शिव-पार्वती संवाद में “योनि” का वर्णन गहरे तांत्रिक और आध्यात्मिक दर्शन से जुड़ा है, जिसमें योनि को सृष्टि सृजन, शक्ति, और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। स्त्री योनि भाग मे देवी-देवताओं का स्थान निर्धारित है। इस संवाद के भीतर, योनि को केवल एक भौतिक अंग या जननांग के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि यह सृष्टि की आधारभूत ऊर्जा और स्त्रीत्व की योनि महाशक्ति के रूप में पूज्य है।
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आइए आदिशक्ति जगत-जननी स्वरुपा मां कामाख्या की कृपा पात्र भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी से समझने का प्रयास किजिए। यह सुस्पष्ट लेखनी अत्यन्त ही दुर्लभ है। आपको बता दें सत्य ज्ञान प्राप्ति के साथ ही जीवन का मूल उद्देश्य की पूर्ति हो सकता है। निरोगी और सुखमय जीवन के लिए कुछ गूढ़ रहस्यों का ज्ञान परम आवश्यक है, वो भी समय रहते हुए। अन्यथा इस मृत्युलोक में रोग ग्रस्त शरीर के साथ कलहपूर्ण जीवन जीते हुए अंततः मृत्यु को प्राप्त हो ही जाना है।
शिव-पार्वती संवाद का प्रसंग योनि

शिव और पार्वती का संवाद तांत्रिक ग्रंथों और पुराणों में सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को समझाने के लिए है। माता पार्वती जो शक्ति का स्वरूप हैं, शिव से संसार के विभिन्न रहस्यों, स्त्री और पुरुष के संबंध, और सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में प्रश्न पूछती हैं। यह शिव-पार्वती योनि संवाद – यौन ऊर्जा और सृजन शक्ति के प्रतीकात्मक और दार्शनिक अर्थों पर केंद्रित है, जो हर किसी के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।
योनि का आध्यात्मिक और तांत्रिक महत्त्व
“योनि” का तांत्रिक और शैव परंपराओं में अत्यधिक महत्व है। यहाँ योनि को केवल एक शारीरिक संरचना के रूप में नहीं, बल्कि सृजन की अनंत शक्ति के रूप में देखा जाता है। शिव ने पार्वती से कहा कि योनि सृष्टि की जन्मदाता शक्ति है, और यह शक्ति संपूर्ण सृजन का मूल स्रोत है।
योनि तंत्र और शैव दर्शन में स्त्री योनि शक्ति का प्रतीक है, जो “आद्याशक्ति” मानी जाती है। इस संदर्भ में, योनि को ब्रह्मांडीय ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, जिसके बिना सृजन की प्रक्रिया अधूरी है। शिव ने पार्वती को समझाया है कि यह स्त्री शक्ति (योनि) ही है जो इस ब्रह्मांड के प्रत्येक जीव को जन्म देती है और उसे जीवन देती है।
सृजन की प्रक्रिया में योनि का महत्व
शिव और पार्वती योनि संवाद कथा में शिव बताते हैं कि सृजन की प्रक्रिया में स्त्री और पुरुष का एक गहन संबंध है। पुरुष तत्व (शिव) चेतना का प्रतीक है, जबकि स्त्री तत्व (पार्वती या शक्ति) ऊर्जा का प्रतीक है। सृजन तभी संभव है जब यह दोनों तत्व एक साथ मिलते हैं। शिव ने कहा कि योनि शक्ति का प्रतीक है और इस शक्ति के बिना ब्रह्मांड का संचालन संभव नहीं है।
योनि को “प्रकृति” के रूप में देखा जाता है, जबकि शिव “पुरुष” के रूप में। जब पुरुष और प्रकृति एक साथ आते हैं, तभी सृजन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। यही कारण है कि योनि को सृष्टि की माँ भी कहा गया है।
