कौशल विकास-युक्त शिक्षा को 10वीं और 12वीं से शुरू करने की आवश्यकता पर विस्तृत लेख। CBSE, राज्य बोर्डों और विश्वविद्यालयों की भूमिका, पत्रकारिता, जनसंचार, मीडिया और फाइनेंस लिटरेसी जैसे सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों के महत्व और बेरोजगारी कम करने में योगदान पर चर्चा। NEP 2020 और महात्मा गांधी की बुनियादी शिक्षा से प्रेरित यह लेख कौशल विकास के लिए प्रभावी रणनीतियां प्रस्तुत करता है।
परिचय — कौशल विकास-युक्त शिक्षा: माध्यमिक स्तर से प्रारंभ की अनिवार्यता और प्रभावी कार्यान्वयन
आज के तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में, शिक्षा केवल ज्ञान अर्जन तक सीमित नहीं रह सकती। इसे व्यावहारिक कौशल से जोड़ना आवश्यक हो गया है, ताकि युवा न केवल डिग्री प्राप्त करें बल्कि रोजगार योग्य बनें। भारत जैसे विकासशील देश में, जहां बेरोजगारी एक प्रमुख चुनौती है, कौशल विकास-युक्त शिक्षा (Skill-Based Education) को माध्यमिक स्तर से ही आरंभ करने की आवश्यकता है। विशेष रूप से 10वीं और 12वीं कक्षा से सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों को शामिल करना एक क्रांतिकारी कदम सिद्ध हो सकता है। यह न केवल छात्रों को प्रारंभिक स्तर पर व्यावहारिक कौशल प्रदान करेगा बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाकर अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा।
कौशल-युक्त शिक्षा का अर्थ है सैद्धांतिक ज्ञान को व्यावहारिक अनुप्रयोगों से जोड़ना, जहां छात्र समस्या-समाधान, नवाचार और वास्तविक दुनिया की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार होते हैं। भारत में, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और विभिन्न राज्य बोर्डों द्वारा संचालित पाठ्यक्रमों में इसे एकीकृत करने की मांग लंबे समय से उठ रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रावधान किए हैं, जहां माध्यमिक स्तर से वोकेशनल शिक्षा को मुख्यधारा में लाने का लक्ष्य रखा गया है।
NEP 2020 के अनुसार, 2025 तक कम से कम 50% छात्रों को वोकेशनल शिक्षा का अनुभव प्रदान करने का उद्देश्य है। यह नीति माध्यमिक स्तर (कक्षा 6 से 12) से कौशल आधारित शिक्षा की शुरुआत पर जोर देती है, जिसमें स्थानीय जरूरतों के आधार पर पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे।
इस लेख में, हम अमित श्रीवास्तव कौशल-युक्त शिक्षा की आवश्यकता, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वर्तमान स्थिति, कार्यान्वयन के सुझाव, विशेष क्षेत्रों जैसे पत्रकारिता और जनसंचार में सर्टिफिकेट प्रोग्राम्स, तथा इसके लाभ और चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। मूल रूप से, यह शिक्षा प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास है, जहां छात्र कक्षा 10 और 12 से ही सर्टिफिकेट कोर्स के माध्यम से कौशल प्राप्त कर सकें। इससे न केवल बेरोजगारी कम होगी बल्कि युवा अधिक उत्पादक बनेंगे। महात्मा गांधी ने भी बुनियादी शिक्षा (Nai Talim) में कौशल को महत्वपूर्ण माना था, जहां शिक्षा को श्रम से जोड़ा जाता है। आज के संदर्भ में, यह विचारधारा और भी प्रासंगिक है।
कौशल-युक्त शिक्षा का प्रभावी कार्यान्वयन कैसे किया जा सकता है? इसे CBSE के इंटरमीडिएट स्तर के पाठ्यक्रम में शामिल करके, विश्वविद्यालयों के माध्यम से जिलों में लागू करके, और छोटे सर्टिफिकेट प्रोग्राम्स विकसित करके। उदाहरण के लिए, मीडिया लिटरेसी, फाइनेंस लिटरेसी और डेमोक्रेसी लिटरेसी जैसे क्षेत्रों में कोर्स छात्रों को जागरूक नागरिक बनाने में मदद करेंगे। इस लेख का उद्देश्य इन पहलुओं को शैक्षणिक दृष्टिकोण से विश्लेषित करना है, ताकि नीति-निर्माताओं और शिक्षाविदों के लिए एक रोडमैप तैयार हो सके।

