क्या आपको पता है यौन साहचर्य- sexual intercourse “समानता का भोग संभोग से उत्तम कोई भोग नहीं“ यह कथन गहरा दार्शनिक, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अर्थ रखता है। “Sexual Intercourse” भोग संभोग केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि यह प्रेम, ऊर्जा, आत्म-साक्षात्कार और सृष्टि की निरंतरता से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि इसे धर्मग्रंथों में सर्वोत्तम भोग कहा गया है। इस भोग के लिए इच्छुक देवी-देवता, दानव-मानव, जीव-जंतु सभी सदैव तत्पर रहे हैं। संभोग को लेकर अज्ञानता आज तमाम बिमारियों का जड़ बनता जा रहा है। क्योंकि समानता का भोग संभोग का समुचित ज्ञान शायद ही किसी-किसी को है। कारण यह है कि समुचित यौन शिक्षा का समाज में व्यापक अभाव देखा जा सकता है।
इस लेख में अलौकिक गूढ़ रहस्यों को उजागर करते हुए समझाएंगे कि संभोग क्यों और कैसे सर्वोत्तम भोग है, इस दुर्लभ ज्ञान से इच्छानुसार सुयोग्य पुत्र/पुत्री प्राप्त किया जा सकता है। इसके वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, और दार्शनिक पहलू क्या हैं, और क्या इससे भी उत्तम कोई भोग संभव है या नहीं। भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म दैवीय कलम से उपजी ज्ञान गंगा में अंत तक बने रहिए। किसी भी प्रकार की दुविधा मन में हो तो निसंकोच कमेंट बॉक्स में लिखकर या भारतीय हवाटएप्स 7379622843 पर सम्पर्क कर दुविधा को दूर कर सकते हैं।
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जानिए संभोग का वास्तविक अर्थ क्या होता है?
संभोग शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है “साथ में तृप्ति पूर्ण एक दूसरे के समान भोग करना”। सं + भोग जिसका अर्थ – सं (सम्यक् / साथ / संपूर्णता में) “एक साथ” या “संपूर्णता में”। भोग (अनुभव / उपभोग) आनंद लेना” या “अनुभव करना”।
सामान्य संदर्भ में – संभोग का अर्थ यौन संबंध या मिलन से लिया जाता है।
वैदिक दृष्टिकोण से – यह इंद्रियों और मन से किसी भी वस्तु या अनुभव का आनंद लेने की प्रक्रिया को दर्शाता है।
आध्यात्मिक रूप में – यह आत्मा और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के मिलन को भी दर्शाता है।

शारीरिक स्तर – यौन सुख और प्रजनन sexual pleasure and reproduction
संभोग का सबसे प्रत्यक्ष और स्पष्ट पहलू शारीरिक स्तर पर अनुभव किया जाने वाला यौन सुख और प्रजनन है। यह केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि जैविक, मानसिक और भावनात्मक संतुलन का हिस्सा है। इसका विस्तृत विवेचनात्मक लेखनी यहां नीचे दिया जा रहा है।
यौन सुख sexual pleasure (यौन सुख और प्रजनन sexual pleasure and reproduction) का महत्त्व
शारीरिक आनंद और संतोष
संभोग के दौरान शरीर डोपामिन, ऑक्सीटोसिन और एंडोर्फिन जैसे “खुशी के हार्मोन” का स्राव करता है, जिससे सुख और संतोष की अनुभूति होती है। यह तनाव कम करने, मानसिक शांति बढ़ाने और संपूर्ण शरीर को संतुलित करने में मदद करता है। साथ ही परिपूर्ण सुख बहुत सारी बिमारियों से बचाव और गंभीर से गंभीर बीमारियों का इलाज़ में सहायक होता है।