योनि पूजा और तांत्रिक साधना
शिव ने पार्वती से कहा कि तंत्र में योनि की पूजा करना सृजन शक्ति और स्त्रीत्व के प्रति आदर और सम्मान का प्रतीक है। योनि पूजा तांत्रिक परंपराओं में साधक को शक्ति प्राप्त करने और आत्मज्ञान की दिशा में आगे बढ़ने का साधन माना गया है। यह पूजा जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने का मार्ग दिखाती है, जहाँ साधक सृष्टि के वास्तविक स्वरूप को समझने का प्रयास करता है।
योनि की पूजा तांत्रिक साधकों के लिए विशेष महत्व रखती है, क्योंकि यह जीवन की उत्पत्ति और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का स्रोत मानी जाती है। शिव ने कहा कि योनि की पूजा से साधक अपने अंदर की रचनात्मक शक्ति को जागृत कर सकता है और अपने भीतर छिपी दिव्यता को पहचान सकता है।
शिव का दृष्टिकोण: योनि का दार्शनिक दृष्टिकोण

शिव पार्वती को बताते हैं कि योनि केवल सृजन और प्रजनन का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह एक गूढ़ दार्शनिक अवधारणा भी है। योनि का अर्थ है अनंतता, एक ऐसा प्रवेशद्वार जिससे समस्त जीवन का जन्म होता है और जहाँ से सृष्टि की अनंत संभावनाएँ जन्म लेती हैं। शिव ने कहा, “योनि सृजन का स्रोत है, और यह स्त्री शक्ति (पार्वती) का मुख्य स्वरूप है। यह वही शक्ति है जो ब्रह्मांड को चलाती है।”
योनि को इस संदर्भ में जीवन के चक्र और पुनर्जन्म के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह जीवन, मृत्यु, और पुनर्जन्म के चक्र को दर्शाता है। शिव पार्वती को बताते हैं कि जब साधक योनि के इस गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक महत्व को समझता है, तभी उसे सृष्टि के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान प्राप्त होता है।
स्त्री योनि भाग मे देवी-देवताओं का स्थान
तंत्र शास्त्र और शिव-पार्वती संवाद में स्त्री योनि को सृजन की शक्ति का प्रतीक मानकर गहरे अर्थ दिए गए हैं। इसमें स्त्री योनि के विभिन्न अंगों और ऊर्जा केंद्रों में विभिन्न देवी-देवताओं का स्थान निर्धारित किया गया है। ये प्रतीकात्मक स्थान जीवन की विविध शक्तियों का प्रतीक हैं, जो योग, तंत्र और साधना में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
आद्याशक्ति (मूल शक्ति)
आद्याशक्ति, जिन्हें पार्वती के रूप में भी पूजा जाता है, योनि की संपूर्ण संरचना का प्रतीक हैं। तंत्र शास्त्र में माना गया है कि आद्याशक्ति योनि के रूप में हर तत्व को जीवन प्रदान करती हैं और इसकी अनंत ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं।
दश महाविद्याएँ (दश दिशाओं में)
योनि के दस दिशाओं में दस महाविद्याओं का निवास माना गया है, जिनमें काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला देवी शामिल हैं। ये सभी महाविद्याएँ योनि की शक्ति के विभिन्न रूपों को दर्शाती हैं और तंत्र में उनके विशेष साधना का महत्त्व बताया गया है।
ब्रह्माण्डीय शक्ति का केंद्र: योनि का प्रवेश द्वार