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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: महात्मा गांधी और अन्य शिक्षाविदों की दृष्टि
कौशल विकास-युक्त शिक्षा की अवधारणा भारत में नई नहीं है। महात्मा गांधी ने 1937 में ‘बुनियादी शिक्षा’ (Basic Education) या ‘नई तालीम’ (Nai Talim) की संकल्पना प्रस्तुत की, जिसमें शिक्षा को श्रम और कौशल से जोड़ा गया था।
गांधी का मानना था कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं बल्कि हाथों से काम करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि “ज्ञान में सभी प्रकार की प्रशिक्षण शामिल है जो मानव सेवा के लिए उपयोगी है।” Nai Talim में बच्चे को स्थानीय शिल्प जैसे बुनाई, बढ़ईगिरी और कृषि सिखाई जाती थी, ताकि वे आत्मनिर्भर बनें। यह प्रणाली ग्रामीण भारत की जरूरतों पर आधारित थी, जहां शिक्षा को आर्थिक उत्पादकता से जोड़ा गया। गांधी ने जोर दिया कि यदि देश को प्रगति करनी है, तो कौशल को बुनियादी पाठ्यक्रम में शामिल करना अनिवार्य है।
गांधी की यह विचारधारा अन्य शिक्षाविदों से भी प्रभावित थी। जॉन डेवी जैसे अमेरिकी दार्शनिक ने ‘लर्निंग बाय डूइंग’ पर जोर दिया, जो गांधी के विचारों से मेल खाता है। भारत में, रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में कला, संगीत और प्रकृति-आधारित शिक्षा को महत्व दिया, जो कौशल विकास का हिस्सा था। स्वामी विवेकानंद ने भी शिक्षा को चरित्र निर्माण और व्यावहारिक कौशल से जोड़ा, कहते हुए कि “शिक्षा वह है जो मनुष्य को स्वतंत्र बनाती है।” इन विचारों से प्रेरित होकर, स्वतंत्र भारत, आत्मनिर्भर भारत में विभिन्न प्रयास हुए, जैसे 1950 के दशक में वोकेशनल शिक्षा की शुरुआत।
हालांकि, औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली के प्रभाव से, कौशल शिक्षा को माध्यमिक दर्जे का माना गया। NEP 2020 ने गांधीजी की Nai Talim को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है, जहां माध्यमिक स्तर से वोकेशनल क्राफ्ट्स सिखाए जाएंगे। गांधी ने बुनियादी शिक्षा को 7 वर्ष तक की योजना बनाई, लेकिन आज इसे 10वीं-12वीं तक विस्तारित करने की जरूरत है। कई शिक्षाविदों, जैसे जे.पी. नायक और कृष्ण कुमार, ने स्पष्ट किया कि कौशल शिक्षा युवाओं की उम्र में सबसे प्रभावी होती है, जब वे 14-18 वर्ष के होते हैं। इस उम्र में मस्तिष्क विकास तेज होता है, और व्यावहारिक सीखने से आत्मविश्वास बढ़ता है।
ऐतिहासिक रूप से, यूरोपीय देशों जैसे जर्मनी में ड्यूअल वोकेशनल ट्रेनिंग सिस्टम सफल रहा है, जहां स्कूल और इंडस्ट्री मिलकर कौशल सिखाते हैं। भारत में, इसे अपनाकर हम गांधी की दृष्टि को साकार कर सकते हैं। कुल मिलाकर, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि दर्शाती है कि कौशल-युक्त शिक्षा देश की प्रगति का आधार है, और इसे माध्यमिक स्तर से शुरू करना समय की मांग है।

