का प्रतीक
- 3. शक्ति कूट (शक्ति) – शक्ति और पूर्णता का प्रतीक
अर्थ और महत्त्व—
यह मंत्र ललिता त्रिपुरसुंदरी के पूर्ण जागरण और श्रीचक्र की साधना में प्रयुक्त होता है।
यह साधक की इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति को जागृत करता है।
इसके जाप से देवी ललिता की कृपा प्राप्त होती है और साधक में आध्यात्मिक उन्नति, सौंदर्य, तेज, और दिव्य आकर्षण का संचार होता है।
विशेष निर्देश—इस मंत्र का जप गुरु से दीक्षा प्राप्त कर ही करना चाहिए, क्योंकि यह अत्यंत गूढ़ और तांत्रिक शक्ति से परिपूर्ण है। सामान्य साधना में देवी का ध्यान करते हुए “ॐ श्रीं ह्रीं ललिताम्बायै नमः” मंत्र भी लिया जाता है। पंचदशी मंत्र को लाल चंदन की माला से, प्रातः या रात्रि में, शुद्ध आसन पर बैठकर करना श्रेष्ठ होता है।
जहां गुरु शिष्य को पंचदशी मंत्र सिखाते हैं जो इस प्रकार है– ‘क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं’ – यह ललिता देवी को जागृत करता है। इस मंत्र का जप 108 बार करने से साधक को दर्शन होते हैं। मंदिर में एक गुप्त यंत्र कक्ष है, जहां केवल साधक श्रीचक्र पर पूजा करते हैं, और वहां की ऊर्जा इतनी प्रबल है कि बिना तैयारी के प्रवेश वर्जित है।
पूजा के बाद प्रसाद के रूप में जल और चंदन वितरित होता है, जो घर ले जाकर रखने से समृद्धि आती है। ये रीति-रिवाज न केवल बाहरी हैं, बल्कि आंतरिक शुद्धि के साधन भी, जो भक्त को शक्ति के साथ एकाकार कर देते हैं। ललिता देवी की पूजा यहां एक जीवन दर्शन है – जहां हर अर्पण आत्म-समर्पण है।