योनि का प्रवेश द्वार, जो जीवन और चेतना का मूल स्रोत है, वहाँ आद्याशक्ति का निवास माना गया है। यहाँ आद्याशक्ति का अर्थ है देवी पार्वती या महाकाली, जो सम्पूर्ण शक्ति की देवी हैं और सृजन का प्रारंभिक स्रोत हैं। तंत्र में इसे ब्रह्मांड के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जाता है जहाँ से हर जीवन का उद्गम होता है।
त्रिपुरा सुंदरी: योनि के अंदरूनी अंगों में
तंत्र शास्त्र में त्रिपुरा सुंदरी को स्त्री की रचनात्मक और सौंदर्यपूर्ण ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। त्रिपुरा सुंदरी को योनि के अंदरूनी अंगों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो कि सृजनात्मक और स्थायी ऊर्जा का प्रतीक है। त्रिपुरा सुंदरी तांत्रिक साधना में परम सौंदर्य, प्रेम और सुख का प्रतीक मानी जाती हैं और साधक के भीतर जागृत सृजन शक्ति का आह्वान करती हैं।
मातंगी: योनि के गहरे रहस्यों में
मातंगी देवी को तंत्र शास्त्र में ज्ञान, कला और चेतना का प्रतीक माना जाता है। इन्हें योनि के उन गहरे रहस्यों का संरक्षक माना गया है जो साधक को उसके आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं। शिव-पार्वती संवाद में मातंगी को योनि के उस स्थान पर माना गया है, जहाँ साधक के भीतर गहन साधना और आत्मज्ञान के बीज अंकुरित होते हैं।

कामाख्या देवी: योनि के मूल ऊर्जा केंद्र में
कामाख्या देवी को तंत्र में विशेष महत्व प्राप्त है। असम राज्य में गुवाहाटी के समीप ब्रह्मपुत्र नदी तट निलांचल पर्वत स्थित कामाख्या मंदिर योनि पूजा का प्रमुख केंद्र माना जाता है, जहाँ योनि को देवी के प्रतीक रूप में पूजा जाता है। कामाख्या देवी को योनि के मूल में स्थित माना गया है, जो सृजन की मौलिक शक्ति और संपूर्ण जीवन चक्र की प्रतीक मानी जाती हैं।
शिव-पार्वती संवाद में कामाख्या देवी का उल्लेख आता है, जहाँ उन्हें सृष्टि की आदि शक्ति के रूप में देखा गया है। योनि रूप मां कामाख्या देवी का दर्शन साक्षात आदिशक्ति का दर्शन कराता है। यहां से योनि के गूढ़ रहस्यों को जाना जा सकता है जिसके लिए कठोर साधना कि आवश्यकता होती है।
भुवनेश्वरी: योनि के सृजनात्मक ऊर्जा क्षेत्र में
भुवनेश्वरी देवी को योनि के सृजनात्मक ऊर्जा क्षेत्र में स्थान दिया गया है। भुवनेश्वरी का अर्थ है “संपूर्ण सृष्टि की रानी,” जो सभी रचनात्मक शक्तियों का मूल स्रोत मानी जाती हैं। तंत्र में भुवनेश्वरी देवी का स्थान योनि के उस केंद्र में है जहाँ से हर प्रकार की चेतना उत्पन्न होती है और जीवन की विविध धाराएँ निकलती हैं। यहाँ आपको समझने के लिए कुछ शब्दों को छोड रहे हैं स्पष्ट नहीं कर रहे हैं। इतना से समझा जा सकता है।
काली: योनि के भीतर आंतरिक चेतना के क्षेत्र में
काली देवी को तंत्र शास्त्र में योनि के उस स्थान पर माना गया है जहाँ आंतरिक चेतना और विकराल शक्ति निवास करती है। काली को विनाश और पुनर्जन्म की देवी माना जाता है, जो हर प्रकार की नकारात्मकता का नाश कर, उसे पुनः सृजन में बदलती हैं। शिव-पार्वती संवाद में काली का उल्लेख इस रूप में किया गया है कि वे साधक को जीवन के अंतिम सत्य का बोध कराती हैं।
ब्रह्मा (सृष्टि के मूल स्रोत)
योनि में ब्रह्मा को सृजन के अधिष्ठाता के रूप में स्थान दिया गया है। तंत्र के अनुसार, वे सृष्टि की प्रारंभिक शक्ति का प्रतीक हैं, और योनि का वह भाग सृजन की मूल ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है।