वर्तमान स्थिति: भारत में कौशल विकास-युक्त शिक्षा की चुनौतियां और प्रगति
भारत में कौशल-युक्त शिक्षा की वर्तमान स्थिति मिश्रित है। एक ओर, NEP 2020 ने इसे मुख्यधारा में लाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, वहीं दूसरी ओर, कार्यान्वयन में कमी है। CBSE ने सेकेंडरी (कक्षा 9-10) और सीनियर सेकेंडरी (कक्षा 11-12) स्तर पर स्किल सब्जेक्ट्स शुरू किए हैं, जैसे रिटेल, आईटी, ऑटोमोटिव आदि। CBSE 18 स्किल सब्जेक्ट्स सेकेंडरी स्तर पर और 38 सीनियर सेकेंडरी स्तर पर ऑफर करता है। इसी प्रकार, राज्य बोर्डों में भी वोकेशनल कोर्स शामिल हैं, लेकिन एकरूपता की कमी है।
NEP 2020 के अनुसार, कक्षा 6 से वोकेशनल एक्सपोजर शुरू होगा, जिसमें 10-दिन की बैगलेस पीरियड शामिल है, जहां छात्र स्थानीय विशेषज्ञों से इंटर्नशिप करेंगे। नीति में स्किल लैब्स और हब-एंड-स्पोक मॉडल का प्रावधान है, जहां स्कूल ITI और इंडस्ट्री से जुड़ेंगे। हालांकि, 2025 तक 50% छात्रों को कवर करने का लक्ष्य चुनौतीपूर्ण है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि केवल 5-10% छात्र वोकेशनल कोर्स चुनते हैं, क्योंकि इसे ‘कम महत्वपूर्ण’ माना जाता है।
बेरोजगारी की समस्या गंभीर है। NSSO के अनुसार, 15-29 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी दर 20% से अधिक है। कौशल की कमी प्रमुख कारण है। स्किल इंडिया मिशन ने 1 करोड़ से अधिक युवाओं को ट्रेन किया, लेकिन स्कूल स्तर पर एकीकरण कम है। राज्य स्तर पर, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों ने राज्य बोर्डों में स्किल कोर्स शामिल किए, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है।
विश्वविद्यालयों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। NEP में HEIs को वोकेशनल कोर्स ऑफर करने का प्रावधान है, जैसे B.Voc डिग्री। लेकिन जिलों में जुड़े कॉलेजों के माध्यम से माध्यमिक स्तर पर लागू करने की जरूरत है। वर्तमान में, चुनौतियां जैसे शिक्षकों की कमी, इंडस्ट्री लिंकेज की अनुपस्थिति और मूल्यांकन प्रणाली की कठोरता हैं। फिर भी, प्रगति हो रही है— उदाहरण के लिए, कक्षा 11-12 में स्किल बेस्ड लर्निंग को शामिल करने की योजना।
कार्यान्वयन के सुझाव: CBSE, राज्य बोर्ड और विश्वविद्यालयों की भूमिका
कौशल विकास-युक्त शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए, इसे 10वीं और 12वीं से सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों के रूप में शुरू करना चाहिए। CBSE बोर्ड में इंटरमीडिएट स्तर (कक्षा 11-12) के पाठ्यक्रम में स्किल सब्जेक्ट्स को अनिवार्य बनाया जाए, जैसे कि वर्तमान में वैकल्पिक हैं। सर्टिफिकेट कोर्स 6-12 महीने के हों, जो NSQF से aligned हों। उदाहरण के लिए, छात्र कक्षा 10 में बेसिक स्किल्स जैसे डिजिटल लिटरेसी और कक्षा 12 में एडवांस्ड जैसे एंटरप्रेन्योरशिप सीखें।
विश्वविद्यालयों को जिलों में जुड़े कॉलेजों के माध्यम से योजना लागू करनी चाहिए। प्रत्येक विश्वविद्यालय एक जिले को गोद ले और स्थानीय जरूरतों पर आधारित कोर्स विकसित करे, जैसे कृषि आधारित जिलों में एग्री-स्किल्स। NEP में ODL मोड का प्रावधान है, जिससे ऑनलाइन सर्टिफिकेट संभव हैं। राज्य बोर्डों को CBSE से समन्वय करना चाहिए, ताकि एकरूपता हो।
राज्य जैसे उत्तर प्रदेश में, बोर्डों में स्किल हब बनाने की योजना हो। शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग अनिवार्य हो, जहां DIETs में शॉर्ट कोर्स हों। इंडस्ट्री पार्टनरशिप बढ़ाई जाए, जैसे अप्रेंटिसशिप एक्ट के तहत। मूल्यांकन प्रणाली को प्रोजेक्ट-बेस्ड बनाएं, ताकि छात्र व्यावहारिक कौशल दिखा सकें। बजट आवंटन बढ़ाकर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करें।

विशिष्ट क्षेत्र: पत्रकारिता, जनसंचार और लिटरेसी प्रोग्राम्स
कौशल विकास-युक्त शिक्षा में पत्रकारिता और जनसंचार से संबंधित पाठ्यक्रम विकसित किए जाएं। छोटे सर्टिफिकेट प्रोग्राम्स में मीडिया लिटरेसी (फेक न्यूज पहचानना), फाइनेंस लिटरेसी (बजटिंग, इन्वेस्टमेंट) और डेमोक्रेसी लिटरेसी (संवैधानिक अधिकार, वोटिंग) शामिल हों। भारत में, IISDT जैसे संस्थान सर्टिफिकेट इन मास कम्युनिकेशन ऑफर करते हैं। CBSE में इसे शामिल करके, छात्र कक्षा 10 से न्यूज राइटिंग सीखें।
रिपब्लिक स्कूल ऑफ जर्नलिज्म जैसे संस्थान 11 महीने के कोर्स ऑफर करते हैं, जो स्कूल छात्रों के लिए अनुकूलित किए जा सकते हैं। NEP में क्रिटिकल लाइफ स्किल्स का उल्लेख है, जिसमें फाइनेंस लिटरेसी शामिल है। इन प्रोग्राम्स से छात्र भविष्य में करियर बना सकेंगे, जैसे डेटा जर्नलिज्म में।
कौशल विकास युक्त शिक्षा से लाभ और चुनौतियां
लाभ: बेरोजगारी कम होगी, आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। चुनौतियां: इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षक ट्रेनिंग, सामाजिक धारणा। इनका समाधान नीतिगत बदलाव से संभव है।
कौशल विकास-युक्त शिक्षा निष्कर्ष
कौशल-युक्त शिक्षा को 10वीं-12वीं से शुरू करके, हम एक कुशल भारत का निर्माण कर सकते हैं। CBSE, राज्य बोर्ड और विश्वविद्यालयों से अनुरोध है कि इसे लागू करें। गांधी की दृष्टि से प्रेरित होकर, युवाओं को सशक्त बनाएं।

amitsrivastav.in Google side पर संपादक एवं लेखक अमित श्रीवास्तव के साथ शिक्षक एवं लेखक प्रयागराज से अभिषेक कांत पांडेय की शैक्षणिक रिपोर्ट।

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