female vagina पर क्या है सनातन धर्म का वास्तविक दृष्टिकोण? सनातन धर्म में स्त्री को सृजन की शक्ति (शक्ति स्वरूपा) माना गया है। स्त्री योनि female vagina (गर्भधारण व जन्म देने की शक्ति) को केवल एक शारीरिक अंग के रूप में नहीं, बल्कि एक पवित्र और दिव्य ऊर्जा का केंद्र माना गया है। यही कारण है कि विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, तांत्रिक परंपराओं और मंदिरों में योनि की पूजा का विशेष स्थान है। जो भी पुरुष/स्त्री योनि कि मह्त्वा को समझ पूज्यनीय योनि का सबसे अधिक सम्मान करता है वह जगत-जननी स्वरुपा दैवीय शक्तियों से फलीभूत सुखमय जीवन व्यतीत कर मोंक्ष को प्राप्त हो जाता है।
Female vagina मे देवी-देवता का वास लेख में हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव 51 शक्तिपीठों में सर्वशक्तिशाली प्रथम योनि रूप मां कामाख्या देवी की कृपा से देवी-देवताओं के संदर्भ में स्त्री योनि के महत्व को विस्तृत रूप से बताने जा रहे हैं। अपने मनोभाव से स्त्री योनि से जुड़ी विकारों को दूर कर इस लेख को ध्यानपूर्वक अंत तक पढ़कर दैवीय उर्जा की शक्ति को समझने का प्रयास करें और स्त्री शरीर के सबसे पवित्र पूज्यनीय योनि के गूढ़ रहस्य को समझें। जो भी व्यक्ति योनि के गूढ़ रहस्यों को समझ पाने मे सक्षम हुआ है, उसके लिए स्त्री योनि सबसे ज्यादा पूज्यनीय समझ आ सकती है।
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क्या आपको पता हैं स्त्री योनि का धार्मिक महत्व क्या है?
नही? तो यहां जानिए सुस्पष्ट भाषा में गुप्त धार्मिक महत्व, यह जानकारी दुर्लभ है, क्योंकि? यह आपको किताबी ज्ञान में शायद न मिले। पिछले लेखनी में बताया था – शिव-पार्वती संवाद के अंतर्गत योनि का योगदान तांत्रिक और धार्मिक ग्रंथों के मंथन से योनि के 64 प्रकार। विवाह के लिए लग्न पत्रिका गुण मिलन मे एक चक्र योनि कूट चक्र होता है, जिसके मिलान से ज्ञात होता है वैवाहिक जीवन कितना सुखमय हो सकता है, वह चक्र हमारे ज्ञानवर्धक इस लेख से ही जूड़ा हुआ है जहां 14 योनि कि गणना कि जाती है।
सृष्टि में 64 का बहुत बड़ा योगदान है जैसे 64 योगिनी, 64 कला, 64 योनि आदि इन सब पर माँ कामाख्या देवी की कृपा से लेखनी प्रेषित कर चुका हूँ। आते हैं मुख्य शिर्षक की ओर।
देवी को शक्ति का स्रोत मानने की परंपरा
हिंदू धर्म में देवी को समस्त सृष्टि की मूल शक्ति माना जाता है। देवी दुर्गा, पार्वती, लक्ष्मी, काली और त्रिपुर सुंदरी जैसी सभी देवियों को शक्ति का ही रूप कहा गया है। शिवपुराण और देवी भागवत पुराण में यह वर्णित है कि ब्रह्मांड का जन्म शक्ति से हुआ है, और शक्ति के बिना शिव भी निष्क्रिय यानी शिव शव हैं। इस शक्ति को ही “मूल प्रकृति” कहा गया है, जो जीवन को उत्पन्न करने, पालन करने और संहार करने की क्षमता रखती है।
इस संदर्भ में, स्त्री योनि को सृजन की शक्ति का प्रवेश द्वार माना जाता है। यही कारण है कि कुछ विशेष मंदिरों और तांत्रिक अनुष्ठानों में इसे दिव्यता और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है।
शक्तिपीठों में योनि vagina की पूजा