स्वास्थ्य लाभ
यौन सुख केवल एक इंद्रिय सुख नहीं, बल्कि इसके कई वैज्ञानिक और स्वास्थ्य लाभ हैं जिन्हें जानकर हतप्रभ हों जाएगें जो पूरी तरह सत्य है।
रक्त संचार में सुधार – हृदय और मस्तिष्क के लिए लाभकारी है। सही तरीके से संभोग यानी समानता का भोग प्राप्त हो जाए तो हार्ट की समस्या नही होती। अगर हृदय या मस्तिष्क रोग की समस्या है तो सबसे उत्तम इलाज संभोग से संभव है।
इम्यूनिटी को बढ़ावा – नियमित स्वस्थ यौन संबंध शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं। छोटी मोटी बिमारी जैसे सर्दी-जुकाम दर्द तो होता ही नहीं, गंभीर बीमारियों से भी बचाव होता है।
अच्छी नींद – संभोग के बाद शरीर में प्रोलैक्टिन नामक हार्मोन रिलीज होता है, जिससे गहरी और आरामदायक नींद आती है। मांसपेशियों की टोनिंग और कैलोरी बर्निंग – यह एक तरह का प्राकृतिक व्यायाम भी है।
मानसिक संतुलन और आत्म-विश्वास
संतुलित और स्वस्थ यौन जीवन आत्मविश्वास को बढ़ाता है। यह भावनात्मक रूप से व्यक्ति को मजबूत बनाता है और रिश्तों को गहरा करता है। प्रजनन स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
प्रजनन (Reproduction) और सृष्टि का विस्तार
(A) जैविक और प्राकृतिक उद्देश्य
प्रकृति ने संभोग को केवल आनंद के लिए नहीं, बल्कि जीवन की निरंतरता के लिए बनाया है। सभी जीवों में संभोग का एक प्रमुख उद्देश्य संतान उत्पत्ति और वंशवृद्धि करना होता है। यह जीवन के चक्र को बनाए रखने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है।
(B) मातृत्व और पितृत्व का सुख
संभोग के माध्यम से ही एक नया जीवन जन्म लेता है, और माता-पिता बनने का सुख सबसे महान अनुभवों में से एक है।यह प्रेम, जिम्मेदारी और निःस्वार्थ सेवा की भावना को जन्म देता है, जो संभोग के शारीरिक आनंद से भी ऊपर होता है।
(C) सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
विवाह और परिवार प्रणाली का आधार भी संभोग और प्रजनन पर टिका हुआ है। समाज में स्थिरता और संतुलन बनाए रखने के लिए स्वस्थ यौन संबंधों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
संभोग और आध्यात्मिकता का जुड़ाव
यद्यपि संभोग को शारीरिक स्तर पर समझा जाता है, लेकिन कुछ आध्यात्मिक परंपराओं में इसे आत्मा के मिलन का भी साधन माना गया है।
(A) तंत्र में संभोग का महत्व
संभोग को केवल शारीरिक क्रिया न मानकर, ऊर्जा के जागरण का साधन माना गया है। तंत्र में मैत्री संभोग (Sacred Sex) के माध्यम से कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करने की विधियाँ दी गई हैं। यह “शिव-शक्ति मिलन” का प्रतीक है, जो सृष्टि की आधारभूत ऊर्जा को दर्शाता है।
(B) ध्यान और ऊर्जा संतुलन
यदि संभोग केवल भौतिक क्रिया बनकर रह जाए, तो यह व्यक्ति को भोग में बाँध सकता है। लेकिन यदि इसे ऊर्जा और चेतना के स्तर पर अनुभव किया जाए, तो यह व्यक्ति को आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर ले जा सकता है।
