Political change in India भारत में बड़ी राजनीतिक बदलाव देखने को मिल रहा है। जनता अब जाति-धर्म की राजनीति से ऊपर उठकर विकास, सुशासन और राष्ट्रवाद को महत्व दे रही है। यहां आप पढ़ेंगे, amitsrivastav.in पर टीम सहित अमित श्रीवास्तव, अभिषेक कांत पांडेय की संयुक्त विश्लेषणात्मक लेखनी – कैसे मोदी सरकार की नीतियों ने भारतीय राजनीति की दिशा बदली और विपक्ष को आत्ममंथन के लिए मजबूर किया।

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भारतीय राजनीति एक ऐतिहासिक बदलाव के दौर से गुजर रही है। कभी जाति, धर्म और क्षेत्रीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमने वाली राजनीति अब विकास, सुशासन और राष्ट्रवाद की नई धारा को आत्मसात कर रही है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में यह बदलाव सबसे अधिक देखने को मिल रहा है। यह वही राज्य है, जहां कभी जातिगत और धार्मिक ध्रुवीकरण ही चुनावी सफलता की कुंजी माने जाते थे, लेकिन अब जनता ने स्पष्ट संदेश दिया है—जो विकास करेगा, वही राज करेगा।
जाति-धर्म की राजनीति का अंत?
बीते दशकों में भारतीय राजनीति जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही। दलित, पिछड़ा, मुस्लिम, ब्राह्मण, ठाकुर—इन श्रेणियों में बांटकर वोटों का हिसाब-किताब लगाया जाता था। पार्टियाँ इसी आधार पर अपने उम्मीदवार चुनती थीं, और सरकार बनने के बाद उसी जाति-वर्ग विशेष को लाभ देने की नीति अपनाई जाती थी। समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसी पार्टियाँ इसी रणनीति पर दशकों तक टिकी रहीं। लेकिन 2014 के बाद से इस राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला।
जनता ने यह समझ लिया कि केवल जातिगत राजनीति से उनके जीवन में कोई सुधार नहीं होने वाला। उन्हें रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ, सड़कें, बिजली और पानी चाहिए। वे अब यह देखने लगे कि सरकार किस प्रकार से उनके जीवन को बेहतर बना रही है, न कि केवल जातिगत समीकरणों को साध रही है।
मोदी सरकार और बदलाव की राजनीति
2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जिस राजनीति की शुरुआत की, वह जाति और धर्म की सीमाओं को तोड़ते हुए ‘सबका साथ, सबका विकास’ की विचारधारा पर केंद्रित थी। मोदी सरकार ने गरीबों, किसानों, महिलाओं और युवाओं को ध्यान में रखकर योजनाएँ बनाईं—
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना से करोड़ों गरीबों को मुफ्त राशन मिला।
प्रधानमंत्री आवास योजना ने लाखों परिवारों को अपना घर दिया।
आयुष्मान भारत योजना से गरीबों को मुफ्त इलाज की सुविधा मिली।
उज्ज्वला योजना से महिलाओं को गैस कनेक्शन मिला, जिससे उनका जीवन आसान हुआ।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया।
डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं ने युवाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर दिया।
इन योजनाओं का प्रभाव यह हुआ कि पहली बार दलित, पिछड़ा, आदिवासी और महिला मतदाता जाति की राजनीति से ऊपर उठकर भाजपा की नीतियों को समर्थन देने लगे।
विपक्ष की हार: आत्ममंथन की जरूरत
जहाँ भाजपा विकास और राष्ट्रवाद की राजनीति कर रही थी, वहीं विपक्ष अभी भी पुरानी जातिगत और तुष्टिकरण की राजनीति में उलझा रहा। समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने उत्तर प्रदेश में लगातार अपनी रणनीतियों को नहीं बदला। सपा अभी भी यादव-मुस्लिम समीकरण पर निर्भर रही, जबकि बसपा दलित वोट बैंक को साधने में लगी रही।
लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के विधानसभा चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता ने इन्हें पूरी तरह नकार दिया। बावजूद इसके, इन पार्टियों ने अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं किया।
- अखिलेश यादव को युवा नेता के रूप में एक मौका मिला था, लेकिन उन्होंने अपनी सरकार में केवल यादव और मुस्लिमों को ही प्राथमिकता दी।
- मायावती की बसपा भी केवल दलित वोट बैंक पर निर्भर रही, लेकिन अब दलित समाज भी यह समझ गया कि उसे केवल चुनावी मोहरा बनाया गया।
- कांग्रेस ने भी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को अपनाया, लेकिन जनता ने इसे पूरी तरह नकार दिया।
2017 और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिलने का एक कारण यह भी था कि जनता अब समग्र विकास चाहती है, न कि केवल एक जाति या धर्म विशेष का विकास।
नोटबंदी, जीएसटी और जनता की समझ
