अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? एक प्राचीन तांत्रिक प्रक्रिया है जो साधक को धन, सौंदर्य, यश और आत्मिक शांति प्रदान करती है। भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी में जानिए साधना की विधि, सामग्री, मंत्र, लाभ और सावधानियों की सम्पूर्ण जानकारी।
अनुरागिनी यक्षिणी साधना एक प्राचीन तांत्रिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो हिंदू तंत्र शास्त्रों में वर्णित अष्ट यक्षिणियों में से एक, अनुरागिनी यक्षिणी की कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। यह साधना धन, वैभव, यश, सौंदर्य, और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। अनुरागिनी यक्षिणी का स्वरूप अत्यंत सुंदर, शुभ्रवर्ण, और सौम्य है, और वह साधक को माता, बहन, या सखी के रूप में दर्शन दे सकती हैं। यह साधना शक्तिशाली होने के साथ-साथ अत्यंत जटिल है, और इसके लिए गुरु मार्गदर्शन, सात्विक जीवनशैली, और पूर्ण समर्पण आवश्यक है।
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1. अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? का स्वरूप और तांत्रिक महत्व

अनुरागिनी यक्षिणी अष्ट यक्षिणियों (सुर सुंदरी, मनोहारिणी, कनकावती, कामेश्वरी, रतिप्रिया, पद्मिनी, नटी, और अनुरागिनी) में से एक हैं, जो यक्ष जाति की दिव्य और अलौकिक स्त्रियां हैं। यक्षिणियां धन के देवता कुबेर की अधीनस्थ होती हैं और धन, वैभव, और सौंदर्य की रक्षक मानी जाती हैं। अनुरागिनी यक्षिणी का स्वरूप कमल के समान कोमल, शुभ्रवर्ण, और मनमोहक है। वह सौम्य और कृपालु स्वभाव की हैं, और साधक को धन, यश, और इच्छापूर्ति का वरदान देती हैं। तंत्र ग्रंथों में वर्णित है कि वह साधक के समक्ष विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकती हैं, जैसे एक सौम्य माता या प्रेममयी सखी।
उदाहरण के लिए, एक साधक ने बताया कि साधना के दौरान उसे स्वप्न में एक श्वेत वस्त्रधारी सुंदर स्त्री ने दर्शन दिए, जिन्होंने उसे व्यापार में सफलता का आशीर्वाद दिया। इस साधना का महत्व इसलिए है क्योंकि यह साधक को भौतिक सुखों के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करती है। यह साधना केवल सात्विक और शुद्ध भाव से करने पर ही फलदायी होती है।
2. अनुरागिनी साधना कैसे करें? का उद्देश्य और इसके लाभ
अनुरागिनी यक्षिणी साधना का उद्देश्य साधक के जीवन में समृद्धि, सौंदर्य, और मनोकामनाओं की पूर्ति है। तंत्र शास्त्रों में उल्लेख है कि अनुरागिनी यक्षिणी साधक को 1000 स्वर्ण मुद्राएं प्रदान कर सकती हैं, जो धन और ऐश्वर्य का प्रतीक है। यह साधना यौवन, शारीरिक और मानसिक शक्ति, आत्मविश्वास, और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, एक व्यापारी ने इस साधना को गुरु के मार्गदर्शन में किया और कुछ ही महीनों में उसके व्यवसाय में अप्रत्याशित वृद्धि हुई, साथ ही उसे सामाजिक मान-सम्मान भी प्राप्त हुआ।
यह साधना प्रेम संबंधों में सामंजस्य, यश की प्राप्ति, और आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करती है। हालांकि, इसका उद्देश्य केवल सात्विक और नैतिक होना चाहिए। यदि साधक इसे स्वार्थी या तामसिक उद्देश्य (जैसे दूसरों को हानि पहुंचाने) के लिए करता है, तो साधना विफल हो सकती है। यह साधना साधक को न केवल सांसारिक सुख देती है, बल्कि उसे ईश्वरीय कृपा और आत्मिक शांति की ओर भी ले जाती है।
3. अनुरागिनी यक्षिणी साधक कैसे करें? की योग्यता और मानसिक-शारीरिक तैयारी