विष्णु (पालनकर्ता)
विष्णु को योनि के उस हिस्से में माना गया है जो पालन और संतुलन का प्रतीक है। उनका स्थान योनि के मध्य क्षेत्र में होता है, जहाँ से संतुलन और जीवन का संचालन होता है। विष्णु शक्ति को मध्य स्थान पर मानने का तात्पर्य है कि सृष्टि की ऊर्जा का संतुलन और पालन इसी शक्ति के द्वारा संभव है।
शिव (विनाशक)
शिव को योनि के आधार में स्थान दिया गया है। तंत्र शास्त्र में इसे ऊर्जा का मूल स्रोत कहा गया है, जहाँ से संपूर्ण शक्ति का उद्गम होता है। यह स्थान जीवन-मृत्यु के चक्र का प्रतीक है, जहाँ से पुनर्जन्म और विनाश की शक्ति उत्पन्न होती है।
कुबेर (धन और समृद्धि के देवता)
योनि में कुबेर का स्थान धन और समृद्धि के प्रतीक के रूप में माना गया है। तांत्रिक साधना में कुबेर का यह स्थान समृद्धि और भौतिक सुख-सम्पदा का प्रतीक है, जो जीवन को सहज और संतुलित रखने में सहायक है।
गणेश (विघ्नहर्ता और शुभारंभ के प्रतीक)
गणेश का स्थान योनि के प्रवेश द्वार पर माना गया है, क्योंकि वे सभी शुभ कार्यों की शुरुआत में पूजे जाते हैं और विघ्नहर्ता के रूप में माने जाते हैं। तंत्र में गणेश की पूजा का महत्व है, क्योंकि उनकी ऊर्जा से साधक को साधना में विघ्नों से मुक्ति मिलती है।
कार्तिकेय (देवी-देवताओं के सेनापति का स्थान)
कार्तिकेय का स्थान योनि के ऊपरी बाहरी भागों पर माना जाता है, जो चारों तरफ़ से योनि कि रक्षा करते हैं। योनि को तंत्र साधना में कार्तिकेय की प्रसन्नता का भी महत्व बताया गया है।
सप्तर्षि (सात मुख्य ऋषियों का स्थान)
योनि के भीतर सात प्रमुख स्थानों पर सप्तर्षियों का निवास माना गया है। तंत्र में सप्तर्षि ज्ञान और साधना के प्रतीक माने जाते हैं। योनि के भीतर सप्तर्षियों का स्थान साधक को आत्मज्ञान और सृष्टि के रहस्यों की ओर ले जाता है।
सूर्य और चंद्र (ऊर्जा और शीतलता के प्रतीक)
योनि के एक भाग में सूर्य को ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक माना गया है, जबकि चंद्र को शीतलता और शांति का प्रतीक माना गया है। सूर्य और चंद्र की ऊर्जा से योनि में संतुलन और शक्ति बनी रहती है।
श्री यंत्र और योनि पूजा

तंत्र साधना में श्री यंत्र को स्त्री योनि का प्रतीक माना गया है। श्री यंत्र में नौ त्रिकोण होते हैं जो एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और ये त्रिकोण शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक माने जाते हैं। तांत्रिक साधना में श्री यंत्र की पूजा करके साधक उस शक्ति का आह्वान करता है जो सृजन और चेतना की मूल आधारभूत शक्ति है। गृहस्थ जीवन में श्री यंत्र के स्थान पर गृहणी संगीनी पत्नी के योनि भाग कि सेवा पूजा करने का विधान है। जो स्त्री-पुरुष संतुष्टि पूर्वक एक दूसरे का यह भाग पूज्यनीय मान सेवा करते हैं वो हर सुख से संपन्न रहते हैं।
शिव-पार्वती संवाद में योनि पूजा और सृजन शक्ति
शिव और पार्वती के संवाद में योनि पूजा को सृष्टि की रचनात्मक ऊर्जा का आदर करना बताया गया है। भगवान शिव ने माता पार्वती को समझाते हुए बताएं हैं कि स्त्री योनि केवल एक भौतिक अंग नहीं है बल्कि सृष्टि की शक्ति का वह केंद्र है जिससे हर जीव उत्पन्न होता है। योनि पूजा से साधक अपनी अंतर्निहित सृजन शक्ति को जागृत कर, ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने का प्रयास करता है।
