Life Story: जीवन की कहानी 1 Wonderful रंगीन किताब

Amit Srivastav

कोरोना के साए में पनपा प्रेम: एक अनकही सपना और रोहित की दास्तान Love Life

हर बार जब ये जीवन की कहानी “Life Story” पढ़ता हूँ, ये दिल को छू लेती है, जैसे कोई पुरानी डायरी हो, जिसके हर पन्ने पर जिंदगी की गहरी सीखें लिखी हों, और हर बार पढ़ने पर एक नया रंग, नया स्वाद मिलता है। ये सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसा आलम है, जो हमें समय की रेत पर चलने की सैर कराता है। ये हमें याद दिलाता है कि जिंदगी के छोटे-छोटे पल कितने अनमोल हैं, और हम उन्हें कितनी आसानी से गँवा देते हैं।

आइए, इस जीवन की कहानी को जीवंत करते हुए भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी से पढ़ने के लिए अपना अमूल्य समय दें, इसे पढ़ें और जीवन को एक खुशहाल जीवन बनाएँ—नए रंगों, जीवंत किरदारों, मसालेदार मोड़ों, और अनोखे तथ्यों के साथ। इस बार, यह कहानी होगी दद्दू और माया की, जिनकी जिंदगी दिल्ली की चमक, मेरठ की सादगी, और समय की रफ्तार में बुनती, उलझती, और फिर से सुलझती है।

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Life Story 1 Wonderful Coloring Book

मेरठ के एक पुराने मोहल्ले में, जहाँ सुबह की चाय की चुस्कियों के साथ पड़ोसियों की गपशप गूँजती थी, और गलियों में बच्चों की हँसी-ठिठोली माहौल को रंगीन बनाती थी, दद्दू का बचपन बीता। एक मध्यमवर्गीय परिवार का बेटा, जिसके पिता एक स्कूल में क्लर्क थे और माँ घर की धुरी। दद्दू का घर छोटा-सा था, लेकिन उसकी हँसी और शरारतें पूरे मोहल्ले में मशहूर थीं।

स्कूल में वो औसत छात्र था, लेकिन दोस्तों के बीच उसकी कहानियाँ और मजाक उसे सबसे खास बनाते। गर्मियों की छुट्टियों में वो पतंग उड़ाता, साइकिल पर मोहल्ले की सैर करता, और रात को छत पर लेटकर तारों को देखते हुए बड़े-बड़े सपने बुनता। “मैं दिल्ली में बड़ा आदमी बनूँगा, माँ! मेरी गाड़ी होगी, बड़ा घर होगा,” वो अपनी माँ से कहता। माँ मुस्कुराकर सिर पर हाथ फेर देतीं और कहतीं, “बेटा, सपने बड़े रख, लेकिन मेहनत भी कर।” 


दद्दू की आँखों में दिल्ली की चमक थी। वो अपने दोस्तों को बताता, “एक दिन मैं दिल्ली में मॉल में घूमूँगा, मर्सिडीज़ में बैठूँगा, और दुनिया को दिखाऊँगा कि दद्दू ने क्या किया!” दोस्त हँसते, लेकिन दद्दू का दिल सपनों से भरा था। कॉलेज की पढ़ाई के लिए वो दिल्ली आया। दिल्ली की ऊँची इमारतें, मॉल की रौनक, मेट्रो की रफ्तार, और सड़कों पर चहल-पहल—सब कुछ उसे सपनों की दुनिया जैसा लगता।

कॉलेज के दिन दोस्तों की हँसी, कैंटीन की चाय, देर रात तक गपशप, और सस्ती बिरयानी की दावतों में बीते। 20 साल की उम्र तक उसने जिंदगी को हवा की तरह उड़ते देखा। भविष्य के सुनहरे सपने—एक अच्छी नौकरी, अपना घर, और एक चमचमाती गाड़ी—उसके दिल में बस गए। लेकिन जैसे ही कॉलेज खत्म हुआ, असल जिंदगी ने दरवाजा खटखटाया। 