शक्तिपीठ हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक हैं। ये वे स्थान हैं जहां माता सती के शरीर के विभिन्न अंग गिरे थे। इन स्थानों को अत्यंत पवित्र माना जाता है। सबसे प्रमुख शक्तिपीठ “कामाख्या देवी मंदिर” (असम) है, यहां देवी की योनि की पूजा की जाती है। धर्मग्रंथों के मुताबिक यहां माता सती की योनि गिरी थी, और तभी से इसे “महाशक्ति पीठ” योनिमुद्रा देवी के रूप में पूजा जाता है।
यहां हर वर्ष जून माह में अंबुवाची मेला लगता है, जो देवी के मासिक धर्म से जुड़ा हुआ होता है। इस उत्सव में यह सत्य है कि सप्तमी अष्टमी नौमी तिथि तीन दिन तक देवी रजस्वला (मासिक धर्म में) रहती हैं, और इस दौरान मंदिर के द्वार बंद रहते हैं। यहाँ तक कि पूरे असम राज्य में इन तीन दिनों किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नही होता जगह-जगह मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं घरों में भी पूजा-अर्चना नहीं कि जाती। इस दौरान कोई भी युवती पहली बार रजस्वला होती है तो उसे बहुत शुभ माना जाता है और मासिक धर्म पर उत्सव मनाया जाता है।
चौथे दिन दशमी तिथि को कामाख्या देवी शक्तिपीठ का दरवाजा खुलता है, यहां माँ के दर्शन हेतु भक्तों कि भारी भीड़ होती है। माँ के मासिक धर्म से भीगी सफेद वस्त्र लाल हो जाती है जो प्रसाद रुप में भक्तों को मां के कृपा से प्राप्त होता है। माता के मासिक धर्म से ही सृष्टि में सभी स्त्रीयों का मासिक चक्र जुड़ा हुआ है जो सृष्टि में सृजनात्मकता का प्रतीक है। इस तीन दिनों मे देश-विदेश के तांत्रिक अपनी तंत्र-मंत्र साधना यहां करते हैं। यहां किसी भी प्रकार की तंत्र-मंत्र साधना विद्या सहजता से प्राप्त हो जाती है।
श्री यंत्र और योनि का संबंध
श्री यंत्र हिंदू तांत्रिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। श्री यंत्र के केंद्र में जो बिंदु (Bindu) और त्रिकोणीय संरचना (Triangle) होती है, वह स्त्री योनि का प्रतीक मानी जाती है।यह त्रिकोण सृजन शक्ति, उर्वरता और ऊर्जा प्रवाह का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए श्री यंत्र की पूजा करने का अर्थ होता है संपूर्ण ब्रह्मांड की रचनात्मक शक्ति की पूजा करना। हमारे हिन्दू परंपराओं मे वो गुप्त रहस्य छिपे हुए हैं जो जानकर लोगों को हैरत हो सकती है। अगर गहन अध्ययन मंथन किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि सृष्टि में भोग-विलास से बढ़ कर न कोई भोग है न योनि पूजा से बढ़ कर कोई पूजा।
तांत्रिक परंपरा में योनि की भूमिका
जो भी व्यक्ति तांत्रिक विद्या का गहन अध्ययन मंथन करेगा, मां कामाख्या देवी को समर्पित होगा वह तंत्र साधना करे या ना करे योनि की भूमिका को अच्छी तरह समझ पाने मे समर्थ होगा। जो व्यक्ति मां कामाख्या से जुड़ा हुआ है उससे अधिक योनि का सम्मान अन्य व्यक्ति कर पाने मे उतना सक्षम नहीं होगा। यहां तक कि वैसे स्त्री पुरुष को योनि शब्द पढ़ने चर्चा करने मे भी बहुत रुचि भी नहीं मिलेगी अगर मां कामाख्या देवी की कृपा उस व्यक्ति पर न हो।
तंत्र में शिव-शक्ति का संतुलन
तंत्र शास्त्रों में योनि को “परम ऊर्जा स्रोत” माना गया है। शिव तंत्र में कहा गया है कि जब तक शिव शक्ति के साथ नहीं मिलते, तब तक वे “शव” के समान होते हैं। शक्ति को जागृत करने के लिए तांत्रिक साधक “योनि तंत्र” की साधना करते हैं।यह साधना श्री विद्या तंत्र के अंतर्गत आती है, जिसमें स्त्री को दिव्यता का मूर्त रूप माना जाता है। जो पुरुष अपनी पत्नी या किसी भी स्त्री कि योनि को सम्मान पूर्वक संतुष्टि प्रदान करता वह हर भयग्रस्त स्थिति में भी अभयदान पाता है। अभयारण्य देवी जगत-जननी स्वरुपा से ही प्राप्त होता है। भय से मुक्ति, सुरक्षा, और शांति पाने के लिए देवी स्वरूप स्त्री के शरण में जाना आवश्यक है,