तांत्रिक दृष्टि से योनि पूजा का महत्त्व
तंत्र में योनि पूजा का महत्त्व इसलिए है क्योंकि यह स्त्री शक्ति और सृजन की मूलभूत ऊर्जा का सम्मान है। जब साधक योनि का पूजन करते हैं, तो वे सृजन की अनंत शक्ति का आह्वान करते हैं और अपनी साधना में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का संचार करते हैं। तंत्र साधना में योनि को देवी का रूप मानकर पूजना साधक को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है और उसे ब्रह्मांडीय ऊर्जा से एकाकार कराता है।
शिव-पार्वती संवाद से योनि कथा का उद्देश्य

शिव ने पार्वती को योनि संवाद में बताया कि योनि और लिंग का मिलन (जो तांत्रिक प्रतीक है) सृष्टि की अनंतता और एकता का प्रतीक है। यह मिलन सृजन, सुरक्षा, और पुनरुत्थान का प्रतिनिधित्व करता है। योनि की शक्ति के बिना लिंग (शिव) निष्क्रिय होता है, और लिंग के बिना योनि अधूरी होती है। यह दोनों तत्व एक-दूसरे के पूरक हैं, और उनके मिलन से ही सृष्टि का संतुलन बना रहता है।
तंत्र शास्त्र में योनि को सृजन, शक्ति, और स्त्रीत्व का प्रतीक मानकर उसमें देवी-देवताओं को विभिन्न स्थान दिए गए हैं। शिव-पार्वती संवाद में योनि की महत्ता को समझाकर यह बताया गया है कि योनि के बिना सृष्टि अधूरी है। यह सभी देवताओं की सामूहिक शक्ति का प्रतीक है, जो साधक को उसकी साधना में सहायता करती है और उसे आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।
तंत्र शास्त्र और शिव-पार्वती संवाद में स्त्री योनि को देवी की शक्ति का प्रतीक माना गया है, जहाँ विभिन्न देवी-देवताओं का निवास स्थान निर्धारित किया गया है। यह प्रतीकात्मक स्थान साधकों को सृजन, शक्ति, और आत्मज्ञान के मार्ग पर ले जाते हैं, और यह शिव-पार्वती संवाद में योनि ज्ञान बताता है कि स्त्री योनि सृजन की परम शक्ति का भंडार है, जिसके बिना सृष्टि की कोई भी प्रक्रिया अधूरी है।
इस प्रकार, शिव-पार्वती संवाद में “योनि” का वर्णन सृजन शक्ति, स्त्रीत्व की महत्ता, और तांत्रिक दर्शन का प्रतीकात्मक रूप में किया गया है। इस तरह के गुप्त रहस्यों को और जानने की जिज्ञासा है तो हमें भारतीय हवाटएप्स 7379622843 पर डिमांड कर सकते हैं। गुप्त से गुप्त रहस्यों को दैवीय कृपा से हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज अपनी कर्म-धर्म लेखनी से प्रदान करने का प्रयास करते रहते हैं।
जिन्हें गुप्त योनि के गूढ़ रहस्य का समय रहते ज्ञान नही मिला वो लोग रोग ग्रस्त हो कलहपूर्ण जीवन जीते हुए मृत्यु को प्राप्त होते हैं। मनुष्य जीवन पाकर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग नर्क मोंक्ष का मार्ग जीवन जीते हुए निर्धारित कर लेता है। Click on the link गूगल ब्लाग पर अपनी पसंदीदा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
मान गए सर आपको
आप सभी पाठकों को समर्पित गूढ़ रहस्यों को उजागर करती हमारी सम्पूर्ण लेखनी। योनि स्वरुपा मां कामाख्या देवी की कृपा आप सभी पाठकों पर बनी रहे ।