सही दृष्टिकोण के साथ संभोग व्यक्ति को अहंकार (Ego) से मुक्त करके, परम आनंद (Bliss) की ओर ले जाता है।
sexual intercourse का शारीरिक स्तर पर महत्व
✅ यौन सुख व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
✅ प्रजनन जीवन की निरंतरता बनाए रखने के लिए अनिवार्य है।
✅ संभोग केवल शरीर का नहीं, बल्कि मन, भावनाओं और ऊर्जा का भी गहरा अनुभव है।
✅ जब इसे सही दृष्टि और सम्मान के साथ किया जाए, तो यह केवल भोग नहीं, बल्कि एक सृजनात्मक और आध्यात्मिक अनुभव भी बन जाता है।
संभोग केवल शरीर का मिलन नहीं, यह आत्मा और ऊर्जा का संतुलन भी है।

मानसिक स्तर – प्रेम, आत्मीयता और संतोष
संभोग केवल शारीरिक क्रिया तक सीमित नहीं है, इसका गहरा संबंध मन, भावनाओं और आत्मीयता से भी होता है। जब यह केवल इंद्रियों की संतुष्टि के लिए किया जाता है, तो यह अस्थायी सुख देता है। लेकिन जब इसमें प्रेम, आत्मीयता और भावनात्मक जुड़ाव जुड़ जाता है, तो यह एक गहरे स्तर का संतोष प्रदान करता है।
आगे समझाएंगे कि मानसिक स्तर पर संभोग का क्या प्रभाव पड़ता है और यह प्रेम, आत्मीयता और संतोष से कैसे जुड़ा हुआ है।
प्रेम (Love) – संभोग का सबसे गहरा तत्व
संभोग केवल शरीरों का नहीं, बल्कि आत्माओं और भावनाओं का भी मिलन है। जब दो पर लिंगीय व्यक्ति एक-दूसरे से प्रेम और सम्मान के साथ जुड़ते हैं, तो संभोग केवल भौतिक क्रिया नहीं रहता, बल्कि यह एक गहरा अनुभव बन जाता है। पती पत्नी के प्रारंभिक जीवन और प्रेमी-प्रेमिका के बीच देखा जा सकता है। प्रेम के बिना संभोग एक साधारण क्रिया होता है, जो वेश्यालय में विधमान रहता है लेकिन प्रेम के साथ संभोग दिव्य आनंद का स्रोत बन जाता है।
(A) प्रेम से जुड़ी भावनाएँ
सुरक्षा (Security): प्रेम से यौन संबंध में आत्मविश्वास और सहजता आती है।
परस्पर सम्मान (Mutual Respect): जब संभोग प्रेम के साथ होता है, तो इसमें एक-दूसरे की भावनाओं और इच्छाओं का सम्मान होता है।
सहानुभूति (Empathy): प्रेमपूर्ण संबंधों में साथी की भावनाओं को समझना और उसकी ख़ुशी को अपनी ख़ुशी बनाना स्वाभाविक हो जाता है।
(B) प्रेम में संभोग की भूमिका
प्रेम को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम संभोग भी होता है। जब दो पर लिंगीय गहरे प्रेम में होते हैं, तो उनका शारीरिक संबंध एक-दूसरे के प्रति स्नेह और आत्मीयता को और मजबूत करता है। यह भावनात्मक निकटता को बढ़ाता है और रिश्ते को और गहरा बनाता है।
आत्मीयता (Intimacy) – गहरे जुड़ाव का एहसास
आत्मीयता केवल शारीरिक नहीं होती, बल्कि मानसिक और भावनात्मक भी होती है। दो लोगों के बीच गहरी आत्मीयता का मतलब है एक-दूसरे को पूरी तरह से स्वीकार करना, समझना और भरोसा करना। जब यौन संबंध केवल शारीरिक आवश्यकता के लिए नहीं, बल्कि आत्मीयता को बढ़ाने के लिए होता है, तो यह एक पूर्ण और संतोषजनक अनुभव बन जाता है।5उऊछ है
(A) आत्मीयता के प्रकार
1. सादृश्य आत्मीयता – जब दोनों दोस्त एक-दूसरे की भावनाओं को गहराई से समझते हैं। इसमें संवाद, सहभागिता सहयोग और एक-दूसरे के प्रति संकेत शामिल हैं।