क्योंकि देवी समान स्त्री ही जगत की सृजनकर्ता और पालनहार हैं। जो पुरुष योनि का नियमित प्रथम दर्शन स्पर्श प्रणाम कर दिन की शुरुआत करता उसे सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। यह अकाट्य सत्य है। तंत्र शास्त्र के अनुसार पुरुष/स्त्री शरीर का गुप्त अंग ही शिव शक्ति का प्रतीक और सृष्टि में सृजन का आधार है। इस अकाट्य सत्य को मिथ्या मानने वाले व्यक्ति कभी भी शिव और शक्ति की कृपा प्राप्ति से वंचित ही रहेगें। जिस मनुष्य के जीवन में शिव और शक्ति प्रसन्न होगें उन्हें किसी भी प्रकार का कोई शारीरिक या मानसिक कष्ट नहीं झेलना पड़ेगा।
योनि पूजा का आध्यात्मिक अर्थ
तांत्रिक साधना में योनि की पूजा काम, भोग और मोक्ष के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए ही की जाती है। यह सृजन और आनंद का स्रोत है, और इसे दिव्य चेतना (Divine Consciousness) के रूप में देखा जाता है। इस साधना में स्त्री को “देवी” माना जाता है, और उसका सम्मान सबसे महत्वपूर्ण होता है। उपरोक्त पठन-पाठन से योनि के प्रति आपके मन से बिकार नष्ट हो चुके होगें, अब बता रहे हैं स्त्री योनि के किस भाग में किस देवी-देवता का वास होता है, यह अत्यंत गुप्त गूढ़ ज्ञान दैवीय शक्तियों से उल्लेखित हैं, जो ज्ञान दुर्लभ किन्तु समझने वालों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक लेख पहले ही प्रकाशित किया था जिसका शिर्षक है –

Click on the link pregnancy: गर्भावस्था के नौ महीने की यात्रा, जानिये विज्ञान और ज्योतिष के अनोखे संगम से अद्भुत जानकारी
गर्भावस्था के नौ महीने की यात्रा मे नौ ग्रहों सहित देवी-देवताओं की भूमिका यहां आपको विस्तृत समझने के लिए मिलेगा जिसका लिंक यहां दे रहे हैं – ऊपर ब्लू लाइन शिर्षक पर क्लिक कर डायरेक्टर पढ़ने के लिए जा सकेंगे या गूगल पर सर्च कर amitsrivastav.in साइड पर पढ़ सकते हैं।
योनि का तांत्रिक ग्रंथों में उल्लेख
“कौल तंत्र” और “कामकलाविलास” ग्रंथों में योनि को शक्ति और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का द्वार कहा गया है। यहाँ तक कि भगवद गीता में भी श्रीकृष्ण कहते हैं कि “मैं ही सृष्टि का मूल स्रोत हूँ, और मैं स्त्री की उर्वरता और मातृत्व में प्रकट होता हूँ।”
अर्थात विष्णुजी स्त्री के नाभौ-वक्षसि भाग मे हैं, नाभि से गर्भ में शिशु को भोजन प्राप्त होता है जन्म के बाद वक्षस्थल से प्रथम आहार दुग्ध का पान मिलता है। इस प्रकार भगवान विष्णु का स्थान नाभि और वक्ष स्तन, गर्भाशय कि संरचना भाग ब्रम्हा जी का स्थान है। योनि के ऊपर जहां योनि कि रक्षा रूप में बाल होता है वह देवताओं के सेनापति कार्तिकेय जी हैं। जहां अन्य देवी देवताओं का भी वास है तो जानिये क्रमशः-
female vagina में देवी-देवताओं का स्थान और तांत्रिक महत्व संक्षिप्त विवरण