दद्दू ने सोचा, “अब तो नौकरी पक्की, जिंदगी सेट!” मगर दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों ने उसे हकीकत का आइना दिखाया। सुबह मेट्रो में धक्के खाते हुए, पसीने से तर-बतर इंटरव्यू के लिए पहुँचना, और फिर रिजेक्शन का मेल—ये उसका रोज का रूटीन बन गया। कभी सैलरी कम, कभी ऑफिस दूर, कभी बॉस की डाँट। “ये काम मेरे लायक नहीं,” “मुझे तो बड़ा करना है,”—ऐसा सोचते-सोचते उसने दो-तीन नौकरियाँ छोड़ दीं। माँ-बाप का दबाव बढ़ने लगा, “कब तक यूँ भटकेगा, बेटा? कुछ तो स्थिरता ला।” 


एक दिन, दोस्त की सलाह पर दद्दू ने मेरठ में एक छोटी-सी मार्केटिंग कंपनी में इंटरव्यू दिया। ऑफिस छोटा-सा था, मगर माहौल दोस्ताना। सैलरी ज्यादा नहीं थी—28,500 रुपये—लेकिन दद्दू को लगा, “यहाँ से शुरुआत तो करूँ।” पहली तनख्वाह का चेक हाथ में आया तो उसकी आँखें चमक उठीं। उसने माँ के लिए एक साड़ी खरीदी, पिता के लिए नई चप्पलें, और बाकी पैसे बैंक में जमा कर दिए। “माँ, अब तुम देखना, मैं तुम्हें दुनिया दिखाऊँगा!” उसने उत्साह से कहा। माँ ने हँसकर सिर पर हाथ फेरा और बोलीं, “पहले खाते में कुछ जमा तो कर ले, बेटा।” 


दद्दू ने बैंक में खाता खोला, और शुरू हुआ शून्यों का खेल। हर महीने कुछ रुपये जमा होते, और उसे लगता, “बस, अब जिंदगी की गाड़ी पटरी पर है।” दो-तीन साल यूं ही निकल गए। सैलरी बढ़ी, खर्चे बढ़े, और बैंक में शून्य भी थोड़े और बढ़ गए। लेकिन दद्दू का दिल अब भी अधूरा था। उसे लगता, “क्या यही जिंदगी है? कुछ तो और होना चाहिए।” 


उम्र 25 की हो गई, और परिवार का दबाव शुरू— “अब शादी कर ले, बेटा।” माँ ने कहा, “हमने एक लड़की देखी है, मेरठ में ही रहती है। जाकर मिल लो।” दद्दू ने बेमन से हामी भरी। लेकिन जब वो माया से मिला, उसका दिल जैसे रुक गया। माया, मेरठ की एक स्कूल टीचर, जिसकी हँसी में सादगी थी और आँखों में अनगिनत सपने। उसकी आवाज़ में एक जादू था, जो बच्चों को कहानियाँ सुनाते वक्त और गहरा हो जाता।


दोनों की मुलाकात एक रिश्तेदार की शादी में हुई। माया बच्चों को कहानियाँ सुना रही थी, और अर्जुन उसे देखकर मुस्कुराता रहा। माया की सादगी और हँसी ने दद्दू का दिल चुरा लिया। उसने हिम्मत जुटाकर बात शुरू की, “आप बच्चों को कहानियाँ बहुत अच्छा सुनाती हैं।” माया ने हँसकर जवाब दिया, “बच्चे मेरी कहानियाँ नहीं, मेरी चॉकलेट सुनते हैं!” दद्दू हँस पड़ा, और बस, यहीं से उनकी कहानी शुरू हुई। 


पहली मुलाकात के बाद कॉफी की कुछ मुलाकातें हुईं। माया को किताबें पढ़ना, पुराने किशोर कुमार के गाने सुनना, और बच्चों को पढ़ाना पसंद था। दद्दू को उसका हर अंदाज़ भाता। एक दिन, मेरठ की एक छोटी-सी कॉफी शॉप में, दद्दू ने माया से कहा, “माया, तुम मेरी जिंदगी की वो कहानी हो, जो मैं हमेशा पढ़ना चाहता हूँ।” माया ने शरमाते हुए हामी भरी, और दोनों का प्यार परवान चढ़ा। 