2. मानसिक आत्मियता – जब दो पर लिंगीय लोग विचार, स्वप्न और जीवन के प्रति दृष्टिकोण साझा करते हैं। इस प्रकार की आत्मीयता लंबे समय तक चलती रहती है।
3. शारीरिक आत्मीयता – यह केवल यौन संबंध नहीं है, बल्कि एक-दूसरे की उपस्थिति में सहज और सुरक्षित महसूस करना भी आत्मीयता का हिस्सा है। यह गले की हड्डी, हाथ का सामान, प्यारी बड़ी चीजें और छोटे-छोटे पैरों में दिखता है।
(B) आत्मीयता और यौन संबंध
सफल और सुखी दांपत्य जीवन में आत्मीयता सबसे महत्वपूर्ण होती है। यदि केवल यौन आकर्षण हो, लेकिन आत्मीयता न हो, तो संबंध में गहराई नहीं आ पाती। जब आत्मीयता होती है, तो संभोग केवल शरीर तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह एक आध्यात्मिक और भावनात्मक मिलन का अनुभव बन जाता है।
संतोष (Satisfaction) – मानसिक शांति और पूर्णता की अनुभूति
(A) मानसिक संतोष का महत्व-
एक पूर्ण और संतुलित यौन जीवन व्यक्ति को मानसिक रूप से संतुष्ट और खुश रखने में मदद करता है। यदि व्यक्ति मानसिक रूप से संतुष्ट नहीं है, तो शारीरिक सुख भी अधूरा लगता है।
(B) संतोष के प्रमुख पहलू
1. भावनात्मक संतुलन– जब व्यक्ति अपने साथी के साथ खुश रहता है, तो यह उसके संपूर्ण जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। यह तनाव को कम करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।
2. रिश्ते में स्थिरता– संतोषजनक यौन जीवन एक रिश्ते को मजबूत और स्थिर बनाता है। जब दोनों साथी एक-दूसरे की ज़रूरतों को समझते हैं, तो इससे आपसी भरोसा और प्रेम बढ़ता है।
3. आत्म-सम्मान और आत्म-स्वीकृति– जब व्यक्ति अपने साथी के साथ संतुष्ट होता है, तो उसका आत्म-सम्मान बढ़ता है। वह खुद को अधिक स्वीकार करता है और आत्म-विश्वास से भर जाता है।
मानसिक स्तर पर संभोग का महत्व
✅ संभोग केवल शारीरिक सुख नहीं, बल्कि प्रेम और भावनात्मक जुड़ाव का अनुभव भी है।
✅ प्रेम और आत्मीयताीऽ केवल क्षणिक सुख देता है, पूर्ण आनंद का अनुभव नही कराता है।
✅ जब यौन संबंध आत्मीयता और भावनात्मक संतुलन के साथ होते हैं, तो वे मानसिक शांति और स्थायी संतोष प्रदान करते हैं।
संभोग केवल शरीर का मिलन नहीं, यह दो आत्माओं और दो भावनाओं का गहरा संबंध है।

ऊर्जात्मक स्तर – प्राण ऊर्जा का संचार
संभोग केवल शारीरिक और मानसिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह ऊर्जात्मक स्तर पर भी गहरा प्रभाव डालता है। जब दो पर लिंगीय व्यक्ति संभोग करते हैं, तो केवल शरीर ही नहीं, बल्कि उनकी ऊर्जा भी आपस में प्रवाहित होती है। इस ऊर्जा को प्राण शक्ति या कुंडलिनी शक्ति के रूप में जाना जाता है। यदि इसे सही तरीके से संतुलित किया जाए, तो यह आध्यात्मिक विकास और आनंद की उच्चतम अवस्था तक ले जाता है।
यहां आगे हम समझाएंगे कि संभोग के दौरान ऊर्जा का संचार कैसे होता है, यह सकारात्मक और नकारात्मक रूप से कैसे प्रभावित करता है, और तंत्र व योग में इसे कैसे एक साधना के रूप में देखा जाता है।
जानिए प्राण ऊर्जा क्या है?