अनुरागिनी यक्षिणी साधना के लिए साधक को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से पूर्ण रूप से तैयार होना आवश्यक है। यह साधना गृहस्थियों के लिए कठिन हो सकती है, क्योंकि इसमें पूर्ण ब्रह्मचर्य, सात्विक आहार, और मांस-मदिरा से परहेज की आवश्यकता होती है। साधक को अपने मन को शुद्ध करने के लिए चान्द्रायण व्रत, रुद्राभिषेक, या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक साधक ने साधना से पहले 40 दिनों तक चान्द्रायण व्रत किया, जिससे उसका मन शांत और एकाग्र हुआ, और उसे साधना में सफलता मिली।
साधक को तंत्र शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए और साधना के नियमों का गहन ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। उसे पूर्ण विश्वास, धैर्य, और समर्पण के साथ साधना में प्रवेश करना चाहिए। साधक को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वह साधना केवल सात्विक उद्देश्य के लिए कर रहा है। उदाहरण के तौर पर, एक साधक जो अपनी पारिवारिक समस्याओं को हल करने के लिए साधना करना चाहता था, उसने पहले गुरु से परामर्श लिया और अपनी मानसिक कमजोरियों को दूर किया।
4. अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? का शुभ मुहूर्त और स्थान का चयन
अनुरागिनी यक्षिणी साधना के लिए शुभ मुहूर्त और स्थान का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है। तंत्र शास्त्रों के अनुसार, यह साधना शुक्रवार, पूर्णिमा, या पुष्य नक्षत्र के दिन शुरू करना शुभ माना जाता है। मध्यरात्रि (11:00 बजे से 2:00 बजे के बीच) साधना के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है। साधना का स्थान एकांत, स्वच्छ, और बाहरी व्यवधानों से मुक्त होना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक साधक ने अपने घर के एकांत कक्ष को साधना के लिए चुना, जहां उसने सभी खिड़कियां बंद कर दीं और मोबाइल फोन को स्विच ऑफ रखा ताकि कोई व्यवधान न हो।
साधना कक्ष में किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं होनी चाहिए। कुछ तांत्रिक ग्रंथों में घर पर साधना करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते साधक गोपनीयता और शुद्धता बनाए रखे। साधना स्थल पर यक्षिणी का चित्र, यंत्र, या मूर्ति स्थापित की जानी चाहिए। स्थान को पवित्र करने के लिए गंगाजल का छिड़काव और धूप-दीप से पूजन करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, एक साधक ने साधना स्थल को गोमूत्र और गंगाजल से शुद्ध किया, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ।
5. अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? के लिए सामग्री और यंत्र की स्थापना
अनुरागिनी यक्षिणी साधना के लिए विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, जो साधना को शक्तिशाली बनाती है। इसमें पारद अष्टाक्ष गुटिका, अष्ट यक्षिणी सिद्ध यंत्र, यक्षिणी माला (रुद्राक्ष या स्फटिक), भोजपत्र, कुंकुम, केसर, चंदन, पुष्प (कमल या गुलाब), अक्षत, धूप, घी का दीपक, और नैवेद्य (सात्विक मिठाई या फल) शामिल हैं। साधक को लकड़ी के बजोट पर सफेद या लाल वस्त्र बिछाकर उस पर कुंकुम और चंदन से यक्षिणी यंत्र बनाना चाहिए। यंत्र के मध्य में पारद अष्टाक्ष गुटिका स्थापित की जाती है।
उदाहरण के लिए, एक साधक ने भोजपत्र पर यक्षिणी का चित्र बनाया और उसे केसर मिश्रित स्याही से मंत्र लिखकर सिद्ध किया। इन सामग्रियों को सिद्ध करने के लिए गुरु मंत्र या मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र का जाप करना चाहिए। एक अन्य उदाहरण में, एक साधक ने साधना के लिए विशेष रूप से सिद्ध पारद गुटिका का उपयोग किया, जिसे उसने अपने गुरु से प्राप्त किया था। यह सामग्री साधना की ऊर्जा को केंद्रित करती है और साधक को यक्षिणी की कृपा प्राप्त करने में सहायता करती है।
6. अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? अनुरागिनी यक्षिणी मंत्र और जाप की विधि
अनुरागिनी यक्षिणी मंत्र प्रमुख रूप से यह है— ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा। कुछ परंपराओं में वैकल्पिक मंत्र जैसे ॐ ह्रीं अनुरागिणी मैथुन प्रिये स्वाहा का भी उपयोग होता है। साधक को इस मंत्र का जाप यक्षिणी माला (108 मनकों वाली) पर करना चाहिए। सामान्यतः प्रतिदिन 8000 मंत्र जाप एक माह तक करने का विधान है। उदाहरण के लिए, एक साधक ने प्रतिदिन 10 माला (1080 मंत्र) जाप किया और 30 दिनों में कुल 8000 जाप पूर्ण किए। पूर्णिमा के दिन विशेष पूजन और रात्रि में अधिक जाप करना चाहिए।
प्रत्येक जाप सत्र से पहले और बाद में मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र (ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः) का 108 बार जाप करना शुभ होता है। मंत्र जाप के दौरान साधक को पूर्ण एकाग्रता बनाए रखनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर, एक साधक ने जाप के दौरान यक्षिणी के स्वरूप का ध्यान किया, जिससे उसका मन स्थिर रहा और उसे साधना में गहरे अनुभव प्राप्त हुए। मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और सही होना चाहिए।
7. अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? की विस्तृत प्रक्रिया और नियम
साधना शुरू करने से पहले साधक को स्नान करना, शुद्ध सफेद या लाल वस्त्र धारण करना, और नित्यकर्म पूर्ण करना चाहिए। साधना कक्ष में यक्षिणी यंत्र और चित्र की स्थापना के बाद धूप, दीप, और नैवेद्य से पूजन करें। पूजन के दौरान यक्षिणी को कमल पुष्प, चंदन, और कुंकुम अर्पित करें। मंत्र जाप के दौरान साधक का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य और सात्विक भोजन (बिना लहसुन-प्याज) अनिवार्य है। उदाहरण के लिए, एक साधक ने साधना के दौरान केवल फल और दूध का सेवन किया, जिससे उसकी शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनी रही।
साधक को साधना के अनुभवों को गोपनीय रखना चाहिए। साधना की अवधि 3, 9, 11, या 30 दिन की हो सकती है। उदाहरण के तौर पर, एक साधक ने 11 दिनों की साधना की और प्रत्येक दिन 3 घंटे जाप किया। प्रत्येक दिन साधना समाप्त होने पर यक्षिणी को प्रणाम और धन्यवाद देना चाहिए। साधक को साधना के दौरान किसी से बातचीत या सामाजिक मेलजोल से बचना चाहिए।
8. अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? में सावधानियां और संभावित जोखिम
अनुरागिनी यक्षिणी साधना में छोटी सी लापरवाही साधक के लिए हानिकारक हो सकती है। इसे तलवार की धार पर चलने के समान माना जाता है। साधक को आलस्य, भय, क्रोध, या कामवासना से बचना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक साधक ने साधना के दौरान मोबाइल फोन का उपयोग किया, जिसके कारण उसकी एकाग्रता भंग हुई और उसे नकारात्मक स्वप्न का अनुभव हुआ। साधना के दौरान यदि कुस्वप्न, नकारात्मक संकेत, या शारीरिक-मानसिक असंतुलन हो, तो साधना स्थगित कर देनी चाहिए।
उदाहरण के तौर पर, एक साधक को साधना के पांचवें दिन तीव्र सिरदर्द और भय का अनुभव हुआ, जिसके बाद उसने गुरु की सलाह पर साधना रोक दी। बिना गुरु के मार्गदर्शन के साधना करने से कुंडलिनी जागरण या चक्रों में असंतुलन हो सकता है। साधक को यक्षिणी को माता या सखी के भाव से पूजना चाहिए। एक साधक ने भोग की इच्छा से साधना की, जिसके परिणामस्वरूप उसे मानसिक अशांति का सामना करना पड़ा। साधना के नियमों का उल्लंघन करने से यक्षिणी की नाराजगी हो सकती है।
9. अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? सिद्धि के लक्षण और अलौकिक अनुभव
अनुरागिनी यक्षिणी साधना में सिद्धि प्राप्त होने पर साधक को अलौकिक अनुभव हो सकते हैं। यक्षिणी सौम्य और सुंदर स्त्री के रूप में प्रकट हो सकती हैं या स्वप्न में दर्शन दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, एक साधक ने साधना के 21वें दिन स्वप्न में एक श्वेत वस्त्रधारी स्त्री को देखा, जिसने उसे धन लाभ का आशीर्वाद दिया, और कुछ ही दिनों में उसकी आर्थिक स्थिति सुधर गई। सिद्धि के लक्षणों में अचानक धन लाभ, यश की प्राप्ति, और आत्मविश्वास में वृद्धि शामिल हैं।
एक अन्य उदाहरण में, एक साधक को साधना के बाद सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई और उसके परिवार में सुख-शांति बनी। साधक को सिद्धि का उपयोग लोक कल्याण और सात्विक कार्यों के लिए करना चाहिए। साधना के अनुभव गोपनीय रखने चाहिए, क्योंकि इन्हें प्रकट करने से सिद्धि नष्ट हो सकती है। साधक को साधना के बाद नियमित रूप से यक्षिणी का पूजन और मंत्र जाप जारी रखना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, एक साधक ने सिद्धि के बाद प्रत्येक पूर्णिमा को यक्षिणी का पूजन किया, जिससे उसकी सिद्धि स्थायी रही।
10. अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? गुरु की भूमिका और साधक का नैतिक दायित्व
अनुरागिनी यक्षिणी साधना में गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है। गुरु साधना की विधि, मंत्र, और नियम सिखाते हैं, साथ ही साधक को सही दिशा और नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, एक साधक को उसके गुरु ने साधना से पहले 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ करने की सलाह दी, जिससे उसका मन शुद्ध और निर्भय हुआ। बिना गुरु के साधना करना जोखिम भरा हो सकता है। एक साधक ने बिना गुरु के साधना की और उसे मानसिक भटकाव का सामना करना पड़ा। साधक को साधना को आध्यात्मिक उन्नति और समाज कल्याण के लिए करना चाहिए।
अनुरागिनी यक्षिणी को सात्विक भाव से पूजने पर वह साधक को सुख-समृद्धि और ईश्वरीय कृपा प्रदान करती हैं। साधना के बाद साधक को नैतिकता और संयम का पालन करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, एक साधक ने सिद्धि के बाद अपनी आय का एक हिस्सा दान में दिया, जिससे उसकी सिद्धि और समृद्धि बनी रही। गुरु भक्ति और सात्विक जीवनशैली साधक को यक्षिणी की कृपा बनाए रखने में सहायता करती है।
अनुरागिनी यक्षिणी साधना कैसे करें? संक्षिप्त जानकारी
अनुरागिनी यक्षिणी साधना एक शक्तिशाली और रहस्यमयी प्रक्रिया है, जो साधक के जीवन को भौतिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध कर सकती है। इसे सात्विक भाव, शुद्ध मन, और गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए। साधक को नियमों, सावधानियों, और नैतिकता का पालन करना चाहिए। यह स्पष्ट है कि सही दृष्टिकोण और समर्पण के साथ यह साधना साधक को धन, यश, और आत्मिक शांति प्रदान कर सकती है। यह साधना केवल सांसारिक सुख के लिए नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति और लोक कल्याण के लिए होनी चाहिए।
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आप गुरुदेव को प्रणाम बहुत अच्छा लगा यह जानकारी।