जल्द ही, परिवार की रजामंदी से उनकी शादी हो गई। दिल्ली के एक छोटे-से किराए के फ्लैट में उनकी नई जिंदगी शुरू हुई। फ्लैट छोटा था, लेकिन उनके सपने बड़े। पहले दो साल जैसे सपनों का रंगीन मेला। माया के साथ दद्दू लाल किले की सैर करता, इंडिया गेट पर आइसक्रीम खाता, और देर रात तक कॉफी के प्याले लिए बातें करता। वो कनॉट प्लेस की एक पुरानी कॉफी शॉप में घंटों बैठते, जहाँ माया अपनी पसंदीदा किताब की लाइनें पढ़कर सुनाती, और दद्दू उसकी आँखों में खो जाता। 


माया की खिलखिलाहट और दद्दू की शरारतें—जिंदगी गुलाबी थी। वो एक-दूसरे के साथ दिल्ली की सड़कों पर हाथ में हाथ डालकर घूमते, भविष्य के रंग-बिरंगे सपने बुनते। “एक दिन हमारा अपना घर होगा,” दद्दू कहता। “और उसमें एक बड़ा-सा बगीचा, जहाँ मैं गुलाब उगाऊँगी,” माया जोड़ती। एक रात, दिल्ली की बारिश में भीगते हुए, दद्दू ने माया को गले लगाया और कहा, “तुम मेरे साथ हो, तो जिंदगी हर पल एक सपना है।” माया ने हँसकर जवाब दिया, “सपने तो ठीक हैं, मगर बारिश में छाता ले आया करो!”


एक शाम, माया ने मुस्कुराते हुए कहा, “दद्दू, अब हम तीन होने वाले हैं।” दद्दू की खुशी का ठिकाना न रहा। वो माया को गले लगाकर बोला, “अब तो जिंदगी पूरी हो गई!” उसने माया के लिए फूल लाए, और दोनों ने मिलकर बच्चे के लिए नाम सोचना शुरू किया। “अगर लड़का हुआ, तो देवेंद्र,” माया ने कहा। “और अगर लड़की, तो माधुरी,” दद्दू ने जोड़ा। आठ माह बाद, उनके घर में नन्हा देवेंद्र आया। उसकी छोटी-सी मुस्कान ने दोनों की दुनिया बदल दी। 


माया का सारा ध्यान देवेन्द्र पर—उसका दूध, नींद, और छोटी-छोटी हरकतें। दद्दू उसकी मुस्कान देखकर दिनभर की थकान भूल जाता। वो रात को देवेंद्र को गोद में लेकर गाना गाता, और माया हँसते हुए कहती, “दद्दू, तुम्हारा सुर सुनकर तो देवेंद्र रो देगा!” लेकिन जिंदगी का रंग धीरे-धीरे बदलने लगा। सपनों का वो गुलाबी रंग अब जिम्मेदारियों के भारी बोझ तले दबने लगा। 


दद्दू और माया ने एक छोटा-सा फ्लैट खरीद लिया, जिसकी EMI हर महीने सिरदर्द बनती। गाड़ी की किश्त, देवेंद्र की पढ़ाई की चिंता, और भविष्य की बचत—सब कुछ एक साथ। माया ने स्कूल में ज्यादा क्लास लेना शुरू किया, और दद्दू ने ऑफिस में ओवरटाइम। दिल्ली की ट्रैफिक में घंटों फँसने के बाद दद्दू थककर घर लौटता, और माया रसोई और देवेंद्र की देखभाल में डूबी रहती। 


कब माया का हाथ अर्जुन के हाथ से छूट गया, कब उनकी बातें सिर्फ “खाना बना?”, “बिल भरा?”, “देवेंद्र का होमवर्क हुआ?” तक सिमट गईं, दोनों को पता ही नहीं चला। पहले जो रातें बातों और हँसी में कटती थीं, अब वो टीवी की आवाज़ और मोबाइल की स्क्रीन में खोने लगीं। दिल्ली की भागदौड़ ने उनकी जिंदगी को मशीन बना दिया। एक रात, दद्दू ने माया से कहा, “याद है, वो बारिश में भीगने वाला दिन?” माया ने थके हुए स्वर में जवाब दिया, “हाँ, लेकिन अब बारिश में भीगने की उम्र कहाँ रही, दद्दू ?” 