(A) प्राण – जीवन की मूल शक्ति
संस्कृत में ‘प्राण’ का अर्थ है जीवनदायिनी शक्ति। यह वह ऊर्जा है जो हमारे शरीर, मन और आत्मा को नियंत्रित करती है। यह हमारे श्वास, भावनाओं, विचारों और यौन ऊर्जा में प्रवाहित होती है। योग और तंत्र में इसे ‘कुंडलिनी शक्ति’ के रूप में जाना जाता है, जो रीढ़ के निचले हिस्से (मूलाधार चक्र) में सुप्त अवस्था में रहती है।
(B) संभोग और ऊर्जा प्रवाह
संभोग के दौरान प्राण ऊर्जा का शक्तिशाली संचार होता है। यदि यह ऊर्जा संतुलित और नियंत्रित हो, तो व्यक्ति को संपूर्ण आनंद और आध्यात्मिक जागरूकता का अनुभव होता है। यदि यह ऊर्जा असंतुलित या नकारात्मक हो, तो व्यक्ति मानसिक और शारीरिक कमजोरी महसूस करता है।
संभोग के दौरान ऊर्जा का संचार
जानिए ऊर्जा के प्रवाह के दो प्रकार
1. संतुलित और सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह – जब प्रेम, आत्मीयता और सम्मान के साथ संभोग होता है, तो ऊर्जा सकारात्मक रूप से प्रवाहित होती है। यह शरीर को ऊर्जा से भर देता है, मानसिक शांति देता है, और कुंडलिनी शक्ति को जागृत करता है। इस अवस्था में संभोग एक साधना बन जाता है, जो आत्मज्ञान और आनंद की ओर ले जाता है।
2. असंतुलित और नकारात्मक ऊर्जा प्रवाह – यदि संभोग केवल वासना या भोग के लिए किया जाए, तो ऊर्जा बिखर जाती है और व्यक्ति मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर महसूस करने लगता है। यह जीवन ऊर्जा को नष्ट करता है, जिससे थकान, चिंता, और मानसिक असंतुलन होता है।नकारात्मक ऊर्जात्मक प्रवाह से असंतोष, चिड़चिड़ापन, कमजोरी सहित तमाम बिमारियां जन्म लेती है।
तंत्र और योग में संभोग का ऊर्जात्मक दृष्टिकोण
कुंडलिनी शक्ति और संभोग
तंत्र और योग में संभोग को केवल भोग नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का साधन माना गया है। कुंडलिनी शक्ति – यह ऊर्जा मूलाधार चक्र में स्थित होती है और जब यह सक्रिय होती है, तो रीढ़ की हड्डी के माध्यम से ऊपर चढ़कर सहस्रार चक्र (मस्तिष्क) तक जाती है। यदि संभोग को सही ऊर्जा संतुलन के साथ किया जाए, तो यह कुंडलिनी जागरण में सहायक होती है। इसे तंत्र में “मैत्री संभोग” या “संभोग द्वारा आत्मसाक्षात्कार” कहा गया है।
तांत्रिक संभोग (Tantric Sex) – दिव्य मिलन का अनुभव
तंत्र में संभोग को केवल शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक माना जाता है। जब दो पर लिंगीय गहरे प्रेम, आत्मीयता और आध्यात्मिक उद्देश्य के साथ संभोग करते हैं, तो वे ऊर्जा का आदान-प्रदान करते हैं और एक-दूसरे की प्राण शक्ति को बढ़ाते हैं। यह केवल आनंद का अनुभव नहीं, बल्कि आत्मा के मिलन और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने की प्रक्रिया होती है।
संभोग के दौरान ऊर्जात्मक संतुलन बनाए रखने के उपाय
✅ प्रेम और आत्मीयता के साथ संभोग करें- इससे ऊर्जा सकारात्मक रूप से प्रवाहित होगी।
✅ संभोग को केवल भौतिक क्रिया न मानें- इसे ऊर्जा और भावनाओं के आदान-प्रदान के रूप में देखें।
✅ सांसों और ध्यान का उपयोग करें- धीमी और गहरी सांसें लें, जिससे ऊर्जा नियंत्रित और संतुलित रहेगी।
✅ सकारात्मक साथी का चयन करें: नकारात्मक ऊर्जावान व्यक्ति के साथ संभोग करने से ऊर्जा का ह्रास होता है।
ऊर्जात्मक स्तर पर संभोग का महत्व
✅ संभोग केवल शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि ऊर्जा के आदान-प्रदान की प्रक्रिया भी है।