तंत्र शास्त्र में योनि को सृजन, ऊर्जा और चेतना का प्रतीक माना गया है। इसे केवल जैविक संरचना के रूप में नहीं, बल्कि दिव्य ऊर्जा का केंद्र समझा जाता है। विभिन्न महाविद्याओं और देवी-देवताओं का इसमें अलग-अलग स्थान और महत्व है। आइए जानते हैं, योनि में देवी-देवताओं की स्थितियाँ और उनका तांत्रिक अर्थ संक्षिप्त रूप से। विस्तृत जानकारी के नीचे दी गई सम्बंधित शिर्षक लिंक पर क्लिक किजिये या गूगल पर सर्च कर पढ़िए amitsrivastav.in साइड पर।
1. आद्याशक्ति – सम्पूर्ण ऊर्जा का स्रोत
आद्याशक्ति, जिन्हें देवी पार्वती या महाकाली के रूप में पूजा जाता है, योनि की संपूर्ण संरचना का प्रतीक मानी जाती हैं। तंत्र में इन्हें जीवन और चेतना का मूल स्रोत कहा गया है, जहाँ से सृष्टि की उत्पत्ति होती है।
2. त्रिपुर सुंदरी – सौंदर्य और रचनात्मक ऊर्जा का प्रतीक
त्रिपुर सुंदरी को योनि के अंदरूनी अंगों का प्रतिनिधित्व करने वाली देवी माना जाता है। ये प्रेम, सौंदर्य और आनंद की प्रतीक हैं। तांत्रिक साधना में इनकी आराधना से साधक की सृजनात्मक शक्ति जागृत होती है।
3. मातंगी – ज्ञान और चेतना की संरक्षक
मातंगी को तंत्र में योनि के गहन रहस्यों की संरक्षक देवी माना गया है। शिव-पार्वती संवाद में इन्हें उस स्थान का प्रतीक माना गया है, जहाँ आत्मज्ञान के बीज अंकुरित होते हैं और साधक गहरी साधना की ओर अग्रसर होता है।
4. कामाख्या देवी – सृजन की मौलिक शक्ति
कामाख्या देवी को योनि के मूल में स्थित माना जाता है। ये संपूर्ण जीवन चक्र और सृजन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं। असम स्थित कामाख्या मंदिर इसी तांत्रिक रहस्य का जीवंत प्रमाण माना जाता है।
5. भुवनेश्वरी – सृष्टि की रानी
भुवनेश्वरी देवी को योनि के सृजनात्मक ऊर्जा क्षेत्र में स्थित माना गया है। इनका स्थान योनि के केंद्र में बताया गया है, जहाँ से सभी प्रकार की चेतना उत्पन्न होती है और जीवन की विविध धाराएँ प्रवाहित होती हैं।
6. काली – विनाश और पुनर्जन्म की देवी
काली को योनि के उस स्थान पर माना जाता है, जहाँ विकराल शक्ति और आंतरिक चेतना का निवास है। ये नकारात्मकता का नाश कर उसे पुनः सृजन में बदलती हैं। शिव-पार्वती संवाद में काली को जीवन के अंतिम सत्य की ज्ञानदात्री बताया गया है।
7. शिव – ऊर्जा का आधार
शिव को योनि के आधार में स्थान दिया गया है। तंत्र में इसे मूल ऊर्जा का केंद्र कहा गया है, जहाँ से सृजन और विनाश की शक्ति उत्पन्न होती है। यह स्थान जीवन-मृत्यु के चक्र का प्रतीक माना गया है।
8. कुबेर – धन और समृद्धि के प्रतीक
योनि में कुबेर का स्थान धन और समृद्धि की ऊर्जा के रूप में माना जाता है। तंत्र में कुबेर की उपस्थिति भौतिक सुख-संपदा और संतुलन का प्रतीक है, जिससे साधक आध्यात्मिक और सांसारिक जीवन को समृद्ध बना सकता है।
9. गणेश – शुभता और विघ्नहर्ता
गणेश को योनि के प्रवेश द्वार पर स्थित माना गया है। वे हर शुभ कार्य की शुरुआत में पूजे जाते हैं और विघ्नहर्ता के रूप में साधना को सफल बनाने में सहायक होते हैं। तांत्रिक साधना में गणेश की पूजा साधक को बाधाओं से मुक्त करती है।
10. सप्तर्षि – आत्मज्ञान के स्रोत
तंत्र में योनि के भीतर सप्तर्षियों का निवास बताया गया है। ये ज्ञान और साधना के प्रतीक हैं। सप्तर्षियों की ऊर्जा साधक को आत्मज्ञान और सृष्टि के रहस्यों की ओर ले जाती है।