जब नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में नोटबंदी की घोषणा की, तो विपक्ष ने इसे असफल बताने की पूरी कोशिश की। जीएसटी लागू होने पर भी यह कहा गया कि यह व्यापारियों के लिए हानिकारक है। लेकिन जनता ने इसे स्वीकार किया क्योंकि उन्हें समझ आ गया कि यह दीर्घकालिक सुधारों का हिस्सा है।
- नोटबंदी से भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम लगाने की कोशिश हुई।
- जीएसटी से पूरे देश में एक समान कर प्रणाली लागू हुई, जिससे व्यापारियों को फायदा हुआ।
- डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा मिला, जिससे पारदर्शिता आई।
जनता अब इन फैसलों को समझने लगी है और वह केवल विपक्ष के दुष्प्रचार से प्रभावित नहीं होती। यही कारण है कि जब विपक्ष ने इन नीतियों पर सरकार को घेरने की कोशिश की, तो जनता ने इसे नकार दिया।
युवाओं की बदलती सोच और रोजगार का मुद्दा
आज का युवा जाति और धर्म से ऊपर उठकर सोच रहा है। वह रोजगार और अवसर चाहता है। स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं से हजारों युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिले हैं।
- सरकारी नौकरियों से ज्यादा युवा अब स्टार्टअप और बिजनेस में रुचि ले रहे हैं।
- स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं ने उन्हें आत्मनिर्भर बनने का मौका दिया है।
- सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर, रेलवे, हाइवे, एयरपोर्ट और स्मार्ट सिटी पर बड़े निवेश किए, जिससे लाखों रोजगार के अवसर बने।
क्या विपक्ष बदलेगा अपनी रणनीति?
यदि विपक्ष को भविष्य में चुनावी सफलता पानी है, तो उसे अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव करना होगा। केवल जातीय समीकरणों और तुष्टिकरण की राजनीति पर निर्भर रहना अब संभव नहीं है। उन्हें भी रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना होगा, नहीं तो वे लगातार सिमटते चले जाएंगे।
भाजपा की सफलता का राज यही है कि उसने जाति और धर्म से ऊपर उठकर पूरे देश के विकास की बात की। अब विपक्ष को भी यही समझना होगा कि जनता को काम चाहिए, न कि खोखले वादे।
भारत में नई राजनीति की शुरुआत (Political change in India)
भारत की जनता अब जागरूक हो चुकी है। वह अब केवल जाति और धर्म के नाम पर वोट नहीं देगी, बल्कि वह सरकारों के कामकाज के आधार पर निर्णय लेगी। उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे भारत में यही संदेश स्पष्ट हो चुका है कि अब राजनीति केवल जातिवाद और तुष्टिकरण पर नहीं चलेगी।
- जो विकास करेगा, वही टिकेगा।
- जो जनता के हित में फैसले लेगा, वही जीतेगा।
- जो केवल जाति और धर्म की राजनीति करेगा, वह खत्म हो जाएगा।
यह बदलाव केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में एक नई राजनीति की शुरुआत हो चुकी है। भारतीय लोकतंत्र अब परिपक्व हो रहा है, और जनता अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझने लगी है। यही भारतीय राजनीति का भविष्य है। Click on the link गूगल ब्लाग पर अपनी पसंदीदा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
भारतीय राजनीति अब एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है, जहाँ जनता केवल वादों से नहीं, बल्कि ठोस कार्यों से संतुष्टि चाहती है। जाति और धर्म की दीवारें धीरे-धीरे गिर रही हैं, और एक नए भारत की परिकल्पना आकार ले रही है, जहाँ हर नागरिक की प्राथमिकता विकास, सुशासन और आत्मनिर्भरता है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि राजनीति अब केवल वोटबैंक की रणनीतियों पर नहीं चलेगी, बल्कि राष्ट्रहित और जनकल्याण को प्राथमिकता दी जाएगी। सरकार की योजनाओं ने समाज के हर वर्ग को लाभान्वित किया, जिससे जनता जातिगत और धार्मिक सीमाओं से परे सोचने लगी।
वहीं, विपक्ष यदि अपनी पुरानी राजनीति पर अड़ा रहा, तो उसका सिमटना तय है। अब राजनीतिक दलों को समझना होगा कि जनता को केवल भावनात्मक मुद्दों से बहलाया नहीं जा सकता—उन्हें रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा और पारदर्शी प्रशासन चाहिए। उत्तर प्रदेश और भारत की जनता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जो नेता काम करेगा, वही सत्ता में रहेगा, और जो केवल जाति-धर्म के समीकरणों पर निर्भर रहेगा, वह अतीत का हिस्सा बन जाएगा। यह लोकतंत्र की परिपक्वता का संकेत है, जहाँ जनता अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझते हुए एक नए और विकसित भारत की ओर बढ़ रही है।

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