✅ जब इसे सही ऊर्जा संतुलन और प्रेम के साथ किया जाए, तो यह व्यक्ति को शक्ति, आनंद और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
✅ यदि इसे केवल भोग और वासना के रूप में लिया जाए, तो यह जीवन ऊर्जा को कमजोर करता है।
✅ योग और तंत्र में इसे कुंडलिनी जागरण का साधन माना गया है, जो व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
संभोग केवल शरीर का नहीं, बल्कि ऊर्जा, आत्मा और चेतना का भी मिलन है। जब इसे सही दृष्टिकोण से देखा जाए, तो यह केवल भोग नहीं, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी बनता है।

आध्यात्मिक स्तर – आत्मा और चेतना का मिलन
संभोग केवल शारीरिक या मानसिक सुख तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक पक्ष भी है। जब इसे शुद्ध भाव, प्रेम और ऊर्जा संतुलन के साथ किया जाता है, तो यह आत्मा और चेतना के मिलन का एक माध्यम बनता है। प्राचीन योग, तंत्र और आध्यात्मिक परंपराओं में संभोग को “दिव्य मिलन” कहा गया है, जहाँ शरीर के माध्यम से आत्मा को उच्च चेतना से जोड़ने का प्रयास किया जाता है। इसे सही रूप से समझने के लिए, यह जानना होगा कि आध्यात्मिक दृष्टि से संभोग कैसे आत्मा और चेतना को जोड़ता है।
जानिए आत्मा और संभोग का आध्यात्मिक संबंध
आत्मा का अनुभव – शुद्ध चेतना
आत्मा किसी भी इंद्रिय सुख या भौतिक तृप्ति से परे होती है।लेकिन जब संभोग केवल इंद्रियों की संतुष्टि के लिए नहीं, बल्कि प्रेम और ऊर्जा संतुलन के लिए किया जाता है, तो यह आत्मा को उच्च चेतना से जोड़ देती है। इसे “समर्पण” और “एकात्मता” का अनुभव कहा गया है, जिसमें दो पर लिंगीय व्यक्ति केवल शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से भी एक-दूसरे से जुड़ते हैं।
यौन ऊर्जा – सृजनात्मक शक्ति
आध्यात्मिक दृष्टि से संभोग केवल आनंद नहीं, बल्कि सृजन की शक्ति है। यह वह शक्ति है जो केवल जीवन उत्पन्न नहीं करती, बल्कि आध्यात्मिक जागरण की ओर भी ले जाती है।जब इसे सही मार्गदर्शन के साथ किया जाता है, तो यह “भोग से योग” और “वासना से समाधि” का रूप ले लेती है।
जानिए तंत्र में संभोग का आध्यात्मिक महत्व
शिव-शक्ति मिलन का प्रतीक
तंत्र शास्त्र में संभोग को शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक माना गया है। शिव (पुरुष ऊर्जा) और शक्ति (स्त्री ऊर्जा) जब संतुलित होते हैं, तो व्यक्ति पूर्णता, शांति और आत्मज्ञान का अनुभव करता है। यह केवल भौतिक मिलन नहीं, बल्कि दो विपरीत ऊर्ध्व-अधः ऊर्जाओं का दिव्य संयोग होता है। इस विषय पर पहले ही हमारी लेखनी प्रकाशित है सर्च आइकॉन पर क्लिक कर खोजिए और पढ़िए।
संभोग और कुंडलिनी जागरण
कुंडलिनी शक्ति रीढ़ के निचले हिस्से (मूलाधार चक्र) में सुप्त अवस्था में रहती है। जब सही ऊर्जात्मक संतुलन के साथ संभोग होता है, तो यह ऊर्जा सहस्रार चक्र (मस्तिष्क) तक जागृत होकर व्यक्ति को आध्यात्मिक आनंद और चेतना के उच्चतम स्तर पर पहुँचा जाती है। यही कारण है कि तंत्र मार्ग में संभोग को ध्यान और साधना का एक माध्यम भी माना गया है।
तांत्रिक संभोग – समाधि की ओर एक मार्ग
तंत्र में “संभोग से समाधि” की बात कही गई है, जिसमें संभोग केवल शरीर की क्रिया न होकर ध्यान और ऊर्जा जागरण का साधन बन जाता है। यह शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाकर पूर्णता और दिव्यता का अनुभव कराता है।
जानिए संभोग से आत्मा और चेतना का मिलन कैसे संभव है?