11. सूर्य और चंद्र – ऊर्जा और संतुलन के प्रतीक
योनि में सूर्य और चंद्र का विशेष स्थान माना गया है। सूर्य ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक है, जो चेतना को जागृत करता है। चंद्र शीतलता और शांति का प्रतीक है, जो मानसिक और भावनात्मक संतुलन बनाए रखता है।
योनि केवल जैविक संरचना नहीं, बल्कि एक दिव्य तांत्रिक केंद्र है। इसमें निवास करने वाली महाविद्याएँ और देवता साधना की विभिन्न अवस्थाओं को दर्शाते हैं। तंत्र शास्त्र में इसे ब्रह्मांड के प्रवेश द्वार के रूप में देखा गया है, जहाँ से संपूर्ण सृष्टि की ऊर्जा प्रवाहित होती है।

वैदिक ग्रंथों में स्त्री योनि का वर्णन
वैदिक ग्रंथों में स्त्री योनि को सृजन, शक्ति और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का केंद्र माना गया है। ऋग्वेद, यजुर्वेद और उपनिषदों में इसे प्रकृति (प्रकृति शक्ति) का आधार बताते हुए कहा गया है कि समस्त जीव जगत इसी से उत्पन्न होता है। देवी सूक्त में स्त्री को महाशक्ति और योनि को ब्रह्मांडीय सृजन का द्वार बताया गया है, जिससे समस्त प्राणियों की उत्पत्ति होती है। यजुर्वेद में मातृशक्ति को सर्वोच्च स्थान देते हुए कहा गया है कि “योषा प्रजननस्य मूलं” अर्थात स्त्री ही सृष्टि की जननी है।
शिवलिंग के आधार पर स्थित योनिपीठ भी पुरुष (शिव) और प्रकृति (शक्ति) के संतुलन का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि ब्रह्मांड में सृजन और ऊर्जा का प्रवाह स्त्री शक्ति के बिना संभव नहीं। वैदिक परंपरा में योनि केवल जैविक संरचना नहीं, बल्कि दिव्य ऊर्जा का स्रोत और सृष्टि संचालन की आधारशिला मानी गई है।
ऋग्वेद और यजुर्वेद में उल्लेख
ऋग्वेद और यजुर्वेद में प्रकृति (माता) को सृजनशक्ति के रूप में पूजा जाता है। इन ग्रंथों में कहा गया है कि स्त्री की योनि ब्रह्मांडीय ऊर्जा का द्वार है, क्योंकि वही जीवन को जन्म देती है।
अथर्ववेद में योनि का महत्व
अथर्ववेद में स्त्री योनि को “उर्वरता, समृद्धि और पोषण” का स्रोत कहा गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि “जिस घर में स्त्री का सम्मान होता है, जहाँ स्त्री संतुष्ट रहती है वहां देवी लक्ष्मी का वास होता है।”
female vagina सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश
समाज में आज तमाम भ्रांतियां फैलाई जा चुकी है जिस कारण इतनी पूज्यनीय पवित्र अंग पर खुलकर कोई चर्चा भी नहीं कर सकता न ही सही जानकारी का आदान प्रदान कर सकता आज गूगल ऐसा प्लेटफार्म बन चुका है जहां लोग अपनी जरूरत की जानकारी कि खोज करते हैं और समय अनुकूल अध्ययन कर कुछ जानकारी प्राप्त कर रहे हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि मनगढ़ंत बातें लोग अपने भ्यू इंकम बढ़ाने के चक्कर में तमाम शोषण साइट से शेयर करते हैं जिससे सत्य जानकारी पाठको तक पहुंच पाना भी सम्भव नहीं हो पा रही है।
इस दुर्लभ दैवीय शक्ति से प्रकाशित ज्ञान पर मंथन करें समझने का प्रयास करें और स्त्री योनि को पूज्यनीय मान ध्यान करें मां कामाख्या देवी की कृपा सदैव बनी रहेगी निरोग व सुखी जीवन जीने के साथ ही सही दृष्टिकोण से ध्यानपूर्वक आगे बढ़ने पर अपनी मोंक्ष यात्रा को सफल बनाने में खुद ही सक्षम सावित हो सकेगें।
स्त्री का सम्मान ही असली पूजा है