कोरोना के साए में पनपा प्रेम: एक अनकही सपना और रोहित की दास्तान Love Life

Life Story – खालीपन की तलाश अधूरी जिंदगी का सवाल

 दद्दू 35 का हो गया। बैंक में शून्य बढ़ रहे थे, लेकिन दिल में एक खालीपन बढ़ता जा रहा था। उसे लगता, “घर है, गाड़ी है, पैसा है, फिर भी कुछ अधूरा है।” माया की चिड़चिड़ाहट बढ़ने लगी। छोटी-छोटी बातों पर बहस— “तुम्हें घर की कोई चिंता नहीं!” “तुम बस काम और देवेंद्र में डूबी रहती हो!” देवेंद्र बड़ा हो रहा था। उसकी दुनिया स्कूल, दोस्त, और गैजेट्स तक सिमट गई। वो अब माँ-बाप से कम, अपने दोस्तों से ज्यादा बात करता।


10वीं की परीक्षा आई और चली गई। दद्दू और माया 42 के हो गए। बैंक में शून्य और बढ़ गए, लेकिन दिल का खालीपन वही रहा। एक रात, दद्दू ने माया को पास बुलाया। “माया, आज फिर से पुराने दिन जी लें। चल, हाथ में हाथ डालकर कनॉट प्लेस चलते हैं। वहाँ वही पुरानी कॉफी शॉप में बैठकर बातें करेंगे।” माया ने हैरानी से देखा और बोली, “दद्दू, ये सब अब कहाँ होता है? देवेंद्र की ट्यूशन, स्कूल की मीटिंग, घर का काम—सब पड़ा है।” पल्लू कमर में खोंसकर वो रसोई में चली गई। दद्दू चुपचाप सोफे पर बैठ गया, और टीवी की आवाज़ में अपने विचारों को डुबो दिया। 


लेकिन उस रात, दद्दू ने पुरानी तस्वीरें निकालीं। वो तस्वीर, जिसमें माया और वो बारिश में भीग रहे थे। वो तस्वीर, जिसमें वो इंडिया गेट पर हँस रहे थे। उसने माया को बुलाया, “देखो, कितने खुश थे हम!” माया ने तस्वीरें देखीं, और उसकी आँखें नम हो गईं। “हाँ, दद्दू, लेकिन अब ये सब सपने जैसे लगते हैं।” 


45 की उम्र आई। दद्दू के बालों में सफेदी, आँखों पर चश्मा। माया के बाल भी रंग खोने लगे। दोनों का दिमाग अब छोटी-छोटी बातें भूलने लगा। देवेंद्र कॉलेज में था। उसकी अपनी दुनिया थी—दोस्त, पार्टियाँ, और करियर के सपने। दद्दू और माया को उसकी कामयाबी पर गर्व था, लेकिन मन में एक डर भी था— “क्या वो हमेशा हमारे साथ रहेगा?” 


कॉलेज खत्म हुआ, और देवेंद्र ने कहा, “पापा, मुझे अमेरिका में जॉब मिल गई।” दद्दू और माया को गर्व हुआ, लेकिन दिल में एक टीस भी उठी। “हमारा बेटा बड़ा हो गया,” माया ने कहा, लेकिन उसकी आँखें नम थीं। देवेंद्र विदेश चला गया, और घर में सन्नाटा पसर गया। बड़ा-सा घर अब बोझ लगने लगा। बैंक में शून्य इतने थे कि गिनती भूल जाएँ, लेकिन बाहर घूमना, हँसना, बातें करना—सब बंद। गोली-दवाइयों का समय तय हो गया। दोनों सोचते, “देवेंद्र आएगा, तब जिंदगी फिर रंगीन होगी।” 