(A) सच्चा प्रेम और आत्मीयता
जब दो पर लिंगीय लोग केवल शरीर से नहीं, बल्कि मन और आत्मा से जुड़ते हैं, तो यह मिलन शुद्ध और आध्यात्मिक हो जाता है। इसे केवल भौतिक सुख न मानकर, एक उच्च चेतना का अनुभव समझा जाना चाहिए।
(B) ऊर्जा का संतुलन और नियंत्रण
संभोग के दौरान ऊर्जा का प्रवाह बहुत तीव्र होता है, यदि इसे सही तरीके से नियंत्रित किया जाए, तो यह आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली अनुभव बन जाता है। योग और ध्यान के माध्यम से इसे संतुलित करने की विधियाँ तंत्रशास्त्र में दी गई हैं।
(C) संभोग को ध्यान की तरह अपनाना
जब संभोग को ध्यान की तरह पूरी जागरूकता और समर्पण के साथ किया जाता है, तो यह केवल क्षणिक सुख नहीं देता, बल्कि आंतरिक शांति और आत्मज्ञान तक ले जाता है।इसीलिए तंत्र में इसे “योग के सर्वोच्च रूपों में से एक” माना गया है।
संभोग का आध्यात्मिक स्तर पर महत्व
✅ संभोग केवल शरीर का नहीं, बल्कि आत्मा और चेतना का भी मिलन है।
✅ जब इसे प्रेम, आत्मीयता और ऊर्जा संतुलन के साथ किया जाए, तो यह आध्यात्मिक आनंद का स्रोत बन जाता है।
✅ तंत्र में इसे शिव और शक्ति के मिलन के रूप में देखा गया है, जो व्यक्ति को पूर्णता और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
✅ यदि संभोग को जागरूकता, ध्यान और ऊर्जा नियंत्रण के साथ किया जाए, तो यह केवल भोग नहीं, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी बनता है।
Click on the link मोंक्ष का एक मार्ग जानने के लिए यहां क्लिक किजिये पढ़िए।
संभोग केवल शरीर का नहीं, आत्मा और चेतना का मिलन है। जब इसे सही दृष्टिकोण से देखा जाए, तो यह केवल भोग नहीं, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी है। इसलिए संभोग केवल शरीर का नहीं, बल्कि मन, आत्मा और ऊर्जा का भी गहन अनुभव है।
जानिए संभोग को सर्वोत्तम भोग क्यों माना गया है?
(A) जैविक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
प्राकृतिक आवश्यकता: संभोग जीवन की निरंतरता के लिए आवश्यक है।
डोपामिन और ऑक्सीटोसिन का संचार: संभोग के दौरान मस्तिष्क में “खुशी के हार्मोन” डोपामिन और ऑक्सीटोसिन का स्राव होता है, जो आनंद और संतोष प्रदान करता है।
तनाव और अवसाद में राहत: वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि संभोग से मानसिक तनाव कम होता है और नींद बेहतर होती है।
(B) आध्यात्मिक और तांत्रिक दृष्टिकोण
संभोग को तंत्र में ऊर्जा जागरण का माध्यम माना गया है।
कुंडलिनी जागरण यदि संभोग को सही ऊर्जा के साथ किया जाए, तो यह कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर सकता है, जिससे आध्यात्मिक उत्थान संभव होता है।
शिव-शक्ति का मिलन हिंदू तंत्र दर्शन में संभोग को शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक माना गया है, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा के संतुलन का द्योतक है।
(C) दार्शनिक दृष्टिकोण
संभोग केवल इंद्रिय सुख नहीं, बल्कि एकता और पूर्णता का अनुभव है। यह “अहं” (स्वयं) को मिटाकर “हम” (एकता) की भावना को जन्म देता है। कुछ ज्ञानी मानते हैं कि संभोग का सही अनुभव व्यक्ति को “अनंत” के करीब ला सकता है।
क्या संभोग से भी उत्तम कोई भोग हो सकता है?