ललिता देवी तंत्र-मंत्र साधना
गुप्त से गुप्त जानकारी के संदर्भ में ललिता देवी शक्तिपीठ तांत्रिक जगत का एक रहस्यमयी खजाना है, जहां श्रीविद्या परंपरा के गहन रहस्य छिपे हैं। प्राचीन तंत्र ग्रंथों जैसे ललितोपाख्यान में वर्णित है कि ललिता देवी चिदाग्नि कुंड से प्रकट हुईं, और उनका रथ चक्रराज रथ था, जिसमें 9 पृष्ठभूमि और 4 यज्ञ हैं। यहां की साधना कुंडलिनी जागरण पर आधारित है – मू्लाधार से सहस्रार तक शक्ति की यात्रा, जहां प्रत्येक चक्र पर ललिता के नाम जपे जाते हैं।
गुप्त विद्या के अनुसार, पीठ के नीचे एक भूमिगत गुफा है, जहां ‘बिंदु पीठ’ स्थित है, जो श्रीचक्र का केंद्र है, और वहां ध्यान करने से साधक ‘समरस’ अवस्था प्राप्त करता है – शिव-शक्ति का मिलन। ललिता त्रिशती का पाठ यहां विशेष है – 300 नामों का यह स्तोत्र, जो अगस्त्य ऋषि को हयग्रीव ने सिखाया, धन, संतान और मोक्ष प्रदान करता है। एक गुप्त मंत्र है – ‘ऐं ह्रीं श्रीं ललितायै नमः’ – जिसका जप रात्रि में 1000 बार करने से बाधाएं नष्ट हो जाती हैं।
तांत्रिक साधना में ‘पंच प्राण’ का महत्व है – प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान – जो ललिता देवी के पांच तत्व हैं, और इन्हें जागृत करने से साधक को ‘त्रिपुर भेदन’ का ज्ञान होता है। प्रयागराज के स्थानीय तांत्रिकों के बीच प्रचलित है कि संगम के जल में डुबकी लगाने के बाद मंदिर में ‘कामकल’ ध्यान करें, तो कामनाएं पूर्ण होती हैं।
एक और गुप्त रहस्य है ‘ललिता पंचमी व्रत’ का आंतरिक रूप – जहां साधक 5 दिनों तक मौन रहते हैं, और प्रत्येक रात्रि श्रीचक्र पर होम करते हैं, जिससे ‘अनंत सम्पदा’ प्राप्त होती है। ब्रह्मांड पुराण में कहा गया है कि ललिता देवी के दर्शन से ‘महाविद्या’ का ज्ञान होता है, और यहां 10 महाविद्याओं के बीज मंत्र जपे जाते हैं। साधकों को चेतावनी दी जाती है कि बिना गुरु दीक्षा के गुप्त साधना न करें, वरना ऊर्जा असंतुलित हो सकती है।
एक प्राचीन कथा के अनुसार, यहां एक साधक ने ललिता त्रिशती जप से ‘दिव्य दर्शन’ प्राप्त किया, और उसे ब्रह्मांड की रचना का रहस्य पता चला – कि सब कुछ शक्ति का खेल है। ये गुप्त जानकारियां केवल दीक्षितों के लिए हैं, लेकिन इन्हें जानने से जीवन परिवर्तनकारी हो जाता है। ललिता देवी शक्तिपीठ गुप्त ज्ञान का ऐसा द्वार है, जहां रहस्य उद्घाटित होते हैं, और साधक अमर हो जाते हैं।
ललिता देवी शक्तिपीठ का आध्यात्मिक महत्व इतना विस्तृत है कि यह भक्त के जीवन को पूर्णतः बदल देता है। यहां दर्शन से न केवल शारीरिक रोग नष्ट होते हैं, जैसे ज्वर और नेत्र दोष, बल्कि मानसिक बाधाएं भी दूर होती हैं। गुप्त परंपरा में कहा जाता है कि पीठ की शक्ति ‘कर्म फल’ को शुद्ध करती है, और भक्त को नई दिशा देती है। कुंभ या संगम स्नान के बाद दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है, क्योंकि संगम और शक्तिपीठ का संयोग ‘त्रिवेणी शक्ति’ पैदा करता है।
साधकों के अनुभव बताते हैं कि यहां ध्यान में ललिता देवी के स्वरूप का दर्शन होता है – एक 16 वर्षीय कन्या के रूप में, जो कमल पर विराजमान हैं। आध्यात्मिक लाभों में संतान प्राप्ति, धन वृद्धि और शत्रु नाश प्रमुख हैं। ललिता सहस्रनाम का नियमित पाठ करने वाले भक्तों को ‘सिद्धि’ प्राप्त होती है – जैसे वाक सिद्धि और मनोकामना पूर्ति। गुप्त दृष्टि से, यह पीठ ‘श्रीकुल’ परंपरा का केंद्र है, जहां कालीकुल से अलग, सौम्य शक्ति की साधना होती है। भक्तों के बीच प्रचलित है कि यहां प्रार्थना करने से ‘पंचकोश’ शुद्ध होते हैं – अन्नमय से आनंदमय तक।
आधुनिक संदर्भ में, योग और ध्यान के शोधकर्ता यहां आकर ऊर्जा क्षेत्र का अध्ययन करते हैं, और पाते हैं कि मंदिर का वातावरण अल्फा तरंगें उत्पन्न करता है, जो ध्यान को गहरा बनाता है। एक भक्त की कथा है कि वह यहां आया तो उसे व्यापार में हानि हो रही थी, लेकिन ललिता मंत्र जप से समृद्धि प्राप्त हुई। यह पीठ सिखाता है कि शक्ति बाहरी नहीं, आंतरिक है – और जागरण से जीवन सार्थक होता है। प्रयागराज का यह स्थान आध्यात्मिक यात्रा का प्रारंभ बिंदु है, जहां भक्त अपनी आत्मा से मिलते हैं।
यात्रा के दृष्टिकोण से ललिता देवी शक्तिपीठ पहुंचना सरल है। प्रयागराज रेल, सड़क और हवाई मार्ग से जुड़ा है – लखनऊ से 200 किमी, वाराणसी से 120 किमी। मंदिर संगम से 5 किमी दूर है, और ऑटो या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। सर्वोत्तम समय अक्टूबर से मार्च है, जब मौसम सुहावना रहता है। भक्तों को सलाह है कि संगम स्नान करें, फिर दर्शन। मंदिर में प्रवेश निःशुल्क है, लेकिन दान स्वेच्छा से। आसपास अक्षयवट और अलोपी देवी के दर्शन भी करें। आवास के लिए धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। यात्रा के दौरान ललिता मंत्र जपें, तो यात्रा सिद्ध हो जाती है। यह पीठ न केवल तीर्थ है, बल्कि जीवन का पाठशाला भी है।

Conclusion:
ललिता देवी शक्तिपीठ प्रयागराज का वह दिव्य स्थल है जहां शक्ति की गुप्त ज्योति हर भक्त को रोशन करती है। यहां आकर व्यक्ति न केवल दर्शन पाता है, बल्कि स्वयं को पाता है। अमित श्रीवास्तव जैसे खोजियों के लिए यह प्रेरणा का स्रोत है – जहां गुप्त ज्ञान जीवन को अमर बनाता है। जय ललिता माता! पढ़ते रहिए हमारी 51 शक्तिपीठ लेखनी सर्वशक्तिशाली देवी कामाख्या की मार्गदर्शन में amitsrivastav.in पर।
Disclaimer:
यह 51 शक्तिपीठ लेखन सामग्री केवल जनकल्याण हेतू सांस्कृतिक, धार्मिक और शैक्षणिक दृष्टिकोण से है, तंत्र-मंत्र साधना कल्याणकारी होता है यह किसी भी परिस्थिति में किसी भी प्रकार से यौन क्रिया को प्रोत्साहित नही करता। यौन क्रिया प्राकृतिक रूप से शारिरिक संतुलन बनाए रखने के लिए है जो समय-समय पर सुयोग्य साथी के साथ सम्पन्न होना स्वाभाविक है।

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