55 की उम्र में दद्दू और माया अकेले रह गए। एक दिन देवेंद्र का फोन आया, “पापा, मैंने शादी कर ली। अब मैं यहीं सेटल हूँ। आपके पैसे किसी वृद्धाश्रम को दे दीजिए। आप भी वही…” दद्दू का दिल बैठ गया। उसने फोन रखा और सोफे पर बैठ गया। माया पूजा-पाठ कर रही थी। बाहर ठंडी हवा चल रही थी। दद्दू ने आवाज़ दी, “माया, आज फिर हाथ में हाथ डालकर बात करें?” माया ने मुस्कुराकर कहा, “बस, अभी आती हूँ।” दद्दू का चेहरा खिल उठा। आँखों में आँसू आए, और अचानक उसकी साँसें थम गईं।


माया आई, पास बैठी। “बोलो, दद्दू, क्या कह रहे थे?” लेकिन दद्दू चुप था। माया ने उसका ठंडा हाथ छुआ। वो शून्य हो गई। फिर धीरे से उठी, पूजा-घर गई, एक अगरबत्ती जलाई, और वापस आकर दद्दू का हाथ थाम लिया। “चलो, कहाँ घूमने जाना है? क्या बातें करनी हैं?” उसकी आँखों से आँसू बह निकले। दद्दू का सिर माया के कंधे पर गिर गया। बाहर ठंडी हवा अब भी चल रही थी। 


कुछ दिनों बाद माया ने दद्दू की पुरानी डायरी निकाली, जिसमें उसने शादी के बाद हर खास पल लिखा था। “माया की हँसी,” “बारिश में भीगना,” “इंडिया गेट की आइसक्रीम”—हर पल जैसे जिंदा हो उठा। माया ने डायरी को सीने से लगाया और बोली, “दद्दू, तुम चले गए, लेकिन तुम्हारी कहानियाँ मेरे साथ हैं।”

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Life Story – जीवन का सबक: आज को गले लगाओ

यह Life story सिर्फ़ दद्दू और माया की नहीं, हम सबकी है। हम शून्यों के पीछे भागते हैं, लेकिन असल जिंदगी तो छोटे-छोटे पलों में छिपी है। हार्वर्ड की 80 साल की लॉन्गिट्यूडिनल स्टडी ऑन हैप्पीनेस बताती है कि जिंदगी की खुशी पैसे या कामयाबी में नहीं, बल्कि रिश्तों, प्यार, और साथ बिताए पलों में है। साइकोलॉजी टुडे की एक स्टडी के अनुसार, जो लोग अपने पार्टनर के साथ नियमित रूप से समय बिताते हैं, उनकी मेंटल हेल्थ बेहतर रहती है, और वो लंबी उम्र तक खुश रहते हैं। न्यूरोसाइंस रिसर्च बताता है कि प्यार भरे रिश्ते हमारे दिमाग में ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन रिलीज करते हैं, जो तनाव कम करता है और खुशी बढ़ाता है।


एक और रोचक तथ्य: जापान में “इकिगाई” नामक एक हमारी पाठक है, जो कहती है कि जिंदगी का मकसद पैसों में नहीं, बल्कि उन चीजों में है जो आपको सुकून और खुशी देती हैं—जैसे परिवार, दोस्त, और छोटे-छोटे पल। दद्दू और माया की कहानी हमें यही सिखाती है। 


तो आज से शुरू करो। अपने पार्टनर का हाथ थामो, बच्चों के साथ हँसो, दोस्तों से मिलो। एक छोटी-सी कॉफी डेट, एक लंबी सैर, या बस साथ बैठकर पुरानी बातें—यही जिंदगी है। क्योंकि कल का भरोसा नहीं। जिंदगी एक रंगीन किताब है, हर पन्ना अनमोल है। इसे प्यार, हँसी, और यादों से भर दो।


लेखक अमित श्रीवास्तव का विचार —“जीवन अपना है, तो जीने का तरीका भी अपना रखो। आज से, अभी से, इसी पल से।”
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Intimacy in Relationships, Yakshini sadhna, Life Story

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