संभोग को सर्वोत्तम भोग कहा गया है, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से कुछ और अनुभव इसे भी पार कर सकते हैं।
(A) समाधि – सर्वोच्च भोग
योग और ध्यान में “समाधि” की अवस्था को संभोग से भी श्रेष्ठ माना गया है। जब व्यक्ति अपनी चेतना को परमात्मा से जोड़ लेता है, तो वह आनंद सच्चिदानंद की स्थिति में पहुंचता है।यह स्थायी सुख होता है, जबकि संभोग क्षणिक होता है।उदाहरण के लिए-!
संतों और योगियों का आनंद- उन्होंने सांसारिक भोगों को त्यागकर “परमानंद” को प्राप्त किया।
भगवान कृष्ण की प्रेम लीला- इसे केवल भौतिक प्रेम नहीं, बल्कि आध्यात्मिक प्रेम का सर्वोच्च स्वरूप माना जाता है।
(B) मातृत्व और पितृत्व का सुख
संभोग का सबसे पवित्र परिणाम संतान उत्पत्ति है। माता-पिता बनने का सुख और जिम्मेदारी संभोग से भी श्रेष्ठ मानी जा सकती है, क्योंकि इसमें सृजन का आनंद होता है। यह निःस्वार्थ प्रेम का रूप है, जिसमें कोई स्वार्थ नहीं, केवल त्याग और देखभाल होती है।
(C) निष्काम प्रेम और भक्ति का आनंद
जब प्रेम वासना से ऊपर उठ जाता है, तब वह दिव्य प्रेम बन जाता है। संत मीरा, राधा-कृष्ण का प्रेम, भक्त प्रह्लाद की भक्ति यह सब दिखाते हैं कि निष्काम प्रेम संभोग से भी ऊँचा हो सकता है।
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क्या संभोग ही सर्वोत्तम भोग है?
संभोग सर्वोत्तम भोग है, यदि-
✅ यह प्रेम, आत्मीयता और ऊर्जा संतुलन के साथ किया जाए।
✅यह केवल शारीरिक क्रिया न होकर मानसिक और आध्यात्मिक भी हो।
✅ इसे समझदारी और सम्मान के साथ अपनाया जाए।
संभोग से भी उत्तम भोग है, यदि:
✅ व्यक्ति समाधि या आत्म-साक्षात्कार की स्थिति में पहुंच जाए।
✅ प्रेम शुद्ध, निःस्वार्थ और दिव्य रूप में बदल जाए।
✅ व्यक्ति भौतिक सुखों से परे, आत्मा के आनंद को पहचान ले।
अंतिम वाक्य-
➡ सामान्य व्यक्ति के लिए संभोग सर्वोत्तम भोग है।
➡ लेकिन उच्च आध्यात्मिक अवस्था में पहुँचने पर ध्यान, समाधि और निःस्वार्थ प्रेम उससे भी श्रेष्ठ बन जाता है।
➡ सत्य यह है कि हर भोग का अनुभव हमें मोक्ष और परम आनंद की ओर ले जाने के लिए है – यदि हम उसे सही दृष्टि से देखें।
संभोग से मोंक्ष और समाधि तक की यात्रा ही सच्चा आध्यात्मिक विकास है। यह दैवीय कृपा से लिखा गया लेखनी अकाट्य सत्य है। अगर इस लेखनी पर कोई आपका नकारात्मक सोच हो तो हमें बता सकते हैं।

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