तंत्र और वेदों में कहा गया है कि यदि कोई स्त्री को मात्र भोग की वस्तु समझता है, तो वह मोक्ष का अधिकारी नहीं बन सकता। यह मान्यता भी है कि जो व्यक्ति स्त्री का अपमान करता है, वह देवी शक्ति को अप्रसन्न कर देता है। इसलिए, स्त्री को केवल भौतिक रूप से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और दिव्य रूप से देखने की शिक्षा हम अपने तमाम लेखनी के माध्यम से देने का प्रयास कर रहे हैं।
संतों और गुरुओं की शिक्षाएं
स्वामी विवेकानंद ने कहा था – “जहां नारी की पूजा होती है, वहीं देवता निवास करते हैं।”
आदि शंकराचार्य ने श्री विद्या साधना में कहा कि “स्त्री शक्ति ही सृष्टि की जननी है, और उसकी पूजा करने से ही परम ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।” अपने महान संतों की अमृत वाणी अकाट्य सत्य है आप भी समझें और स्त्री योनि को पूज्यनीय मान सम्मान करें।
योनि शक्ति का प्रतीक मे देवी देवताओं का स्थान लेखनी का संक्षिप्त विवरण
स्त्री योनि केवल एक शारीरिक अंग नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है। इसे सृजन, ऊर्जा और ब्रह्मांडीय शक्ति का स्रोत माना गया है। यही कारण है कि देवी की योनि की पूजा शक्ति पीठों, तांत्रिक साधना और वेदों में विशेष स्थान रखती है। स्त्री को देवी का रूप मानकर उसकी सम्मान और पूजा करना ही असली धर्म है। इसलिए, हिंदू धर्म और तंत्र शास्त्र में कहा गया है कि जो व्यक्ति स्त्री को सम्मान देता है, वही सच्चा भक्त होता है और वही परम शांति प्राप्त कर सकता है।
उपरोक्त लेखनी से समाज को यह महत्वपूर्ण संदेश मिलता है कि स्त्री केवल एक शारीरिक सत्ता नहीं, बल्कि सृजन, शक्ति और ऊर्जा का स्रोत है। वैदिक ग्रंथों में स्त्री योनि को ब्रह्मांडीय सृजन का द्वार बताया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि स्त्री का सम्मान करना, उसके अस्तित्व को पूजनीय मानना और उसे समान अधिकार देना न केवल नैतिक कर्तव्य है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अनिवार्य है।
समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि स्त्री के प्रति विकृत सोच और उसके शरीर को मात्र भोग की वस्तु मानना वैदिक मूल्यों के विपरीत है। जब वैदिक ऋषियों ने स्त्री योनि को सृष्टि की आधारशिला और शक्ति का केंद्र बताया, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री के प्रति आदरभाव ही सभ्यता और संस्कृति की पहचान है। इसलिए, न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से भी स्त्री का सम्मान करना ही सही मार्ग है, जिससे समाज संतुलित, उन्नत और सशक्त बन सकता है।
प्रातःकालीन स्त्री योनि का ह्दय से स्पर्श दर्शन जो भी करते हुए अपनी दिनचर्या में शामिल होता है उसका जीवन सुखमय देवी देवताओं की कृपा से भरा-पूरा रहता है। सगे-संबंधि, जानी-अंजानी सृष्टि की सभी देवी स्वरूप स्त्रीयों को मेरा तन-मन कलम ह्दय से समर्पित। कामाख्या देवी कि कृपा आप सब पर भी बनीं रहे और गूढ़ रहस्यों का ज्ञान प्राप्त हो इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ जय मां कामाख्या देवी। Click on the link गूगल ब्लाग पर अपनी पसंदीदा लेख पढ़ने के लिए यहां ब्लू लाइन पर क्लिक करें।

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